"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट मई 2014": अवतरणों में अंतर
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; दिनांक- 31 मई, 2014 | |||
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जनता नेताओं के झूठ को लेकर बहुत से सवाल खड़े करती रहती है। धन्य है भोली जनता जो कभी यह नहीं सोचती कि सच बोलना होता तो उनके प्यारे नेतागण राजनीति में क्यों आते ?... और बहुत से काम थे करने को... | जनता नेताओं के झूठ को लेकर बहुत से सवाल खड़े करती रहती है। धन्य है भोली जनता जो कभी यह नहीं सोचती कि सच बोलना होता तो उनके प्यारे नेतागण राजनीति में क्यों आते ?... और बहुत से काम थे करने को... | ||
सच बोलकर बहुत से काम हो सकते होंगे लेकिन राजनीति और व्यापार तो एक दिन भी नहीं हो सकता। | सच बोलकर बहुत से काम हो सकते होंगे लेकिन राजनीति और व्यापार तो एक दिन भी नहीं हो सकता। | ||
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; दिनांक- 30 मई, 2014 | |||
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भारत की मूल समस्या क्या है ? बिजली, पानी, सड़क, सुरक्षा या कुछ और ? | भारत की मूल समस्या क्या है ? बिजली, पानी, सड़क, सुरक्षा या कुछ और ? | ||
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इसलिए अगर कुछ बदलना है तो शिक्षा का ढाँचा बदला जाना चाहिए उससे ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। | इसलिए अगर कुछ बदलना है तो शिक्षा का ढाँचा बदला जाना चाहिए उससे ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। | ||
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; दिनांक- 30 मई, 2014 | |||
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बदायूँ में हुए अमानवीय कृत्य पर अपनी पुरानी कविता याद आई | बदायूँ में हुए अमानवीय कृत्य पर अपनी पुरानी कविता याद आई | ||
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वो मरें भी कैसे जो ज़िन्दा नहीं | वो मरें भी कैसे जो ज़िन्दा नहीं | ||
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; दिनांक- 30 मई, 2014 | |||
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भारत की अधिसंख्य जनता संभवत: इस पक्ष में है कि कश्मीर राज्य की संवैधानिक स्थिति भी भारत के अन्य राज्यों की तरह ही हो जानी चाहिए। माजूदा सरकार से यह उम्मीद और भी ज़्यादा हो गई है। संविधान विशेषज्ञ यह जानते हैं कि यह सब कोरी बयान बाज़ी ही है क्योंकि ऐसा हो पाने की परिस्थिति अभी निकट भविष्य में नहीं है। | भारत की अधिसंख्य जनता संभवत: इस पक्ष में है कि कश्मीर राज्य की संवैधानिक स्थिति भी भारत के अन्य राज्यों की तरह ही हो जानी चाहिए। माजूदा सरकार से यह उम्मीद और भी ज़्यादा हो गई है। संविधान विशेषज्ञ यह जानते हैं कि यह सब कोरी बयान बाज़ी ही है क्योंकि ऐसा हो पाने की परिस्थिति अभी निकट भविष्य में नहीं है। | ||
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... मगर मामला कुछ और ही होता है, नेता अगर बयान बाज़ी नहीं करें तो खाएंगे क्या ? | ... मगर मामला कुछ और ही होता है, नेता अगर बयान बाज़ी नहीं करें तो खाएंगे क्या ? | ||
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; दिनांक- 30 मई, 2014 | |||
