"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट दिसम्बर 2013": अवतरणों में अंतर
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राजा महाराजाओं के काल में तो यह कहा जाना सही रहा होगा- | राजा महाराजाओं के काल में तो यह कहा जाना सही रहा होगा- | ||
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ज़रा हम अपने गरेबाँ में भी झांक कर देखें... | ज़रा हम अपने गरेबाँ में भी झांक कर देखें... | ||
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; दिनांक- 28 दिसम्बर, 2013 | |||
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यदि पड़ोस से रोते हुए बच्चे के रोने की आवाज़ से आपके ध्यान, पूजा या स्तुति जैसे कार्य में बाधा नहीं पड़ती और आपका ध्यान भंग नहीं होता, तो आप किसी संन्यासी, साधु, सन्त या धर्मात्मा की श्रेणी में नहीं बल्कि दुष्टात्मा की श्रेणी में आते हैं। | यदि पड़ोस से रोते हुए बच्चे के रोने की आवाज़ से आपके ध्यान, पूजा या स्तुति जैसे कार्य में बाधा नहीं पड़ती और आपका ध्यान भंग नहीं होता, तो आप किसी संन्यासी, साधु, सन्त या धर्मात्मा की श्रेणी में नहीं बल्कि दुष्टात्मा की श्रेणी में आते हैं। | ||
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; दिनांक- 28 दिसम्बर, 2013 | |||
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इंसान, ज़्यादा पैसा कमाने पर कुछ और कर पाये या न कर पाए | इंसान, ज़्यादा पैसा कमाने पर कुछ और कर पाये या न कर पाए | ||
लेकिन खोखले रिश्ते जोड़ने और सच्चे रिश्ते तोड़ने का काम बड़े सुविधाजनक तरीक़े से गर्व के साथ कर लेता है। | लेकिन खोखले रिश्ते जोड़ने और सच्चे रिश्ते तोड़ने का काम बड़े सुविधाजनक तरीक़े से गर्व के साथ कर लेता है। | ||
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; दिनांक- 23 दिसम्बर, 2013 | |||
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कौन सहारे विश्वासों के जीता है? | कौन सहारे विश्वासों के जीता है? | ||
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एक भले मानुस का बहुत फ़ज़ीता है। | एक भले मानुस का बहुत फ़ज़ीता है। | ||
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; दिनांक- 17 दिसम्बर, 2013 | |||
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इंग्लॅण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री विंग्सटन चर्चिल ने कहा है- | इंग्लॅण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री विंग्सटन चर्चिल ने कहा है- | ||
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इसे हिन्दी में कहें तो- | इसे हिन्दी में कहें तो- | ||
20 वर्ष की उम्र के आस-पास जो सोशलिस्ट (या वामपंथी) नहीं है उसके दिल नहीं है, | 20 वर्ष की उम्र के आस-पास जो सोशलिस्ट (या वामपंथी) नहीं है उसके दिल नहीं है, अर्थात् वह एक नैसर्गिक भावुक युवा नहीं है और 40 की उम्र के आस-पास जो दक्षिण पंथी (या पूँजीवादी) नहीं है उसके दिमाग़ नहीं है, अर्थात् उसके पास व्यावहारिक बुद्धि नहीं है। | ||
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; दिनांक- 15 दिसम्बर, 2013 | |||
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दुनिया के विकसित देशों की लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में नेताओं को जनता की समस्या को हल करने की बात, उसके हल करने के कार्यक्रम और प्रक्रिया के साथ करनी होती है। जैसे कि यदि कोई पार्टी या नेता कहता है कि वह सत्ता में आया, तो बेरोज़गारी कम करेगा, तो उसे पूरा कार्यक्रम भी प्रक्रिया सहित बताना पड़ता है कि कौन-कौन से उपाय वह किस-किस संसाधन का उपयोग करके करेगा। | दुनिया के विकसित देशों की लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में नेताओं को जनता की समस्या को हल करने की बात, उसके हल करने के कार्यक्रम और प्रक्रिया के साथ करनी होती है। जैसे कि यदि कोई पार्टी या नेता कहता है कि वह सत्ता में आया, तो बेरोज़गारी कम करेगा, तो उसे पूरा कार्यक्रम भी प्रक्रिया सहित बताना पड़ता है कि कौन-कौन से उपाय वह किस-किस संसाधन का उपयोग करके करेगा। | ||
