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बाबा रे बाबा ! साउथ ऍक्स मार्केट में एक सन् 2014 की 'कूल डूडनी' की अपने बॉयफ्रेन्ड को धमकी-
 
 
चल-चल ! साइलेन्ट मोड पकड़ और बरिस्ता के गिटार की तरह कोने में खड़ा हो जा, नहीं तो फूंक मार के कपचीनो के झाग की तरह बखेर दूँगी...
 
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| 31 जुलाई, 2014
 
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कोई आएगा ये मुझको ख़याल रहता है।
 
कोई आए ही क्यों, क़ायम सवाल रहता है॥
 
एक शेर और बढ़ा दिया...
 
किसी उदास से रस्ते से उसकी आमद को
 
अब मिरा दिल भी तो बैचैने हाल रहता है
 
एक और...
 
यूँ ही ही मर जाएँगे इक दिन जो मौत आएगी
 
इसी को सोचकर शायद बवाल रहता है
 
 
- आदित्य चौधरी
 
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| 30 जुलाई, 2014
 
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"सर ! ये आदमी रेलवे प्लॅटफ़ार्म पर अश्लील हरकत करते हुए पकड़ा गया है।"
 
जस्टिस चौधरी ने मुक़दमा बिना सुने ही अपनी डायरी में लिखा, 20 साल क़ैद बामश्क़्क़त।
 
इसके बाद कड़क आवाज़ में छोटे पहलवान से पूछा-
 
"तुमको कुछ कहना है ?"
 
"जी सर ! कहना है... मैं रेलवे प्लॅटफ़ार्म पर घूम रहा था। मुझे एक ख़ूबसूरत औरत दिखाई दी। वो बहुत ही ज़्यादा ख़ूबसूरत थी। मेरे सामने कमर मटकाती चल रही थी और मुड़-मुड़ कर मुझे देखकर मुस्कुरा जाती थी। मेरे भी मन में हिलोर उठने लगी लेकिन... मैंने सोचा कि बेटा छोटे पहलवान ! हमारे शहर के जज साब जस्टिस चौधरी बहुत कड़क आदमी हैं उन्हें पता चल गया तो सीधे बीस साल की लग जाएगी। इसलिए मैंने रास्ता बदल लिया।"
 
जस्टिस चौधरी ने सज़ा 20 से काटकर 10 लिख दी।
 
"और कुछ कहना है ?" चौधरी ने फिर पूछा।
 
"जी सरकार! कहना है, वो दोबारा मेरी तरफ़ आई और अपनी चुनरी का पल्लू मेरे चेहरे पर लहरा कर हँस पड़ी। उसकी चूड़ियों की खनक से मेरे दिल में झांज-मंजीरे बजने लगे।..."
 
"और उसके बाद तुमने ग़लत हरकत की ?..." जस्टिस चौधरी दहाड़े
 
"सवाल ही नहीं था हुजूर ! मैंने फ़ौरन आपके बारे में सोचा कि 20 साल की लग जाएगी, मैं वहाँ से अलग हट गया।"
 
जस्टिस चौधरी ने 10 की सज़ा काट कर 5 साल लिख दिया।
 
"लेकिन तुमको पुलिस क्यों पकड़ कर लाई है।"
 
"सरकार वो फिर मेरे पास आ गई, मुझे रिझाने लगी... इस बार उसके परफ़्यूम की ख़शबू ने मुझे दीवाना बना दिया..."
 
"इसका मतलब ?" जस्टिस चौधरी ने गरज कर पूछा ?"
 
"मतलब क्या होता हुज़ूर, मैं तो आपका ही ध्यान कर रहा था... मैंने सोचा कि अगर जस्टिस चौ़धरी की कोर्ट में केस चला गया तो बीस साल..."
 
चौधरी ने क़लम से सज़ा की अवधि काटकर मात्र एक साल की कर दी।
 
"छोटे पहलवान वल्द चौधरी ज़ालिम सिंह ! तुमको ये तो बताना ही पड़ेगा कि जब तुमने कोई अपराध किया ही नहीं तो पुलिस तुमको पकड़ कर क्यों लाई और तुम पर आरोप क्यों लगा।"
 
जस्टिस चौधरी ने अपने स्वभाव के विपरीत, मुलायम आवाज़ में पूछा।
 
"पूरी बात बता रहा हूँ सरकार... उस छप्पन छुरी ने एक मालगाड़ी के डिब्बे से झांककर सीटी बजाई, इशारे से मुझे बुलाया और मेरी तरफ़ 'उस' तरह से देखा कि मैं क्या बताऊँ सर..."
 
"तो फिर तुम वहाँ से हट गए होगे ?..." चौधरी ने मुस्कुरा कर कहा
 
"हट कैसे जाता... मैंने सोचा कि भाड़ में गया जस्टिस चौधरी...कमबख़्त, टकलू, बुड्ढा...खड़ूस... जो होगा सो देखा जाएगा... ऐसी आसमान की परी कब-कब मिलेगी...मैं तो सीधा डिब्बे में कूद पड़ा और..."
 
