"भरत (दुष्यंत पुत्र)": अवतरणों में अंतर

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==भरत / Bharat==
पुरुवंश के राजा [[दुष्यंत]] और [[शकुन्तला]] के पुत्र भरत की गणना '[[महाभारत]]' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। मान्यता है कि इसी के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। इसका एक नाम 'सर्वदमन' भी था क्योंकि इसने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था। और अन्य समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर लेते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने [[यमुना नदी|यमुना]], [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] तथा [[गंगा नदी|गंगा]] के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ [[अश्वमेध यज्ञ]] किये थे। प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे। राज्यपद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। प्रतिष्ठान के स्थान पर [[हस्तिनापुर]] को राजधानी बनाया। भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। भरत ने कहा-'ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं है।' अत: भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया।
पुरुवंश के राजा [[दुष्यंत]] और [[शकुन्तला]] के पुत्र भरत की गणना '[[महाभारत]]' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। मान्यता है कि इसी के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। इसका एक नाम 'सर्वदमन' भी था क्योंकि इसने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था। और अन्य समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर लेते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने [[यमुना]], [[सरस्वती]] तथा [[गंगा]] के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ [[अश्वमेध यज्ञ]] किये थे। प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे। राज्यपद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। प्रतिष्ठान के स्थान पर [[हस्तिनापुर]] को राजधानी बनाया। भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। भरत ने कहा-'ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं है।' अत: भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया।
*महाभारत के अनुसार भरत ने बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान किया तथा महर्षि [[भारद्वाज]] की कृपा से भूमन्यु नामक पुत्र प्राप्त किया।  
*महाभारत के अनुसार भरत ने बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान किया तथा महर्षि [[भारद्वाज]] की कृपा से भूमन्यु नामक पुत्र प्राप्त किया।  
*[[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] के अनुसार तदनंतर वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरुत्स्तोम' यज्ञ किया। मरुद्गणों ने भरत को भारद्वाज नामह पुत्र दिया। भारद्वाज जन्म से ब्राह्मण था किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाया। भारद्वाज ने स्वयं शासन नहीं किया। भरत के देहावसान के बाद उसने अपने पुत्र वितथ को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में चला  गया। इस वंश के सब राजा 'भरतवंशी' कहलाए।<balloon title="महाभारत आदिपर्व, 94। 20 से 25 तक, द्रोणपर्व, 68।-, शांतिपर्व, 29 । 45-50" style=color:blue>*</balloon>     
*[[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] के अनुसार तदनंतर वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरुत्स्तोम' यज्ञ किया। मरुद्गणों ने भरत को भारद्वाज नामह पुत्र दिया। भारद्वाज जन्म से ब्राह्मण था किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाया। भारद्वाज ने स्वयं शासन नहीं किया। भरत के देहावसान के बाद उसने अपने पुत्र वितथ को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में चला  गया। इस वंश के सब राजा 'भरतवंशी' कहलाए।<ref>महाभारत आदिपर्व, 94। 20 से 25 तक, द्रोणपर्व, 68।-, शांतिपर्व, 29 । 45-50</ref>     
==श्रीमद् भागवत से==
==श्रीमद् भागवत में उल्लेख==
भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। तीनों के पुत्र हुए। भरत ने कहा कि एक पुत्र भी उनके अनुरूप नहीं है। भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया। तदनंतर वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरूत्स्तोम' यज्ञ किया। मरूद्गणों ने भरत को [[भारद्वाज]] नामक पुत्र दिया। भारद्वाज के जन्म की विचित्र कथा है। [[बृहस्पति]] ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी ममता का बलपूर्वक गर्भाधान किया। उसके गर्भ में 'दीर्घतमा' नामक संतान पहले से ही विद्यमान थी। बृहस्पति ने उससे कहा- 'इसका पालन-पोषण (भर) कर। यह मेरा औरस और भाई का क्षेत्रज पुत्र होने के कारण दोनों का (द्वाज) पुत्र है।' किंतु ममता तथा बृहस्पति में से कोई भी उसका पालन-पोषण करने को तैयार नहीं था। अत: वे उस 'भारद्वाज' को वहीं छोड़कर चले गये। मरूद्गणों ने उसे ग्रहण किया तथा राजा भरत को दे दिया।<balloon title="श्रीमद् भागवत, 9।20।23-39" style=color:blue>*</balloon>  
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09:29, 6 मई 2018 के समय का अवतरण

भरत एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- भरत (बहुविकल्पी)

पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। मान्यता है कि इसी के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। इसका एक नाम 'सर्वदमन' भी था क्योंकि इसने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था। और अन्य समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर लेते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने यमुना, सरस्वती तथा गंगा के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे। राज्यपद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। प्रतिष्ठान के स्थान पर हस्तिनापुर को राजधानी बनाया। भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। जिनसे उन्हें नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। भरत ने कहा-'ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं है।' अत: भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया।

  • महाभारत के अनुसार भरत ने बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान किया तथा महर्षि भारद्वाज की कृपा से भूमन्यु नामक पुत्र प्राप्त किया।
  • श्रीमद्भागवत के अनुसार तदनंतर वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरुत्स्तोम' यज्ञ किया। मरुद्गणों ने भरत को भारद्वाज नामह पुत्र दिया। भारद्वाज जन्म से ब्राह्मण था किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाया। भारद्वाज ने स्वयं शासन नहीं किया। भरत के देहावसान के बाद उसने अपने पुत्र वितथ को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में चला गया। इस वंश के सब राजा 'भरतवंशी' कहलाए।[1]

श्रीमद् भागवत में उल्लेख

भरत का विवाह विदर्भराज की तीन कन्याओं से हुआ था। तीनों के पुत्र हुए। भरत ने कहा कि एक पुत्र भी उनके अनुरूप नहीं है। भरत के शाप से डरकर उन तीनों ने अपने-अपने पुत्र का हनन कर दिया। तदनंतर वंश के बिखर जाने पर भरत ने 'मरूत्स्तोम' यज्ञ किया। मरूद्गणों ने भरत को भारद्वाज नामक पुत्र दिया। भारद्वाज के जन्म की विचित्र कथा है। बृहस्पति ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी ममता का बलपूर्वक गर्भाधान किया। उसके गर्भ में 'दीर्घतमा' नामक संतान पहले से ही विद्यमान थी। बृहस्पति ने उससे कहा- 'इसका पालन-पोषण (भर) कर। यह मेरा औरस और भाई का क्षेत्रज पुत्र होने के कारण दोनों का (द्वाज) पुत्र है।' किंतु ममता तथा बृहस्पति में से कोई भी उसका पालन-पोषण करने को तैयार नहीं था। अत: वे उस 'भारद्वाज' को वहीं छोड़कर चले गये। मरूद्गणों ने उसे ग्रहण किया तथा राजा भरत को दे दिया।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदिपर्व, 94। 20 से 25 तक, द्रोणपर्व, 68।-, शांतिपर्व, 29 । 45-50
  2. श्रीमद् भागवत, 9।20।23-39

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