"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट जनवरी 2015": अवतरणों में अंतर
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; दिनांक- 25 जनवरी 2015 | |||
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उपस्थिति में अनुपस्थिति को जी लेना ही रिश्ते की गर्माहट बनाए रहता है... जीवन भर | उपस्थिति में अनुपस्थिति को जी लेना ही रिश्ते की गर्माहट बनाए रहता है... जीवन भर | ||
ज़रा सोचिए जो साथ है वह न रहे तो ??? बस झगड़ा ख़त्म हो जाता है यह सोचते ही... | ज़रा सोचिए जो साथ है वह न रहे तो ??? बस झगड़ा ख़त्म हो जाता है यह सोचते ही... | ||
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; दिनांक- 24 जनवरी 2015 | |||
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विवाह को; संस्कार कहिए, संस्था कहिए या रिश्ता, एक बात निश्चित और अद्भुत है कि विवाह ही ऐसा है जो कि समाज के बनाए नियमों और व्यवस्थाओं को मानने में सबसे आगे है और साथ ही साथ उन नियमों को तोड़ने और अस्वीकार करने में भी सबसे आगे है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत का और कुछ अद्वितीय हो न हो लेकिन भारतीय पत्नी और भारतीय पति विश्व भर में सबसे आदर्श माने जाते हैं। यूरोप से लेकर अमरीका तक भारतीय पति या पत्नी की मांग सबसे ज़्यादा है। आख़िर ऐसी क्या ख़ास बात है इनमें ? | विवाह को; संस्कार कहिए, संस्था कहिए या रिश्ता, एक बात निश्चित और अद्भुत है कि विवाह ही ऐसा है जो कि समाज के बनाए नियमों और व्यवस्थाओं को मानने में सबसे आगे है और साथ ही साथ उन नियमों को तोड़ने और अस्वीकार करने में भी सबसे आगे है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत का और कुछ अद्वितीय हो न हो लेकिन भारतीय पत्नी और भारतीय पति विश्व भर में सबसे आदर्श माने जाते हैं। यूरोप से लेकर अमरीका तक भारतीय पति या पत्नी की मांग सबसे ज़्यादा है। आख़िर ऐसी क्या ख़ास बात है इनमें ? | ||
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; दिनांक- 24 जनवरी 2015 | |||
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मेरे एक परिचित ने कहा कि कुछ आतंकवाद के विषय पर भी लिख दीजिए। मैंने कहा ठीक है, लिख देता हूँ...फिर कुछ सोचकर वो बोले "लिख कर रख लीजिए, जब कोई बम फटे तब लेख को भारतकोश पर लगा देना क्योंकि करंट टॉपिक्स पर लिखना ज़्यादा अच्छा रहता है।" | मेरे एक परिचित ने कहा कि कुछ आतंकवाद के विषय पर भी लिख दीजिए। मैंने कहा ठीक है, लिख देता हूँ...फिर कुछ सोचकर वो बोले "लिख कर रख लीजिए, जब कोई बम फटे तब लेख को भारतकोश पर लगा देना क्योंकि करंट टॉपिक्स पर लिखना ज़्यादा अच्छा रहता है।" | ||
मैं उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया, मन में सोचा कि इसका सीधा मतलब तो यह है कि मैं अपने संपादकीय को भारतकोश पर प्रकाशित करने के लिए बम फटने की उम्मीद करूँ कि कब बम फटे और मैं अपना सम्पादकीय भारतकोश पर प्रकाशित करूँ? | मैं उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया, मन में सोचा कि इसका सीधा मतलब तो यह है कि मैं अपने संपादकीय को भारतकोश पर प्रकाशित करने के लिए बम फटने की उम्मीद करूँ कि कब बम फटे और मैं अपना सम्पादकीय भारतकोश पर प्रकाशित करूँ? | ||
