"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट" के अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (चर्चा | योगदान) |
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+ | इसी मैदान में उस शख़्स को फाँसी लगी होगी | ||
+ | तमाशा देखने को भीड़ भी काफ़ी लगी होगी | ||
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+ | जिन्हें आज़ाद करने की ग़रज़ से जान पर खेला | ||
+ | उन्हीं को चंद रोज़ों में ख़बर बासी लगी होगी | ||
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+ | बड़े सरकार आए हैं, यहाँ पौधा लगाएँगे | ||
+ | हटाने धूल को मुद्दत में अब झाडू लगी होगी | ||
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+ | शहर में लोग ज़्यादा हैं जगह रहने की भी कम है | ||
+ | इसी को सोचकर मैदान की बोली लगी होगी | ||
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+ | यहाँ तो ज़ात और मज़हब आ अब बाज़ार लगता है | ||
+ | उसे अपनी शहादत ही बहुत फीकी लगी होगी | ||
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+ | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-23.jpg|250px|center]] | ||
+ | | 21 अप्रॅल, 2014 | ||
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+ | लहू बहता है तो कहना कि पसीना होगा | ||
+ | न जाने कब तलक इस दौर में जीना होगा | ||
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+ | 'छलक ना' जाय सरे शाम कहीं महफ़िल में | ||
+ | ये जाम-ए-सब्र तो हर हाल में पीना होगा | ||
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+ | यूँ तो अहसास भी कम है चुभन का ज़ख़्मों की | ||
+ | तूने जो चाक़ किया तो हमें सीना होगा | ||
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+ | अब तो उम्मीद भी ठोकर की तरह दिखती है | ||
+ | करना बदनाम यूँ किस्मत को सही ना होगा | ||
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+ | यही वो शख़्स जो कुर्सी पे जाके बैठेगा | ||
+ | वक़्त आने पे वो तेरा कभी ना होगा | ||
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+ | | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-24.jpg|250px|center]] | ||
+ | | 21 अप्रॅल, 2014 | ||
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14:56, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण
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