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आज हमारी विशाल आबादी, विश्व का सबसे उत्पादक न होकर, विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गयी है। जो हमारी समझ में नहीं आया वह चीन ने समझ लिया। चीन ने अपनी आबादी को ही अपना हथियार बनाया और उसे उत्पादन में लगा दिया। इसलिए विश्व बाज़ार में, भारत एक बड़ा ख़रीददार बन खड़ा है और चीन एक बड़ा विक्रेता बनकर। | आज हमारी विशाल आबादी, विश्व का सबसे उत्पादक न होकर, विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गयी है। जो हमारी समझ में नहीं आया वह चीन ने समझ लिया। चीन ने अपनी आबादी को ही अपना हथियार बनाया और उसे उत्पादन में लगा दिया। इसलिए विश्व बाज़ार में, भारत एक बड़ा ख़रीददार बन खड़ा है और चीन एक बड़ा विक्रेता बनकर। | ||
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; दिनांक- 14 दिसम्बर, 2013 | |||
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प्रताप सिंह कैरों पचास के दशक में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। उनके शासन का उदाहरण आज भी दिया जाता है और | प्रताप सिंह कैरों पचास के दशक में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। उनके शासन का उदाहरण आज भी दिया जाता है और महान् नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल से उनकी तुलना की जाती है। उस दौर में भी अनाज की कालाबाज़ारी ज़ोरों पर थी। देश नया-नया आज़ाद हुआ था। राज्य सरकारों के पास संसाधन कम थे। जमाख़ोरों और दलालों ने अनाज गोदामों में बंद किया हुआ था, मंहगाई आसमान को छूने लगी थी, जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाना चाहिए। कैरों ने एक गंभीर जनहितकारी चाल चली... केन्द्र सरकार और रेल मंत्रालय की सहायता से कई मालगाड़ियाँ रेलवे स्टेशनों पर जा पहुँची जिनके डब्बे सील बंद थे और उनपर विभिन्न अनाजों के नाम लिखे हुए थे। शहरों में आग की तरह से ये ख़बर फैल गयी कि सरकार ने 'बाहर' से अनाज मंगवा लिया है। इतना सुनना था कि जमाख़ोरो ने अपना अनाज बाज़ार में आनन-फानन में बेचना शुरू कर दिया। मंहगाई तुरंत क़ाबू में आ गई। | ||
एक सप्ताह बाद मालगाड़ियाँ ज्यों की त्यों वापस लौट गईं क्योंकि वे ख़ाली थीं।... यदि सरकार ठान ले तो देश की तरक्की के लिए हज़ार-लाख तरीक़े निकाल सकती है लेकिन... | एक सप्ताह बाद मालगाड़ियाँ ज्यों की त्यों वापस लौट गईं क्योंकि वे ख़ाली थीं।... यदि सरकार ठान ले तो देश की तरक्की के लिए हज़ार-लाख तरीक़े निकाल सकती है लेकिन... | ||
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; दिनांक- 14 दिसम्बर, 2013 | |||
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माता, पिता, पुत्री और गुरु को हर जगह महिमा मंडित किया जाता है। पुत्र, शिष्य, पत्नी और पति को नहीं... ऐसा क्यों? | माता, पिता, पुत्री और गुरु को हर जगह महिमा मंडित किया जाता है। पुत्र, शिष्य, पत्नी और पति को नहीं... ऐसा क्यों? | ||
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ऐसा नहीं है कि पति-पत्नी के रिश्ते का आधार केवल संतान है। | ऐसा नहीं है कि पति-पत्नी के रिश्ते का आधार केवल संतान है। | ||
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; दिनांक- 13 दिसम्बर, 2013 | |||
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'पॉज़टिव थिंकिंग' याने सकारात्मक सोच के संबंध में कुछ लोग सिखाते हैं कि अपने प्रयत्न के अच्छे परिणाम के संबंध में आश्वस्थ रहना ही पॉज़िटिव थिंकिंग है। कुछ लोग इस शिक्षा को सीख भी जाते हैं। यह सकारात्मक सोच नहीं है बल्कि अति आशावादी होना है। | 'पॉज़टिव थिंकिंग' याने सकारात्मक सोच के संबंध में कुछ लोग सिखाते हैं कि अपने प्रयत्न के अच्छे परिणाम के संबंध में आश्वस्थ रहना ही पॉज़िटिव थिंकिंग है। कुछ लोग इस शिक्षा को सीख भी जाते हैं। यह सकारात्मक सोच नहीं है बल्कि अति आशावादी होना है। | ||
