"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट दिसम्बर 2014" के अवतरणों में अंतर
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जाटों के संबंध में प्रशांत चाहल ने नवभारत टाइम्स के लिए एक छोटा सा लेख माँगा। गुज़रे इतवार को छपा। | जाटों के संबंध में प्रशांत चाहल ने नवभारत टाइम्स के लिए एक छोटा सा लेख माँगा। गुज़रे इतवार को छपा। | ||
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+ | ; दिनांक- 29 दिसम्बर, 2014 | ||
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हुस्न औ इश्क़ के क़िस्से तो हज़ारों हैं मगर | हुस्न औ इश्क़ के क़िस्से तो हज़ारों हैं मगर | ||
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समझ भी लूँ तो समझने से फ़र्क़ क्या होगा | समझ भी लूँ तो समझने से फ़र्क़ क्या होगा | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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एक ही दिल था, वो कमबख़्त तूने तोड़ दिया | एक ही दिल था, वो कमबख़्त तूने तोड़ दिया | ||
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तेरी ही ख़ाइशें थी कि हमने रास्ता ही छोड़ दिया | तेरी ही ख़ाइशें थी कि हमने रास्ता ही छोड़ दिया | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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क्या कहें तुमसे तो अब, कहना भी कुछ बेकार है | क्या कहें तुमसे तो अब, कहना भी कुछ बेकार है | ||
वक़्त तुमको काटना था हमने समझा प्यार है | वक़्त तुमको काटना था हमने समझा प्यार है | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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एक दिल है, हज़ार ग़म हैं, लाख अफ़साने | एक दिल है, हज़ार ग़म हैं, लाख अफ़साने | ||
तुझे सुनने का उन्हें वक़्त, कभी ना होगा | तुझे सुनने का उन्हें वक़्त, कभी ना होगा | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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मर गए तो भूत बन तुम को डराने अाएँगे | मर गए तो भूत बन तुम को डराने अाएँगे | ||
डर गए तो दूसरे दिन फिर डराने अाएँगे | डर गए तो दूसरे दिन फिर डराने अाएँगे | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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कुछ एेसा कर देऽऽऽ | कुछ एेसा कर देऽऽऽ | ||
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हसीन चेहरा | हसीन चेहरा | ||
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+ | ; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2014 | ||
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एक अपनी ज़िंदगी रुसवाइयों में कट गई | एक अपनी ज़िंदगी रुसवाइयों में कट गई | ||
जिसको जितनी चाहिए थी उसमें उतनी बँट गई | जिसको जितनी चाहिए थी उसमें उतनी बँट गई | ||
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+ | ; दिनांक- 24 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Phool-jitne-bhi-diye.jpg|right|250px]] | ||
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फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए | फूल जितने भी दिए, उनको सजाने के लिए | ||
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वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए | वक़्त मुझको मिले फिर से ज़माने के लिए | ||
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+ | ; दिनांक- 19 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Brajbhasha-geet-Aditya-Chaudhary.jpg|250px|right]] | ||
