"क्रोध (सूक्तियाँ)": अवतरणों में अंतर
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| क्रोधी मनुष्य तप्त लौह पिंड के समान अंदर ही अंदर दहकता एवं जलता रहता है। उसकी मानसिक शान्ति नष्ट हो जाती है। विवेकपूर्ण कार्य करने की स्थिति समाप्त हो जाती है। क्रोध के कारण कोई व्यक्ति दूसरे का उतना अहित नहीं कर पाता जितना अहित वह स्वयं अपना कर लेता है। | | क्रोधी मनुष्य तप्त लौह पिंड के समान अंदर ही अंदर दहकता एवं जलता रहता है। उसकी मानसिक शान्ति नष्ट हो जाती है। विवेकपूर्ण कार्य करने की स्थिति समाप्त हो जाती है। क्रोध के कारण कोई व्यक्ति दूसरे का उतना अहित नहीं कर पाता जितना अहित वह स्वयं अपना कर लेता है। | ||
| | | प्रोफेसर महावीर सरन जैन | ||
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|विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है। बेसब्री में सही निर्णय लेना व उचित व्यवहार असंभव हो जाता है। लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है। धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है। | |विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है। बेसब्री में सही निर्णय लेना व उचित व्यवहार असंभव हो जाता है। लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है। धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है। | ||
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|लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न | |लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न करने वाली है। | ||
| बल्लाल कवि | | बल्लाल कवि | ||
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09:52, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
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(1) | क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक सहायक है। | महात्मा गांधी |
(2) | मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है। | बाइबिल |
(3) | क्रोध करने का मतलब है, दूसरों की ग़लतियों कि सज़ा स्वयं को देना। | |
(4) | जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो। | कन्फ़्यूशियस |
(5) | क्रोध से धनि व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का पात्र होता है। | कहावत |
(6) | क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म होता है। | पाईथागोरस |
(7) | क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहां से खिसक जाती है। | एम. हेनरी |
(8) | जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है। | रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
(9) | क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए। | इंगरसोल |
(10) | क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और भ्द्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। | कृष्ण |
(11) | क्रोध यमराज है। | चाणक्य |
(12) | क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है। | महात्मा गाँधी |
(13) | क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी निकलती हैं। | मीनेंदर |
(14) | जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा करता है वह अपनी और क्रोध करनेवाले की महासंकट से रक्षा करता है। | वेदव्यास |
(15) | सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं थकता जितना क्रोध या चिंता से पल भर में थक जाता है। | जेम्स एलन |
(16) | क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो, अगर ज़्यादा क्रोध में तो सौ तक। | जेफरसन |
(17) | दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं। | माल्कम एक्स |
(18) | ईर्ष्या और क्रोध से जीवन क्षय होता है। | बाइबिल |
(19) | अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है। | |
(20) | किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है। | |
(21) | क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है। | |
(22) | क्रोध का प्रत्येक मिनट आपकी साठ सेकण्डों की खुशी को छीन लेता है। | |
(23) | जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। | विदुर नीति |
(24) | काम क्रोध और लोभ ये तीनो नरक के द्वार हैं। | गीता |
(25) | काम, क्रोध, मद, लोभ सब, नाथ नरक के पंथ। | तुलसीदास |
(26) | अति क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से बैर, नीचों का संग और अकुलीन की सेवा, ये नरक में रहाहे वालों के लक्षण हैं। | चाणक्य नीति |
(27) | युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी। | प्रेमचंद |
(28) | क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है। | प्रेमचंद |
(29) | मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है। | गौतम बुद्ध |
(30) | जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। | महात्मा बुद्ध |
(31) | क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है। | महात्मा गांधी |
