"प्रदीप कुमार बनर्जी": अवतरणों में अंतर
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'''प्रदीप कुमार बनर्जी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pradip Kumar Banerjee'', जन्म- [[23 जून]], [[1936]], जलपाईगुडी, [[पश्चिम बंगाल]]) [[भारत]] के सर्वश्रेष्ठ [[फ़ुटबॉल]] खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्होंने [[1962]] के एशियाई खेलों के फ़ाइनल में भारत की ओर से प्रथम गोल दागा था। बाद में भारत ने इस मैच में स्वर्ण पदक जीता था। [[1960]] के रोम ओलंपिक में पी. के. बनर्जी भारतीय फ़ुटबॉल टीम के कप्तान रहे। वे भारत के प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्हें [[1961]] में ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ प्रदान किया गया था। | '''प्रदीप कुमार बनर्जी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pradip Kumar Banerjee'', जन्म- [[23 जून]], [[1936]], जलपाईगुडी, [[पश्चिम बंगाल]]) [[भारत]] के सर्वश्रेष्ठ [[फ़ुटबॉल]] खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्होंने [[1962]] के एशियाई खेलों के फ़ाइनल में भारत की ओर से प्रथम गोल दागा था। बाद में भारत ने इस मैच में स्वर्ण पदक जीता था। [[1960]] के रोम ओलंपिक में पी. के. बनर्जी भारतीय फ़ुटबॉल टीम के कप्तान रहे। वे भारत के प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्हें [[1961]] में ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ प्रदान किया गया था। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
पी. के. बनर्जी उस भारतीय फ़ुटबॉल टीम के श्रेष्ठ खिलाड़ी सदस्य थे जिसने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की। वह ‘फारवर्ड स्ट्राइकर’ के स्थान पर खेलते थे और टीम के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मौके पर गोल करना उनकी आदत में शामिल रहा। प्रदीप कुमार के [[पिता]] का नाम प्रभात कुमार बनर्जी था। उन्होंने अपना खेल कैरियर जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन बिहार से आरम्भ किया। [[1953]] में वह पहली बार आई.एफ.ए. शील्ड के लिए जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन की ओर से हिन्दुस्तान एयर क्राफ्टस लिमिटेड के विरुद्ध खेले। यद्यपि उन्होंने अपने प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत [[जमशेदपुर]] से की, परन्तु उनको अपने [[खेल]] में कुशलता कलकत्ता लीग की ईस्टर्न रेलवे के लिए खेलते हुए मिली। [[1954]]-[[1955]] में वह कलकत्ता लीग के प्रथम श्रेणी के क्लब, आर्यन क्लब से जुड़े रहे। 1955 से [[1965]] तक बनर्जी ईस्टर्न रेलवे (कलकत्ता लीग) से जुड़े रहे। | पी. के. बनर्जी उस भारतीय फ़ुटबॉल टीम के श्रेष्ठ खिलाड़ी सदस्य थे जिसने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की। वह ‘फारवर्ड स्ट्राइकर’ के स्थान पर खेलते थे और टीम के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मौके पर गोल करना उनकी आदत में शामिल रहा। प्रदीप कुमार के [[पिता]] का नाम प्रभात कुमार बनर्जी था। उन्होंने अपना खेल कैरियर जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन बिहार से आरम्भ किया। [[1953]] में वह पहली बार आई.एफ.ए. शील्ड के लिए जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन की ओर से हिन्दुस्तान एयर क्राफ्टस लिमिटेड के विरुद्ध खेले। यद्यपि उन्होंने अपने प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत [[जमशेदपुर]] से की, परन्तु उनको अपने [[खेल]] में कुशलता कलकत्ता लीग की ईस्टर्न रेलवे के लिए खेलते हुए मिली। [[1954]]-[[1955]] में वह कलकत्ता लीग के प्रथम श्रेणी के क्लब, आर्यन क्लब से जुड़े रहे। 1955 से [[1965]] तक बनर्जी ईस्टर्न रेलवे (कलकत्ता लीग) से जुड़े रहे।<ref>{{cite web |url=https://www.kaiseaurkya.com/biography-of-pk-banerjee-in-hindi-language/ |title=प्रदीप कुमार बनर्जी का जीवन परिचय |accessmonthday=06 सितम्बर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=कैसे और क्या |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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==पुरस्कार व सम्मान== | ==पुरस्कार व सम्मान== | ||
