"भीष्म पर्व महाभारत": अवतरणों में अंतर
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'''भीष्म पर्व''' में [[कुरुक्षेत्र]] में युद्ध के लिए सन्नद्ध दोनों पक्षों की सेनाओं में युद्धसम्बन्धी नियमों का निर्णय, [[संजय]] द्वारा [[धृतराष्ट्र]] को भूमि का महत्त्व बतलाते हुए जम्बूखण्ड के द्वीपों का वर्णन, शाकद्वीप तथा [[राहु देव|राहु]], [[सूर्य देवता|सूर्य]] और [[चंद्र देवता|चन्द्रमा]] का प्रमाण, दोनों पक्षों की सेनाओं का आमने-सामने होना, [[अर्जुन]] के युद्ध-विषयक विषाद तथा व्याहमोह को दूर करने के लिए उन्हें उपदेश ([[गीता|श्रीमद्भगवद्गीता]]), उभय पक्ष के योद्धाओं में भीषण युद्ध तथा [[भीष्म]] के वध और शरशय्या पर लेटकर प्राणत्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा करने आदि का निरूपण है। | |||
;युद्ध-भूमि | |||
कुरुक्षेत्र के मैदान में [[कौरव|कौरवों]]-[[पांडव|पांडवों]] की सेनाएँ आमने-सामने आ डटीं। कौरवों की सेना के आगे भीष्म थे तथा पांडवों की सेना का संचालन कर रहे थे- अर्जुन। अर्जुन ने जब देखा कि उसे अपने गुरु, पितामह, भाई-बंधु और सगे-संबंधियों से युद्ध करना है तो उसका हृदय काँप उठा। उसने सोचा कि वे ऐसे राज्य को लेकर क्या करेंगे, जो उन्हें अपने प्रियजनों को मारकर प्राप्त होगा। | |||
;अर्जुन का मोह और गीता का उपदेश | |||
अर्जुन के मोह तथा भ्रम को दूर करने के लिए श्री [[कृष्ण]] ने [[गीता कर्म योग|कर्मयोग]] का उपदेश दिया, जो [[श्रीमद्भगवद गीता]] के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि होनी पहले हो चुकी है, तुम्हें तो केवल क्षत्रिय धर्म के अनुसार चलना है। धर्म पालन के लिए युद्ध करना ही चाहिए। कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हुए कहा कि अधर्म के कारण कौरवों का नाश हो चुका है। अर्जुन ने देखा कि समस्त कौरव श्रीकृष्ण के मुख में समा रहे हैं। अर्जुन का मोह दूर हो गया तथा वे युद्ध के लिए तैयार हो गए। | |||
युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व [[युधिष्ठिर]] रथ से उतरकर पैदल ही पितामह भीष्म के पास गए तथा उनके चरणस्पर्श करके उन्हें प्रणाम किया। इसी प्रकार युधिष्ठिर ने [[कृपाचार्य]] और [[द्रोणाचार्य]] को भी प्रणाम किया तथा विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया। युधिष्ठिर की धर्म-नीति को देखकर धृतराष्ट्र का पुत्र [[युयुत्सु]] इतना प्रभावित हुआ कि कौरन-सेना छोड़कर पांडवों से जा मिला। | |||
;पहले दिन का युद्ध | |||
अर्जुन ने युद्ध प्रारंभ किया। देखते-ही देखते घमासान युद्ध छिड़ गया। भीष्म के सामने पांडव-सेना थर्रा उठी। [[अभिमन्यु]] ने भीष्म को रोका तथा उनकी ध्वजा को काट दिया। भीष्म पितामह अभिमन्यु के रण-कौशल को देखकर चकित थे। इस दिन के युद्ध में [[विराट]] पुत्र उत्तर कुमार को वीरगति प्राप्त हुई। संध्या होते ही युद्ध की समाप्ति की घोषणा की गई। पहले दिन के युद्ध से दुर्योधन बहुत प्रसन्न था। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि आज के युद्ध से पितामह की अजेयता सिद्ध हो गई है। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को ढाँढ़स बँधाया। | |||
;दूसरे दिन का युद्ध | |||
