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'''दिगम्बर हांसदा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Digamber Hansda'', जन्म- [[16 अक्टूबर]], [[1939]]; मृत्यु- [[19 नवंबर]], [[2020]]) [[संथाली भाषा]] के विद्वान शिक्षाविद और [[प्रद्मश्री]] से सम्मानित थे। ट्राइबल और उनकी [[भाषा]] के उत्थान के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वे केंद्र सरकार के ट्राइबल अनुसंधान संस्थान एवं साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे। दिगम्बर हांसदा ने पाठ्यक्रम की कई पुस्तकों का [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] से संथाली में अनुवाद किया। उन्होंने [[भारतीय संविधान]] का भी संथाली भाषा की ओवचिकी लिपि में अनुवाद किया। स्कूल-कॉलेज की पुस्तकों में संथाली भाषा को जुड़वाने का श्रेय प्रोफ़ेसर दिगम्बर हांसदा को ही है। वे लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य रहे एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे। वर्ष [[2018]] में उन्हें [[साहित्य]] और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए '[[पद्मश्री]]' सम्मान से नवाजा गया था।<ref>{{cite web |url= https://www.livehindustan.com/jharkhand/story-santhal-language-scholar-academician-and-padmashree-professor-of-jharkhand-digambar-hansda-died-3636401.html|title=झारखंड में संथाली भाषा के विद्वान शिक्षाविद और प्रद्मश्री प्रोफेसर दिगंबर हांसदा का निधन|accessmonthday=21 नवंबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=livehindustan.com |language=हिंदी}}</ref>
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==परिचय==
 
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करनडीह स्थित सारजोमटोला निवासी दिगम्बर हांसदा का जन्म 16 अक्तूबर, 1939 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला स्थित डोभापानी (बेको) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई। मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाइस्कूल से पास की। वर्ष [[1963]] में रांची यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक और [[1965]] में एमए की परीक्षा पास की। एलबीएसएम कॉलेज के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही। वे लंबे समय तक करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज में शिक्षक रहते हुए टिस्काे आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी और भारत सेवाश्रम संघ, सोनारी से भी जुड़े रहे।
 
करनडीह स्थित सारजोमटोला निवासी दिगम्बर हांसदा का जन्म 16 अक्तूबर, 1939 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला स्थित डोभापानी (बेको) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई। मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाइस्कूल से पास की। वर्ष [[1963]] में रांची यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक और [[1965]] में एमए की परीक्षा पास की। एलबीएसएम कॉलेज के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही। वे लंबे समय तक करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज में शिक्षक रहते हुए टिस्काे आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी और भारत सेवाश्रम संघ, सोनारी से भी जुड़े रहे।
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प्रोफेसर दिगम्बर हांसदा का जनजातीय और उनकी [[भाषा]] के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे केंद्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान संस्थान व साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे। इन्होंने कई पाठ्य पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया था। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स बनाया। उन्होंने भारतीय संविधान का संथाली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद किया।<ref>{{cite web |url= https://www.jagran.com/jharkhand/jamshedpur-death-reaction-of-digamber-hansda-21080380.html|title=भारतीय संविधान को संताली भाषा के ओलचिकी में दिगंबर बाबू ने किया अनुवाद|accessmonthday=21 नवंबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=jagran.com |language=हिंदी}}</ref>
 
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वर्ष [[2017]] में दिगम्बर हांसदा आईआईएम बोधगया की प्रबंध समिति के सदस्य बनाए गए थे। वह ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संताली भाषा) के सदस्य रहे। सेंट्रल इंस्टीच्यूट आफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर, ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संथाली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जाहेरथान कमेटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे। जिला साक्षरता समिति पूर्वी सिंहभूम एवं संताली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी [[नई दिल्ली]] और जेपीएससी झारखंड के सदस्य रहे।
 
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शिक्षाविद, साहित्यकार, समाजसेवी होने के साथ दिगम्बर हांसदा बेहद नेक दिल इंसान भी थे। उन्होंने आदिवासी भाषा साहित्य के क्षेत्र में [[झारखंड]] की अलग पहचान दिलाई। उनकी निम्न कृतियाँ काफी लोकप्रिय रही हैं<ref name="pp"/>-
 
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10:00, 21 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

