"विराट पर्व महाभारत": अवतरणों में अंतर
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'''विराट पर्व''' में [[अज्ञातवास]] की अवधि में [[विराट नगर]] में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, [[युधिष्ठिर]] द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, [[भीमसेन]] द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा कीचक और उपकीचकों का वध, [[दुर्योधन]] के गुप्तचरों द्वारा [[पाण्डव|पाण्डवों]] की खोज तथा लौटकर कीचकवध की जानकारी देना, त्रिगर्तों और [[कौरव|कौरवों]] द्वारा [[मत्स्य]] देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा [[विराट]] की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, [[अर्जुन]] द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा [[उत्तरा]] को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है। | |||
;राजा विराट के यहाँ आश्रय | |||
पांडवों को बारह वर्ष के वनवास की अवधि की समाप्ति कर एक वर्ष अज्ञातवास करना था। वे विराट नगर के लिए चल दिए। [[विराट नगर]] के पास पहुँचकर वे सभी एक पेड़ के नीचे बैठ गए। युधिष्ठिर ने बताया कि मैं राजा विराट के यहाँ 'कंक' नाम धारण कर [[ब्राह्मण]] के वेश में आश्रय लूँगा। उन्होंने भीम से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहाँ रसोईए का काम माँग लेना, अर्जुन से उन्होंने कहा कि तुम 'बृहन्नला' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को संगीत और नृत्य की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा [[नकुल]] 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा [[सहदेव]] 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना माँग ले। सभी पांडवों ने अपने-अपने [[अस्त्र शस्त्र]] एक शमी के वृक्ष पर छिपा दिए तथा वेश बदल-बदलकर विराट नगर में प्रवेश किया। विराट ने उन सभी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। विराट की पत्नी [[द्रौपदी]] के रूप पर मुग्ध हो गई तथा उसे भी केश-सज्जा आदि करने के लिए रख लिया। द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री बताया और कहा कि मैं जूठे बर्तन नहीं छू सकती और न ही जूठा भोजन कर सकती हूँ। | |||
;कीचक-वध | |||
एक दिन विराट की पत्नी [[सुदेष्णा]] का भाई कीचक सैरंध्री पर मुग्ध हो गया। उसने अपनी बहन से सैरंध्री के बारे में पूछा। सुदेष्णा ने यह कहकर टाल दिया कि वह महल की एक दासी है। कीचक द्रौपदी के पास जा पहुँचा और बोला, 'तुम मुझे अपना दास बना सकती हो।' द्रौपदी डरकर बोली, 'मैं एक दासी हूँ। मेरा विवाह हो चुका है, मेरे साथ ऐसा व्यवहार मत कीजिए।' कीचक उस समय तो रुक गया पर बार-बार अपनी बहन सैरंध्री के प्रति आकुलता प्रकट करने लगा। कोई चारा न देखकर सुदेष्णा ने कहा कि पर्व के दिन मैं सैरंध्री को तुम्हारे पास भेज दूँगी। पर्व के दिन महारानी ने कुछ चीज़ें लाने के बहाने सैरंध्री को कीचक के पास भेज दिया। सैरंध्री [[कीचक]] की बुरी नीयत देखकर भाग खड़ी हुई। एक दिन एकांत में मौक़ा पाकर उसने भीम से कीचक की बात बताई। भीम ने कहा कि अब जब वह तुमसे कुछ कहे उसे नाट्यशाला में आधी रात को आने का वायदा कर देना तथा मुझे बता देना। सैरंध्री के कीचक से आधी रात को नाट्यशाला में मिलने को कहा। वह आधी रात को नाट्यशाला में पहुँचा, जहाँ स्त्री के वेश में भीम पहले ही उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। भीम ने कीचक को मार दिया। अगले ही दिन विराट नगर में खबर फैल गई कि सैरंध्री के गंधर्व पति ने कीचक को मार डाला। | |||
;गोधन-हरण | |||
