"अनुयोग": अवतरणों में अंतर
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'''अनुयोग''' [[जैन]] आगमों की व्याख्या का नाम अनुयोग है। प्राचीन काल में आगम के प्रत्येक [[वाक्य]] की व्याख्या नयों के आधार पर होती थी किंतु आगे चलकर मंदबुद्धि पुरुषों की अपेक्षा से आर्यरक्षित ने [[शास्त्र|शास्त्रों]] के अनुयोंग को चार प्रकार से विभक्त किया, यथा <br /> | |||
1. द्रव्यानुयोग, अर्थात् तत्त्वविचारणा,<br /> | |||
2. गणितानुयोग, अर्थात् लोकसंबंधी गणित की विचारणा,<br /> | |||
3. चरणकरणानुयोग, अर्थात [[साधु]] के आचार की विचारणा, और<br /> | |||
4. धर्मकथानुयोग, अर्थात् धर्मबोधक [[कथा|कथाएँ]]। <br /> | |||
इन अनुयोगों के आधार पर तत्तद्विषयों के प्राधान्य को लेकर [[शास्त्र|शास्त्रों]] का भी विभाग किया जाने लगा, जैसे [[आचारांग]] आदि चरणकरणानुयोग में, उवासग दसा आदि को धर्मकथनुयोग में शामिल किया गया। अनुयोग की प्रक्रिया का वर्णन करने वाला प्राचीन [[ग्रंथ]] अनुयोगद्वार है जिसमें आवश्यक [[सूत्र]] के सामजिक अध्ययन की व्याख्या की गई है। उसी प्रक्रिया से व्याख्याकारों ने अन्य [[शास्त्र|शास्त्रों]] की भी व्याख्या की है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=125 |url=}}</ref> | |||
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12:12, 25 मई 2018 के समय का अवतरण
अनुयोग जैन आगमों की व्याख्या का नाम अनुयोग है। प्राचीन काल में आगम के प्रत्येक वाक्य की व्याख्या नयों के आधार पर होती थी किंतु आगे चलकर मंदबुद्धि पुरुषों की अपेक्षा से आर्यरक्षित ने शास्त्रों के अनुयोंग को चार प्रकार से विभक्त किया, यथा
1. द्रव्यानुयोग, अर्थात् तत्त्वविचारणा,
2. गणितानुयोग, अर्थात् लोकसंबंधी गणित की विचारणा,
3. चरणकरणानुयोग, अर्थात साधु के आचार की विचारणा, और
4. धर्मकथानुयोग, अर्थात् धर्मबोधक कथाएँ।
इन अनुयोगों के आधार पर तत्तद्विषयों के प्राधान्य को लेकर शास्त्रों का भी विभाग किया जाने लगा, जैसे आचारांग आदि चरणकरणानुयोग में, उवासग दसा आदि को धर्मकथनुयोग में शामिल किया गया। अनुयोग की प्रक्रिया का वर्णन करने वाला प्राचीन ग्रंथ अनुयोगद्वार है जिसमें आवश्यक सूत्र के सामजिक अध्ययन की व्याख्या की गई है। उसी प्रक्रिया से व्याख्याकारों ने अन्य शास्त्रों की भी व्याख्या की है।[1]
हिन्दी | प्रश्न, जिज्ञासा, पूछताछ, भर्त्सना, डाँट- फटकार, संदेह दूर करने या सत्यता के संबंध में शंका होने पर किया जाने वाला प्रश्न, जैनागम के चार भागों में से प्रत्येक, वेतन लेकर विद्यार्थियों को पढ़ाने का काम। |
-व्याकरण | पुल्लिंग |
-उदाहरण | |
-विशेष | जैनागम के उक्त चार अनुयोगों के नाम हैं- प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, और द्रव्यानुयोग। इनमें क्रमश: * कथाएँ और पुराण, * कर्म-सिद्धांत और लोकविभाग, * जीव का आचार-विचार, * चेतन-अचेतन द्रव्यों के स्वरूप और तत्वों का वर्णन किया गया है। |
-विलोम | |
-पर्यायवाची | अनुयोक्ता, अध्ययन, अनुसंधान, खोजबीन, जायज़ा, विवेचन, वीक्षा, संवेक्षा, समीक्षा। |
संस्कृत | अनु+योग |
अन्य ग्रंथ | |
संबंधित शब्द | अनुयोज्य |
संबंधित लेख |
अन्य शब्दों के अर्थ के लिए देखें शब्द संदर्भ कोश
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 125 |