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मंत्रियों की शिक्षा-योग्यता पर बवाल हो रहा है। इस तरह से बात की जा रही है जैसे कि भारत में पहली बार कोई सरकार बनी है। पत्रकार और स्तंभकार इतने भोलेपन से सवाल-जवाब कर रहे हैं कि मानो वे सरकार में मंत्री बनाए जाने की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हों। | मंत्रियों की शिक्षा-योग्यता पर बवाल हो रहा है। इस तरह से बात की जा रही है जैसे कि भारत में पहली बार कोई सरकार बनी है। पत्रकार और स्तंभकार इतने भोलेपन से सवाल-जवाब कर रहे हैं कि मानो वे सरकार में मंत्री बनाए जाने की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हों। | ||
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'मैं अमुक, भगवान की क़सम खाता हूँ / सच्चे मन से पक्का वादा करता हूँ कि मैं विधि द्वारा बनाए गए भारत के संविधान के लिए सच्ची भावना और लगन रखूँगा, मैं भारत की सत्ता और एकता को जोड़कर रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपनी ड्यूटी को लगन और सच्चे मन से निबाहूँगा और मैं डर या अपना-तेरा, प्यार या दुश्मनी के बिना, सभी तरह के लोगों के लिए संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।' | 'मैं अमुक, भगवान की क़सम खाता हूँ / सच्चे मन से पक्का वादा करता हूँ कि मैं विधि द्वारा बनाए गए भारत के संविधान के लिए सच्ची भावना और लगन रखूँगा, मैं भारत की सत्ता और एकता को जोड़कर रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपनी ड्यूटी को लगन और सच्चे मन से निबाहूँगा और मैं डर या अपना-तेरा, प्यार या दुश्मनी के बिना, सभी तरह के लोगों के लिए संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।' | ||
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; दिनांक- 30 मई, 2014 | |||
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न जाने किस शिक्षा और किस संस्कृति की बात हम करते हैं और अपने देश की महानता पर गर्व भी करते हैं। ज़रा जाकर देखिए बदायूँ में, शिक्षा और संस्कृति दोनों ही पेड़ पर मृत लटकी मिलेंगी... | न जाने किस शिक्षा और किस संस्कृति की बात हम करते हैं और अपने देश की महानता पर गर्व भी करते हैं। ज़रा जाकर देखिए बदायूँ में, शिक्षा और संस्कृति दोनों ही पेड़ पर मृत लटकी मिलेंगी... | ||
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; दिनांक- 25 मई, 2014 | |||
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अक्सर सुनने में आता है कि "सबसे अच्छा दोस्त ही सबसे ख़तरनाक दुश्मन हो सकता है।" क्या सचमुच ऐसा होता है? यदि ऐसा होता है तो इसका उल्टा भी सही होता होगा, याने कि सबसे ख़तरनाक दुश्मन सबसे अच्छा दोस्त हो सकता होगा। | अक्सर सुनने में आता है कि "सबसे अच्छा दोस्त ही सबसे ख़तरनाक दुश्मन हो सकता है।" क्या सचमुच ऐसा होता है? यदि ऐसा होता है तो इसका उल्टा भी सही होता होगा, याने कि सबसे ख़तरनाक दुश्मन सबसे अच्छा दोस्त हो सकता होगा। | ||
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इसीलिए एक कहावत मशहूर है "यार की यारी से काम फैलों से क्या काम।" | इसीलिए एक कहावत मशहूर है "यार की यारी से काम फैलों से क्या काम।" | ||
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; दिनांक- 24 मई, 2014 | |||
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भक्त ने कहा- | भक्त ने कहा- | ||
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हे वत्स ! आज की दुनिया में, पैसा मुझसे कम भी नहीं | हे वत्स ! आज की दुनिया में, पैसा मुझसे कम भी नहीं | ||
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; दिनांक- 24 मई, 2014 | |||