(32) | मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है। | स्वामी विवेकानन्द |
(33) | क्रोध की अति तो कटार से भी विनाशकारी है। | भारत की कहावत |
(34) | विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है। | श्रीराम शर्मा आचार्य |
(35) | क्रोधी मनुष्य तप्त लौह पिंड के समान अंदर ही अंदर दहकता एवं जलता रहता है। उसकी मानसिक शान्ति नष्ट हो जाती है। विवेकपूर्ण कार्य करने की स्थिति समाप्त हो जाती है। क्रोध के कारण कोई व्यक्ति दूसरे का उतना अहित नहीं कर पाता जितना अहित वह स्वयं अपना कर लेता है। | प्रोफेसर महावीर सरन जैन |
(36) | बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। | आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
(37) | क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है। | अज्ञात |
(38) | क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त। | अज्ञात |
(39) | क्रोध कभी भी बिना कारण नहीं होता, लेकिन कदाचित ही यह कारण सार्थक होता है। | बेंजामिन फ्रेंकलिन |
(40) | क्रोध से शुरू होने वाली हर बात, लज्जा पर समाप्त होती है। | बेंजामिन फ्रेंकलिन |
(41) | क्रोध एक तेजाब है जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है। | मार्क ट्वेन |
(42) | वह आदमी वास्तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी ग़लत बात मुंह से नहीं निकालता। | शेख सादी |
(43) | जब तक आप न चाहें तब तक आपको, कोई भी ईर्ष्यालु, क्रोधी प्रतिशोधी या लालची नहीं बना सकता। | नेपोलियन हिल |
(44) | जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है। | सुकरात |
(45) | क्रोध बुद्धि को घर से बाहर, निकाल देता है और दरवाज़े पर, चटकनी लगा देता है। | प्लूटार्क |
(46) | विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है। बेसब्री में सही निर्णय लेना व उचित व्यवहार असंभव हो जाता है। लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है। धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है। | डॉ.राजेंद्र तेला, निरंतर |
(47) | अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलनेवाले को सत्य से जीतें। | धम्मपद |
(48) | महात्माओं का क्रोध क्षण में ही शांत हो जाता है। पापी जन ही ऐसे हैं, जिसका कोप कल्पों तक भी दूर नहीं होता। | देवीभागवत |
(49) | दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है। | वेदव्यास |
(50) | क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है। | भागवत गीता |
(51) | क्रोधी पर प्रतिक्रोध न करें। आक्रोशी से भी कुशलतापूर्वक बोलें। | नारद परिव्राजकोपनिषद् |
(52) | क्षमा में जो महत्ता है, जो औदार्य है, वह क्रोध और प्रतिकार में कहां? | सेठ गोविंददास |
(53) | कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। | अज्ञात |
(54) | जिसके मन में कभी क्रोध नहीं होता और जिसके हृदय में रात-दिन राम बसते हैं, वह भक्त भगवान के समान ही है। | रैदास |
(55) | ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है। | विष्णुधर्मोत्तर पुराण |
(56) | शंति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें और संतोष से लाभ को जीतें। | दशवैकालिक |
(57) | आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। | महात्मा गांधी |
(58) | कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। | अज्ञात |
(59) | दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। | नवविधान |
(60) | क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। | वेदव्यास |
(61) | मन को विषाद ग्रस्त नहीं बनाना चाहिए। विषाद में बहुत बड़ा दोष है। जैसे क्रोध में भरा हुआ सांप बालक को काट खाता है, उसी प्रकार विषाद व्यक्ति का नाश कर डालता है। | वाल्मीकि |
(62) | जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। | बाणभट्ट |
(63) | लोभ पाप का घर है, लोभ ही पाप की जन्मस्थली है और यही दोष, क्रोध आदि को उत्पन्न करने वाली है। | बल्लाल कवि |
(64) | क्रोध को क्षमा से, विरोध को अनुरोध से, घृणा को दया से, द्वेष को प्रेम से और हिंसा को अहिंसा की भावना से जीतो। | दयानंद सरस्वती |
(65) | विनयी जनों को क्रोध कहां? और निर्मल अंत:करण में लज्जा का प्रवेश कहां? | भास |
(66) | शांति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें तथा संतोष से लाभ को जीतें। | दशवैकालिक |
(67) | आवेश और क्रोध को वश में कर लेने पर शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित कर दिया जा सकता है। | महात्मा गांधी |
(68) | ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। | तिरुवल्लुवर |
(69) | जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूं, क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है। | गौतम बुद्ध |
(70) | अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य- इन पांच कारणों से व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। | उत्तराध्ययन |
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