दूसरे दिन भीष्म ने नेतृत्व में कौरव-सेना ने पांडवों पर आक्रमण किया, जिससे पांडवों की सेना तितर-बितर हो गई। अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण उनके रथ को भीष्म के सामने ले गए। अर्जुन और भीष्म में भयंकर युद्ध छिड़ गया। भीष्म साक्षात [[यमराज]] की तरह पांडव-सेना को काट रहे थे। भीष्म अर्जुन से लड़ना छोड़ भीम की तरफ भागे। [[सात्यकि]] के एक बाण से भीष्म का सारथी घायल होकर गिर पड़ा। उसके गिरते ही रथ के घोड़े भाग खड़े हुए जिससे पांडव सेना में उत्साह का संचार हुआ। संध्या हो गई थी, दोनों ओर के सेनापतियों ने युद्ध बंद होने का शंख बजाया। | |||
;तीसरे दिन का युद्ध | |||
तीसरे दिन भी पांडव-सेना के सामने कौरवों की एक न चली। भीम के एक बाण से दुर्योधन अचेत हो गया। दुर्योधन का सारथी उन्हें युद्ध-भूमि से हटा ले गया। कौरवों ने समझा कि दुर्योधन युद्ध-क्षेत्र से भाग खड़े हुए हैं। सैनिकों में भगदड़ मच गई। तभी भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार डाला। संध्या के समय युद्ध बंद होने पर दुर्योधन भीष्म के शिविर में गया तथा कहा कि आप जी (मन) लगाकर युद्ध नहीं करते। भीष्म यह सुनकर क्रोधित हो उठे और बोले कि पांडव अजेय हैं, फिर भी मैं प्रयास करूँगा। | |||
;चौथे से सातवें दिन तक का युद्ध | |||
चौथे दिन भीष्म ने प्रबल वेग से पांडवों पर आक्रमण किया। पांडव सेना में हाहाकार मच गया। आज अर्जुन का वश भी उनके सामने नहीं चल रहा था। पाँचवें, छठे और सातवें दिन भी भयंकर युद्ध चलता रहा। | |||
;आठवें दिन का युद्ध | |||
आठवें दिन का युद्ध घनघोर था। इस दिन अर्जुन की दूसरी पत्नी [[उलूपी]] से उत्पन्न पुत्र महारथी इरावान मारा गया। उसकी मृत्यु से अर्जुन बहुत क्षुब्ध हो उठे। उन्होंने कौरवों की अपार सेना नष्ट कर दी। आज का भीषण युद्ध देखकर दुर्योधन [[कर्ण]] के पास गया। कर्ण ने उसे सांत्वना दी कि भीष्म का अंत होने पर वह अपने दिव्यस्त्रों से पांडव का अंत कर देगा। दुर्योधन भीष्म पितामह के भी पास गया और बोला | |||
पितामह, लगता है आप जी लगाकर नहीं लड़ रहे। यदि आप भीतर-ही-भीतर पांडवों का समर्थन कर रहे हों तो आज्ञा दीजिए मैं कर्ण को सेनापति बना दूँ। भीष्म पितामह ने दुर्योधन से कहा कि योद्धा अंत तक युद्ध करता है। कर्ण की वीरता तुम [[विराट नगर]] में देख चुके हो। कल के युद्ध में मैं कुछ कसर न छोडूँगा। | |||
;नौवें दिन का युद्ध | |||
नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से अर्जुन भी घायल हो गए। कृष्ण के अंग भी जर्जर हो गए। श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। संध्या हुई और युद्ध बंद हुआ। रात्रि के समय युधिष्ठिर ने कृष्ण से मंत्रणा की। कृष्ण ने कहा कि क्यों न हम भीष्म से ही उन पर विजय प्राप्त करने का उपाय पूछें। श्रीकृष्ण और पांडव भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने कहा कि जब तक मैं जीवित हूँ तब तक कौरव पक्ष अजेय है। भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु का रहस्य बता दिया। [[द्रुपद]] का बेटा [[शिखंडी]] पूर्वजन्म का स्त्री है। मेरे वध के लिए उसने [[शिव]] की तपस्या की थी। द्रुपद के घर वह कन्या के रूप में पैदा हुआ, लेकिन दानव के वर से फिर पुरुष बन गया। यदि उसे सामने करके अर्जुन मुझ पर तीर बरसाएगा, तो मैं अस्त्र नहीं चलाऊँगा। | |||
;दसवें दिन का युद्ध | |||
दसवें दिन के युद्ध में शिखंडी पांडवों की ओर से भीष्म पितामह के सामने आकर डट गया, जिसे देखते ही भीष्म ने अस्त्र परित्याग कर दिया। कृष्ण के कहने पर शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को जर्जर कर दिया तथा वे रथ से नीचे गिर पड़े, पर [[पृथ्वी]] पर नहीं, तीरों की शय्या पर पड़े रहे। | |||