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दुम शेर की भी होती है और कुत्ते की भी लेकिन शेर अपनी दुम लहराता है और कुत्ता अपनी दुम हिलाता है। दुम तो दोनों हिलती हैं लेकिन मतलब अलग होता है। ये एक ऐसा फ़र्क़ है जिसको हम समझ लें तो ज़िन्दगी के बहुत से फ़न्डे क्लीयर हो जाते हैं। | दुम शेर की भी होती है और कुत्ते की भी लेकिन शेर अपनी दुम लहराता है और कुत्ता अपनी दुम हिलाता है। दुम तो दोनों हिलती हैं लेकिन मतलब अलग होता है। ये एक ऐसा फ़र्क़ है जिसको हम समझ लें तो ज़िन्दगी के बहुत से फ़न्डे क्लीयर हो जाते हैं। | ||
पंक्ति 134: | पंक्ति 127: | ||
शक्ति का प्रयोग अय्याशी और अहंकार के लिए करने वाले शासकों से जनता का सरोकार क्षणिक होता है और शक्ति को जनता का कर्ज़ समझने वाले शासकों को जनता याद रखती है। | शक्ति का प्रयोग अय्याशी और अहंकार के लिए करने वाले शासकों से जनता का सरोकार क्षणिक होता है और शक्ति को जनता का कर्ज़ समझने वाले शासकों को जनता याद रखती है। | ||
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; दिनांक- 23 मई, 2014 | |||
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नारी विमर्श की सभी पूर्वानुकृतियों को पूर्णत: नवीन आयाम देती एक उत्कृष्ट कृति है 'क्वीन'। | नारी विमर्श की सभी पूर्वानुकृतियों को पूर्णत: नवीन आयाम देती एक उत्कृष्ट कृति है 'क्वीन'। | ||
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यह फ़िल्म स्त्रियों से अधिक पुरुषों को दिखाई जानी चाहिये जिससे उनकी समझ में आए कि स्त्री केवल उनकी वामांगी नहीं है बल्कि प्रकृति की संपूर्ण रूप से विकसित एक ऐसी कृति है जिसकी बराबरी करने के लिए पुरुष को ही युगों तक प्रतीक्षा करनी होगी। | यह फ़िल्म स्त्रियों से अधिक पुरुषों को दिखाई जानी चाहिये जिससे उनकी समझ में आए कि स्त्री केवल उनकी वामांगी नहीं है बल्कि प्रकृति की संपूर्ण रूप से विकसित एक ऐसी कृति है जिसकी बराबरी करने के लिए पुरुष को ही युगों तक प्रतीक्षा करनी होगी। | ||
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; दिनांक- 23 मई, 2014 | |||
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महाभारत युद्ध चल रहा था। प्रथा के अनुसार अर्जुन ने कहा कि संध्या हो गई अब युद्ध विराम होता है, शेष युद्ध कल होगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण को आश्चर्य हुआ और बोले कि अर्जुन जब हमें आने वाले अगले क्षण का भी पता नहीं हैं कि आगे क्या होगा तो तुमने कैसे कह दिया कि शेष युद्ध कल होगा। क्या तुमने समय को जीत लिया है या भविष्य | महाभारत युद्ध चल रहा था। प्रथा के अनुसार अर्जुन ने कहा कि संध्या हो गई अब युद्ध विराम होता है, शेष युद्ध कल होगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण को आश्चर्य हुआ और बोले कि अर्जुन जब हमें आने वाले अगले क्षण का भी पता नहीं हैं कि आगे क्या होगा तो तुमने कैसे कह दिया कि शेष युद्ध कल होगा। क्या तुमने समय को जीत लिया है या भविष्य द्रष्टाबन गए हो। समय के संबंध में इस प्रकार का अर्थहीन वक्तव्य नहीं देना चाहिये। तुम मात्र इतना कह सकते हो कि आज युद्ध विराम होता है। | ||
यह पूर्णत: सही है कि अगले क्षण का भी पता हमें नहीं होता कि क्या होने वाला है। हम भविष्य की योजना बना सकते हैं उसे नियोजित करने का कार्यक्रम बना सकते हैं लेकिन भविष्य को निश्चित नहीं मान सकते। | यह पूर्णत: सही है कि अगले क्षण का भी पता हमें नहीं होता कि क्या होने वाला है। हम भविष्य की योजना बना सकते हैं उसे नियोजित करने का कार्यक्रम बना सकते हैं लेकिन भविष्य को निश्चित नहीं मान सकते। | ||