1961 में पी.के. बनर्जी को ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ दिया गया। यह पुरस्कार पाने वाले बनर्जी प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे। उन्हें [[1990]] में [[पद्मश्री|पद्मश्री पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया तथा 1990 में ही उन्हें ‘फीफा फेयर प्ले अवार्ड’ प्रदान किया गया। [[2005]] में बनर्जी को ‘फीफा’ की ओर से ‘इण्डियन फुटबॉलर ऑफ ट्वेन्टियथ सेंचुरी’ पुरस्कार प्रदान किया गया। | 1961 में पी.के. बनर्जी को ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ दिया गया। यह पुरस्कार पाने वाले बनर्जी प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे। उन्हें [[1990]] में [[पद्मश्री|पद्मश्री पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया तथा [[1990]] में ही उन्हें ‘फीफा फेयर प्ले अवार्ड’ प्रदान किया गया। [[2005]] में बनर्जी को ‘फीफा’ की ओर से ‘इण्डियन फुटबॉलर ऑफ ट्वेन्टियथ सेंचुरी’ पुरस्कार प्रदान किया गया। | ||
==कोच का पद== | ==कोच का पद== | ||
रिटायरमेंट के पश्चात् बनर्जी कोच के रूप में [[फ़ुटबॉल]] से जुड़े रहे। उन्होंने [[कलकत्ता]] के [[मोहन बागान ए. सी.|मोहन बागान]] तथा ईस्ट बंगाल क्लब के कोच के रूप में कार्य किया। वह लंबे समय तक राष्ट्रीय टीम के भी कोच रहे हैं। वह टाटा फ़ुटबॉल अकादमी के टेक्निकल डायरेक्टर भी रहे हैं। [[2006]] में वह भारतीय राष्ट्रीय टीम के मैनेजर बने। | रिटायरमेंट के पश्चात् बनर्जी कोच के रूप में [[फ़ुटबॉल]] से जुड़े रहे। उन्होंने [[कलकत्ता]] के [[मोहन बागान ए. सी.|मोहन बागान]] तथा ईस्ट बंगाल क्लब के कोच के रूप में कार्य किया। वह लंबे समय तक राष्ट्रीय टीम के भी कोच रहे हैं। वह टाटा फ़ुटबॉल अकादमी के टेक्निकल डायरेक्टर भी रहे हैं। [[2006]] में वह भारतीय राष्ट्रीय टीम के मैनेजर बने। | ||
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05:22, 23 जून 2018 के समय का अवतरण
प्रदीप कुमार बनर्जी
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पूरा नाम | प्रदीप कुमार बनर्जी |
जन्म | 23 जून, 1936 |
जन्म भूमि | जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल |
अभिभावक | प्रभात कुमार बनर्जी |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | फ़ुटबॉल |
पुरस्कार-उपाधि | 'अर्जुन पुरस्कार' (1961), 'पद्मश्री पुरस्कार' (1990) |
प्रसिद्धि | भारतीय फ़ुटबॉल खिलाड़ी |
विशेष योगदान | 1962 के एशियाई खेलों के फ़ाइनल में प्रदीप कुमार बनर्जी ने भारत की ओर से प्रथम गोल दागा था। बाद में भारत ने इस मैच में स्वर्ण पदक जीता था। |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | प्रदीप कुमार बनर्जी 1953 में पहली बार आई.एफ.ए. शील्ड के लिए जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन की ओर से हिन्दुस्तान एयर क्राफ्टस लिमिटेड के विरुद्ध खेले थे। |
अन्य जानकारी | प्रदीप कुमार बनर्जी भारत के प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया था। |
अद्यतन | 05:59, 05 नवम्बर-2016 (IST) |
प्रदीप कुमार बनर्जी (अंग्रेज़ी: Pradip Kumar Banerjee, जन्म- 23 जून, 1936, जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल) भारत के सर्वश्रेष्ठ फ़ुटबॉल खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्होंने 1962 के एशियाई खेलों के फ़ाइनल में भारत की ओर से प्रथम गोल दागा था। बाद में भारत ने इस मैच में स्वर्ण पदक जीता था। 1960 के रोम ओलंपिक में पी. के. बनर्जी भारतीय फ़ुटबॉल टीम के कप्तान रहे। वे भारत के प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया था।
परिचय
