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*सावत्थी, [[संस्कृत]] श्रावस्ती का [[पालि]] और अर्द्धमागधी रूप है।<ref name= "उत्तर प्रदेश"/> बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सवत्थ (श्रावस्त) नामक एक [[ऋषि]] यहाँ पर रहते थे, जिनकी बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था।  
 
*सावत्थी, [[संस्कृत]] श्रावस्ती का [[पालि]] और अर्द्धमागधी रूप है।<ref name= "उत्तर प्रदेश"/> बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सवत्थ (श्रावस्त) नामक एक [[ऋषि]] यहाँ पर रहते थे, जिनकी बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था।  
 
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*[[पाणिनि]] (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ ''''[[अष्टाध्यायी]]' में साफ़ लिखा है कि स्थानों के नाम वहाँ रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।'''
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*[[पाणिनि]] (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ '[[अष्टाध्यायी]]' में साफ़ लिखा है कि- "स्थानों के नाम वहाँ रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।"
 
*[[महाभारत]] के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही था। श्रावस्त नामक एक राजा हुये जो कि पृथु की छठीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चल कर [[कोसल]] की राजधानी, [[अयोध्या]] से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
 
*[[महाभारत]] के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही था। श्रावस्त नामक एक राजा हुये जो कि पृथु की छठीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चल कर [[कोसल]] की राजधानी, [[अयोध्या]] से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
 
*[[ब्राह्मण साहित्य]], [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] एवं [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर हुआ था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था।<ref>विश्वगश्वा पृथो: पुत्र पुत्रस्तस्मादार्दश्चजज्ञिवान्।  
 
*[[ब्राह्मण साहित्य]], [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] एवं [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर हुआ था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था।<ref>विश्वगश्वा पृथो: पुत्र पुत्रस्तस्मादार्दश्चजज्ञिवान्।  
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*[[मत्स्य पुराण|मत्स्य]] एवं [[ब्रह्मपुराण|ब्रह्मपुराणों]] में इस नगर के संस्थापक का नाम श्रावस्तक के स्थान पर श्रावस्त मिलता है।<ref>श्रावस्तश्च महातेजा वत्सकस्तत्सुतोऽभवत्
 
*[[मत्स्य पुराण|मत्स्य]] एवं [[ब्रह्मपुराण|ब्रह्मपुराणों]] में इस नगर के संस्थापक का नाम श्रावस्तक के स्थान पर श्रावस्त मिलता है।<ref>श्रावस्तश्च महातेजा वत्सकस्तत्सुतोऽभवत्
 
निर्मिता येन श्रावस्ती गौडदेशे द्विजोत्तम्॥ [[मत्स्यपुराण]], अध्याय 12, श्लोक 29 ;</ref><ref name= "उत्तर प्रदेश"/> बाद में चल कर कोसल की राजधानी, [[अयोध्या]] से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।  
 
निर्मिता येन श्रावस्ती गौडदेशे द्विजोत्तम्॥ [[मत्स्यपुराण]], अध्याय 12, श्लोक 29 ;</ref><ref name= "उत्तर प्रदेश"/> बाद में चल कर कोसल की राजधानी, [[अयोध्या]] से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।  
*'''एक [[बौद्ध]] [[ग्रन्थ]] के अनुसार वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कोसल-नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी। [[बुद्ध|गौतम बुद्ध]] के समय में भारतवर्ष के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी।''' यह चौड़ी और गहरी खाई से घिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त इसके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा-दीवार भी थी, जिसमें हर दिशा में दरवाज़े बने हुये थे। हमारी प्राचीन [[कला]] में श्रावस्ती के दरवाज़ों का अंकन हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि वे काफ़ी चौड़े थे और उनसे कई बड़ी सवारियाँ एक ही साथ बाहर निकल सकती थीं। कोसल के नरेश बहुत सज-धज कर बड़े [[हाथी|हाथियों]] की पीठ पर कसे हुये [[चाँदी]] या [[सोना|सोने]] के हौदों में बैठ कर बड़े ही शान के साथ बाहर निकला करते थे।<ref name="sravasti">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हमारे पुराने नगर |लेखक=डॉ. उदय नारायण राय  |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=हिन्दुस्तान एकेडेमी, इलाहाबाद  |पृष्ठ संख्या=43-46 |url=}}</ref>  
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*एक [[बौद्ध]] [[ग्रन्थ]] के अनुसार, वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कोसल-नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी। [[बुद्ध|गौतम बुद्ध]] के समय में भारतवर्ष के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी। यह चौड़ी और गहरी खाई से घिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त इसके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा-दीवार भी थी, जिसमें हर दिशा में दरवाज़े बने हुये थे। हमारी प्राचीन [[कला]] में श्रावस्ती के दरवाज़ों का अंकन हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि वे काफ़ी चौड़े थे और उनसे कई बड़ी सवारियाँ एक ही साथ बाहर निकल सकती थीं। कोसल के नरेश बहुत सज-धज कर बड़े [[हाथी|हाथियों]] की पीठ पर कसे हुये [[चाँदी]] या [[सोना|सोने]] के हौदों में बैठ कर बड़े ही शान के साथ बाहर निकला करते थे।<ref name="sravasti">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हमारे पुराने नगर |लेखक=डॉ. उदय नारायण राय  |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=हिन्दुस्तान एकेडेमी, इलाहाबाद  |पृष्ठ संख्या=43-46 |url=}}</ref>  
 