जस्टिस चौधरी ने क़लम उठाई और सज़ा एक साल से वापस बीस साल कर दी।
 
छोेटे पहलवान ने मूंछों पर हाथ फेरा और जेल के लिए रवानगी डाल दी।
 
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है दोस्तो ! कि जज साहब जाट थे और आपका छोटे पहलवान तो जाट है ही...
 
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| 29 जुलाई, 2014
 
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हम मुस्लिमों की तरफ़ से हमारे सभी हिन्दू बहन-भाइयों को ईद-उल-फ़ित् र की बहुत-बहुत मुबारक़बाद।
 
हम हिन्दुओं की तरफ़ से हमारे सभी मुस्लिम बहन-भाइयों को हरियाली तीज की शुभकामनाएँ।
 
ये तो रही बधाई... अब मेरी ओर से एक निमंत्रण भी है...
 
 
दो दिन बाद नाग पंचमी है। मेरी ओर से सभी सांप्रदायिक ज़हर फैलाने वाले 'असली' हिन्दुओं और मुस्लिमों को भरपेट दूध पीने का निमंत्रण है। इस अवसर पर महिलाओं को साथ न लाएँ क्योंकि महिलाओं को न तो दंगे करने का शऊर होता है और न ही ये संप्रदाय या महज़ब की 'गूढ़ ज्ञान' की बात समझती हैं। ये तो सिर्फ़ इंसान होती हैं। कमबख़्तों को 'असली' हिन्दू-मुस्लिम बनना आता ही नहीं है।
 
इन महिलाओं ने ही, सभी धर्मों का सत्यानाश कर रखा है। सिर्फ़ पूजा-पाठ और रोज़े-नमाज़ को ही धर्म समझ लेती हैं। ये तो ईद का मतलब, सेवइयां बनाकर बच्चों को ईदगाह घुमाना और तीज का मतलब घेवर खाकर झूले झूलना समझती हैं।
 
इन्हें क्या पता कि दूसरे धर्म के लोगों को 'डसने' का क्या मज़ा है।
 
 
ईद के मुक़द्दस मौक़े पर, आइए सुश्री लता मंगेशकर जी का गाया और पाकिस्तानी शायर जनाब क़तील शिफ़ाई साहिब की रचना पर आधारित गीत सुनें जिसका संगीत श्री जगजीत सिंह जी ने दिया है।
 
[https://www.youtube.com/watch?v=PN2aelp3TLc&feature=youtu.be DARD SE MERA DAMAN BHAR DE YA ALLAH - LATA JEE]
 
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| 29 जुलाई, 2014
 
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ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते
 
ज़माना राहतें देता, तुझे अपना बना लेते
 
 
तुझे सुनने की चाहत है, हमें कहना नहीं आता
 
जो ऐसी क़ुव्वतें होतीं, शहर अपना बना लेते
 
 
जहाँ जिससे भी मिलना हो, नज़र बस तू ही आता है
 
सनम! हालात में ऐसे, किसे अपना बना लेते
 
 
ये दुनिया ख़ूबसूरत है, बस इक तेरी ज़रूरत है
 
जिसे भी चाहता हो तू उसे अपना बना लेते
 
 
तमन्नाओं के दरवाज़ों से आके देख ले मंज़र
 
तेरी आमद जो हो जाती तो अपना घर बना लेते
 
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| 25 जुलाई, 2014
 
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क्या यही तुम्हारा विशेष है?
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लोग बहुत 'बोलते' हैं लेकिन 'कहते' बहुत कम हैं।
कि बस जीते रहना है उस जीवन को
+
बहुत सी बातें हैं जिन्हें कभी नहीं कहा जाता... लेकिन क्यों ?
जो कि शेष है...
+
<nowiki>#</nowiki> सुनने वाला इस योग्य नहीं होता
 
+
<nowiki>#</nowiki> कहने वाला अपनी बात को कहने योग्य नहीं मानता
या कुछ देखना है कभी
 
उन पर्दों के पार की ज़िन्दगी
 
जो तुम्हारी उस खिड़की पर लगे हैं
 
जिसके गिर्द बना दी है
 
चाँदी की दीवार तुमने
 
और उन्हें
 
कभी न खोलने का निर्देश है
 
 
 
तुम्हारा वो काला चश्मा भी
 
उतरेगा अब नहीं  
 
जो शौक़ था पहले
 
और अब व्यवसाय की मजबूरी
 
क्या तुम देख पाओगे कभी
 
कि कैसा ये देश है
 
 
 
परफ़्यूम भी नहीं छोड़ पाओगे
 
पसीने की गंध से तो
 
बहुत दूर हो जाओगे
 
इसी पसीने में ही तो
 
देश की आज़ादी का संदेश है
 
 
 
ख़ून बहाकर मिली थी आज़ादी
 
ख़ून तुम भी बहाते हो लेकिन
 
तभी जबकि
 
ब्लड टेस्ट करवाते हो
 
कभी देखा है ग़ौर से कि
 
तुम्हारे ख़ून का रंग
 
कितना सफ़ेद है
 
  
कितने बिस्मिल थे
+
दोनों ही स्थितियों में परिणाम 'मौन' होता है।
भगत सिंह और अशफ़ाक़
+
यहाँ समझने वाली बात यह है कि मौन द्वारा जो 'कहा' जाता है उसका प्रभाव अक्सर बोलने-कहने से अधिक होता है...
जिनकी आमद से
 