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तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | ||
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तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | तू जुलम करै अपनौ है कैंऽऽऽ | ||
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+ | ; दिनांक- 15 दिसम्बर, 2014 | ||
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मृत्यु तुझे मैं जीकर दिखलाता हूँ | मृत्यु तुझे मैं जीकर दिखलाता हूँ | ||
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फिर से बिखराता हूं | फिर से बिखराता हूं | ||
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+ | ; दिनांक- 13 दिसम्बर, 2014 | ||
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नहीं कोई शाम कोई सुब्ह, जिससे बात करूँ । | नहीं कोई शाम कोई सुब्ह, जिससे बात करूँ । | ||
एक बस रात थी, ये सिलसिला भी टूट गया ॥ | एक बस रात थी, ये सिलसिला भी टूट गया ॥ | ||
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+ | ; दिनांक- 13 दिसम्बर, 2014 | ||
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मैंने देखा था, ज़िन्दगी से छुप के एक ख़्वाब कोई । | मैंने देखा था, ज़िन्दगी से छुप के एक ख़्वाब कोई । | ||
वो भी कमबख़्त मिरे दिल की तरहा टूट गया ॥ | वो भी कमबख़्त मिरे दिल की तरहा टूट गया ॥ | ||
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+ | ; दिनांक- 10 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | [[चित्र:Chaudhary-Digambar-Singh with family.jpg|250px|right]] | ||
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− | मेरे पसंदीदा शायर | + | मेरे पसंदीदा शायर अहमद फ़राज़ साहब की मशहूर ग़ज़ल का मत्ला और मक़्ता अर्ज़ है… |
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें। | अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें। | ||
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जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें॥ | जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें॥ | ||
− | 10 दिसम्बर, अाज पिताजी की पुण्यतिथि है। मैं गर्व करता हूँ कि मैं | + | 10 दिसम्बर, अाज पिताजी की पुण्यतिथि है। मैं गर्व करता हूँ कि मैं चौधरी दिगम्बर सिंह जी जैसे पिता का बेटा हूँ। वे स्वतंत्रता सेनानी थे और चार बार संसद सदस्य रहे। वे मेरे गुरु और मित्र भी थे। |
उनके स्वर्गवास पर मैंने एक कविता लिखी थी... | उनके स्वर्गवास पर मैंने एक कविता लिखी थी... | ||
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मुझे रुला नहीं पाता | मुझे रुला नहीं पाता | ||
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+ | ; दिनांक- 4 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | {| width=100% | ||
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+ | <poem> | ||
+ | मत करना कोशिश भी | ||
+ | तुम ये, | ||
+ | फिर से हँसू... | ||
+ | बहुत मुश्किल है | ||
+ | |||
+ | तनी भृकुटियाँ | ||
+ | भी थककर अब | ||
+ | साथ छोड़कर | ||
+ | पसर गई हैं | ||
+ | |||
+ | यही सोचता | ||
+ | हरदम तत्पर | ||
+ | क्यों हूँ ज़िंदा ? | ||
+ | मरा नहीं क्यों ? | ||
+ | |||
+ | लड़ क्यों नहीं रहा | ||
+ | अजगर से ? | ||
+ | बार-बार क्यों | ||
+ | जाता हार ? | ||
+ | |||
+ | इसकी गहरी श्वास | ||
+ | मुझे क्यों खींचे लेती ? | ||