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; दिनांक- 21 मई, 2014 | |||
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किसी बड़े से शहर में किसी बड़े से आदमी ने मुझसे पूछा... | किसी बड़े से शहर में किसी बड़े से आदमी ने मुझसे पूछा... | ||
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टेंटी का अचार, झर बेरिया के बेर, टपका आम, पापड़ी, इमली (कटारे) ... और न जाने क्या-क्या ...चाहें तो कुछ आप भी गिनाएँ... | टेंटी का अचार, झर बेरिया के बेर, टपका आम, पापड़ी, इमली (कटारे) ... और न जाने क्या-क्या ...चाहें तो कुछ आप भी गिनाएँ... | ||
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; दिनांक- 20 मई, 2014 | |||
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जिस दिन भी मुझे ऐसा लगता है कि मैं अब बहुत अनुभवी और परिपक्व हो गया हूँ उसी दिन कोई न कोई वज्र मूर्खता का प्रदर्शन कर बैठता हूँ और सारी बुद्धिमत्ता धरी की धरी रह जाती है। | जिस दिन भी मुझे ऐसा लगता है कि मैं अब बहुत अनुभवी और परिपक्व हो गया हूँ उसी दिन कोई न कोई वज्र मूर्खता का प्रदर्शन कर बैठता हूँ और सारी बुद्धिमत्ता धरी की धरी रह जाती है। | ||
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उम्र बढ़ने से अनुभव तो बढ़ता है पर बुद्धि कम होती जाती है। वैसे भी समाज में जीने के लिए अनुभव ही तो चाहिए बुद्धि बेचारी को पूछता ही कौन है... | उम्र बढ़ने से अनुभव तो बढ़ता है पर बुद्धि कम होती जाती है। वैसे भी समाज में जीने के लिए अनुभव ही तो चाहिए बुद्धि बेचारी को पूछता ही कौन है... | ||
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; दिनांक- 19 मई, 2014 | |||
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आम आदमी से वायदे करके चुनाव जीता जाता है और ख़ास आदमियों से किए वादे निभाकर सरकार चलाई जाती है। काश इसका उल्टा हो सकता... | आम आदमी से वायदे करके चुनाव जीता जाता है और ख़ास आदमियों से किए वादे निभाकर सरकार चलाई जाती है। काश इसका उल्टा हो सकता... | ||
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; दिनांक- 19 मई, 2014 | |||
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निष्ठुर हुए बिना या कहें कि सहृयता क़ायम रखते हुए किसी व्यवसाय-व्यापार में कैसे सफल हुआ जा सकता है? किसी को मालूम हो तो मुझे ज़रूर बताएँ... | निष्ठुर हुए बिना या कहें कि सहृयता क़ायम रखते हुए किसी व्यवसाय-व्यापार में कैसे सफल हुआ जा सकता है? किसी को मालूम हो तो मुझे ज़रूर बताएँ... | ||
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; दिनांक- 19 मई, 2014 | |||
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भारत के चुनाव में सेक्यूलरिज़्म याने धर्म निरपेक्षता शायद अब सामयिक मुद्दा नहीं रहा। नई पीढ़ी 'धर्म सापेक्ष' है और काफ़ी हद तक 'सर्व धर्म सम्मान' या कहें कि 'सर्व धर्म सापेक्ष' है। | भारत के चुनाव में सेक्यूलरिज़्म याने धर्म निरपेक्षता शायद अब सामयिक मुद्दा नहीं रहा। नई पीढ़ी 'धर्म सापेक्ष' है और काफ़ी हद तक 'सर्व धर्म सम्मान' या कहें कि 'सर्व धर्म सापेक्ष' है। | ||
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भारत के विकास की अनंत संभावनाएँ हैं... | भारत के विकास की अनंत संभावनाएँ हैं... | ||
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05:02, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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