सिहर गया होगा यमराज भी
 
क्योंकि यही तो वह मृत्यु है
 
जो विशेष है
 
बाक़ी तो सब यूँ ही है
 
फ़ेक है
 
 
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| 4  जुलाई, 2014
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| 24 अगस्त, 2014
 
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मैं उन लोगों में से हूँ जो अपने बचपन में सोने से पहले बिस्तर पर लेेटे-लेटे तब तक गायत्री मंत्र का पाठ करता था कि जब तक नींद न आ जाए। इम्तिहान के दिनों में 108 मनकों की एक माला रोज़ाना सरस्वती के बीज मंत्र की करनी होती थी। अपने घर में ही, रामचरित मानस के अखंड पाठ में, मैंने उस उम्र में हिस्सा लिया था जिस उम्र में बच्चे सिर्फ़ दौड़ने और पेड़ पर चढ़ने को ही बहुत बड़ा खेल समझते हैं। हनुमान चालीसा, गणेश वन्दना और ओम जय जगदीश हरे, गीता के श्लोक, वेद और उपनिषदों के कुछ श्लोक जैसे अनेक धार्मिक पाठ... मुझे रटे हुए थे। रामचरित मानस और महाभारत का कोई प्रसंग ऐसा नहीं था जो मुझसे अछूता रहा हो।
 
धार्मिक सिनेमा की तो हालत यह थी कि 'बलराम श्रीकृष्ण' फ़िल्म देखने के लिए मैं लगातार पूरे सप्ताह अपनी मां के साथ जाता रहा। हनुमान और बलराम मेरे हीरो उसी तरह थे जैसे आजकल स्पाइडर मॅन और बॅटमॅन बच्चों के हीरो होते हैं। कृष्ण और अर्जुन मेरी दुर्गम लक्ष्य प्राप्ति की प्रेरणा थे, हनुमान और भीम मेरी कसरत की प्रेरणा, एकलव्य और कर्ण का जीवन मुझे भावुक बना देता था।
 
आज भी मैं धार्मिक और देशभक्ति के धारावाहिक टी॰वी॰ पर देखकर बेहद भावुक हो जाता हूँ। अक्सर रो पड़ता हूँ। राधा की विरह, सुदामा की बेबसी, भरत मिलाप, हनुमान की राम भक्ति, भीष्म की प्रतिज्ञा, राजा नल की विपत्ति, सावित्री-सत्यवान प्रसंग, कर्ण का दान आदि ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो आज भी मुझे भावुक बना देते हैं।
 
हम बचपन को छोड़ आते हैं... कमबख़्त बचपन हमें नहीं छोड़ता।
 
 
लेकिन फिर भी इस सब के बाद अब मेरी अपनी पहचान क्या है ?
 
कभी लोग मुझसे पूछ लेते हैं कि वास्तव में मेरी जाति, धर्म और विचार क्या हैं। शायद इसका जवाब है कि-
 
 
"मैं सूफ़ी हिन्दू हूँ
 
बुतपरस्त मुस्लिम हूँ
 
कर्मकाण्डी शूद्र हूँ
 
म्लेच्छ ब्राह्मण हूँ
 
और
 
मेरे राजनैतिक और सामाजिक विचार ये हैं-
 
"मैं सर्वहारा बुर्जुआ हूँ
 
समाजवादी दक्षिणपंथी हूँ
 
भावुक यथार्थवादी हूँ
 
संन्यासी गृहस्थ हूँ"
 
अलबत्ता एक बात तो पक्की है कि
 
 
"भारत मुझको जान से प्यारा है
 
सबसे प्यारा गुलिस्तां हमारा है"
 
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| 24  जुलाई, 2014
 
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मृत्यु जीवन की परछाईं है
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हमारी बुद्धि एक कंप्यूटर की तरह है और 'विवेक' इस कंप्यूटर का सबसे अच्छा ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे अंग्रेज़ी में wisdom कहते हैं।
तभी तक साथ रहती है जब तक कि जीवन है...
+
विवेक एक ऐसा ओ.एस. है जिससे कंप्यूटर (बुद्धि) कभी हॅन्ग नहीं होता और वायरस (क्रोध) का ख़तरा तो बिल्कुल भी नहीं है क्यों कि इसमें बिल्टइन एन्टीवायरस (करुणा) होता है।
... लोग कहते हैं कि मरने के बाद वह क्या है जो मनुष्य का साथ छोड़ देता है। कोई कहता है आत्मा, कोई ऊर्जा, कोई प्राण आदि-आदि
+
यदि आपके कंप्यूटर में रॅम (प्रतिभा) कम भी है तब भी यह ऑपरेटिंग सिस्टम सही काम करता है।
लेकिन वास्तविकता यह है कि मरने पर 'मृत्यु' साथ छोड़ देती है जो कि हमारे साथ हर समय रहती है जब तक कि हम जीवित हैं।
 
हमारा जन्मदिन ही हमारी मृत्यु का भी जन्मदिन भी होता है और हमारा मृत्युदिन हमारी मृत्यु का मृत्युदिन भी...
 
