"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट सितम्बर 2014": अवतरणों में अंतर
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; दिनांक- 29 सितम्बर, 2014 | |||
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कभी क्षुब्ध होता हूँ | कभी क्षुब्ध होता हूँ | ||
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अनवरत | अनवरत | ||
रह रह कर | रह रह कर | ||
कभी धमनियों का रक्त ही | कभी धमनियों का रक्त ही | ||
जैसे जम जाता है | जैसे जम जाता है | ||
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दूज बन कर | दूज बन कर | ||
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; दिनांक- 28 सितम्बर, 2014 | |||
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प्रिय मित्रो ! एक कविता-ग़ज़ल प्रस्तुत है... इसको मेरे कुछ मित्रों ने मृत्यु का ज़िक्र होने के कारण नकारात्मक मान लिया जब कि मैंने ये पंक्तियां शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को ध्यान में रखकर लिखी थीं। मित्रो यह कोई मेरा मृत्यु-गान नहीं है बल्कि एक अमर शहीद की याद भर है। हाँ इतना ज़रूर कि मैंने जान बूझकर सरदार भगतसिंह का ज़िक्र नहीं किया था...ख़ैर... | प्रिय मित्रो ! एक कविता-ग़ज़ल प्रस्तुत है... इसको मेरे कुछ मित्रों ने मृत्यु का ज़िक्र होने के कारण नकारात्मक मान लिया जब कि मैंने ये पंक्तियां शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को ध्यान में रखकर लिखी थीं। मित्रो यह कोई मेरा मृत्यु-गान नहीं है बल्कि एक अमर शहीद की याद भर है। हाँ इतना ज़रूर कि मैंने जान बूझकर सरदार भगतसिंह का ज़िक्र नहीं किया था...ख़ैर... | ||
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मैं तो हैरान हूँ, क्यों मुझको जलाया जाय | मैं तो हैरान हूँ, क्यों मुझको जलाया जाय | ||
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; दिनांक- 15 सितम्बर, 2014 | |||
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सूचनाओं को इकट्ठा करने के विरोध में नहीं हूं मैं और न ही सूचना उपलब्ध कराने वालों से कोई मेरा बैर है लेकिन ज़रा सा सोचिए... | सूचनाओं को इकट्ठा करने के विरोध में नहीं हूं मैं और न ही सूचना उपलब्ध कराने वालों से कोई मेरा बैर है लेकिन ज़रा सा सोचिए... | ||
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यह मनुष्य के 'मस्तिष्क पर्यावरण' का मामला है जो धरती के पर्यावरण की तरह ही दूषित हो चला है... | यह मनुष्य के 'मस्तिष्क पर्यावरण' का मामला है जो धरती के पर्यावरण की तरह ही दूषित हो चला है... | ||
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; दिनांक- 15 सितम्बर, 2014 | |||
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मैंने फ़ेसबुक पर यह प्रश्न पूछा था:- | मैंने फ़ेसबुक पर यह प्रश्न पूछा था:- | ||
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एक बार फिर सोचें कि पहले क्या ?- कहानी, भाषा या अभिनय ? | एक बार फिर सोचें कि पहले क्या ?- कहानी, भाषा या अभिनय ? | ||
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; दिनांक- 15 सितम्बर, 2014 | |||
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प्रेम करना, नफ़रत करने के मुक़ाबले में कितना आसान है, फिर भी लोग नफ़रत क्यों करते हैं ? समझ में नहीं आता ! | प्रेम करना, नफ़रत करने के मुक़ाबले में कितना आसान है, फिर भी लोग नफ़रत क्यों करते हैं ? समझ में नहीं आता ! | ||
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; दिनांक- 14 सितम्बर, 2014 | |||
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हाइ गाइज़! आज हिन्दी दिवस है। फ़ोट्टीन सॅप्टॅम्बर नाइन्टीन फ़ॉर्टी नाइन को हिन्दी हमारी राजभाषा बनी। ऍन्ड यू नो गाइज़ कि हिन्दी को अभी तक राष्ट्रभाषा अक्सेप्ट नहीं किया गया है। वॉट अ क्रॅप कि हिन्दी इज़ नॉट अवर नॅशनल लॅन्ग्वेज... | हाइ गाइज़! आज हिन्दी दिवस है। फ़ोट्टीन सॅप्टॅम्बर नाइन्टीन फ़ॉर्टी नाइन को हिन्दी हमारी राजभाषा बनी। ऍन्ड यू नो गाइज़ कि हिन्दी को अभी तक राष्ट्रभाषा अक्सेप्ट नहीं किया गया है। वॉट अ क्रॅप कि हिन्दी इज़ नॉट अवर नॅशनल लॅन्ग्वेज... | ||
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कॅच यू अराउन्ड लेटर... सी याऽऽऽ... कूऽऽऽल | कॅच यू अराउन्ड लेटर... सी याऽऽऽ... कूऽऽऽल | ||