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प्रतीक्षा के प्रति सहज भाव हो जाना ही हमें सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति बनाता है। असल में प्रतीक्षा के प्रति निर्लिप्त हो जाना ही सकारात्मक सोच है। जो कि निश्चित रूप से कठिन है। | प्रतीक्षा के प्रति सहज भाव हो जाना ही हमें सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति बनाता है। असल में प्रतीक्षा के प्रति निर्लिप्त हो जाना ही सकारात्मक सोच है। जो कि निश्चित रूप से कठिन है। | ||
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; दिनांक- 13 दिसम्बर, 2013 | |||
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बहादुर उसे माना गया, जिसने अपने डर को प्रदर्शित नहीं होने दिया | बहादुर उसे माना गया, जिसने अपने डर को प्रदर्शित नहीं होने दिया | ||
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सफल प्रेमी/प्रेमिका, वे माने गए जिन्होंने अपनी पारस्परिक घृणा को प्रदर्शित नहीं होने दिया | सफल प्रेमी/प्रेमिका, वे माने गए जिन्होंने अपनी पारस्परिक घृणा को प्रदर्शित नहीं होने दिया | ||
किन्तु | किन्तु महान् केवल वह ही है जिसने अपने 'उन कारणों' के पीछे छुपी कमज़ोरियों को भी नहीं छुपाया | ||
'जिन कारणों' के चलते वह प्रशंसनीय और सफल हुआ। | 'जिन कारणों' के चलते वह प्रशंसनीय और सफल हुआ। | ||
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; दिनांक- 10 दिसम्बर, 2013 | |||
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मुझे गर्व है कि मैं, चौधरी दिगम्बर सिंह जी का बेटा हूँ। आज 10 दिसम्बर को उनकी पुन्य तिथि है। पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे। 4 बार लोकसभा सांसद रहे (तीन बार मथुरा, एक बार एटा) और 25 वर्ष लगातार, मथुरा ज़ि. सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे । सादगी का जीवन जीते थे। कभी कोई नशा नहीं किया और आजीवन पूर्ण स्वस्थ रहे। राजनैतिक प्रतिद्वंदी ही उनके मित्र भी होते थे। उनकी व्यक्तिगत निकटता पं. नेहरू, लोहिया जी, शास्त्री जी, पंत जी, इंदिरा जी, चौ. चरण सिंह जी, अटल जी, चंद्रशेखर जी आदि से रही। | मुझे गर्व है कि मैं, चौधरी दिगम्बर सिंह जी का बेटा हूँ। आज 10 दिसम्बर को उनकी पुन्य तिथि है। पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे। 4 बार लोकसभा सांसद रहे (तीन बार मथुरा, एक बार एटा) और 25 वर्ष लगातार, मथुरा ज़ि. सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे । सादगी का जीवन जीते थे। कभी कोई नशा नहीं किया और आजीवन पूर्ण स्वस्थ रहे। राजनैतिक प्रतिद्वंदी ही उनके मित्र भी होते थे। उनकी व्यक्तिगत निकटता पं. नेहरू, लोहिया जी, शास्त्री जी, पंत जी, इंदिरा जी, चौ. चरण सिंह जी, अटल जी, चंद्रशेखर जी आदि से रही। | ||
सभी विचारधारा के लोग उनकी मित्रता की सूची में थे चाहे वह जनसंघी हो या मार्क्सवादी। सभी धर्मों का अध्ययन उन्होंने किया था। जातिवाद से उनका कोई लेना-देना नहीं था। वे बेहद 'हैंडसम' थे। उन्हें पहली संसद 1952 में मिस्टर पार्लियामेन्ट का ख़िताब भी मिला। संसद में दिए उनके भाषणों को राजस्थान में सहकारी शिक्षा के पाठ्यक्रम में लिया गया। उनकी सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि जब वे संसद में बोलते थे तो अपनी पार्टी के लिए नहीं बल्कि निष्पक्ष रूप से किसानों के हित में बोलते थे। इस कारण उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लेने से नेता सकुचाते थे कि पता नहीं कब सरकार के ही ख़िलाफ़ बोल दें। उन्होंने ज़मींदार परिवार से होने के बावजूद अपना खेत उन्हीं को दान कर दिए थे जो उन्हें जोत रहे थे। सांसद काल में उन्होंने राजा-महाराजाओं को मिलने वाले प्रीवीपर्स के ख़िलाफ़ वोट दिया था जब कि उन्हें उस