"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट नवम्बर 2014": अवतरणों में अंतर
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; दिनांक- 23 नवम्बर, 2014 | |||
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किसी से दूर हो जाना आसान है या किसी के पास रहना ? हमें दूर होने पर पास आना अच्छा लगता है और पास आने पर दूर होना। | किसी से दूर हो जाना आसान है या किसी के पास रहना ? हमें दूर होने पर पास आना अच्छा लगता है और पास आने पर दूर होना। | ||
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चाहे बिग बैंग हो या ब्लॅक होल सभी स्थिति इसी से हैं। हब्बल से देखे गए या न देखे गए ब्रह्माण्ड के सभी उपद्रवों और सृजनों तक यही क्रिया चल रही है। | चाहे बिग बैंग हो या ब्लॅक होल सभी स्थिति इसी से हैं। हब्बल से देखे गए या न देखे गए ब्रह्माण्ड के सभी उपद्रवों और सृजनों तक यही क्रिया चल रही है। | ||
प्रश्न यह है कि इस घटना का कारण क्या है ? यह अभी तक अनुत्तरित है। आप सोचिए… | प्रश्न यह है कि इस घटना का कारण क्या है ? यह अभी तक अनुत्तरित है। आप सोचिए… | ||
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; दिनांक- 20 नवम्बर, 2014 | |||
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नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की | नहीं आवाज़ होती है, दिलों के टूट जाने की | ||
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तुम्हें बेचौनियां रहती हैं अब सारे ज़माने की | तुम्हें बेचौनियां रहती हैं अब सारे ज़माने की | ||
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; दिनांक- 17 नवम्बर, 2014 | |||
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पिछले दिनों, फ़ेसबुक चर्चा में एक ‘चर्च’ था (वाह ! ये तो नया शब्द ईजाद हो गया ‘चर्च’, इसका मतलब समझा जाय कि ‘Thread’ याने कोई Comment, हा हा हा)… तो ये चर्च ग्रामीण जीवन से जुड़ी बातों और शब्दों से संबंधित था। इन शब्दों की व्याख्या कर रहा हूँ... | पिछले दिनों, फ़ेसबुक चर्चा में एक ‘चर्च’ था (वाह ! ये तो नया शब्द ईजाद हो गया ‘चर्च’, इसका मतलब समझा जाय कि ‘Thread’ याने कोई Comment, हा हा हा)… तो ये चर्च ग्रामीण जीवन से जुड़ी बातों और शब्दों से संबंधित था। इन शब्दों की व्याख्या कर रहा हूँ... | ||
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कटी फ़सल के ढेर को ही लांक कहते हैं। | कटी फ़सल के ढेर को ही लांक कहते हैं। | ||
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; दिनांक- 17 नवम्बर, 2014 | |||
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हर आन कस की दारद हुश व राइव दीन। | हर आन कस की दारद हुश व राइव दीन। | ||
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ईरान के मशहूर कवि फ़िरदौसी ने दसवीं शताब्दी में 60 हज़ार शेरों का महाकाव्य ‘शाहनामा’ की रचना की। शाहनामा की तुलना महाभारत और इलियड से की जाती है। | ईरान के मशहूर कवि फ़िरदौसी ने दसवीं शताब्दी में 60 हज़ार शेरों का महाकाव्य ‘शाहनामा’ की रचना की। शाहनामा की तुलना महाभारत और इलियड से की जाती है। | ||
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; दिनांक- 6 नवम्बर, 2014 | |||
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घर में मेरा बचपन था और एक पॅट्रोमॅक्स भी था। जिसे सही तरह से जलाना मैंने सीख लिया था। हर बार जल्दी से जल्दी सही तरह से पॅट्रोमॅक्स जलाने की ज़िम्मेदारी मेरी हुआ करती थी। फंणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पंचलाइट के गोधन का सा हाल समझिए कुछ-कुछ... | घर में मेरा बचपन था और एक पॅट्रोमॅक्स भी था। जिसे सही तरह से जलाना मैंने सीख लिया था। हर बार जल्दी से जल्दी सही तरह से पॅट्रोमॅक्स जलाने की ज़िम्मेदारी मेरी हुआ करती थी। फंणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पंचलाइट के गोधन का सा हाल समझिए कुछ-कुछ... | ||
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- बाक़ी फिर कभी... | - बाक़ी फिर कभी... | ||
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; दिनांक- 2 नवम्बर, 2014 | |||
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कल उसे मुर्ग़ा बनाया था, भरे दरबार में | कल उसे मुर्ग़ा बनाया था, भरे दरबार में | ||
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इस तरह की बात मत करना यहाँ बेकार में | इस तरह की बात मत करना यहाँ बेकार में | ||
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13:08, 30 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
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