ऐसा लगने लगा है कि जिस तरह भ्रष्टाचार की ख़बरें अब चौंकाने वाली नहीं रही, उसी तरह आतंक फैलाने वाली घटनाओं के लिए भी लोग सहज होते जा रहे हैं। चीन के | ऐसा लगने लगा है कि जिस तरह भ्रष्टाचार की ख़बरें अब चौंकाने वाली नहीं रही, उसी तरह आतंक फैलाने वाली घटनाओं के लिए भी लोग सहज होते जा रहे हैं। चीन के महान् दार्शनिक और 'ताओ-ते-चिंग' के रचियता 'लाओत्से' के अनुसार- लगातार भाले की नोंक की चुभन भी चुभन नहीं रहती यदि उसे बार-बार धीरे-धीरे चुभाते रहें। इसी तरह संगीतकारों के बहरा हो जाने, चित्रकारों के अंधा हो जाने और हर समय तीव्र गंध युक्त वातावरण में रहने वालों की गंध पहचानने की क्षमता ख़त्म हो जाने के उदाहरण भी हैं। निरन्तर लम्बे समय तक दोहराने से उस प्रक्रिया की ओर ध्यान स्वत: ही कम हो जाता है। | ||
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; दिनांक- 23 जनवरी 2015 | |||
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यह मैंने विशेष रूप से नई पीढ़ी के लिए लिखा है… मैं अपनी कमज़ोरियों से कैसे लड़ा, जीता-हारा... | यह मैंने विशेष रूप से नई पीढ़ी के लिए लिखा है… मैं अपनी कमज़ोरियों से कैसे लड़ा, जीता-हारा... | ||
जब मैं केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ता था तो बेहद शर्मीला था। मुझे किसी से नमस्ते करने में भी बहुत शर्म आती थी। गाली क्या होती है मैं जानता ही नहीं था। ‘तू’ कहने को ही गाली समझता था। जो लड़के गाली देते थे उनसे बात भी नहीं करता था। बोलने में बुरी तरह हकलाता था। हकलाने के सबसे बड़ी समस्या मेरा नाम था। मैं ‘अ’ अक्षर नहीं बोल पाता था। मेरा नाम जब पूछा जाता तो जैसे मेरे पूरा अस्तित्व हिल जाता था। मैं मन ही मन अपना नाम दोहराने लगता था। दोहराते-दोहराते अचानक ज़ोर से मैं अपना नाम बता देता था या फिर ‘मऽऽऽदित्य’ ही कह देता था। सामने वाला अपने आप कह देता था "अच्छा-अच्छा आदित्य है आपका नाम” | जब मैं केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ता था तो बेहद शर्मीला था। मुझे किसी से नमस्ते करने में भी बहुत शर्म आती थी। गाली क्या होती है मैं जानता ही नहीं था। ‘तू’ कहने को ही गाली समझता था। जो लड़के गाली देते थे उनसे बात भी नहीं करता था। बोलने में बुरी तरह हकलाता था। हकलाने के सबसे बड़ी समस्या मेरा नाम था। मैं ‘अ’ अक्षर नहीं बोल पाता था। मेरा नाम जब पूछा जाता तो जैसे मेरे पूरा अस्तित्व हिल जाता था। मैं मन ही मन अपना नाम दोहराने लगता था। दोहराते-दोहराते अचानक ज़ोर से मैं अपना नाम बता देता था या फिर ‘मऽऽऽदित्य’ ही कह देता था। सामने वाला अपने आप कह देता था "अच्छा-अच्छा आदित्य है आपका नाम” | ||
स्कूल में बड़ी क्लास के लड़के मुझे घेर कर मुझसे मेरा नाम पूछते थे और न बताने पर हँसते थे। मेरे माता-पिता ने मुझे राजकुमारों से भी ज़्यादा सुविधाओं में पाला था। तीन-चार कर्मचारी मुझे खिलाने पर ही रहते थे। दिल्ली, मथुरा, आगरा की दुक़ानों पर मेरे समय का कोई खिलौना ऐसा नहीं था जो मेरे पास न हो। दूसरी क्लास में पढ़ने जाता था तो जो विदेशी घड़ी मैं पहनता था उसकी क़ीमत 140 रुपए थी। उस समय hmt घड़ी की क़ीमत 50-60 रुपये थी। | स्कूल में बड़ी क्लास के लड़के मुझे घेर कर मुझसे मेरा नाम पूछते थे और न बताने पर हँसते थे। मेरे माता-पिता ने मुझे राजकुमारों से भी ज़्यादा सुविधाओं में पाला था। तीन-चार कर्मचारी मुझे खिलाने पर ही रहते थे। दिल्ली, मथुरा, आगरा की दुक़ानों पर मेरे समय का कोई खिलौना ऐसा नहीं था जो मेरे पास न हो। दूसरी क्लास में पढ़ने जाता था तो जो विदेशी घड़ी मैं पहनता था उसकी क़ीमत 140 रुपए थी। उस समय hmt घड़ी की क़ीमत 50-60 रुपये थी। | ||
