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− | द्वारका प्रसाद मिश्रा [[1937]] और [[1946]] में केन्द्रीय प्रान्तों के मंत्री रहे। वे | + | द्वारका प्रसाद मिश्रा [[1937]] और [[1946]] में केन्द्रीय प्रान्तों के मंत्री रहे। वे [[30 सितंबर]], [[1963]] से [[8 मार्च]], [[1967]] तक और फिर [[9 मार्च]], [[1967]] से [[29 जुलाई]], [[1967]] तक [[मध्य प्रदेश]] के [[मुख्यमंत्री]] भी रहे थे। पण्डित मिश्रा एक प्रसिद्ध पत्रकार, [[कवि]] और रचनाकार थे। |
==लेखन कार्य== | ==लेखन कार्य== | ||
[[1942]] में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने 'कृष्णायन' [[महाकाव्य]] की रचना की थी। [[कृष्ण]] के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही गई है। [[महाभारत]] के कृष्ण हमेशा द्वारका जी के आदर्श रहे। एक प्रखर पत्रकार के रूप में भी द्वारका प्रसाद जी ने [[1921]] में 'श्री शारदा' मासिक, [[1931]] में 'दैनिक लोकमत' और [[1947]] में साप्ताहिक 'सारथी' का सम्पादन किया। [[लाला लाजपत राय]] की [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की लाठी से हुई मौत पर 'लोकमत' में लिखे उनके सम्पादकीय पर [[मोतीलाल नेहरू|पण्डित मोतीलाल नेहरू]] ने कहा था कि- "[[भारत]] का सर्वश्रेष्ठ फौजदारी वकील भी इससे अच्छा अभियोग पत्र तैयार नहीं कर सकता।" [[जवाहरलाल नेहरू]] से मतभेद के कारण मिश्र जी को तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा था। | [[1942]] में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने 'कृष्णायन' [[महाकाव्य]] की रचना की थी। [[कृष्ण]] के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही गई है। [[महाभारत]] के कृष्ण हमेशा द्वारका जी के आदर्श रहे। एक प्रखर पत्रकार के रूप में भी द्वारका प्रसाद जी ने [[1921]] में 'श्री शारदा' मासिक, [[1931]] में 'दैनिक लोकमत' और [[1947]] में साप्ताहिक 'सारथी' का सम्पादन किया। [[लाला लाजपत राय]] की [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की लाठी से हुई मौत पर 'लोकमत' में लिखे उनके सम्पादकीय पर [[मोतीलाल नेहरू|पण्डित मोतीलाल नेहरू]] ने कहा था कि- "[[भारत]] का सर्वश्रेष्ठ फौजदारी वकील भी इससे अच्छा अभियोग पत्र तैयार नहीं कर सकता।" [[जवाहरलाल नेहरू]] से मतभेद के कारण मिश्र जी को तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा था। | ||
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द्वारका प्रसाद मिश्रा ने [[1954]] से [[1964]] तक 'सागर विश्वविद्यालय' के कुलपति के रूप में व्यतीत किया। उनके विद्या-व्यसन के संबंध में कहा जाता था कि- "विश्वविद्यालय के किसी प्राध्यापक या विद्यार्थी से अधिक उसके कुलपति अध्ययनरत रहते हैं।" [[1971]] में राजनीति से अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय [[साहित्य]] को समर्पित कर दिया था। | द्वारका प्रसाद मिश्रा ने [[1954]] से [[1964]] तक 'सागर विश्वविद्यालय' के कुलपति के रूप में व्यतीत किया। उनके विद्या-व्यसन के संबंध में कहा जाता था कि- "विश्वविद्यालय के किसी प्राध्यापक या विद्यार्थी से अधिक उसके कुलपति अध्ययनरत रहते हैं।" [[1971]] में राजनीति से अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय [[साहित्य]] को समर्पित कर दिया था। |
05:01, 29 मई 2015 के समय का अवतरण
द्वारका प्रसाद मिश्रा
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पूरा नाम | द्वारका प्रसाद मिश्रा |
जन्म | 5 अगस्त, 1901 |
जन्म भूमि | उन्नाव, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 31 मई, 1988 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
अभिभावक | पण्डित अयोध्या प्रसाद, रमा देवी |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | भूतपूर्व मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश; स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार। |
पार्टी | 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' |
कार्य काल | 30 सितंबर, 1963 से 8 मार्च, 1967 तक और फिर 9 मार्च, 1967 से 29 जुलाई, 1967 तक। |
शिक्षा | बी.ए., एलएलबी |
विद्यालय | 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' |
जेल यात्रा | 1932, 1940 और 1942 में। |
विशेष | 1942 में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने 'कृष्णायन' महाकाव्य की रचना की। कृष्ण के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही गई है। |
अन्य जानकारी | द्वारका प्रसाद मिश्रा 1937 और 1946 में केन्द्रीय प्रान्तों के मंत्री रहे। उन्होंने अंग्रेज़ी में अपनी आत्मकथा 'लिविंग एन एरा' लिखी थी, जिसमें बीसवीं सदी का पूरा इतिहास समाहित हैं। |
