विशिष्टाद्वैत दर्शन

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  • विशिष्टाद्वैत दर्शन के प्रतिष्ठापक रामानुजाचार्य थे। उनका जन्म संवत 1084 के आस-पास हुआ था। उनकी विचारधारा शंकराचार्य के अद्वैतवादी निर्गुण ब्रह्म के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी।
  • विशिष्टाद्वैत दर्शन में रामानुजाचार्य ने सगुण ब्रह्म के साथ-साथ जगत और जीव की सत्ता की प्रतिष्ठा की। उन्होंने शरीर को विशेषण तथा आत्मतत्त्व को विशेष्य माना। *विशिष्टाद्वैत दर्शन के अनुसार शरीर विशिष्ट है, जीवात्मा अंश तथा अंतर्यामी परमात्मा अंशी है। संसार प्रारंभ होने से पूर्व सूक्ष्म चिद् चिद् विशिष्ट ब्रह्म की स्थिति होती है संसार एवं जगत की उत्पत्ति के उपरांत स्थूल चिद् चिद् विशिष्ट ब्रह्म की स्थिति रहती है। तयो एकं इति ब्रह्म अपनी सीमाओं की परिधि से छूट जाना ही मोक्ष है। मुक्तात्माएं ईश्वर की भांति हो जाती हैं- किंतु ईश्वर नहीं होतीं।


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