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'''मास्ति वेंकटेश अय्यंगार''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Masti Venkatesha Iyengar'', जन्म: [[6 जून]], [[1891]]- मास्ति, [[कोलार ज़िला]] (कर्नाटक);  निधन : 6 जून, [[1986]]) 'कन्नड कहानी के प्रवर्तक' और ’कन्नड की संपत्ति’ के रूप में ख्याति प्राप्त [[कवि]], कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, अनुवादक और आलोचक थे।  
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==जीवन परिचय==
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'''मास्ति वेंकटेश अय्यंगार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Masti Venkatesha Iyengar'', जन्म: [[6 जून]], [[1891]], [[कोलार ज़िला]], [[कर्नाटक]]; निधन: [[6 जून]], [[1986]]) 'कन्नड़ कहानी के प्रवर्तक' और ’कन्नड़ की संपत्ति’ के रूप में ख्याति प्राप्त [[कवि]], कहानीकार, [[उपन्यासकार]], नाटककार, अनुवादक और आलोचक थे। इनके लगभग 15 [[कहानी]] संग्रह प्रकाशित हुए थे। मास्ति की [[शैली]] को कम से कम शब्दों में एक संपूर्ण अनुभव संप्रेषित करने की विलक्षण क्षमता प्राप्त है। 'नवरात्रि' एवं 'श्रीरामपट्टाभिषेक' उनके दो महत्त्वपूर्ण काव्य हैं।
[[कर्नाटक]] के [[कोलार ज़िला|कोलार ज़िले]] मालूर तालूक के मास्ति नामक गाँव में इनका जन्म हुआ। [[1914]] में मास्ति ने [[मद्रास विश्वविद्यालय]] से एम.ए. परीक्षा पास की। तदुपरांत मैसूर रियासत की सिविल सर्विस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर असिस्टेंट कमिश्नर बने। [[1930]] में जिलाधिकारी बने।
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==जन्म तथा शिक्षा==
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[[कर्नाटक]] में [[कोलार ज़िला|कोलार ज़िले]] के मालूर तालूक के 'मास्ति' नामक [[ग्राम]] में मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का जन्म हुआ था। [[1914]] में मास्ति ने [[मद्रास विश्वविद्यालय]] से एम.ए. की परीक्षा पास की थी। तदुपरांत मैसूर राज्य की 'सिविल सर्विस परीक्षा' में उत्तीर्ण होकर असिस्टेंट कमिश्नर बने। आप [[1930]] में जिलाधिकारी भी बने।
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==आधुनिक कन्नड़ कहानी के जनक==
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मास्ति "आधुनिक कन्नड़ कहानी के जनक" के रूप में प्रख्यात हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियां [[1910]]-[[1911]] में लिखीं। उनके लगभग 15 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए।
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====उपन्यास लेखन====
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मास्ति ने [[उपन्यास]] भी लिखे हैं, जिनमें से उनके दो ऐतिहासिक उपन्यास 'चेन्नबसवनायक' और 'चिक्क वीरराजेंद्र' अत्यंत प्रसिद्ध हैं। पहले उपन्यास की पृष्ठभूमि 18वीं [[शताब्दी]] के [[दक्षिण भारत]] की एक जागीर 'बिडानूर' है और दूसरे उपन्यास का कथासूत्र [[कुर्ग]] के अंतिम शासक से संबद्ध है, जिसका शासन [[1943]] में [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] ने अपने हाथ में ले लिया था।
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==भाषा तथा शैली==
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[[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] के बहुत कम उपन्यासों में समाज और बहुमुखी सामाजिक संबंधों का इन दो उपन्यासों जैसा सूक्ष्म एवं गहन चित्रण हुआ है। इसके बावजूद मास्ति मात्र उत्तेजित एवं संयम हैं और [[भाषा]] बोलचाल की है। इन्हीं करणों से उनका सरल वर्णन भी गहन अनुभव की महत्ता प्राप्त कर लेता है। मास्ति की [[शैली]] को कम से कम शब्दों में एक संपूर्ण अनुभव संप्रेषित करने की विलक्षण क्षमता प्राप्त है। 'नवरात्रि' एवं 'श्रीरामपट्टाभिषेक' उनके दो महत्त्वपूर्ण काव्य हैं।
 
