"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट मार्च 2014" के अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 141: | पंक्ति 141: | ||
| [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-16.jpg|250px|center]] | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-16.jpg|250px|center]] | ||
| 16 मार्च, 2014 | | 16 मार्च, 2014 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | एक लयबद्ध जीवन जीने की आस | ||
+ | एक बहुत ही | ||
+ | व्यक्तिगत जीवन का अहसास | ||
+ | न जाने कब होगा | ||
+ | होगा न जाने कब | ||
+ | |||
+ | एक घर हो दूर कहीं छोटा सा | ||
+ | जहाँ एकान्त की जहाँ माँग हो | ||
+ | सबसे ज़्यादा | ||
+ | बस मिल ना पाये | ||
+ | कभी एकान्त | ||
+ | |||
+ | न खाने को दौड़े अकेलापन | ||
+ | कुछ ऐसे ही भविष्य का आभास | ||
+ | लेकिन झूठ है सबकुछ | ||
+ | ये नहीं होगा कभी भी नहीं होगा | ||
+ | कैसे होगा ये... | ||
+ | |||
+ | कि रहे कहीं ऐसी जगह | ||
+ | जहाँ सभी अपने हों | ||
+ | और छोटे-छोटे | ||
+ | हक़ीक़त भरे सपने हों... | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-17.jpg|250px|center]] | ||
+ | | 5 मार्च, 2014 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | न नई है न पुरानी है | ||
+ | सच तो नहीं | ||
+ | ज़ाहिर है, कहानी है | ||
+ | एक जोड़ा हंस हंसिनी का | ||
+ | तैरता आसमान में | ||
+ | तभी हंसिनी को दिखा | ||
+ | एक उल्लू कहीं वीरान में | ||
+ | |||
+ | हंसिनी, हंस से बोली- | ||
+ | "कैसा अभागा मनहूस जन्म है उल्लू का | ||
+ | जहाँ बैठा | ||
+ | वहीं वीरान कर देता है | ||
+ | क्या उल्लू भी किसी को खुशी देता है?" | ||
+ | |||
+ | तेज़ कान थे उल्लू के भी | ||
+ | सुन लिया और बोला- | ||
+ | "अरे सुनो! उड़ने वालो ! | ||
+ | शाम घिर आई | ||
+ | ऐसी भी क्या जल्दी ! | ||
+ | यहीं रुक लो भाई" | ||
+ | ऐसी आवाज़ सुन उल्लू की | ||
+ | उतर गए हंस हंसिनी | ||
+ | ख़ातिर की उल्लू ने | ||
+ | दोनों सो गए वहीं | ||
+ | |||
+ | सूरज निकला सुबह | ||
+ | चलने लगे दोनों तो... | ||
+ | उल्लू ने हंसिनी को पकड़ लिया | ||
+ | "पागल है क्या ? | ||
+ | मेरी हंसिनी को कहाँ लिए जाता है ? | ||
+ | रात का मेहमान क्या बना ? | ||
+ | बीवी को ही भगाता है ?" | ||
+ | |||
+ | हंस को काटो तो ख़ून नहीं | ||
+ | झगड़ा बढ़ा | ||
+ | तो फिर पास के गाँव से नेता आए | ||
+ | अब उल्लू से झगड़ा करके | ||
+ | कौन अपना घर उजड़वाए ! | ||
+ | उल्लू का क्या भरोसा ? | ||
+ | किसी नेता की छत पर ही बैठ जाए | ||
+ | |||
+ | तो फ़ैसला ये हुआ | ||
+ | कि हंसिनी पत्नी उल्लू की है | ||
+ | और हंस तो बस उल्लू ही है | ||
+ | नेता चले गए | ||
+ | बेचारा हंस भी चलने को हुआ | ||
+ | मगर उल्लू ने उसे रोका | ||
+ | "हंस ! अपनी हंसिनी को तो ले जा | ||
+ | मगर इतना तो बता | ||
+ | कि उजाड़ कौन करवाता है ? | ||
+ | उल्लू या नेता ?" | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-18.jpg|250px|center]] | ||
+ | | 4 मार्च, 2014 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | वक़्त बहुत कम है और काम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | हर एक लम्हे का दाम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | फ़ुर्सत अब किसको है रिश्तों को जीने की | ||
+ | वीकेन्ड वाली इक शाम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | चौपालें सूनी हैं, मेलों में मातम है | ||
+ | कहीं पे रहीम कहीं राम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | खुल के हँसने की जब याद कभी आए तो | ||
+ | पल भर को झलकी मुस्कान बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | कोयल की तानें तो अब भी हैं बाग़ों में | ||
+ | लेकिन अब बोतल में आम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | जिस्मों के धन्धे को लानत अब क्या भेजें | ||
+ | इसमें भी शोहरत है, नाम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | साझे चूल्हे में अब आग कहाँ जलती है | ||
+ | शामिल रहने में ताम-झाम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | |||
+ | बस इक मुहब्बत का आलम ही राहत है | ||
+ | लेकिन ये कोशिश नाक़ाम बहुत ज़्यादा है | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-19.jpg|250px|center]] | ||
+ | | 4 मार्च, 2014 | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | फ़ासले मिटाके, आया क़रीब होता | ||
+ | चाहे नसीब वाला या कम नसीब होता | ||
+ | |||
+ | उसे ज़िन्दगी में अपनी, मेरी तलाश होती | ||
+ | मैं उसकी सुबह होता, वो मेरी शाम होता | ||
+ | |||
+ | मेरी आरज़ू में उसके, ख़ाबों के फूल होते | ||
+ | यूँ साथ उसके रहना, कितना हसीन होता | ||
+ | |||
+ | जब शाम कोई तन्हा, खोई हुई सी होती | ||
+ | तब जिस्म से ज़ियादा, वो पास दिल के होता | ||
+ | |||
+ | दिल के हज़ार सदमे, ग़म के हज़ार लम्हे | ||
+ | इक साथ उसका होना, राहत तमाम होता | ||
+ | </poem> | ||
+ | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-20.jpg|250px|center]] | ||
+ | | 4 मार्च, 2014 | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
13:37, 20 अप्रैल 2014 का अवतरण
|
शब्दार्थ