;भीष्म की शरशय्या | |||
भीष्म के गिरते ही दोनों पक्षों में हाहाकार मच गया। कौरवों तथा पांडव दोनों शोक मनाने लगे। भीष्म ने कहा, मेरा सिर लटक रहा है, इसका उपाय करो। दुर्योधन एक तकिया लाया, पर अर्जुन ने तीन बाण भीष्म के सिर के नीचे ऐसे मारे कि वे सिर का आधार बन गए। फिर भीष्म ने कहा, प्यास लगी है। दुर्योधन ने सोने के पात्र में जल मँगाया, पर भीष्म ने अर्जुन की तरफ फिर देखा। अर्जुन ने एक बाण पृथ्वी पर ऐसा मारा कि स्वच्छ जल-धारा फूटकर भीष्म के मुहँ पर गिरने लगी। पानी पीकर भीष्म ने कौरव-पांडवों को जाने की आज्ञा दी और कहा कि सूर्य के उत्तरायण होने पर मैं प्राण त्याग करूँगा। भीष्म शरशय्या पर गिरने का समाचार सुनकर कर्ण अपनी शत्रुता भूलकर भीष्म से मिलने गया। उसने पितामह को प्रणाम किया। भीष्म ने कर्ण को आशीर्वाद दिया और समझाया कि यदि तुम चाहो तो युद्ध रुक सकता है। दुर्योधन समझता है कि तुम्हारी सहायता से वह विजयी होगा, पर अर्जुन को जीतना संभव नहीं। तुम दुर्योधन को समझाओ। तुम पांडवों के भाई तथा कुंती के पुत्र हो। तुम दोनों पक्षों में शांति स्थापित करो। कर्ण ने कहा,पितामह अब संघर्ष दूर तक पहुँच गया है। मैं तो अब सूत अधिरथ का ही पुत्र हूँ, जिसने मेरा पालन-पोषण किया है। यह कहकर कर्ण अपने शिविर में लौट आया। | |||
भीष्म पर्व के अन्तर्गत 4 (उप) पर्व हैं और इसमें कुल 122 अध्याय हैं। इन 4 (उप) पर्वों के नाम हैं-<br /> | भीष्म पर्व के अन्तर्गत 4 (उप) पर्व हैं और इसमें कुल 122 अध्याय हैं। इन 4 (उप) पर्वों के नाम हैं-<br /> | ||
*जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व, | *जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व, | ||
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12:28, 1 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
भीष्म पर्व में कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए सन्नद्ध दोनों पक्षों की सेनाओं में युद्धसम्बन्धी नियमों का निर्णय, संजय द्वारा धृतराष्ट्र को भूमि का महत्त्व बतलाते हुए जम्बूखण्ड के द्वीपों का वर्णन, शाकद्वीप तथा राहु, सूर्य और चन्द्रमा का प्रमाण, दोनों पक्षों की सेनाओं का आमने-सामने होना, अर्जुन के युद्ध-विषयक विषाद तथा व्याहमोह को दूर करने के लिए उन्हें उपदेश (श्रीमद्भगवद्गीता), उभय पक्ष के योद्धाओं में भीषण युद्ध तथा भीष्म के वध और शरशय्या पर लेटकर प्राणत्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा करने आदि का निरूपण है।
- युद्ध-भूमि
कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों-पांडवों की सेनाएँ आमने-सामने आ डटीं। कौरवों की सेना के आगे भीष्म थे तथा पांडवों की सेना का संचालन कर रहे थे- अर्जुन। अर्जुन ने जब देखा कि उसे अपने गुरु, पितामह, भाई-बंधु और सगे-संबंधियों से युद्ध करना है तो उसका हृदय काँप उठा। उसने सोचा कि वे ऐसे राज्य को लेकर क्या करेंगे, जो उन्हें अपने प्रियजनों को मारकर प्राप्त होगा।
- अर्जुन का मोह और गीता का उपदेश