 
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| 24  जुलाई, 2014
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| 6 अगस्त, 2014
 
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क्या हुआ ? एक हफ्ते से किसी ने मुझे candy crush खेलने के लिए invite नहीं किया और ना ही मुझे किसी अपनी जागरूक post या तस्वीर के साथ tag किया है।
 
'वो FB मित्रों का मुझे tag करना... फिर फ़ौरन सारे काम छोड़कर मेरा उन tag को हटाना... मेरे पास तो अब जैसे कोई काम ही नहीं बचा...'
 
मैं जैसे ही किसी की friend request को स्वीकार करता हूँ तो अक्सर वो मुझे tag करके अपनी मित्रता का फ़र्ज़ अदा करते हैं। कितना प्यार है मुझसे...
 
ख़ैर...
 
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| 20 जुलाई, 2014
 
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प्रिय मित्रो ! शिवकुमार जी (Shivkumar Bilgrami) ने अपनी पत्रिका के जनवरी अंक में अम्माजी की कविता छाप दी और अब मुझे उसकी प्रति भेजी है। अम्माजी को 84 वर्ष की आयु में अब अपनी कोई कविता याद नहीं है, सिवाय इसके...
 
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| 20 जुलाई, 2014
 
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इस दुनिया में, वास्तविक रूप से, अपनी ग़लती मान लेने वाला व्यक्ति ही, निर्विवाद रूप से बुद्धिमान होता है।
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शोले की तरह जलना है तो पहले ख़ुद को कोयला करना
इसके अलावा जितने भी बुद्धि के पैमाने हैं वे सब बहुत बाद में अपनी भूमिका रखते हैं।
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बादल की तरह उड़ना है तो पहले बन पानी का झरना
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| 19  जुलाई, 2014
 
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मेरे एक पुराने मित्र आए और उन्होंने जो कुछ मुझसे कहा उसे थोड़ा सभ्य भाषा में प्रस्तुत कर रहा हूँ-
 
"तुमको ब्रजडिस्कवरी और भारतकोश बना कर क्या मिला ? ब्रजडिस्कवरी और भारतकोश बनाने-चलाने में तुम्हारे हर्निया के दो ऑपरेशन हो गए, लम्बार स्पाइन की समस्या हो गई, चश्मे के नंबर बढ़ गए, खिलाड़ियों जैसा कसरती शरीर पिलपिले बैंगन जैसा हो गया, बुढ़ापे के लिए बचाया पैसा और संपत्ति ख़त्म हो गए, राजनैतिक जीवन और मथुरा में सामाजिक जीवन समाप्त हो गया, दोस्तों से मिलना-मिलाना ख़त्म हो गया। मैंने तुमको 85 किलो बॅंच प्रॅस करते देखता था लेकिन अब 85 ग्राम का फ़ोन भी तुम्हें भारी लगता है। तुम अपने पिताजी की उस उक्ति को भूल गए जब वे कहा करते थे कि चढ़ जा बेटा सूली पै, भली करेंगे राम। अब तक तुम चौधरी सा'ब की तरह 4 बार सांसद बन सकते थे... लेकिन तुमने सब सत्यानाश कर दिया"
 
 
 
इसके बाद ज्यों के त्यों, मेरे मित्र के ही शब्द हैं "बोलो क्या मिला तुमको 'बाबा जी ठुल्लू'... मैंने तुमसे बड़ा इमोशनल फ़ूल नहीं देखा।"
 
 
 
मेरे पास मुस्कुराने के सिवा कोई चारा नहीं था। मेरे मित्र, मुझे अपनी व्यक्तिगत संपत्ति की तरह ही व्यवहार में लाते हैं और मैं इसका आनंद लेता हूँ। मेरे अजीब-अजीब जीवन-प्रयोग उन्हें चकित भी करते हैं और क्रोधित भी... पर उनके प्यार में कमी नहीं होती।
 
 
 
इस लॅक्चर के बाद मैंने उनसे कहा-
 
 
 
1857 में मेरे प्रपितामह बाबा देवकरण सिंह को विद्रोह करने पर अंग्रेज़ों ने फांसी दी थी। उनको गिरफ़्तार करवाने वाले एक ज़मीदार को इनाम में एक और ज़मीदारी दी गई। मेरे पर दादा को क्या मिला ? पूछा मैंने। भरी जवानी में मेरे पिता को अंग्रेज़ो ने जेल में डाल दिया, उन्हें क्या मिला। ये भी पूछा मैंने।
 
और मैं ! मैं तो उनका बस एक नालायक़ सा वंशज हूँ। मेरी औक़ात ही क्या है ! जो कुछ कर रहा हूँ वो बहुत-बहुत कम है...
 
