"शान्ति पर्व महाभारत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{महाभारत के पर्व}}
 +
'''शान्ति पर्व''' में 365 अध्याय हैं। शान्ति पर्व में युद्ध की समाप्ति पर [[युधिष्ठिर]] का शोकाकुल होकर पश्चाताप करना, श्री [[कृष्ण]] सहित सभी लोगों द्वारा उन्हें समझाना, युधिष्ठिर का नगर प्रवेश और राज्याभिषेक, सबके साथ पितामह [[भीष्म]] के पास जाना, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर तथा उन्हें राजधर्म, आपद्धर्म और मोक्षधर्म का उपदेश करना आदि वर्णित है। मोक्षपर्व में सृष्टि का रहस्य तथा अध्यात्म ज्ञान का विशेष निरूपण है। शान्ति पर्व में “मङ्कगीता’’ (अध्याय 177), “पराशरगीता” (अध्याय 290-98) तथा “हंसगीता” (अध्याय 299) भी है। शान्तिपर्व में धर्म, दर्शन, राजानीति और अध्यात्म ज्ञान का विशद निरूपण किया गया है।
 +
;युधिष्ठिर का सिंहासन पर बैठना
 +
यद्यपि युद्ध के बाद युधिष्ठिर दुखी रहने लगे थे, उनका मन राज-पाट से हट गया था, पर महर्षि [[व्यास]] के कहने पर वे राजसिंहासन पर बैठे। इसके बाद युधिष्ठिर राजभवन गए तथा [[गांधारी]] और [[धृतराष्ट्र]] के चरणस्पर्श किए। बाद में वे [[भीष्म]] पितामह के दर्शन करने चल दिए। उनके साथ श्रीकृष्ण भी थे।
 +
 
शान्ति पर्व के अन्तर्गत 3 (उप) पर्व हैं-
 
शान्ति पर्व के अन्तर्गत 3 (उप) पर्व हैं-
 
*राजधर्मानुशासन पर्व,
 
*राजधर्मानुशासन पर्व,
 
*आपद्धर्म पर्व,
 
*आपद्धर्म पर्व,
 
*मोक्षधर्म पर्व।
 
*मोक्षधर्म पर्व।
इसमें 365 अध्याय हैं। शान्ति पर्व में युद्ध की समाप्ति पर [[युधिष्ठिर]] का शोकाकुल होकर पश्चाताप करना, श्री[[कृष्ण]] सहित सभी लोगों द्वारा उन्हें समझाना, युधिष्टिर का नगर प्रवेश और राज्याभिषेक, सबके साथ पितामह [[भीष्म]] के पास जाना, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर तथा उन्हें राजधर्म, आपद्धर्म और मोक्षधर्म का उपदेश करना आदि वर्णित है। मोक्षपर्व में सृष्टि का रहस्य तथा अध्यात्म ज्ञान का विशेष निरूपण है। शान्ति पर्व में “मङ्कगीता’’ (अध्याय 177), “पराशरगीता” (अध्याय 290-98) तथा “हंसगीता” (अध्याय 299) भी है। शान्तिपर्व में धर्म, दर्शन, राजानीति और अध्यात्म ज्ञान का विशद निरूपण किया गया है।
+
 
 
<br />
 
<br />
==अन्य लिंक==
+
 
 +
{{प्रचार}}
 +
{{लेख प्रगति
 +
|आधार=
 +
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 +
|माध्यमिक=
 +
|पूर्णता=
 +
|शोध=
 +
}}
 +
 
 +
==संबंधित लेख==
 
{{महाभारत}}
 
{{महाभारत}}
 
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
[[Category:पौराणिक कोश]]
 
[[Category:महाभारत]]
 
[[Category:महाभारत]]
 +
[[Category:महाभारत के पर्व]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

12:31, 1 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

महाभारत के पर्व

शान्ति पर्व में 365 अध्याय हैं। शान्ति पर्व में युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर का शोकाकुल होकर पश्चाताप करना, श्री कृष्ण सहित सभी लोगों द्वारा उन्हें समझाना, युधिष्ठिर का नगर प्रवेश और राज्याभिषेक, सबके साथ पितामह भीष्म के पास जाना, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर तथा उन्हें राजधर्म, आपद्धर्म और मोक्षधर्म का उपदेश करना आदि वर्णित है। मोक्षपर्व में सृष्टि का रहस्य तथा अध्यात्म ज्ञान का विशेष निरूपण है। शान्ति पर्व में “मङ्कगीता’’ (अध्याय 177), “पराशरगीता” (अध्याय 290-98) तथा “हंसगीता” (अध्याय 299) भी है। शान्तिपर्व में धर्म, दर्शन, राजानीति और अध्यात्म ज्ञान का विशद निरूपण किया गया है।

युधिष्ठिर का सिंहासन पर बैठना

यद्यपि युद्ध के बाद युधिष्ठिर दुखी रहने लगे थे, उनका मन राज-पाट से हट गया था, पर महर्षि व्यास के कहने पर वे राजसिंहासन पर बैठे। इसके बाद युधिष्ठिर राजभवन गए तथा गांधारी और धृतराष्ट्र के चरणस्पर्श किए। बाद में वे भीष्म पितामह के दर्शन करने चल दिए। उनके साथ श्रीकृष्ण भी थे।

शान्ति पर्व के अन्तर्गत 3 (उप) पर्व हैं-

  • राजधर्मानुशासन पर्व,
  • आपद्धर्म पर्व,
  • मोक्षधर्म पर्व।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख