वारणावत

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(वारणावर्त से अनुप्रेषित)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

वारणावत महाभारत के अनुसार वह स्थान था, जहाँ पाण्डवों को जलाकर भस्म कर देने के लिये दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। युधिष्ठिर ने जिन पाँच ग्रामों को युद्ध से पूर्व दुर्योधन से माँगा था, उनमें से एक वारणावत भी था। वारणावत का अभिज्ञान मेरठ ज़िला, उत्तर प्रदेश के 'बरनावा' नामक स्थान से किया गया है।[1]

  • महाभारत के अनुसार इस नगर में दुर्योंधन ने लाक्षागृह बनवाकर पांडवों को जला डालने की चाल चली थी, जो पांडवों की चतुराई के कारण सफल नहीं हो सकी।
  • वारणावत में शिव की पूजा के लिए जुड़े हुए ‘समाज’ अथवा मेले को देखने के लिए पांडव धृतराष्ट्र की आज्ञा से गये थे-

'धृतराष्ट्र प्रयुक्तास्ते केचित् कुशलमंत्रिणः, कथयांचक्रिरे रम्यं नगरं वारणावतम्। अयं समाजः सुमहान् रमणीयतमो भुवि, उपस्थितः पशुपतेर्नगरे वारणावत।'[2]

'सर्वा मातृस्तथाऽपृच्छ्य कृत्वा चैव प्रदक्षिणम्, सर्वाः प्रकृतयश्चैव प्रययुर्वारणावतम्।'[3]

  • वारणावत में ही शिल्पकार पुरोचन ने छद्म रूप से सन, राल, मूंज, बल्वज, बाँस आदि पदार्थों से लाक्षागृह की रचना की थी-

'शणसर्जरसंव्यक्तमानीय गृहकर्मणि। मुंजबल्वजवंशादि द्रव्यं सर्वघृतोक्षितम्, शिल्पिभिः सुकृतं ह्माप्तैर्विनीतैर्वेश्मकर्मणि, विश्वस्तं मामयं पापो दग्धुकामः पुरोचचनः।'[4]

'अविस्थलं वृकस्थलं माकन्दीं वारणावतम्, अवसानं भवेत्वत्र किंचिदेकं च पंचमम्।'


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 843 |
  2. महाभारत आदिपर्व142, 2-3
  3. महाभारत आदिपर्व 144, 4
  4. महाभारत आदिपर्व 145, 15-16
  5. उद्योगपर्व 31-19
  6. आदिपर्व 142, 3

संबंधित लेख