 
 
अब तक तो मुझे किसी भ्रष्ट अधिकारी या नेता को खुले आम चुनौती देने के चक्कर में तबाह हो जाना चाहिए था। किसी जनहित आंदोलन की बलि चढ़ जाना चाहिए था, लेकिन मैं बच्चे पालने में लगा रहा। जब मेरे सर से ये ज़िम्मेदारी हट गई है, बच्चे ज़िम्मेदार हो गए हैं... तो अब तो कम से कम मुझे अपने मन की करने दो। अपने मन से जीने दो अपने मन से मरने दो। जिससे मुझे लगे कि मैं भी इस दुनिया में आकर इंसानों के श्रेणी में शामिल हूँ।
 
 
 
आज मेरे जीने का आधार क्या है ? मेरे जीने का आधार है भारतकोश के वे 10 करोड़ से अधिक पाठक जिनमें 6 करोड़ से अधिक नौजवान हैं। हर महीने 7-8 लाख लोग जो भारतकोश देख रहे हैं। वे छात्र जो परीक्षा और प्रतियोगिता के लिए भारतकोश पढ़ते हैं।
 
 
 
मेरे दोस्तो ! मैं पागल था, पागल हूँ और पागल ही रहूँगा। इसलिए परेशान होने के ज़रूरत नहीं है। हो सके तो भारतकोश की कुछ आर्थिक मदद करो... या...।
 
</poem>
 
 
| 19  जुलाई, 2014
 
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जब कोई मरता है तो कहते हैं- "वे भगवान को प्यारे हो गए"
 
जीते जी भगवान के प्यारे होने का कोई तरीक़ा नहीं है क्या ?
 
</poem>
 
 
| 19 जुलाई, 2014
 
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<poem>
 
डॉ॰ महेश चंद्र चतुर्वेदी मथुरा के विद्वानों में गिने जाते थे। वे मेरे पिताजी के पास भी आया करते थे, यह बात मुझे मेरी अम्माजी ने उनकी किताब पर उनका फ़ोटो देखकर बताई।
 
उनके पुत्र आशुतोष चतुर्वेदी (Ashutosh Chaturvedi) मेरे बचपन के मित्र हैं। आशुतोष ने मुझे यह किताब दी थी। डॉ॰ साहिब की लिखी मेरी पसंद की एक कविता प्रस्तुत है-
 
 
 
'सलीब'
 
 
 
झूठ बोलूंगा नहीं पर, सत्य की हिम्मत नहीं
 
मुझसे मेरी ज़िन्दगी के, हाल को मत पूछिए
 
  
अपने हिस्से का यहाँ
+
जो सबने किया वो तू कर दे, दुनिया में इसका मोल नहीं
मैंने भी ढोया है सलीब
+
हैं सात समंदर धरती पर, तू पार आठवां भी करना
क्या सितम मुझ पर पड़े हैं
 
मुझसे यह मत पूछिए
 
  
प्यार क्या शै है
+
हर चीज़ यहाँ पर बिकती है, इक प्यार का ही कोई मोल नहीं  
मुझे अब तक नहीं मालूम है
+
तू छोड़ के इन बाज़ारों को, दिल का सौदा दिल से करना
उम्र कैसे काट पाया
 
मुझसे यह मत पूछिए
 
  
मुस्कुरा कर काट ली है
+
सदियों से दफ़न मुर्दे हैं ये, क्या नया गीत सुन पाएँगे ?
मैंने शामे ज़िन्दगी
+
अब खोल दे सब दरवाज़ों को और नई हवा से क्या डरना
किससे मुझको थी शिकायत
 
मुझसे यह मत पूछिए
 
  
मैं किसी का हो न पाया
+
हाथों की चंद लकीरों से, इन किस्मत की ज़जीरों से
कोई मेरा था नहींं
+
हो जा आज़ाद परिंदे अब, फिर जी लेना या जा मरना
क्यों रहा दुनिया में तनहा,
 
मुझसे यह मत पूछिए - डॉ॰ महेशचंद्र चतुर्वेदी
 
 
</poem>
 
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|  [[चित्र:Maheshchandra-chaturvedi.jpg|250px|center]]
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|  [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-38.jpg|250px|center]]
| 4  जुलाई, 2014
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| 6 अगस्त, 2014
 