द्वारका प्रसाद मिश्रा (अंग्रेज़ी: Dwarka Prasad Mishra; जन्म- 5 अगस्त, 1901, उन्नाव, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 31 मई, 1988, दिल्ली) भारत के प्रसिद्ध राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और साहित्यकार थे। उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को भी सुशोभित किया था। द्वारका प्रसाद मिश्रा महात्मा गाँधी के 'असहयोग आन्दोलन' से जुड़ गये थे। राष्ट्रवादी आन्दोलनों में उन्होंने सक्रियता से अपना योगदान दिया था। जवाहरलाल नेहरू से मतभेदों के कारण इन्हें तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा। इन्होंने कई ऐतिहासिक शोध ग्रंथ भी लिखे थे। हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू और संस्कृत साहित्य से द्वारका प्रसाद जी को बहुत लगाव था।
जन्म तथा शिक्षा
द्वारका प्रसाद मिश्रा जी का जन्म 5 अगस्त, 1901 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में पढरी नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पण्डित अयोध्या प्रसाद और माता का नाम रमा देवी था। जब इनके पिता अयोध्या प्रसाद रायपुर में एक ठेकेदार के रूप में कार्य कर रहे थे, तब द्वारका प्रसाद ने यहीं से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। इस समय देश विदेशी सत्ता से संघर्ष कर रहा था। कुछ समय के लिए द्वारका प्रसाद मिश्रा ने कानपुर और जबलपुर में अध्ययन किया और 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' से स्नातकोत्तर की परीक्षा और क़ानून की डिग्री प्राप्त की।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
वर्ष 1920 में द्वारका प्रसाद मिश्रा महात्मा गाँधी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वे गाँधीजी के 'असहयोग आन्दोलन' से जुड़ गये और तब से राष्ट्रवादी आन्दोलनों में अग्रिम पंक्ति में रहे। देश की सेवा करते हुए जेल यात्राएँ उनकी साथी बन गई। द्वारका प्रसाद जी ने वर्ष 1932, 1940 और 1942 में जेल की सज़ाएँ भोंगी।
मंत्री पद
द्वारका प्रसाद मिश्रा 1937 और 1946 में केन्द्रीय प्रान्तों के मंत्री रहे। वे 30 सितंबर, 1963 से 8 मार्च, 1967 तक और फिर 9 मार्च, 1967 से 29 जुलाई, 1967 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे थे। पण्डित मिश्रा एक प्रसिद्ध पत्रकार, कवि और रचनाकार थे।
लेखन कार्य
1942 में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने 'कृष्णायन' महाकाव्य की रचना की थी। कृष्ण के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही गई है। महाभारत के कृष्ण हमेशा द्वारका जी के आदर्श रहे। एक प्रखर पत्रकार के रूप में भी द्वारका प्रसाद जी ने 1921 में 'श्री शारदा' मासिक, 1931 में 'दैनिक लोकमत' और 1947 में साप्ताहिक 'सारथी' का सम्पादन किया। लाला लाजपत राय की अंग्रेज़ों की लाठी से हुई मौत पर 'लोकमत' में लिखे उनके सम्पादकीय पर पण्डित मोतीलाल नेहरू ने कहा था कि- "भारत का सर्वश्रेष्ठ फौजदारी वकील भी इससे अच्छा अभियोग पत्र तैयार नहीं कर सकता।" जवाहरलाल नेहरू से मतभेद के कारण मिश्र जी को तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा था।
द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने अंग्रेज़ी में अपनी आत्मकथा 'लिविंग एन एरा' लिखी थी, जिसमें बीसवीं सदी का पूरा इतिहास समाहित हैं। ऐतिहासिक शोध ग्रंथ भी लिखे, जिनमें 'स्टडीज इन द प्रोटो हिस्ट्री ऑफ इंडिया और 'सर्च ऑफ लंका' विशेष उल्लेखनीय हैं। हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और उर्दू भाषा के साहित्य से उनका गहरा लगाव था। संस्कृत कवियों और उर्दू के शायरों के हिन्दी अनुवाद में उन्हें काफ़ी रस मिलता था।
कुलपति
द्वारका प्रसाद मिश्रा ने 1954 से 1964 तक 'सागर विश्वविद्यालय' के कुलपति के रूप में व्यतीत किया। उनके विद्या-व्यसन के संबंध में कहा जाता था कि- "विश्वविद्यालय के किसी प्राध्यापक या विद्यार्थी से अधिक उसके कुलपति अध्ययनरत रहते हैं।" 1971 में राजनीति से अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय साहित्य को समर्पित कर दिया था।
निधन
द्वारका प्रसाद जी शतरंज के माहिर खिलाड़ी थे। एक साहित्यकार, इतिहासविद और प्रखर राजनेता के रूप में प्रसिद्ध द्वारका प्रसाद मिश्रा जी निधन 5 मई, 1988 को दिल्ली हुआ। उनका पार्थिव शरीर जबलपुर में नर्मदा नदी के तट पर 'पंचतत्व' में लीन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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