कुछ दिन बाद मैं | कुछ दिन बाद मैं माँ के साथ कृष्णानगर (मथुरा) गया वहाँ वही लड़के मिल गए। छ:-सात लड़कों ने मुझे घेर लिया और लगे नाम पूछने, मैं नाम नहीं बता पा रहा था, तो उन्होंने मेरा नामकरण कर दिया ‘चिकना लौंडा घड़ी बाज़’। मैं कई दिनों तक उदास रहा। अपने हकलाने को लेकर मेरे भीतर हीनभावना भरने लगी। मैंने सोचा कि मुझे नाम बदल लेना चाहिए लेकिन ऐसा करने में भी मुझे शर्म महसूस होती थी। धीरे-धीर मैंने इस हकलाने वाली समस्या से लड़ना शुरु किया। एकान्त में अ अक्षर से शुरु होने वाले सभी शब्दों का बार-बार उच्चारण करता था, कुछ महीनों में अचानक मेरा हकलाना बंद हो गया। | ||
कुछ बड़ा हुआ तो एक दूसरी समस्या से जूझना पड़ा। लम्बाई हो गई छ: फ़ीट और शरीर का वज़न था मात्र 54 किलो। इसी सींकिया पहलवान से आशा जी की शादी हुई। उस वक़्त फुर्ती तो बहुत थी लेकिन शरीर में मांस का नामोनिशान नहीं था। दिल्ली रहता था तो लॉन टेनिस का शौक़ हुआ। दो महीने में ही पार्लियामेन्ट क्लब में सबसे बढ़िया खेलने लगा। पिताजी सांसद थे किन्तु उनके पास इतना पैसा नहीं था कि मेरा पंद्रह सौ रुपये महीने का ख़र्चा उठा सकते। मैंने लॉन टेनिस खेलना छोड़ दिया। | कुछ बड़ा हुआ तो एक दूसरी समस्या से जूझना पड़ा। लम्बाई हो गई छ: फ़ीट और शरीर का वज़न था मात्र 54 किलो। इसी सींकिया पहलवान से आशा जी की शादी हुई। उस वक़्त फुर्ती तो बहुत थी लेकिन शरीर में मांस का नामोनिशान नहीं था। दिल्ली रहता था तो लॉन टेनिस का शौक़ हुआ। दो महीने में ही पार्लियामेन्ट क्लब में सबसे बढ़िया खेलने लगा। पिताजी सांसद थे किन्तु उनके पास इतना पैसा नहीं था कि मेरा पंद्रह सौ रुपये महीने का ख़र्चा उठा सकते। मैंने लॉन टेनिस खेलना छोड़ दिया। | ||
… हाँ तो मेरा वज़न बहुत कम था। हमारे पुराने ड्राइवर ने, जो कि कसरत किया करता था और काफ़ी तगड़ा भी था, मुझे ज़मीन से उठाकर खाट पर डाल दिया। मैंने कहा कि छ: महीने बाद मैं भी तुमको ऐसे ही उठा कर फेंक दूँगा। उसने कहा कि छ: महीने क्या छ: साल में भी कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे। बात मुझे चुभ गई। | … हाँ तो मेरा वज़न बहुत कम था। हमारे पुराने ड्राइवर ने, जो कि कसरत किया करता था और काफ़ी तगड़ा भी था, मुझे ज़मीन से उठाकर खाट पर डाल दिया। मैंने कहा कि छ: महीने बाद मैं भी तुमको ऐसे ही उठा कर फेंक दूँगा। उसने कहा कि छ: महीने क्या छ: साल में भी कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे। बात मुझे चुभ गई। | ||
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इसके बाद थोड़ी बहुत कसरत की कोई ख़ास नहीं की… पिछले छ: सात साल से भारतकोश और ब्रजडिस्कवरी की वजह से सब छूट गया। हां एक और मज़ेदार बात कि जो लड़के मुझे बचपन में चिढ़ाया करते थे, मेरे बड़े होने पर चौधरी साब कहकर नमस्ते करने लगे, क्योंकि मैं शरीर से और सत्ता से बहुत ताक़तवर हो चुका था… बाक़ी की, दास्तान-ए-ज़िन्दगी फिर कभी सही | इसके बाद थोड़ी बहुत कसरत की कोई ख़ास नहीं की… पिछले छ: सात साल से भारतकोश और ब्रजडिस्कवरी की वजह से सब छूट गया। हां एक और मज़ेदार बात कि जो लड़के मुझे बचपन में चिढ़ाया करते थे, मेरे बड़े होने पर चौधरी साब कहकर नमस्ते करने लगे, क्योंकि मैं शरीर से और सत्ता से बहुत ताक़तवर हो चुका था… बाक़ी की, दास्तान-ए-ज़िन्दगी फिर कभी सही | ||
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; दिनांक- 22 जनवरी 2015 | |||