दिगम्बर हांसदा
दिगम्बर हांसदा
पूरा नाम दिगम्बर हांसदा
जन्म 16 अक्टूबर, 1939
जन्म भूमि डोभापानी, पूर्वी सिंहभूम जिला, झारखंड
मृत्यु 19 नवंबर, 2020
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शिक्षा, साहित्य, समाजसेवा
मुख्य रचनाएँ सरना गद्य-पद्य संग्रह, संथाली लोककथा संग्रह, भारोतेर लौकिक देव देवी, गंगमाला, संथालों का गोत्र आदि।
विद्यालय मानपुर हाइस्कूल, रांची यूनिवर्सिटी
शिक्षा विज्ञान स्नातक और 1965 में एमए
प्रसिद्धि संथाली विद्वान, शिक्षाविद, साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी वर्ष 2017 में दिगम्बर हांसदा आईआईएम बोधगया की प्रबंध समिति के सदस्य बनाए गए थे। वह ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संताली भाषा) के सदस्य रहे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

दिगम्बर हांसदा (अंग्रेज़ी: Digamber Hansda, जन्म- 16 अक्टूबर, 1939; मृत्यु- 19 नवंबर, 2020) संथाली भाषा के विद्वान शिक्षाविद और पद्मश्री से सम्मानित थे। ट्राइबल और उनकी भाषा के उत्थान के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वे केंद्र सरकार के ट्राइबल अनुसंधान संस्थान एवं साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे। दिगम्बर हांसदा ने पाठ्यक्रम की कई पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया। उन्होंने भारतीय संविधान का भी संथाली भाषा की ओवचिकी लिपि में अनुवाद किया। स्कूल-कॉलेज की पुस्तकों में संथाली भाषा को जुड़वाने का श्रेय प्रोफ़ेसर दिगम्बर हांसदा को ही है। वे लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य रहे एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे। वर्ष 2018 में उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'पद्मश्री' सम्मान से नवाजा गया था।[1]

परिचय

करनडीह स्थित सारजोमटोला निवासी दिगम्बर हांसदा का जन्म 16 अक्तूबर, 1939 को पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला स्थित डोभापानी (बेको) में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई। मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाइस्कूल से पास की। वर्ष 1963 में रांची यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक और 1965 में एमए की परीक्षा पास की। एलबीएसएम कॉलेज के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही। वे लंबे समय तक करनडीह स्थित एलबीएसएम कॉलेज में शिक्षक रहते हुए टिस्काे आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी और भारत सेवाश्रम संघ, सोनारी से भी जुड़े रहे।

दिगम्बर हांसदा ने आदिवासियों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी काम किया। प्रो. हांसदा संथाल साहित्य अकादमी के संस्थापक सदस्य भी रहे।[2]

मुख्य योगदान

प्रोफेसर दिगम्बर हांसदा का जनजातीय और उनकी भाषा के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे केंद्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान संस्थान व साहित्य अकादमी के भी सदस्य रहे। इन्होंने कई पाठ्य पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद किया था। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स बनाया। उन्होंने भारतीय संविधान का संथाली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद किया।[3]

वर्ष 2017 में दिगम्बर हांसदा आईआईएम बोधगया की प्रबंध समिति के सदस्य बनाए गए थे। वह ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संताली भाषा) के सदस्य रहे। सेंट्रल इंस्टीच्यूट आफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर, ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संथाली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जाहेरथान कमेटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहे। जिला साक्षरता समिति पूर्वी सिंहभूम एवं संताली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी नई दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य रहे।

कृतियाँ

शिक्षाविद, साहित्यकार, समाजसेवी होने के साथ दिगम्बर हांसदा बेहद नेक दिल इंसान भी थे। उन्होंने आदिवासी भाषा साहित्य के क्षेत्र में झारखंड की अलग पहचान दिलाई। उनकी निम्न कृतियाँ काफी लोकप्रिय रही हैं[2]-

  1. सरना गद्य-पद्य संग्रह
  2. संथाली लोककथा संग्रह
  3. भारोतेर लौकिक देव देवी
  4. गंगमाला
  5. संथालों का गोत्र

दिगम्बर हांसदा के पास किताबों और शोध का खासा संग्रह भी रहा है।

सम्मान व पुरस्कार

ऑल इण्डिया संथाली फिल्म एसोसिएशन द्वारा उनको 'लाइव टाइम अचीवमेंट अवार्ड' प्रदान किया गया था। वर्ष 2009 में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन ने उन्हें 'स्मारक सम्मान' से सम्मानित किया। वहीं भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा दिगम्बर हांसदा को 'डॉ. अंबेदकर फेलोशिप' प्रदान किया गया।

वर्ष 2018 में जब प्रो. हांसदा को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 'पद्म श्री' से सम्मानित किया था, तब पद्म श्री मिलने पर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा था कि "यह एक पड़ाव मात्र है। सम्मान की घोषणा से अच्छा लग रहा है और यह खुशी की बात है। अभी संथाली भाषा के लिए बहुत कुछ करना है"।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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