कीचक-वध का समाचार [[दुर्योधन]] ने भी सुना तथा अनुमान लगा लिया कि सैरंध्री नाम की दासी द्रौपदी तथा उसके गंधर्व पति पांडव ही हैं। तब तक पांडवों के अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी थी। त्रिगर्त देश का राजा कीचक से कई बार अपमानित हो चुका था। कीचक की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके मन में विराट से बदला लेने की बात सूझी। [[सुशर्मा]] दुर्योधन का मित्र था। उसने दुर्योधन को सलाह दी कि यदि विराट की गाएँ ले आई जाएँ तो युद्ध के समय दूध की आवश्यकता पूरी हो जाएगी। आप लोग तैयार रहें, मैं विराट पर आक्रमण करने जा रहा हूँ। उसके जाते ही दुर्योधन ने भी [[भीष्म]], [[द्रोणाचार्य]], [[कृपाचार्य]], [[कर्ण]], [[अश्वत्थामा]] आदि के साथ विराट पर आक्रमण कर दिया। महाराज विराट भी कीचक को याद करके रोने लगे पर कंक (युधिष्ठिर) ने उन्हें धैर्य बँधाया। सुशर्मा ने बात-ही-बात में विराट को बाँध लिया, पर इसी समय कंक ने वल्लभ (भीम) को ललकारा। वल्लभ ने सुशर्मा को बाँधकर कंक के सामने उपस्थित का दिया और विराट के बंधन खोल दिए। इसी समय कौरवों के आक्रमण की सूचना मिली। दुर्योधन ने भीष्म से पूछा कि अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी है या नहीं भीष्म ने बताया कि एक हिसाब से तो यह अवधि पूरी हो चुकी है, पर दूसरे हिसाब से अभी कुछ दिन शेष हैं। विराट भयभीत हो चुके थे, पर वृहन्नला (अर्जुन) के कहने पर उत्तर कुमार युद्ध को तैयार हो गया। वृहन्नला ने अपना असली परिचय दिया और शमी के वृक्ष से अपना गांडीव तथा अक्षय तूणीर उतार लिया तथा भयंकर संग्राम किया। कर्ण के पुत्र को मार डाला, कर्ण को घायल कर दिया, द्रोणाचार्य और भीष्म के धनुष काट दिए तथा सम्मोहन अस्त्र द्वारा कौरव सेना को मूर्च्छित कर दिया। युद्ध के बाद विराट को पांडवों का परिचय प्राप्त हुआ तथा अर्जुन से अपनी पुत्री उत्तरा के विवाह का प्रस्ताव किया, पर अर्जुन ने कहा कि वे उत्तरा के शिक्षक रह चुके हैं, अतः अपने पुत्र अभिमन्यु से उत्तरा के विवाह का प्रस्ताव किया। धूमधाम से अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह हो गया। | |||
विराट पर्व के अन्तर्गत 5 (उप) पर्व और 72 अध्याय हैं। इन पाँच (उप) पर्वों के नाम हैं-<br /> | विराट पर्व के अन्तर्गत 5 (उप) पर्व और 72 अध्याय हैं। इन पाँच (उप) पर्वों के नाम हैं-<br /> | ||
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08:09, 28 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
विराट पर्व में अज्ञातवास की अवधि में विराट नगर में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, युधिष्ठिर द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा कीचक और उपकीचकों का वध, दुर्योधन के गुप्तचरों द्वारा पाण्डवों की खोज तथा लौटकर कीचकवध की जानकारी देना, त्रिगर्तों और कौरवों द्वारा मत्स्य देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा विराट की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, अर्जुन द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।
- राजा विराट के यहाँ आश्रय
पांडवों को बारह वर्ष के वनवास की अवधि की समाप्ति कर एक वर्ष अज्ञातवास करना था। वे विराट नगर के लिए चल दिए। विराट नगर के पास पहुँचकर वे सभी एक पेड़ के नीचे बैठ गए। युधिष्ठिर ने बताया कि मैं राजा विराट के यहाँ 'कंक' नाम धारण कर ब्राह्मण के वेश में आश्रय लूँगा। उन्होंने भीम से कहा कि तुम 'वल्लभ' नाम से विराट के यहाँ रसोईए का काम माँग लेना, अर्जुन से उन्होंने कहा कि तुम 'बृहन्नला' नाम धारण कर स्त्री भूषणों से सुसज्जित होकर विराट की राजकुमारी को संगीत और नृत्य की शिक्षा देने की प्रार्थना करना तथा नकुल 'ग्रंथिक' नाम से घोड़ों की रखवाली करने का तथा सहदेव 'तंत्रिपाल' नाम से चरवाहे का काम करना माँग ले। सभी पांडवों ने अपने-अपने अस्त्र शस्त्र एक शमी के वृक्ष पर छिपा दिए तथा वेश बदल-बदलकर विराट नगर में प्रवेश किया। विराट ने उन सभी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। विराट की पत्नी द्रौपदी के रूप पर मुग्ध हो गई तथा उसे भी केश-सज्जा आदि करने के लिए रख लिया। द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री बताया और कहा कि मैं जूठे बर्तन नहीं छू सकती और न ही जूठा भोजन कर सकती हूँ।