+ | कर देती अस्तित्व | ||
+ | शिथिल | ||
+ | मेरा क्यों | ||
+ | हर पल ? | ||
+ | |||
+ | लाल और नीली | ||
+ | मणियों को | ||
+ | धारण करके, | ||
+ | जीभ लपलपाते | ||
+ | औ | ||
+ | चारण गान | ||
+ | सुन रहे, | ||
+ | ...मतली लाने वाले स्वर के | ||
+ | |||
+ | जनता को | ||
+ | उलझाने की | ||
+ | नित कला | ||
+ | सीखते | ||
+ | |||
+ | और जानते | ||
+ | हाँ-हाँ में ना-ना | ||
+ | हो कैसे... | ||
+ | कर जाना है | ||
+ | एक सहज मुस्कान | ||
+ | फेंक के | ||
+ | |||
+ | अपने ऐरावत पर | ||
+ | हो सवार ये, | ||
+ | गिद्ध दृष्टि से युक्त | ||
+ | गिद्ध-भोजों को तत्पर, | ||
+ | षडयंत्रों में रत हैं | ||
+ | सभी 'इयागो' जैसे | ||
+ | </poem> | ||
+ | | | ||
+ | <poem> | ||
+ | सुबह सवेरे पूजा गृह में | ||
+ | स्तुति रत हो | ||
+ | आँख मूँद लेते हैं | ||
+ | सब | ||
+ | अनदेखा करके... | ||
+ | |||
+ | तम से घिरे निरंतर | ||
+ | ढेर अबोधों के स्वर, | ||
+ | कभी कान इनके सुनने | ||
+ | को बने नहीं हैं | ||
+ | |||
+ | छिनते बचपन की | ||
+ | बिकती तस्वीरों से ये | ||
+ | अपने सभागार को | ||
+ | कब का सजा चुके हैं | ||
+ | |||
+ | रेलों की पटरी पे | ||
+ | सोती तक़्दीरों को | ||
+ | स्वर्ण रथों के पहियों | ||
+ | से दफ़ना देते हैं | ||
+ | |||
+ | बीते हुए जिस्म के | ||
+ | बिकते हुए ख़ून से | ||
+ | और वहीं | ||
+ | मासूम ख़ून के | ||
+ | उन धब्बों को | ||
+ | कब देखोगे? | ||
+ | |||
+ | कुछ तो करो... | ||
+ | रोक लो इनको | ||
+ | हे जन गण मन ! | ||
+ | कहाँ छुपे हो ? | ||
+ | कैसे सह लेते हो | ||
+ | यह सब, | ||
+ | कहाँ रुके हो ? | ||
+ | क्योंकर झुका | ||
+ | भाल अपना तुम | ||
+ | सब सहते हो...? | ||
+ | </poem> | ||
+ | [[चित्र:Mat-karna-koshish-aditya-chaudhary.jpg|left|250px]] | ||
+ | |} | ||
+ | |- | ||
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+ | ; दिनांक- 3 दिसम्बर, 2014 | ||
<poem> | <poem> | ||
"हाँ तो नरेन ! तो क्या खाओगे ? मैं जल्दी से सब्ज़ी बना देती हूँ, तुम भी रसोई में आ जाओ सब्ज़ी काटने में मेरी सहायता करो।” | "हाँ तो नरेन ! तो क्या खाओगे ? मैं जल्दी से सब्ज़ी बना देती हूँ, तुम भी रसोई में आ जाओ सब्ज़ी काटने में मेरी सहायता करो।” | ||
− | स्वामी विवेकानंद अमरीका जाने से पहले | + | स्वामी विवेकानंद अमरीका जाने से पहले माँ शारदा का आशीर्वाद लेने उनके पास पहुँचे। स्वामी विवेकानंद का नाम नरेन था। संत तो संत होते ही हैं, उनकी पत्नियाँ भी कभी-कभी अपने पतियों से अधिक ऊँचाइयाँ छू लेती हैं। संत रामकृष्ण परमहंस की धर्मपत्नी माँ शारदा, उनमें से एक थीं। |
− | मां शारदा बोलीं “नरेन ज़रा वहाँ से छुरी उठा कर मुझे देदो।” इतना सुनते ही विवेकानंद ने छुरी उठाई और | + | मां शारदा बोलीं “नरेन ज़रा वहाँ से छुरी उठा कर मुझे देदो।” इतना सुनते ही विवेकानंद ने छुरी उठाई और माँ शारदा को देदी। |
मां शारदा बोलीं “नरेन अब तुम विदेश में भारत के प्रतिनिधि बनके जाने योग्य हो और जो भी संदेश दोगे वह एक सच्चे भारतीय का संदेश होगा। | मां शारदा बोलीं “नरेन अब तुम विदेश में भारत के प्रतिनिधि बनके जाने योग्य हो और जो भी संदेश दोगे वह एक सच्चे भारतीय का संदेश होगा। | ||
विवेकानंद आश्चर्य चकित होकर बोले “आपने तो मुझसे कुछ भी नहीं पूछा ? यह कैसे जान लिया कि मैं भारत का सच्चा प्रतिनिधि बन सकता हूँ ?” | विवेकानंद आश्चर्य चकित होकर बोले “आपने तो मुझसे कुछ भी नहीं पूछा ? यह कैसे जान लिया कि मैं भारत का सच्चा प्रतिनिधि बन सकता हूँ ?” | ||