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जावेद अख़्तर की बेमिसाल रचना है। जब भी सुनता हूँ, रो पड़ता हूँ। भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में असमी और बंगाली रंग है। इसलिए किसी-किसी को ये आवाज़ पसंद नहीं आती... मगर इतना तो यक़ीं है कि ये ग़ज़ब है... अगर पूरा सुन लें तो...
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प्रिय मित्रो !
[https://www.youtube.com/watch?v=L7moo13O_P8&feature=youtu.be Duniya Parayee Log Yahan Begane]
+
मथुरा में हमारे घर के सामने सरकारी अस्पताल है और सरकारी डॉक्टरों के रहने के लिए दो बंगले बने हैं। क़रीब बीस साल पहले यहाँ डॉक्टर वी॰ ऍस॰ अग्निहोत्री (Vishnu Sharan Agnihotri) रहते थे। वे बाल रोग विशेषज्ञ हैं। पिताजी उस समय जीवित थे। पिताजी का स्वास्थ्य ख़राब होने पर डॉक्टर साहिब अपनी तरफ़ से ही उन्हें रोज़ाना देखने आया करते थे। पिताजी को ही नहीं बल्कि हमारे पूरे परिवार के स्वास्थ्य को भी डॉक्टर अग्निहोत्री ही ठीक रखते थे।
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इसके बदले में हमसे कभी किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा उन्होंने नहीं की।
+
हमारे घर के पास एक ग़रीब बस्ती भी है। बस्ती के लोग आज भी डॉक्टर साहिब को याद करते हैं जिसका कारण है मुफ़्त इलाज, मुफ़्त दवाइयाँ और मधुर व्यवहार।
| 4  जुलाई, 2014
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आजकल डॉक्टर साहिब इटावा में हैं, मथुरा में घर बनवा लिया है। रिटायर होकर मथुरा ही आने वाले हैं। पूरे ब्रजवासी हो चुके हैं।
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+
आज उन्होने भारतकोश के लिए 7000/- रुपये का चैक भेजकर मुझे सुखद आश्चर्य में डाल दिया। एक ईमानदार और सहृदय, सरकारी डॉक्टर के ये सात हज़ार रुपये भारतकोश के लिए कितना महत्व रखते हैं, इसे मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ।
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+
चैक के साथ एक पत्र भी है जिसमें विनम्रता का जो वाक्य उन्होंने लिखा है उसे पढ़कर मेरी आँखें भीग गईं, उन्होंने लिखा है- "व्यय को देखते हुए यह धनराशि अत्यन्त अल्प है। रामसेतु निर्माण में गिलहरी का योगदान समझकर स्वीकार करियेगा..." साथ ही यह भी लिखा कि मैं यह किसी को बताऊँ भी नहीं कि उन्होंने योगदान दिया है। भारतकोश की तरफ़ से उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।
<poem>
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मेरा सभी मित्रों से विनम्र आग्रह है कि डॉक्टर साहिब को एक धन्यवाद संदेश, यहाँ अथवा उनकी वॉल पर अवश्य दें।
हे ईश्वर ! तूने एक करोड़ से ज़्यादा भारत वासियों पर ज़रा भी रहम नहीं किया। मुढ़िया पूनो पर इस आग बरसाती गर्मी में वे श्रद्धालु मथुरा में, गिरिराज महाराज की परिक्रमा लगाते रहे। उनके पैर जलते रहे, दण्डौती देने में जिस्म झुलसते रहे। अब कम से कम रोज़ा रखने वालों पर तो नज़र-ओ-करम रख कि पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर वो तुझे याद करते हैं। अब तो बरस... वरना कौन तुझ पर भरोसा करेगा।
+
आपका
लगता है तुझे अहसास नहीं है गर्मी का...
+
आदित्य चौधरी
</poem>
 
 
| 13  जुलाई, 2014
 
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यह फ़ेसबुक पोस्ट, मेरे प्रिय छोटे भाई पवन चतुर्वेदी(Pavan Chaturvedi) को ...
 
 
 
एक समय था जब हमारे घर पर विद्वानों का आना बना रहता था। इन विद्वानों में चतुर्वेदी अधिक संख्या में होते थे। जिनमें भाषा, धर्म, संस्कृति, दर्शन आदि के विद्वान अपने-अपने विचार रखते थे। उनकी चर्चाएँ मैं सुना करता था। जिसमें किसी भी दूसरे धर्म की आलोचना नाम-मात्र को होती थी। ब्रज और यमुना जी को लेकर उनकी चिन्ताएँ लगातार बनी रहती थीं। वे अपने ही धर्म को लेकर और नई पीढ़ी के आचार-विचार से ही व्यथित रहते थे। यह चतुर्वेदियों की एक अनोखी विशेषता थी। आजकल तो दूसरों के धर्म को बिना बात, धाराप्रवाह गालियां दी जाती हैं।
 
 
 
मथुरा के चतुर्वेदी उन गिनी-चुनी जातियों में से हैं जिनमें आज भी कई भाषाओं के पंडित आसानी से मिल जाते हैं और उन्हें प्रचार की लालसा भी नहीं है। 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम में चतुर्वेदियों के घरों में क्रांतिकारी छुपे रहे जिससे चतुर्वेदियों को अंग्रेज़ों का कोपभाजन बनना पड़ा (देखें ऍफ़॰ ऍस॰ ग्राउस की पुस्तक और ब्रोकमॅन का गज़टियर)। इससे पहली बार यह पता चला कि चतुर्वेदी शासन की हाँ में हाँ मिलाने वाली क़ौम नहीं है बल्कि प्रगति और स्वतंत्रता उसकी नसों में लहू बन के दौड़ रही है। मेरे प्रपितामह को भी 1857 में अंग्रज़ों ने फांसी दी थी। इसलिए मेरी रुचि इन संदर्भों ज्यादा है।
 
 
 
1947 के स्वातंत्र्य संग्राम में तो चतुर्वेदियों ने मथुरा का नाम स्वर्णाक्षरों मे लिखा। जब श्री राधामोहन चतुर्वेदी और मेरे पिता चौधरी दिगम्बर सिंह एक साथ जेल में बंद थे। पिताजी बताते थे कि उस समय चतुर्वेदी जी जेल में अंग्रेज़ी की किताब हाथ में लेकर धारा प्रवाह हिन्दी अनुवाद सुनाया करते थे और क़ैदियों को अंग्रेज़ी पढ़ाया करते थे। उस समय श्री शिवदत्त चतुर्वेदी के पिताजी श्री गौरीदत्त चतुर्वेदी भी जेल में थे।
 