अर्जुन के मोह तथा भ्रम को दूर करने के लिए श्री कृष्ण ने कर्मयोग का उपदेश दिया, जो श्रीमद्भगवद गीता के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि होनी पहले हो चुकी है, तुम्हें तो केवल क्षत्रिय धर्म के अनुसार चलना है। धर्म पालन के लिए युद्ध करना ही चाहिए। कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हुए कहा कि अधर्म के कारण कौरवों का नाश हो चुका है। अर्जुन ने देखा कि समस्त कौरव श्रीकृष्ण के मुख में समा रहे हैं। अर्जुन का मोह दूर हो गया तथा वे युद्ध के लिए तैयार हो गए।
युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व युधिष्ठिर रथ से उतरकर पैदल ही पितामह भीष्म के पास गए तथा उनके चरणस्पर्श करके उन्हें प्रणाम किया। इसी प्रकार युधिष्ठिर ने कृपाचार्य और द्रोणाचार्य को भी प्रणाम किया तथा विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया। युधिष्ठिर की धर्म-नीति को देखकर धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु इतना प्रभावित हुआ कि कौरन-सेना छोड़कर पांडवों से जा मिला।
- पहले दिन का युद्ध
अर्जुन ने युद्ध प्रारंभ किया। देखते-ही देखते घमासान युद्ध छिड़ गया। भीष्म के सामने पांडव-सेना थर्रा उठी। अभिमन्यु ने भीष्म को रोका तथा उनकी ध्वजा को काट दिया। भीष्म पितामह अभिमन्यु के रण-कौशल को देखकर चकित थे। इस दिन के युद्ध में विराट पुत्र उत्तर कुमार को वीरगति प्राप्त हुई। संध्या होते ही युद्ध की समाप्ति की घोषणा की गई। पहले दिन के युद्ध से दुर्योधन बहुत प्रसन्न था। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि आज के युद्ध से पितामह की अजेयता सिद्ध हो गई है। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को ढाँढ़स बँधाया।
- दूसरे दिन का युद्ध
दूसरे दिन भीष्म ने नेतृत्व में कौरव-सेना ने पांडवों पर आक्रमण किया, जिससे पांडवों की सेना तितर-बितर हो गई। अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण उनके रथ को भीष्म के सामने ले गए। अर्जुन और भीष्म में भयंकर युद्ध छिड़ गया। भीष्म साक्षात यमराज की तरह पांडव-सेना को काट रहे थे। भीष्म अर्जुन से लड़ना छोड़ भीम की तरफ भागे। सात्यकि के एक बाण से भीष्म का सारथी घायल होकर गिर पड़ा। उसके गिरते ही रथ के घोड़े भाग खड़े हुए जिससे पांडव सेना में उत्साह का संचार हुआ। संध्या हो गई थी, दोनों ओर के सेनापतियों ने युद्ध बंद होने का शंख बजाया।
- तीसरे दिन का युद्ध
तीसरे दिन भी पांडव-सेना के सामने कौरवों की एक न चली। भीम के एक बाण से दुर्योधन अचेत हो गया। दुर्योधन का सारथी उन्हें युद्ध-भूमि से हटा ले गया। कौरवों ने समझा कि दुर्योधन युद्ध-क्षेत्र से भाग खड़े हुए हैं। सैनिकों में भगदड़ मच गई। तभी भीम ने सैकड़ों सैनिकों को मार डाला। संध्या के समय युद्ध बंद होने पर दुर्योधन भीष्म के शिविर में गया तथा कहा कि आप जी (मन) लगाकर युद्ध नहीं करते। भीष्म यह सुनकर क्रोधित हो उठे और बोले कि पांडव अजेय हैं, फिर भी मैं प्रयास करूँगा।
- चौथे से सातवें दिन तक का युद्ध
चौथे दिन भीष्म ने प्रबल वेग से पांडवों पर आक्रमण किया। पांडव सेना में हाहाकार मच गया। आज अर्जुन का वश भी उनके सामने नहीं चल रहा था। पाँचवें, छठे और सातवें दिन भी भयंकर युद्ध चलता रहा।
- आठवें दिन का युद्ध