*चीनी यात्री [[फ़ाह्यान|फाहियान]] और [[हुएन-सांग|हुयेनसांग]] ने भी श्रावस्ती के दरवाज़ों का उल्लेख किया है। श्रावस्ती एक समृद्ध, जनाकीर्ण और व्यापारिक महत्त्व वाली नगरी भी। यहाँ मनुष्यों के उपभोग-परिभोग की सभी वस्तुएँ सुलभी थीं अत: इसे [[सावत्थी]]<ref>सब्ब अत्थि</ref> कहा जाता था।
 
*चीनी यात्री [[फ़ाह्यान|फाहियान]] और [[हुएन-सांग|हुयेनसांग]] ने भी श्रावस्ती के दरवाज़ों का उल्लेख किया है। श्रावस्ती एक समृद्ध, जनाकीर्ण और व्यापारिक महत्त्व वाली नगरी भी। यहाँ मनुष्यों के उपभोग-परिभोग की सभी वस्तुएँ सुलभी थीं अत: इसे [[सावत्थी]]<ref>सब्ब अत्थि</ref> कहा जाता था।
 
*पहले यह केवल एक धार्मिक स्थान था, किंतु कालांतर में इस नगर का समुत्कर्ष हुआ। [[जैन साहित्य]] में इसके लिए 'चंद्रपुरी'<ref>जैन [[हरिवंश पुराण]], पृष्ठ 717; विशुद्धानंद पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल पृष्ठ 61</ref> तथा 'चंद्रिकापुरी' नाम भी मिलते हैं।  
 
*पहले यह केवल एक धार्मिक स्थान था, किंतु कालांतर में इस नगर का समुत्कर्ष हुआ। [[जैन साहित्य]] में इसके लिए 'चंद्रपुरी'<ref>जैन [[हरिवंश पुराण]], पृष्ठ 717; विशुद्धानंद पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल पृष्ठ 61</ref> तथा 'चंद्रिकापुरी' नाम भी मिलते हैं।  
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श्रावस्ती न केवल [[बौद्ध]] और [[जैन]] धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह [[ब्राह्मण|ब्राह्मण धर्म]] एवं [[वेद|वेद विद्या]] का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ वैदिक शिक्षा केंद्र के कुलपति के रूप में 'जानुस्सोणि' का नामोल्लेख मिलता है।<ref>दीघनिकाय, (पालि टेक्स्ट सोसायटी, लंदन), भाग 1, पृष्ठ 235; सुमंगलविलासिनी, भाग 2, पृष्ठ 399; मच्झिमनिकाय, भाग 1, पृष्ठ 16</ref> कालांतर में बुद्ध के जीवन-काल से संबंधित तथा प्रमुख व्यापारिक मार्गों से जुड़े होने के कारण श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि में वृद्धि हुई।<ref name= "उत्तर प्रदेश"/>
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श्रावस्ती न केवल [[बौद्ध]] और [[जैन]] धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह [[ब्राह्मण|ब्राह्मण धर्म]] एवं [[वेद|वेद विद्या]] का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ वैदिक शिक्षा केंद्र के कुलपति के रूप में 'जानुस्सोणि' का नामोल्लेख मिलता है।<ref>दीघनिकाय, (पालि टेक्स्ट सोसायटी, लंदन), भाग 1, पृष्ठ 235; सुमंगलविलासिनी, भाग 2, पृष्ठ 399; मच्झिमनिकाय, भाग 1, पृष्ठ 16</ref> कालांतर में बुद्ध के जीवन-काल से संबंधित तथा प्रमुख व्यापारिक मार्गों से जुड़े होने के कारण श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि में वृद्धि हुई।<ref name= "उत्तर प्रदेश">{{cite book | last = सिंह| first =डॉ. अशोक कुमार  | title =उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर  | edition = | publisher = वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय  | language =[[हिन्दी]]  | pages =98-124  | chapter =}}</ref>
  
 
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13:17, 15 मार्च 2017 का अवतरण

श्रावस्ती कोशल का एक प्रमुख नगर था। भगवान बुद्ध के जीवन काल में यह कोशल देश की राजधानी थी।[1] इसे बुद्धकालीन भारत के छ: महानगरों, चंपा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कोशांबी और वाराणसी में से एक माना जाता था।[2] इसके नाम की व्युत्पत्ति के संबंध में कई मत प्रतिपादित है।