 
 
मथुरा के चौबों को सामान्यत: लोग परदेसियों से मांग-खाकर गुज़रा करने वाली जाति समझ लेते हैं। इसमें कुछ ग़लत तो नहीं लेकिन चतुर्वेदियों में हुए विद्वान, कलाकार, साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानियों की संख्या प्रतिशत के अनुपात में अन्य जातियों से बहुत-बहुत अधिक है। ध्रुपद धमार, हवेली संगीत, पहलवानी, संस्कृत भाषा और अर्थशास्त्र में इनकी दख़ल उल्लेखनीय है।
 
 
 
आज भी जब मेरे छोटे भाई पवन चतुर्वेदी का हमारे घर आना होता है तो पवन की हज़ारों ग़ज़लों और शेरों के मुँह ज़बानी याद होने की प्रतिभा से दंग रह जाता हूँ (और वह भी भावार्थ सहित)। श्री जगदीश्वर चतुर्वेदी (Jagadishwar Chaturvedi) जब आते हैं तो ऐसा लगता है कि विभिन्न विषयों पर धारा प्रवाह बोलते-बोलते कभी थकेंगे ही नहीं। बड़े भाई श्री मनोहर लाल चतुर्वेदी (Manohar Lal Chaturvedi) के आने पर उनके व्यवहार से ही विनम्रता और सभ्यता का पाठ सीखने को मिलता है, जो विरासत उनके चारों बेटों में भरपूर आई है। पिछले दिनों श्री नवीन चतुर्वेदी (Navin C. Chaturvedi) आए उनका ग़ज़ल ज्ञान मुझे बहुत भाया।
 
 
 
श्री शिवदत्त चतुर्वेदी, श्री जगदीश्वर चतुर्वेदी, श्री हरिवंश चतुर्वेदी (Harivansh Chaturvedi), श्री आशुतोष चतुर्वेदी (Ashutosh Chaturvedi)), श्री पवन चतुर्वेदी, श्री मधुवन दत्त चतुर्वेदी (Madhuvandutt Chaturvedi) जैसे कुछ नाम हैं जो एक समय-एक जगह इकट्ठे हों तो लगता है कि 'ज्ञान बाढ़' आ जाएगी ।
 
 
 
जै जमना मैया की...
 
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| 11  जुलाई, 2014
 
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अभी-अभी दु:ख भरा समाचार मिला कि महान शख़्सियत श्रीमती ज़ोहरा सहगल नहीं रहीं। मुझे जिनसे प्रेरणा मिलती थी उनमें ज़ोहरा जी का नाम बहुत-बहुत ऊँचा था। ऐसे लोग बार-बार नहीं जन्मा करते। उन्होंने जो जगह ख़ाली की उसे भरना असंभव है। मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, जब कि वे हमारी दूर की रिश्तेदार भी थीं।
 
 
 
ज़िन्दा दिल लोग सिर्फ़ जीते हैं मरते नहीं
 
मरते तो सिर्फ़ वो हैं
 
जिन्होंने ज़िन्दगी को जिया ही नहीं
 
 
 
विनम्र श्रद्धाञ्जलि
 
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| 10  जुलाई, 2014
 
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"रात निर्मला दिन परछांई
 
कहि 'सहदेव' कि बरसा नाहीं"
 
परसों अम्माजी ने यह सुनाया जिसका अर्थ है कि यदि रात में बादल नहीं हैं और सिर्फ़ दिन में ही होते हैं तो वर्षा की संभावना नहीं होती।
 
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| 4  जुलाई, 2014
 
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चीन की सेना ने छ: महीने की कठोर अभ्यास का पाठ्यक्रम शुरू किया है। यह विशेष रूप से उन किशोर/किशोरियों के लिए है जो इंटरनेट पर अपना समय बिताते हैं। इनकी हालत दीवानों जैसी है और इंटरनेट की दुनिया ही इनकी वास्तविक दुनिया बनती जा रही है। इससे इन छात्रों के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। दिमाग़, हाथ-पैर, पाचन-तंत्र आदि सब बेकार होते जा रहे हैं। चीन में ऐसे छात्रों को तलाश कर सूची बद्ध किया जा रहा है।
 
इसमें इनकी मदद स्कूल-कॉलेज और अभिभावकों के साथ-साथ पड़ोसी भी कर रहे हैं। सेना के विशेष कॅम्प में छ: महीने की कठोर ट्रेनिंग दी जाती है। जिसमें सब्ज़ी काटना, शौचालय साफ़ करना, झाड़ू-पौंछा, बर्तन धोना, कपड़े धोना आदि से लेकर कठोर शारीरिक कसरत भी शामिल है। इन विशेष रिहॅब (Rehabilitation centre) में कठोर अनुशासन के द्वारा इनका जीवन दोबारा से सही रास्ते पर लाया जाता है।
 
 
 
ज़रा सोचिए कि चीन की आबादी भारत से ज़्यादा है...
 