आठवें दिन का युद्ध घनघोर था। इस दिन अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी से उत्पन्न पुत्र महारथी इरावान मारा गया। उसकी मृत्यु से अर्जुन बहुत क्षुब्ध हो उठे। उन्होंने कौरवों की अपार सेना नष्ट कर दी। आज का भीषण युद्ध देखकर दुर्योधन कर्ण के पास गया। कर्ण ने उसे सांत्वना दी कि भीष्म का अंत होने पर वह अपने दिव्यस्त्रों से पांडव का अंत कर देगा। दुर्योधन भीष्म पितामह के भी पास गया और बोला पितामह, लगता है आप जी लगाकर नहीं लड़ रहे। यदि आप भीतर-ही-भीतर पांडवों का समर्थन कर रहे हों तो आज्ञा दीजिए मैं कर्ण को सेनापति बना दूँ। भीष्म पितामह ने दुर्योधन से कहा कि योद्धा अंत तक युद्ध करता है। कर्ण की वीरता तुम विराट नगर में देख चुके हो। कल के युद्ध में मैं कुछ कसर न छोडूँगा।
- नौवें दिन का युद्ध
नौवें दिन के युद्ध में भीष्म के बाणों से अर्जुन भी घायल हो गए। कृष्ण के अंग भी जर्जर हो गए। श्रीकृष्ण अपनी प्रतिज्ञा भूलकर रथ का एक चक्र उठाकर भीष्म को मारने के लिए दौड़े। अर्जुन भी रथ से कूदे और कृष्ण के पैरों से लिपट पड़े। संध्या हुई और युद्ध बंद हुआ। रात्रि के समय युधिष्ठिर ने कृष्ण से मंत्रणा की। कृष्ण ने कहा कि क्यों न हम भीष्म से ही उन पर विजय प्राप्त करने का उपाय पूछें। श्रीकृष्ण और पांडव भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने कहा कि जब तक मैं जीवित हूँ तब तक कौरव पक्ष अजेय है। भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु का रहस्य बता दिया। द्रुपद का बेटा शिखंडी पूर्वजन्म का स्त्री है। मेरे वध के लिए उसने शिव की तपस्या की थी। द्रुपद के घर वह कन्या के रूप में पैदा हुआ, लेकिन दानव के वर से फिर पुरुष बन गया। यदि उसे सामने करके अर्जुन मुझ पर तीर बरसाएगा, तो मैं अस्त्र नहीं चलाऊँगा।
- दसवें दिन का युद्ध
दसवें दिन के युद्ध में शिखंडी पांडवों की ओर से भीष्म पितामह के सामने आकर डट गया, जिसे देखते ही भीष्म ने अस्त्र परित्याग कर दिया। कृष्ण के कहने पर शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को जर्जर कर दिया तथा वे रथ से नीचे गिर पड़े, पर पृथ्वी पर नहीं, तीरों की शय्या पर पड़े रहे।
- भीष्म की शरशय्या
भीष्म के गिरते ही दोनों पक्षों में हाहाकार मच गया। कौरवों तथा पांडव दोनों शोक मनाने लगे। भीष्म ने कहा, मेरा सिर लटक रहा है, इसका उपाय करो। दुर्योधन एक तकिया लाया, पर अर्जुन ने तीन बाण भीष्म के सिर के नीचे ऐसे मारे कि वे सिर का आधार बन गए। फिर भीष्म ने कहा, प्यास लगी है। दुर्योधन ने सोने के पात्र में जल मँगाया, पर भीष्म ने अर्जुन की तरफ फिर देखा। अर्जुन ने एक बाण पृथ्वी पर ऐसा मारा कि स्वच्छ जल-धारा फूटकर भीष्म के मुहँ पर गिरने लगी। पानी पीकर भीष्म ने कौरव-पांडवों को जाने की आज्ञा दी और कहा कि सूर्य के उत्तरायण होने पर मैं प्राण त्याग करूँगा। भीष्म शरशय्या पर गिरने का समाचार सुनकर कर्ण अपनी शत्रुता भूलकर भीष्म से मिलने गया। उसने पितामह को प्रणाम किया। भीष्म ने कर्ण को आशीर्वाद दिया और समझाया कि यदि तुम चाहो तो युद्ध रुक सकता है। दुर्योधन समझता है कि तुम्हारी सहायता से वह विजयी होगा, पर अर्जुन को जीतना संभव नहीं। तुम दुर्योधन को समझाओ। तुम पांडवों के भाई तथा कुंती के पुत्र हो। तुम दोनों पक्षों में शांति स्थापित करो। कर्ण ने कहा,पितामह अब संघर्ष दूर तक पहुँच गया है। मैं तो अब सूत अधिरथ का ही पुत्र हूँ, जिसने मेरा पालन-पोषण किया है। यह कहकर कर्ण अपने शिविर में लौट आया।
भीष्म पर्व के अन्तर्गत 4 (उप) पर्व हैं और इसमें कुल 122 अध्याय हैं। इन 4 (उप) पर्वों के नाम हैं-
- जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व,
- भूमि पर्व,
- श्रीमद्भगवद्गीता पर्व,
- भीष्मवध पर्व।