वक्त लाखों रुपये का लालच दिया गया था। उन जैसा नेता और इंसान होना अब मुमकिन नहीं है। वे मेरे हीरो थे, गुरु थे और मित्र थे। आज भारतकोश के कारण विश्व भर में मुझे पहचान और सम्मान मिल रहा है किंतु मेरी सबसे बड़ी पहचान यही है कि मैं उनका बेटा हूँ। | सभी विचारधारा के लोग उनकी मित्रता की सूची में थे चाहे वह जनसंघी हो या मार्क्सवादी। सभी धर्मों का अध्ययन उन्होंने किया था। जातिवाद से उनका कोई लेना-देना नहीं था। वे बेहद 'हैंडसम' थे। उन्हें पहली संसद 1952 में मिस्टर पार्लियामेन्ट का ख़िताब भी मिला। संसद में दिए उनके भाषणों को राजस्थान में सहकारी शिक्षा के पाठ्यक्रम में लिया गया। उनकी सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि जब वे संसद में बोलते थे तो अपनी पार्टी के लिए नहीं बल्कि निष्पक्ष रूप से किसानों के हित में बोलते थे। इस कारण उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लेने से नेता सकुचाते थे कि पता नहीं कब सरकार के ही ख़िलाफ़ बोल दें। उन्होंने ज़मींदार परिवार से होने के बावजूद अपना खेत उन्हीं को दान कर दिए थे जो उन्हें जोत रहे थे। सांसद काल में उन्होंने राजा-महाराजाओं को मिलने वाले प्रीवीपर्स के ख़िलाफ़ वोट दिया था जब कि उन्हें उस वक्त लाखों रुपये का लालच दिया गया था। उन जैसा नेता और इंसान होना अब मुमकिन नहीं है। वे मेरे हीरो थे, गुरु थे और मित्र थे। आज भारतकोश के कारण विश्व भर में मुझे पहचान और सम्मान मिल रहा है किंतु मेरी सबसे बड़ी पहचान यही है कि मैं उनका बेटा हूँ। | ||
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; दिनांक- 6 दिसम्बर, 2013 | |||
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फाँसी ग़रीब का जन्मसिद्ध अधिकार है क्या ? | फाँसी ग़रीब का जन्मसिद्ध अधिकार है क्या ? | ||
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ये कैसा संयोग है कि कोई भी अमीर व्यक्ति फाँसी के योग्य अपराध नहीं करता? यदि यह माना भी जाय कि सीधे-सीधे अपराध में शामिल होने की संभावना किसी बड़े पूँजीपति की नहीं बनती तो भी षड़यंत्रकारी की सज़ा भी तो वही है जो अपराध का | ये कैसा संयोग है कि कोई भी अमीर व्यक्ति फाँसी के योग्य अपराध नहीं करता? यदि यह माना भी जाय कि सीधे-सीधे अपराध में शामिल होने की संभावना किसी बड़े पूँजीपति की नहीं बनती तो भी षड़यंत्रकारी की सज़ा भी तो वही है जो अपराध का | ||
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; दिनांक- 3 दिसम्बर, 2013 | |||
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आख़िर, सफलता मिलती कैसे है ? क्या कोई ऐसा मंत्र, तंत्र, युक्ति या किताब है जो सफलता दिला दे ? | |||
हाँ है... निश्चित है! जिस तरह 'भूख में स्वाद' और 'शारीरिक श्रम में नींद' छुपी होती है उसी तरह 'जुनून' में सफलता छुपी होती है। जुनून कहिए या पॅशन, यही है एक मात्र रास्ता, सफलता का... | |||
...लेकिन किस तरह... | |||
असल में जिस ढांचे में हम ढले हुए होते हैं उसमें हमारी सोच के सीमित दायरे में घूमती रहती है। इसी सोच की वजह से जो हमारी 'पसंद' या 'इच्छा' होती है उससे हम चुनते हैं अपना 'कैरियर'। जबकि अपने जुनून को हम सही तरह से पहचान करने की भी कोशिश हम नहीं करते। आपने देखा होगा कि लोग अपनी 'हॉबी' में ही 'जुनून' की संतुष्टि पाते हैं। | |||
यदि अपना कैरियर भी अपने जुनून को समझते हुए चुना जाय | |||
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; दिनांक- 3 दिसम्बर, 2013 | |||
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जिस पल में हम यह कह रहे होते हैं | जिस पल में हम यह कह रहे होते हैं | ||
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घोषित कर रहे होते हैं। | घोषित कर रहे होते हैं। | ||
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07:52, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
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