मां शारदा ने कहा "देखो नरेन ! जब मैंने तुमसे छुरी मांगी तो तुमने धार की की ओर से पकड़ कर मुझे छुरी दी जिससे कि मैं हत्थे की ओर से आसानी से उसे पकड़ सकूँ। यदि धार मेरी ओर और हत्था तुम्हारी ओर होता तो मेरी उँगली घायल होने का ख़तरा हो सकता था। इन छोटी-छोटी बातों का ख़याल रखना ही भारतीय संस्कार है, यही सच्ची भारतीयता है नरेन ! अब तुम जाओ और अमरीका में भारत की अहिंसा का पाठ पढ़ाओ…” | मां शारदा ने कहा "देखो नरेन ! जब मैंने तुमसे छुरी मांगी तो तुमने धार की की ओर से पकड़ कर मुझे छुरी दी जिससे कि मैं हत्थे की ओर से आसानी से उसे पकड़ सकूँ। यदि धार मेरी ओर और हत्था तुम्हारी ओर होता तो मेरी उँगली घायल होने का ख़तरा हो सकता था। इन छोटी-छोटी बातों का ख़याल रखना ही भारतीय संस्कार है, यही सच्ची भारतीयता है नरेन ! अब तुम जाओ और अमरीका में भारत की अहिंसा का पाठ पढ़ाओ…” | ||
− | मेरे विचार से | + | मेरे विचार से भारतीय संस्कार का इतना सटीक उदाहरण और पाठ कोई और मिलना मुश्किल है। |
</poem> | </poem> | ||
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+ | ; दिनांक- 3 दिसम्बर, 2014 | ||
+ | {| width="100%" | ||
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+ | <poem> | ||
+ | मैं हूँ स्तब्ध सी | ||
+ | ये देख कर अस्तित्व तेरा | ||
+ | कितना है ये किसका | ||
+ | कितना ये है मेरा | ||
+ | |||
+ | मुझ से तुझको जोड़ा | ||
+ | तुझको मुझसे जोड़ा | ||
+ | ऐसे, इस तरहा से | ||
+ | किसकी ये माया है | ||
+ | कैसे तू आई है | ||
+ | |||
+ | पंखों की रचना है | ||
+ | रिमझिम सी काया है | ||
+ | झिलमिल सा साया है | ||
+ | |||
+ | तू जब भी रोती है | ||
+ | सपनों में खोती है | ||
+ | शैतानी बोती है | ||
+ | तुझको मालुम क्या | ||
+ | ऊधम है तेरा क्या | ||
+ | |||
+ | घर-भर के रहती है | ||
+ | पल भर में बहती है | ||
+ | गंगा और जमना क्या | ||
+ | आखों में रहती है | ||
+ | |||
+ | जब भी तू कहती है | ||
+ | मम्मा-अम्मा मुझको | ||
+ | जाने क्या सिहरन सी | ||
+ | रग-रग में बहती है | ||
+ | |||
+ | तेरा जो पप्पा है | ||
+ | पूरा वो हप्पा है | ||
+ | दांतो से काट-काट | ||
+ | गोदी में गप्पा है | ||
+ | |||
+ | मैं हूँ अब ख़ुश कितनी | ||
+ | ये किसको बतलाऊँ | ||
+ | समझेगा कौन इसे | ||
+ | किस-किस को समझाऊँ | ||
+ | </poem> | ||
+ | | | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | यूँ ही इक बात मगर | ||
+ | कहती हूँ तुम सबसे | ||
+ | बच्चे ही आते हैं | ||
+ | ईश्वर का रूप धरे | ||
+ | |||
+ | इनकी जो सेवा है | ||
+ | अल्लाह की ख़िदमत है | ||
+ | साहिब का नूर हैं ये | ||
+ | ईश्वर की मेवा है | ||
+ | |||
+ | इनमें हर मंदिर है | ||
+ | इनमें हर मस्जिद है | ||
+ | गिरजे और गुरुद्वारे | ||
+ | इनके ही सजदे हैं | ||
+ | |||
+ | कोई भी बच्चा हो | ||
+ | कितना भी झूठा हो | ||
+ | कितना भी सच्चा हो | ||
+ | |||
+ | बस ये ही समझो तुम | ||
+ | उसके ही दम से तो | ||
+ | ये सारी दुनिया है | ||
+ | उससे ही रौशन हैं | ||
+ | सूरज और तारे सब | ||
+ | उसकी मुस्कानों में | ||
+ | जीवन की रेखा है | ||
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− | + | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-6.jpg|left|250px]] | |
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|} | |} | ||
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14:08, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
शब्दार्थसंबंधित लेख |