नामकरण

  • सावत्थी, संस्कृत श्रावस्ती का पालि और अर्द्धमागधी रूप है।[3] बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सवत्थ (श्रावस्त) नामक एक ऋषि यहाँ पर रहते थे, जिनकी बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था।
खत्ती, श्रावस्ती
  • पाणिनि (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' में साफ़ लिखा है कि- "स्थानों के नाम वहाँ रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।"
  • महाभारत के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही था। श्रावस्त नामक एक राजा हुये जो कि पृथु की छठीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चल कर कोसल की राजधानी, अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
  • ब्राह्मण साहित्य, महाकाव्यों एवं पुराणों के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर हुआ था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था।[4][3] वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था।
  • पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है।
  • महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामणिक मानना उचित बात होगी।
  • मत्स्य एवं ब्रह्मपुराणों में इस नगर के संस्थापक का नाम श्रावस्तक के स्थान पर श्रावस्त मिलता है।[5][3] बाद में चल कर कोसल की राजधानी, अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
  • एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार, वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कोसल-नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी। गौतम बुद्ध के समय में भारतवर्ष के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी। यह चौड़ी और गहरी खाई से घिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त इसके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा-दीवार भी थी, जिसमें हर दिशा में दरवाज़े बने हुये थे। हमारी प्राचीन कला में श्रावस्ती के दरवाज़ों का अंकन हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि वे काफ़ी चौड़े थे और उनसे कई बड़ी सवारियाँ एक ही साथ बाहर निकल सकती थीं। कोसल के नरेश बहुत सज-धज कर बड़े हाथियों की पीठ पर कसे हुये चाँदी या सोने के हौदों में बैठ कर बड़े ही शान के साथ बाहर निकला करते थे।[6]
  • चीनी यात्री फाहियान और हुयेनसांग ने भी श्रावस्ती के दरवाज़ों का उल्लेख किया है। श्रावस्ती एक समृद्ध, जनाकीर्ण और व्यापारिक महत्त्व वाली नगरी भी। यहाँ मनुष्यों के उपभोग-परिभोग की सभी वस्तुएँ सुलभी थीं अत: इसे सावत्थी[7] कहा जाता था।
  • पहले यह केवल एक धार्मिक स्थान था, किंतु कालांतर में इस नगर का समुत्कर्ष हुआ। जैन साहित्य में इसके लिए 'चंद्रपुरी'[8] तथा 'चंद्रिकापुरी' नाम भी मिलते हैं।
  • महाकाव्यों एवं पुराणों में श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है।
  • कालिदास[9] ने इसे ‘शरावती’ नाम से अभिहित किया है। उच्चारण संबंधी समानता के आधार पर ‘श्रावस्ती’ और ‘शरावती’ दोनों एक ही प्रतीत होते हैं और एक निश्चित स्थान की तरफ इंगित भी करते हैं।


श्रावस्ती न केवल बौद्ध और जैन धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं वेद विद्या का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ वैदिक शिक्षा केंद्र के कुलपति के रूप में 'जानुस्सोणि' का नामोल्लेख मिलता है।[10] कालांतर में बुद्ध के जीवन-काल से संबंधित तथा प्रमुख व्यापारिक मार्गों से जुड़े होने के कारण श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि में वृद्धि हुई।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, संवत् 2018, पृष्ठ 236, दीधनिकाय, पृष्ठ 152; राखिल, द लाइफ ऑफ द बुद्ध लीजेंड एंड हिस्ट्री पृष्ठ 136
  2. दीधनिकाय, पृष्ठ 152; राखिल, द लाइफ ऑफ द बुद्ध लीजेंड एंड हिस्ट्री, पृष्ठ 136
  3. 3.0 3.1 3.2 3.3 सिंह, डॉ. अशोक कुमार उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 98-124।
  4. विश्वगश्वा पृथो: पुत्र पुत्रस्तस्मादार्दश्चजज्ञिवान्। आर्द्रात्तु युवनाश्वस्तु श्रावस्तस्य तु चात्मज:॥ तस्य श्रावस्तको ज्ञेय श्रावस्ती येन निर्मित:। श्रावतस्य तु दायादो वृहदाश्वो महाबल: ॥महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 201, श्लोक 3-4;
  5. श्रावस्तश्च महातेजा वत्सकस्तत्सुतोऽभवत् निर्मिता येन श्रावस्ती गौडदेशे द्विजोत्तम्॥ मत्स्यपुराण, अध्याय 12, श्लोक 29 ;
  6. हमारे पुराने नगर |लेखक: डॉ. उदय नारायण राय |प्रकाशक: हिन्दुस्तान एकेडेमी, इलाहाबाद |पृष्ठ संख्या: 43-46 |
  7. सब्ब अत्थि
  8. जैन हरिवंश पुराण, पृष्ठ 717; विशुद्धानंद पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल पृष्ठ 61
  9. कालिदास, रघुवंश, अध्याय 15, श्लोक 97; विशुद्धानंद पाठक, हिस्ट्री आफ कोशल, (मोलीलाल बनारसीदास, वाराणसी, 1963), पृष्ठ 59
  10. दीघनिकाय, (पालि टेक्स्ट सोसायटी, लंदन), भाग 1, पृष्ठ 235; सुमंगलविलासिनी, भाग 2, पृष्ठ 399; मच्झिमनिकाय, भाग 1, पृष्ठ 16
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

बाहरी कड़ियाँ

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