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; दिनांक- 12 सितम्बर, 2014 | |||
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प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं को किसी सम्मान समारोह, आध्यात्मिक उत्सव, धार्मिक संत समागम, किसी अल्पसंख्यकों के धार्मिक समारोह में जाने से पहले यह ज़रूर सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रायोजक कौन है ? उसकी सत्यनिष्ठा क्या है ? सामान्यत: ऐसा होता नहीं है। | प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं को किसी सम्मान समारोह, आध्यात्मिक उत्सव, धार्मिक संत समागम, किसी अल्पसंख्यकों के धार्मिक समारोह में जाने से पहले यह ज़रूर सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रायोजक कौन है ? उसकी सत्यनिष्ठा क्या है ? सामान्यत: ऐसा होता नहीं है। | ||
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ऐसी कुत्सित कमाई से कमाए गए पैसे से किए गए आयोजनों में हिस्सा लेने वाले नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को जनता क्या कहती और मानती है यह सब को मालूम है... लेकिन यह फिर भी हो रहा है... | ऐसी कुत्सित कमाई से कमाए गए पैसे से किए गए आयोजनों में हिस्सा लेने वाले नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को जनता क्या कहती और मानती है यह सब को मालूम है... लेकिन यह फिर भी हो रहा है... | ||
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; दिनांक- 12 सितम्बर, 2014 | |||
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एक मित्र ने कुछ प्रश्न पूछे हैं। जिनका संक्षिप्त उत्तर दे रहा हूँ। | एक मित्र ने कुछ प्रश्न पूछे हैं। जिनका संक्षिप्त उत्तर दे रहा हूँ। | ||
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अभी इतना ही... विस्तार से फिर कभी... | अभी इतना ही... विस्तार से फिर कभी... | ||
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; दिनांक- 12 सितम्बर, 2014 | |||
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मैं जो कुछ भी, काला-पीला और आड़ा-टेड़ा, फ़ेसबुक पर लिख देता हूँ, उससे ही प्रभावित होकर मेरे एक मित्र मुझसे मिलने मेरे घर आए। मैं आश्चर्यचकित रह गया, इनकी अकादमिक योग्यता सुनकर। ऍम॰ऍस॰सी, ऍम॰बी॰ए, दो बार पीऍच॰डी। 41 किताबों का लेखन। किताबों के विषय- गणित, भौतिकी और अर्थशास्त्र। | मैं जो कुछ भी, काला-पीला और आड़ा-टेड़ा, फ़ेसबुक पर लिख देता हूँ, उससे ही प्रभावित होकर मेरे एक मित्र मुझसे मिलने मेरे घर आए। मैं आश्चर्यचकित रह गया, इनकी अकादमिक योग्यता सुनकर। ऍम॰ऍस॰सी, ऍम॰बी॰ए, दो बार पीऍच॰डी। 41 किताबों का लेखन। किताबों के विषय- गणित, भौतिकी और अर्थशास्त्र। | ||
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लेकिन बाद में अपनी रुचि के कारण क्वांटम फ़िज़िक्स से लेकर हॉकिंग की समय-व्याख्या तक काफ़ी पढ़ लिया। | लेकिन बाद में अपनी रुचि के कारण क्वांटम फ़िज़िक्स से लेकर हॉकिंग की समय-व्याख्या तक काफ़ी पढ़ लिया। | ||
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; दिनांक- 4 सितम्बर, 2014 | |||
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बुढ़ापे में, बुढ़ापा कम और जवानी ज़्यादा परेशान करती है... | बुढ़ापे में, बुढ़ापा कम और जवानी ज़्यादा परेशान करती है... | ||
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; दिनांक- 4 सितम्बर, 2014 | |||
[[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-42.jpg|250px|right]] | |||
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कोई भी 'आज' ऐसा नहीं होता जिसका कोई 'कल' न हो, चाहे तो गुज़रा हुआ या फिर आने वाला... | कोई भी 'आज' ऐसा नहीं होता जिसका कोई 'कल' न हो, चाहे तो गुज़रा हुआ या फिर आने वाला... | ||
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बहुत कुछ कहने की कोशिश की है मैंने ऊपर की पंक्तियों में, विस्तार में कहूँगा तो बोलेंगे कि बोलता है... -आदित्य चौधरी | बहुत कुछ कहने की कोशिश की है मैंने ऊपर की पंक्तियों में, विस्तार में कहूँगा तो बोलेंगे कि बोलता है... -आदित्य चौधरी | ||
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13:15, 30 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
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