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पता नहीं हिन्दी भाषी लोग, हिन्दी को भी अंग्रज़ी अक्षरों में टाइप क्यों करते हैं ? हर एक डिवाइस में हिन्दी की सुविधा है फिर भी... अपनी मातृ भाषा का अपमान करने में क्या आनंद है पता नहीं ? फिर ज़रूरत क्या है इस बात पर बिगड़ने की, कि जब विदेशी हमारा अपमान करते हैं। यदि अंग्रेज़ी की लिपि इस्तेमाल करनी है तो फिर भाषा भी अंग्रेज़ी ही लिखिये ना ? अभी भी देर नहीं हुई है, कम से कम हिन्दी भाषी, भारतीय होने का प्रमाण तो दीजिए। | पता नहीं हिन्दी भाषी लोग, हिन्दी को भी अंग्रज़ी अक्षरों में टाइप क्यों करते हैं ? हर एक डिवाइस में हिन्दी की सुविधा है फिर भी... अपनी मातृ भाषा का अपमान करने में क्या आनंद है पता नहीं ? फिर ज़रूरत क्या है इस बात पर बिगड़ने की, कि जब विदेशी हमारा अपमान करते हैं। यदि अंग्रेज़ी की लिपि इस्तेमाल करनी है तो फिर भाषा भी अंग्रेज़ी ही लिखिये ना ? अभी भी देर नहीं हुई है, कम से कम हिन्दी भाषी, भारतीय होने का प्रमाण तो दीजिए। | ||
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; दिनांक- 22 जनवरी 2015 | |||
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ये जो मिरी आंखों में तैरता हुआ पानी है, | ये जो मिरी आंखों में तैरता हुआ पानी है, | ||
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यूँ ही जीते जानी है... | यूँ ही जीते जानी है... | ||
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; दिनांक- 18 जनवरी 2015 | |||
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उससे कह दो कि आ जाए पास मिरे | उससे कह दो कि आ जाए पास मिरे | ||
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जो मेरा महबूब ही नहीं है पास मिरे | जो मेरा महबूब ही नहीं है पास मिरे | ||
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; दिनांक- 15 जनवरी 2015 | |||
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आदमी अच्छा हो या बुरा हो | आदमी अच्छा हो या बुरा हो | ||
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रावण बुरा हो सकता है पर घटिया नहीं | रावण बुरा हो सकता है पर घटिया नहीं | ||
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; दिनांक- 15 जनवरी 2015 | |||
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रश्मि प्रभा जी की एक पुस्तक आने वाली है। इस पुस्तक के संबंध में मुझे भी उनकी ओर से यह सम्मान मिला कि मैं अपने विचार व्यक्त करूँ। रश्मि जी, कविवर श्री सुमित्रानंदन जी की मानसपुत्री कवियित्री सरस्वती जी की पुत्री हैं। पूरा परिवार ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न है। मुझे इंतज़ार है इस पुस्तक के छपने का, बड़ी बेसब्री से… | |||
इस पुस्तक का शीर्षक जानकर मुझे लगा कि इसमें कवियित्री के अपने जीवन से संबंधित कुछ अहसास होंगे लेकिन मैं ग़लत था। दर्शन और मनोविज्ञान जैसे बोझिल विषय को सरल-सहज गीत की तरह कहना कितना कठिन है यह कोई कृष्ण से पूछे। राममनोहर लोहिया ने लिखा है कि “सारी दुनिया में एक कृष्ण ही ऐसा हुआ जिसने दर्शन को गीत बना दिया”। अर्जुन को समझाने के लिए गीता में कृष्ण को 109 बार ‘मैं’ कहना पड़ा लेकिन माना यह जाता है कि गीता ‘मैं’ के परे है। ‘मैं से परे मैं के साथ’ कविता संग्रह में कवियित्री, अपने कॅनवस ही से निकल कर; जब ख़ुद को देखती, बातें करती, रूठती और मनती-मनाती, जैसे बहुत से उपक्रम करती है तो कविता को आगे पढ़ने का मन होने लगता है। | इस पुस्तक का शीर्षक जानकर मुझे लगा कि इसमें कवियित्री के अपने जीवन से संबंधित कुछ अहसास होंगे लेकिन मैं ग़लत था। दर्शन और मनोविज्ञान जैसे बोझिल विषय को सरल-सहज गीत की तरह कहना कितना कठिन है यह कोई कृष्ण से पूछे। राममनोहर लोहिया ने लिखा है कि “सारी दुनिया में एक कृष्ण ही ऐसा हुआ जिसने दर्शन को गीत बना दिया”। अर्जुन को समझाने के लिए गीता में कृष्ण को 109 बार ‘मैं’ कहना पड़ा लेकिन माना यह जाता है कि गीता ‘मैं’ के परे है। ‘मैं से परे मैं के साथ’ कविता संग्रह में कवियित्री, अपने कॅनवस ही से निकल कर; जब ख़ुद को देखती, बातें करती, रूठती और मनती-मनाती, जैसे बहुत से उपक्रम करती है तो कविता को आगे पढ़ने का मन होने लगता है। | ||
