"वाचस्पति पाठक" के अवतरणों में अंतर

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05:39, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

वाचस्पति पाठक
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जन्म 5 सितम्बर, 1905
जन्म भूमि काशी (वर्तमान बनारस), उत्तर प्रदेश
मृत्यु 19 नवम्बर, 1980
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र कथाकार, सम्पादक
मुख्य रचनाएँ ‘सूरदास’, कल्पना, ‘काग़ज़ की टोपी’, ‘फेरीवाला’ आदि।
भाषा हिंदी
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आज़ादी के बाद जब 'अखिल भारतीय हिन्दी प्रकाशक संघ' की स्थापना दिल्ली में की गई तो इसका संयोजक भी पाठक जी को ही बनाया गया।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

वाचस्पति पाठक (अंग्रेज़ी: Vachaspati Pathak, जन्म: 5 सितम्बर, 1905; मृत्यु: 19 नवम्बर, 1980) का नाम प्रसिद्ध उपन्यासकारों के साथ लिया जाता है। उन्होंने 'काग़ज़ की टोपी' नामक कहानी से विशेष लोकप्रियता पाई थी। वाचस्पति पाठक अपने समय के एक महत्वपूर्ण कथाकार तो रहे ही, उल्लेखनीय संपादक भी रहे। उन्होंने अपनी पहचान साहित्यिक आंदोलन के सक्रिय योद्धा के रूप में बनाई।

जीवन परिचय

काशी (वर्तमान बनारस) के नवाब गंज मुहल्ले में वाचस्पति पाठक जी का जन्म हुआ था। उन दिनों उपन्यासकार 'प्रेमचन्द', 'रायकृष्णदास' और 'जयशंकर प्रसाद' की त्रिमूर्ति के तीन नवयुवक लेखकों का नाम काशी में अग्रणी था। उनमें 'पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' और विनोद शंकर व्यास के साथ वाचस्पति पाठक का नाम भी अनन्य है। वाचस्पति पाठक जी ने ‘काग़ज़ की टोपी’ कहानी से प्रसिद्धि प्राप्त की थी। ‘द्वादशी’ तथा 'प्रदीप' नामक पुस्तकों में इनकी कहानियाँ संकलित हैं।[1]

साहित्यिक योगदान

वाचस्पति पाठक ने अपनी पहचान साहित्यिक आंदोलन के सक्रिय योद्धा के रूप में बनाई। वह अपने समय के एक महत्वपूर्ण कथाकार के साथ-साथ उल्लेखनीय संपादक भी रहे। कलाप्रेमी तो आप थे ही, कला-संग्राहक भी थे। छायावाद के सभी प्रमुख रचनाकारों की रचनाएं इनके प्रकाशन से आईं। उत्कृष्ट रचनाओं को सम्मान दिलाने में आपकी सक्रियता देखते ही बनती थी। सन्‌ 1936 में आपके द्वारा संपादित 'इक्कीस कहानियां' और सन्‌ 1952 में संपादित 'नए एकांकी' उल्लेखनीय संग्रह हैं। आपके दो कहानी संग्रह 'द्वादशी' व 'प्रदीप' भी प्रकाशित हुए। 'प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की श्रेष्ठ रचनाएं' का संपादन भी आपने किया। आज़ादी के बाद जब 'अखिल भारतीय हिन्दी प्रकाशक संघ' की स्थापना दिल्ली में की गई तो इसका संयोजक भी पाठक जी को ही बनाया गया।[2]

प्रेमचंद और प्रसाद का प्रभाव

हिंदी के द्वितीय उत्थान के अंतर्गत प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद का इतना व्यापक और गहरा प्रभाव पड़ा कि हिंदी कहानी दो धाराओं में बँट गई। पहली धारा थी प्रसाद की मानवीय ललित भावनात्मक, कोमल भावनाओं के आकर्षण- विकर्षण की और दूसरी धारा थी प्रेमचंद की जिनकी कहानियों का उद्देश्य जीवन और समाज के विविध कार्यों और परिस्थितियों का चित्रण था। प्रसाद की परंपरा में रायकृष्ण दास, विनोद शंकर व्यास और वाचस्पति पाठक, चतुरसेन शास्त्री, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र', चंडी प्रसाद, हृदयेश, कमलकांत वर्मा तथा यमुना प्रसाद वैष्णव आदि है। वाचस्पति पाठक की कहानियों में मानवीय अनुभूतियों युक्त चरित्रों के चित्रण की प्रमुखता है। ‘सूरदास’, कल्पना, ‘काग़ज़ की टोपी’, ‘फेरीवाला’ इनकी प्रतिनिधि कहानियाँ हैं।[3]

एक संस्मरण

मैला आँचल के प्रकाशन के बाद उसको लेकर दो महत्त्वणूर्ण घटनाएँ घटीं। पहला यह कि फणीश्वरनाथ रेणु पर मानहानि का मुकदमा दायर किया गया और दूसरा उसे सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास "ढोंढ़ाईचरितमानस" की नकल में लिखा गया बिहार के ही कुछ लेखकों द्वारा प्रचारित किया गया। मुकद्दमा लड़ते हुए रेणु ने वाचस्पति पाठक को इसका पूरा ब्यौरा एक पत्र में लिख भेजा। रेणु ने लिखा है- कानून और कचहरी के पैंतरे ! भगवान बचायें। मुकद्दमा दिलचस्प है, इसलिए मेरी तारीख के दिन कचहरी में भीड़ लग जाती है। मेरे गाँव के पास एक सज्जन हैं- उन्होंने "मैला आँचल" के तहसीलदार को अपनी तस्वीर समझ लिया है। मूरख आदमी है, पुराना मुकदमेबाज है। संभवतः उसने अपने वकील से पहले भी सलाह ली होगी।" रेणु उसी पत्र में आगे लिखते हैं - "मुकद्दमें की पेशी के दिन संचालक, सूत्रधार छाते की ओट से फौजदारी कचहरी कंपाउण्ड के बाहर, दीवानी कचहरी के आसपास चक्कर मारते रहते हैं। पिछली तारीख को दलित-संघ के सेक्रेटरी साहब भी कचहरी में नहीं आये, क्योंकि वकीलों की टोली "मैला आँचल" तथा अन्य रचनाओं के जीते-जागते पुतलों को उँगलियाँ बता-बता कर इधर-उधर चक्कर मारती है। बेवजह पान की दुकान पर खड़े एक आदमी से नाम पूछ लेते हैं - आपका नाम ? क्या आपका घर फारबिसगंज थाना है ? - "जी मेरा नाम?" पान खाते हुए नौजवान वकील साहब ने नाम को एक बार दुहराया, फिर ठठाकर हँस पड़ा - "ओ, आप "मैला आँचल" के फलाने जी हैं।" एक नया वकील- जो अपने लेखक को भी समझता है- इन मौकों का फायदा उठा रहा है। उसने सिर्फ तीन ही पेशी के दिन घूम-घूमकर देख लिया है- "अलबत्ता तस्वीर उतारी है, तस्वीर बनाने वाले ने !"[4]

निधन

वाचस्पति पाठक का निधन 19 नवम्बर, 1980 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काशी के साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2014।
  2. वाचस्पति पाठक (हिन्दी) हिन्दी के गौरव (हिन्दी भवन)। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2014।
  3. शर्मा, डॉ. अंजलि। हिंदी लघुकथा का विकास (हिन्दी) प्रेसनोट डॉट इन। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2014।
  4. मैला आँचल की कहानी (हिन्दी) फणीश्वरनाथ रेणु डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 31 अगस्त, 2014।

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