==रचनाएँ==
 
==रचनाएँ==
 
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का रचना संसार समृद्ध है। बिन्नह, अरुण तावरे, चेलुवु, गौडरमल्ली, नवरात्रि आदि इसके कविता संग्रह हैं। 'श्रीराम पट्टाभिषेक' इनका [[महाकाव्य]] है। इनकी लिखी सैकड़ों कहानियाँ 10 भागों में प्रकाशित हैं। चेन्नबसव नायक और चिकवीर राजेन्द्र - मास्ति के दो वृहत उपन्यास हैं। काकनकोटे, ताळीकोटे, यशोधरा आदि नाटक हैं। लियर महाराजा, चंडमारूत, द्वादषरात्री, हैमलेट आदि इनके कन्नड अनुवाद नाटक हैं। मास्तिजी की आत्मकथा ‘भाव’ तीन भागों में प्रकाशित है। मास्ति ‘जीवन’ पत्रिका चलाते थे। [[1944]] से [[1965]] तक वे उसके संपादक थे।
 
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का रचना संसार समृद्ध है। बिन्नह, अरुण तावरे, चेलुवु, गौडरमल्ली, नवरात्रि आदि इसके कविता संग्रह हैं। 'श्रीराम पट्टाभिषेक' इनका [[महाकाव्य]] है। इनकी लिखी सैकड़ों कहानियाँ 10 भागों में प्रकाशित हैं। चेन्नबसव नायक और चिकवीर राजेन्द्र - मास्ति के दो वृहत उपन्यास हैं। काकनकोटे, ताळीकोटे, यशोधरा आदि नाटक हैं। लियर महाराजा, चंडमारूत, द्वादषरात्री, हैमलेट आदि इनके कन्नड अनुवाद नाटक हैं। मास्तिजी की आत्मकथा ‘भाव’ तीन भागों में प्रकाशित है। मास्ति ‘जीवन’ पत्रिका चलाते थे। [[1944]] से [[1965]] तक वे उसके संपादक थे।
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लियर महाराजा, चंडमारूत, द्वादषरात्री, हैमलेट
 
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==सम्मान और पुरस्कार==
 
==सम्मान और पुरस्कार==
मास्ति [[साहित्य अकादमी]] और [[भारतीय ज्ञानपीठ]] के पुरस्कारों से समाट्टत थे। मैसूर विश्वविद्यालय ने मानद डी. लिट उपाधि से उन्हें सम्मानित किया था। 15 वीं कन्नड साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष पद उन्हें मिला था। ऐसे कई सम्मान राज्य एवं राष्ट्रस्तर पर मास्ति को प्राप्त हुए थे।  
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मास्ति [[साहित्य अकादमी]] और [[भारतीय ज्ञानपीठ]] के पुरस्कारों से समाट्टत थे। मैसूर विश्वविद्यालय ने मानद डी. लिट उपाधि से उन्हें सम्मानित किया था। 15 वीं कन्नड साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष पद उन्हें मिला था। ऐसे कई सम्मान राज्य एवं राष्ट्रस्तर पर मास्ति को प्राप्त हुए थे।
 
 
  
 
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11:04, 10 अक्टूबर 2014 का अवतरण

मास्ति वेंकटेश अय्यंगार
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार
पूरा नाम मास्ति वेंकटेश अय्यंगार
अन्य नाम श्रीनिवास, मास्ति
जन्म 6 जून, 1891
जन्म भूमि मास्ति, कोलार ज़िला (कर्नाटक)
मृत्यु 6 जून, 1986
मृत्यु स्थान मैसूर
कर्म-क्षेत्र लेखक, प्राध्यापक, जिलाधिकारी
मुख्य रचनाएँ चेन्नबसव नायक और चिकवीर राजेन्द्र
भाषा कन्नड़, तमिल
विद्यालय मद्रास विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए.
पुरस्कार-उपाधि साहित्य अकादमी पुरस्कार, डी. लिट.-कर्नाटक वि.वि., फेलो-साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार
प्रसिद्धि ख्याति प्राप्त कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, अनुवादक और आलोचक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी मास्ति ने अंग्रेजी में 17 और कन्नड़ में 120 से अधिक पुस्तकें लिखी है।
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इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

मास्ति वेंकटेश अय्यंगार (अंग्रेज़ी: Masti Venkatesha Iyengar, जन्म: 6 जून, 1891, कोलार ज़िला, कर्नाटक; निधन: 6 जून, 1986) 'कन्नड़ कहानी के प्रवर्तक' और ’कन्नड़ की संपत्ति’ के रूप में ख्याति प्राप्त कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, अनुवादक और आलोचक थे। इनके लगभग 15 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए थे। मास्ति की शैली को कम से कम शब्दों में एक संपूर्ण अनुभव संप्रेषित करने की विलक्षण क्षमता प्राप्त है। 'नवरात्रि' एवं 'श्रीरामपट्टाभिषेक' उनके दो महत्त्वपूर्ण काव्य हैं।

