"अज्ञान (सूक्तियाँ)": अवतरणों में अंतर

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13:53, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) अज्ञान जैसा शत्रु दूसरा नहीं। चाणक्य
(2) अपने शत्रु से प्रेम करो, जो तुम्हे सताए उसके लिए प्रार्थना करो। ईसा
(3) अज्ञानी होना मनुष्य का असाधारण अधिकार नहीं है बल्कि स्वयं को अज्ञानी जानना ही उसका विशेषाधिकार है। राधाकृष्णन
(4) अशिक्षित रहने से पैदा ना होना अच्छा है क्योंकि अज्ञान ही सब विपत्ति का मूल है।
(5) अज्ञानी के लिए ख़ामोशी से बढकर कोई चीज़ नहीं और यदि उसमे यह समझाने की बुद्धि हो तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। शेख सादी
(6) पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। कालिदास
(7) ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। कौटिल्य
(8) तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। वाल्मीकि
(9) जैसे अंधे के लिए जगत् अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत् दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। संपूर्णानंद
(10) एक बात जो मैं दिन की तरह स्पष्ट देखता हूँ यह है कि दुःख का कारण अज्ञान है और कुछ नहीं। स्वामी विवेकानंद
(11) जितना अध्ययन करते हैं, उतना ही हमें अपने अज्ञान का आभास होता जाता है। स्वामी विवेकानंद
(12) हम जितना अध्ययन करते हैं उतना हमे अज्ञान का आभास होता है।
(13) विश्वास का अभाव अज्ञान है। स्वामी रामतीर्थ
(14) डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। एमर्सन
(15) अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बड़ा क़दम है।
(16) ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज़्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है। चार्ल्स डार्विन
(17) अशिक्षित रहने से पैदा न होना अच्‍छा है, क्‍योंकि अज्ञान सब बुराईयों का मूल हैं। नेपोलियन बोनापार्ट
(18) अज्ञानी रहने से जन्‍म नहीं लेना अच्‍छा है, क्‍योंकि अज्ञान सब दुखों की जड़ है। प्‍लेटो
(19) आदमी को अज्ञान में रखना संभव है लेकिन उसे अज्ञानी नहीं बनाया जा सकता। टामस पेन
(20) अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा क़दम है। डिजराइली
(21) संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। जेम्स एलन
(22) अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। स्वामी रामतीर्थ
(23) संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। शंकराचार्य

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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