पी. के. बनर्जी उस भारतीय फ़ुटबॉल टीम के श्रेष्ठ खिलाड़ी सदस्य थे जिसने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की। वह ‘फारवर्ड स्ट्राइकर’ के स्थान पर खेलते थे और टीम के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मौके पर गोल करना उनकी आदत में शामिल रहा। प्रदीप कुमार के पिता का नाम प्रभात कुमार बनर्जी था। उन्होंने अपना खेल कैरियर जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन बिहार से आरम्भ किया। 1953 में वह पहली बार आई.एफ.ए. शील्ड के लिए जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन की ओर से हिन्दुस्तान एयर क्राफ्टस लिमिटेड के विरुद्ध खेले। यद्यपि उन्होंने अपने प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत जमशेदपुर से की, परन्तु उनको अपने खेल में कुशलता कलकत्ता लीग की ईस्टर्न रेलवे के लिए खेलते हुए मिली। 1954-1955 में वह कलकत्ता लीग के प्रथम श्रेणी के क्लब, आर्यन क्लब से जुड़े रहे। 1955 से 1965 तक बनर्जी ईस्टर्न रेलवे (कलकत्ता लीग) से जुड़े रहे।[1]
कॅरियर
बनर्जी उस भारतीय फ़ुटबॉल टीम के सदस्य थे, जिसने 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में चौथा स्थान प्राप्त किया था। उन्होंने 1960 में हुए रोम ओलंपिक में भारतीय फ़ुटबॉल टीम का नेतृत्व किया था। यद्यपि भारतीय टीम ग्रुप स्टेज से आगे नहीं बढ़ सकी थी परन्तु उन्होंने कैप्टेन के रूप में एक गोल करके फ़्राँस की दमदार टीम को काफ़ी देर तक 1-1 पर रोके रखा। 1961-1962 तथा 1966-1967 में वह रेलवे टीम के सदस्य थे, जिसने ‘संतोष ट्राफी’ जीती थी। एशियाई स्तर पर भी पी. के. बनर्जी भारतीय टीम से जुड़े रहे। उन्होंने 1958 से 1966 तक तीन एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। जिनमें 1962 में जकार्ता एशियाई खेलों में भारत ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। जकार्ता में हुए मैचों में प्रथम एक मैच छोड़ कर (दक्षिण कोरिया के विरुद्ध) बनर्जी ने सभी टीमों के विरुद्ध गोल लगाए।
पुरस्कार व सम्मान
1961 में पी.के. बनर्जी को ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया। यह पुरस्कार पाने वाले बनर्जी प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे। उन्हें 1990 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा 1990 में ही उन्हें ‘फीफा फेयर प्ले अवार्ड’ प्रदान किया गया। 2005 में बनर्जी को ‘फीफा’ की ओर से ‘इण्डियन फुटबॉलर ऑफ ट्वेन्टियथ सेंचुरी’ पुरस्कार प्रदान किया गया।
कोच का पद
रिटायरमेंट के पश्चात् बनर्जी कोच के रूप में फ़ुटबॉल से जुड़े रहे। उन्होंने कलकत्ता के मोहन बागान तथा ईस्ट बंगाल क्लब के कोच के रूप में कार्य किया। वह लंबे समय तक राष्ट्रीय टीम के भी कोच रहे हैं। वह टाटा फ़ुटबॉल अकादमी के टेक्निकल डायरेक्टर भी रहे हैं। 2006 में वह भारतीय राष्ट्रीय टीम के मैनेजर बने।
उपलब्धियाँ
- पी.के. बनर्जी ने तीन बार एशियाई खेलों में भारत का नेतृत्व किया।
- 1962 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में वह उस भारतीय फ़ुटबॉल टीम के सदस्य थे, जिसने स्वर्ण पदक जीता था।
- 1961 में बनर्जी को ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया। यह पुरस्कार पाने वाले बनर्जी प्रथम भारतीय फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे।
- वह रेलवे की उस टीम के सदस्य थे जिसने 1961-1962 तथा 1966-1967 में संतोष ट्राफी जीती थी।
- उन्हें 1990 में ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया।
- 1990 में उन्हें ‘फीफा फेयर प्ले अवॉर्ड’ दिया गया।
- 2005 में फीफा की ओर से उन्हें ‘इंडियाज फुटबॉलर ऑफ द ट्वेन्टीयथ सेन्चुरी’ पुरस्कार दिया गया।
- वह ईस्ट बंगाल, मोहन बागान तथा राष्ट्रीय टीम के कोच रहे हैं।
- वह टाटा फ़ुटबॉल अकादमी, मोहम्मडन स्पोर्टिग के तकनीकी निदेशक रहे हैं।
- 2006 में वह फ़ुटबॉल टीम के मैनेजर बने।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रदीप कुमार बनर्जी का जीवन परिचय (हिन्दी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 06 सितम्बर, 2016।