जन्म तथा शिक्षा

कर्नाटक में कोलार ज़िले के मालूर तालूक के 'मास्ति' नामक ग्राम में मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का जन्म हुआ था। 1914 में मास्ति ने मद्रास विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा पास की थी। तदुपरांत मैसूर राज्य की 'सिविल सर्विस परीक्षा' में उत्तीर्ण होकर असिस्टेंट कमिश्नर बने। आप 1930 में जिलाधिकारी भी बने।

आधुनिक कन्नड़ कहानी के जनक

मास्ति "आधुनिक कन्नड़ कहानी के जनक" के रूप में प्रख्यात हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियां 1910-1911 में लिखीं। उनके लगभग 15 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए।

उपन्यास लेखन

मास्ति ने उपन्यास भी लिखे हैं, जिनमें से उनके दो ऐतिहासिक उपन्यास 'चेन्नबसवनायक' और 'चिक्क वीरराजेंद्र' अत्यंत प्रसिद्ध हैं। पहले उपन्यास की पृष्ठभूमि 18वीं शताब्दी के दक्षिण भारत की एक जागीर 'बिडानूर' है और दूसरे उपन्यास का कथासूत्र कुर्ग के अंतिम शासक से संबद्ध है, जिसका शासन 1943 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने हाथ में ले लिया था।

भाषा तथा शैली

कन्नड़ के बहुत कम उपन्यासों में समाज और बहुमुखी सामाजिक संबंधों का इन दो उपन्यासों जैसा सूक्ष्म एवं गहन चित्रण हुआ है। इसके बावजूद मास्ति मात्र उत्तेजित एवं संयम हैं और भाषा बोलचाल की है। इन्हीं करणों से उनका सरल वर्णन भी गहन अनुभव की महत्ता प्राप्त कर लेता है। मास्ति की शैली को कम से कम शब्दों में एक संपूर्ण अनुभव संप्रेषित करने की विलक्षण क्षमता प्राप्त है। 'नवरात्रि' एवं 'श्रीरामपट्टाभिषेक' उनके दो महत्त्वपूर्ण काव्य हैं।

रचनाएँ

मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का रचना संसार समृद्ध है। बिन्नह, अरुण तावरे, चेलुवु, गौडरमल्ली, नवरात्रि आदि इसके कविता संग्रह हैं। 'श्रीराम पट्टाभिषेक' इनका महाकाव्य है। इनकी लिखी सैकड़ों कहानियाँ 10 भागों में प्रकाशित हैं। चेन्नबसव नायक और चिकवीर राजेन्द्र - मास्ति के दो वृहत उपन्यास हैं। काकनकोटे, ताळीकोटे, यशोधरा आदि नाटक हैं। लियर महाराजा, चंडमारूत, द्वादषरात्री, हैमलेट आदि इनके कन्नड अनुवाद नाटक हैं। मास्तिजी की आत्मकथा ‘भाव’ तीन भागों में प्रकाशित है। मास्ति ‘जीवन’ पत्रिका चलाते थे। 1944 से 1965 तक वे उसके संपादक थे।

प्रमुख कृतियाँ

काव्य

अरुण, मलर, मूकन मक्कलु, मानवी, संक्रान्ति

उपन्यास

चेन्नबसव नायक, चिक्क वीरराजेन्द्र, सुबण्णा, शेषम्मा

नाटक

यशोधरा, काकन कोटे, पुरंदरदास

आत्मकथा

भाव (तीन भागों में)

संपादन

जीवन (मासिक) पत्रिका

अनुवाद

लियर महाराजा, चंडमारूत, द्वादषरात्री, हैमलेट

सम्मान और पुरस्कार

मास्ति साहित्य अकादमी और भारतीय ज्ञानपीठ के पुरस्कारों से समाट्टत थे। मैसूर विश्वविद्यालय ने मानद डी. लिट उपाधि से उन्हें सम्मानित किया था। 15 वीं कन्नड साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष पद उन्हें मिला था। ऐसे कई सम्मान राज्य एवं राष्ट्रस्तर पर मास्ति को प्राप्त हुए थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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