- कीचक-वध
एक दिन विराट की पत्नी सुदेष्णा का भाई कीचक सैरंध्री पर मुग्ध हो गया। उसने अपनी बहन से सैरंध्री के बारे में पूछा। सुदेष्णा ने यह कहकर टाल दिया कि वह महल की एक दासी है। कीचक द्रौपदी के पास जा पहुँचा और बोला, 'तुम मुझे अपना दास बना सकती हो।' द्रौपदी डरकर बोली, 'मैं एक दासी हूँ। मेरा विवाह हो चुका है, मेरे साथ ऐसा व्यवहार मत कीजिए।' कीचक उस समय तो रुक गया पर बार-बार अपनी बहन सैरंध्री के प्रति आकुलता प्रकट करने लगा। कोई चारा न देखकर सुदेष्णा ने कहा कि पर्व के दिन मैं सैरंध्री को तुम्हारे पास भेज दूँगी। पर्व के दिन महारानी ने कुछ चीज़ें लाने के बहाने सैरंध्री को कीचक के पास भेज दिया। सैरंध्री कीचक की बुरी नीयत देखकर भाग खड़ी हुई। एक दिन एकांत में मौक़ा पाकर उसने भीम से कीचक की बात बताई। भीम ने कहा कि अब जब वह तुमसे कुछ कहे उसे नाट्यशाला में आधी रात को आने का वायदा कर देना तथा मुझे बता देना। सैरंध्री के कीचक से आधी रात को नाट्यशाला में मिलने को कहा। वह आधी रात को नाट्यशाला में पहुँचा, जहाँ स्त्री के वेश में भीम पहले ही उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। भीम ने कीचक को मार दिया। अगले ही दिन विराट नगर में खबर फैल गई कि सैरंध्री के गंधर्व पति ने कीचक को मार डाला।
- गोधन-हरण
कीचक-वध का समाचार दुर्योधन ने भी सुना तथा अनुमान लगा लिया कि सैरंध्री नाम की दासी द्रौपदी तथा उसके गंधर्व पति पांडव ही हैं। तब तक पांडवों के अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी थी। त्रिगर्त देश का राजा कीचक से कई बार अपमानित हो चुका था। कीचक की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके मन में विराट से बदला लेने की बात सूझी। सुशर्मा दुर्योधन का मित्र था। उसने दुर्योधन को सलाह दी कि यदि विराट की गाएँ ले आई जाएँ तो युद्ध के समय दूध की आवश्यकता पूरी हो जाएगी। आप लोग तैयार रहें, मैं विराट पर आक्रमण करने जा रहा हूँ। उसके जाते ही दुर्योधन ने भी भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा आदि के साथ विराट पर आक्रमण कर दिया। महाराज विराट भी कीचक को याद करके रोने लगे पर कंक (युधिष्ठिर) ने उन्हें धैर्य बँधाया। सुशर्मा ने बात-ही-बात में विराट को बाँध लिया, पर इसी समय कंक ने वल्लभ (भीम) को ललकारा। वल्लभ ने सुशर्मा को बाँधकर कंक के सामने उपस्थित का दिया और विराट के बंधन खोल दिए। इसी समय कौरवों के आक्रमण की सूचना मिली। दुर्योधन ने भीष्म से पूछा कि अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी है या नहीं भीष्म ने बताया कि एक हिसाब से तो यह अवधि पूरी हो चुकी है, पर दूसरे हिसाब से अभी कुछ दिन शेष हैं। विराट भयभीत हो चुके थे, पर वृहन्नला (अर्जुन) के कहने पर उत्तर कुमार युद्ध को तैयार हो गया। वृहन्नला ने अपना असली परिचय दिया और शमी के वृक्ष से अपना गांडीव तथा अक्षय तूणीर उतार लिया तथा भयंकर संग्राम किया। कर्ण के पुत्र को मार डाला, कर्ण को घायल कर दिया, द्रोणाचार्य और भीष्म के धनुष काट दिए तथा सम्मोहन अस्त्र द्वारा कौरव सेना को मूर्च्छित कर दिया। युद्ध के बाद विराट को पांडवों का परिचय प्राप्त हुआ तथा अर्जुन से अपनी पुत्री उत्तरा के विवाह का प्रस्ताव किया, पर अर्जुन ने कहा कि वे उत्तरा के शिक्षक रह चुके हैं, अतः अपने पुत्र अभिमन्यु से उत्तरा के विवाह का प्रस्ताव किया। धूमधाम से अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह हो गया।
विराट पर्व के अन्तर्गत 5 (उप) पर्व और 72 अध्याय हैं। इन पाँच (उप) पर्वों के नाम हैं-
- पाण्डवप्रवेश पर्व,
- समयपालन पर्व,
- कीचकवध पर्व,
- गोहरण पर्व,
- वैवाहिक पर्व।