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'''आश्रमवासिक पर्व''' में कुल मिलाकर 39 अध्याय हैं। आश्रमवासिक पर्व में भाइयों समेत [[युधिष्ठिर]] और [[कुन्ती]] द्वारा [[धृतराष्ट्र]] तथा [[गान्धारी]] की सेवा, [[व्यास]] जी के समझाने पर धृतराष्ट्र,गान्धारी और कुन्ती को वन में जाने देना, वहाँ जाकर इन तीनों का ॠषियों के आश्रम में निवास करना, महर्षि व्यास के प्रभाव से युद्ध में  मारे गये वीरों का परलोक से आना और स्वजनों से मिलकर अदृश्य हो जाना, [[नारद]] के मुख से धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती का दावानल में जलकर भस्म हो जाना सुनकर युधिष्ठिर का विलाप और उनकी अस्थियों का [[गंगा नदी|गंगा]] में विसर्जन करके [[श्राद्ध]]कर्म करना आदि वर्णित है।
;महाराज धृतराष्ट्र, गांधारी आदि का वानप्रस्थ ग्रहण
युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी उदासीन जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उन्होंने महर्षि [[व्यास]] के उपदेश से वानप्रस्थ धर्म ग्रहण कर वन जाने की इच्छा प्रकट की। यह समाचार सुनकर नगर-निवासी राजमहल में आए तथा उनके प्रति अपना प्रेम और आदर प्रकट किया। धृतराष्ट्र गांधारी को साथ लेकर [[हिमालय]] की ओर गए। उन्हीं के साथ कुंती, [[विदुर]] और [[संजय]] भी हो लिये। तपस्या करते हुए विदुर ने वन में ही समाधि ली। कुछ ही दिनों में वन की दावाग्नि में धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती जल मरे।


==आश्रमवासिक पर्व / Aashramvasik Parv==
आश्रमवासिक पर्व में भी 3 उपपर्व हैं-
आश्रमवासिक पर्व में भी 3 उपपर्व हैं-
*आश्रमवास पर्व,
*आश्रमवास पर्व,
*पुत्रदर्शन पर्व,
*पुत्रदर्शन पर्व,
*नारदागमन पर्व।
*नारदागमन पर्व।
इस पर्व में कुल मिलाकर 39 अध्याय हैं। आश्रमवासिक पर्व में भाइयों समेत [[युधिष्ठिर]] और [[कुन्ती]] द्वारा [[धृतराष्ट्र]] तथा [[गान्धारी]] की सेवा, [[व्यास]] जी के समझाने पर धृतराष्ट्र,गान्धारी और कुन्ती को वन में जाने देना, वहाँ जाकर इन तीनों का ॠषियों के आश्रम में निवास करना, महर्षि व्यास के प्रभाव से युद्ध में  मारे गये वीरों का परलोक से आना और स्वजनों से मिलकर अदृश्य हो जाना, [[नारद]] के मुख से धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती का दावानल में जलकर भस्म हो जाना सुनकर युधिष्ठिर का विलाप और उनकी अस्थियों का [[गंगा]] में विसर्जन करके [[श्राद्ध]]कर्म करना आदि वर्णित है।
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==संबंधित लेख==
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12:30, 1 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

महाभारत के पर्व

आश्रमवासिक पर्व में कुल मिलाकर 39 अध्याय हैं। आश्रमवासिक पर्व में भाइयों समेत युधिष्ठिर और कुन्ती द्वारा धृतराष्ट्र तथा गान्धारी की सेवा, व्यास जी के समझाने पर धृतराष्ट्र,गान्धारी और कुन्ती को वन में जाने देना, वहाँ जाकर इन तीनों का ॠषियों के आश्रम में निवास करना, महर्षि व्यास के प्रभाव से युद्ध में मारे गये वीरों का परलोक से आना और स्वजनों से मिलकर अदृश्य हो जाना, नारद के मुख से धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती का दावानल में जलकर भस्म हो जाना सुनकर युधिष्ठिर का विलाप और उनकी अस्थियों का गंगा में विसर्जन करके श्राद्धकर्म करना आदि वर्णित है।

महाराज धृतराष्ट्र, गांधारी आदि का वानप्रस्थ ग्रहण

युद्ध के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी उदासीन जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन उन्होंने महर्षि व्यास के उपदेश से वानप्रस्थ धर्म ग्रहण कर वन जाने की इच्छा प्रकट की। यह समाचार सुनकर नगर-निवासी राजमहल में आए तथा उनके प्रति अपना प्रेम और आदर प्रकट किया। धृतराष्ट्र गांधारी को साथ लेकर हिमालय की ओर गए। उन्हीं के साथ कुंती, विदुर और संजय भी हो लिये। तपस्या करते हुए विदुर ने वन में ही समाधि ली। कुछ ही दिनों में वन की दावाग्नि में धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती जल मरे।

आश्रमवासिक पर्व में भी 3 उपपर्व हैं-

  • आश्रमवास पर्व,
  • पुत्रदर्शन पर्व,
  • नारदागमन पर्व।

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