 
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| 4 जुलाई, 2014
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| 4 अगस्त, 2014
 
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12:14, 27 अगस्त 2014 का अवतरण

आदित्य चौधरी फ़ेसबुक पोस्ट
पोस्ट संबंधित चित्र दिनांक

लोग बहुत 'बोलते' हैं लेकिन 'कहते' बहुत कम हैं।
बहुत सी बातें हैं जिन्हें कभी नहीं कहा जाता... लेकिन क्यों ?
# सुनने वाला इस योग्य नहीं होता
# कहने वाला अपनी बात को कहने योग्य नहीं मानता

दोनों ही स्थितियों में परिणाम 'मौन' होता है।
यहाँ समझने वाली बात यह है कि मौन द्वारा जो 'कहा' जाता है उसका प्रभाव अक्सर बोलने-कहने से अधिक होता है...

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24 अगस्त, 2014

हमारी बुद्धि एक कंप्यूटर की तरह है और 'विवेक' इस कंप्यूटर का सबसे अच्छा ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसे अंग्रेज़ी में wisdom कहते हैं।
विवेक एक ऐसा ओ.एस. है जिससे कंप्यूटर (बुद्धि) कभी हॅन्ग नहीं होता और वायरस (क्रोध) का ख़तरा तो बिल्कुल भी नहीं है क्यों कि इसमें बिल्टइन एन्टीवायरस (करुणा) होता है।
यदि आपके कंप्यूटर में रॅम (प्रतिभा) कम भी है तब भी यह ऑपरेटिंग सिस्टम सही काम करता है।

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6 अगस्त, 2014

शोले की तरह जलना है तो पहले ख़ुद को कोयला करना
बादल की तरह उड़ना है तो पहले बन पानी का झरना

जो सबने किया वो तू कर दे, दुनिया में इसका मोल नहीं
हैं सात समंदर धरती पर, तू पार आठवां भी करना

हर चीज़ यहाँ पर बिकती है, इक प्यार का ही कोई मोल नहीं
तू छोड़ के इन बाज़ारों को, दिल का सौदा दिल से करना

सदियों से दफ़न मुर्दे हैं ये, क्या नया गीत सुन पाएँगे ?
अब खोल दे सब दरवाज़ों को और नई हवा से क्या डरना

हाथों की चंद लकीरों से, इन किस्मत की ज़जीरों से
हो जा आज़ाद परिंदे अब, फिर जी लेना या जा मरना

Aditya-chaudhary-facebook-post-38.jpg
6 अगस्त, 2014

प्रिय मित्रो !
मथुरा में हमारे घर के सामने सरकारी अस्पताल है और सरकारी डॉक्टरों के रहने के लिए दो बंगले बने हैं। क़रीब बीस साल पहले यहाँ डॉक्टर वी॰ ऍस॰ अग्निहोत्री (Vishnu Sharan Agnihotri) रहते थे। वे बाल रोग विशेषज्ञ हैं। पिताजी उस समय जीवित थे। पिताजी का स्वास्थ्य ख़राब होने पर डॉक्टर साहिब अपनी तरफ़ से ही उन्हें रोज़ाना देखने आया करते थे। पिताजी को ही नहीं बल्कि हमारे पूरे परिवार के स्वास्थ्य को भी डॉक्टर अग्निहोत्री ही ठीक रखते थे।
इसके बदले में हमसे कभी किसी भी प्रकार की कोई अपेक्षा उन्होंने नहीं की।
हमारे घर के पास एक ग़रीब बस्ती भी है। बस्ती के लोग आज भी डॉक्टर साहिब को याद करते हैं जिसका कारण है मुफ़्त इलाज, मुफ़्त दवाइयाँ और मधुर व्यवहार।
आजकल डॉक्टर साहिब इटावा में हैं, मथुरा में घर बनवा लिया है। रिटायर होकर मथुरा ही आने वाले हैं। पूरे ब्रजवासी हो चुके हैं।
आज उन्होने भारतकोश के लिए 7000/- रुपये का चैक भेजकर मुझे सुखद आश्चर्य में डाल दिया। एक ईमानदार और सहृदय, सरकारी डॉक्टर के ये सात हज़ार रुपये भारतकोश के लिए कितना महत्व रखते हैं, इसे मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ।
चैक के साथ एक पत्र भी है जिसमें विनम्रता का जो वाक्य उन्होंने लिखा है उसे पढ़कर मेरी आँखें भीग गईं, उन्होंने लिखा है- "व्यय को देखते हुए यह धनराशि अत्यन्त अल्प है। रामसेतु निर्माण में गिलहरी का योगदान समझकर स्वीकार करियेगा..." साथ ही यह भी लिखा कि मैं यह किसी को बताऊँ भी नहीं कि उन्होंने योगदान दिया है। भारतकोश की तरफ़ से उन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद।
मेरा सभी मित्रों से विनम्र आग्रह है कि डॉक्टर साहिब को एक धन्यवाद संदेश, यहाँ अथवा उनकी वॉल पर अवश्य दें।
आपका
आदित्य चौधरी

4 अगस्त, 2014

शब्दार्थ

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