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जहाँ तक इन पंक्तियों को लिखने की बात है वह ये है कि रश्मि प्रभा जी से मेरा कोई व्यक्ति परिचय नहीं है। फ़ेसबुक पर उनकी कविताएँ पढ़ीं और बहुत अच्छी लगीं। इन कविताओं की गहराई ही कारण बना इन पंक्तियों को लिखने का... | जहाँ तक इन पंक्तियों को लिखने की बात है वह ये है कि रश्मि प्रभा जी से मेरा कोई व्यक्ति परिचय नहीं है। फ़ेसबुक पर उनकी कविताएँ पढ़ीं और बहुत अच्छी लगीं। इन कविताओं की गहराई ही कारण बना इन पंक्तियों को लिखने का... | ||
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; दिनांक- 14 जनवरी 2015 | |||
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प्रेम पर कुछ पोस्ट आईं कुछ कमेंट आए, तो मैंने भी कुछ लिख दिया... | प्रेम पर कुछ पोस्ट आईं कुछ कमेंट आए, तो मैंने भी कुछ लिख दिया... | ||
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हीर-रांझा, सोहणी-महिवाल, लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट आदि सारी प्रेम कहानी इसलिए मशहूर हैं क्यों कि प्रेमी मिल नहीं पाए। असल मे प्रेम का कहानी बनने का अर्थ ही न मिल पाना है। मिल गए तो हैप्पी एन्डिंग, अब ज़रा सोचिए प्रेम में कहीं हैप्पी एन्डिंग होती है ? | हीर-रांझा, सोहणी-महिवाल, लैला-मजनू, रोमियो-जूलियट आदि सारी प्रेम कहानी इसलिए मशहूर हैं क्यों कि प्रेमी मिल नहीं पाए। असल मे प्रेम का कहानी बनने का अर्थ ही न मिल पाना है। मिल गए तो हैप्पी एन्डिंग, अब ज़रा सोचिए प्रेम में कहीं हैप्पी एन्डिंग होती है ? | ||
कभी प्रेमिका के चांटे में प्रेम होता तो कभी प्रेमी की डांट में… । कभी उल्टे जवाब में प्रेम होता है। प्रेमिका ने पूछा “मैं तुमसे शादी करूँगी पर तुम्हारी | कभी प्रेमिका के चांटे में प्रेम होता तो कभी प्रेमी की डांट में… । कभी उल्टे जवाब में प्रेम होता है। प्रेमिका ने पूछा “मैं तुमसे शादी करूँगी पर तुम्हारी माँ का कोई काम नहीं करूँगी बोलो क्या कहते हो?” प्रेमी ने कहा “तो फिर मुझे नहीं करनी तुमसे शादी” इस पर प्रेमिका बोली “तुम सचमुच मेरे योग्य हो, अब तो मैं तुमसे ही शादी करूँगी” | ||
अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी देखें… | अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी देखें… | ||
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किसी को ईश्वर मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे में मिलता है। किसी को सत्य अपने कर्म में मिलता है। किसी को प्रेम, प्रेमी/ प्रेमिका या पति-पत्नी में मिलता है। यह तो मन की मौज है, जहाँ मिले ले लो… | किसी को ईश्वर मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे में मिलता है। किसी को सत्य अपने कर्म में मिलता है। किसी को प्रेम, प्रेमी/ प्रेमिका या पति-पत्नी में मिलता है। यह तो मन की मौज है, जहाँ मिले ले लो… | ||
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; दिनांक- 13 जनवरी 2015 | |||
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मेरी सभी भारतवासियों से अपील है कि चार बच्चे पैदा करें। | मेरी सभी भारतवासियों से अपील है कि चार बच्चे पैदा करें। | ||
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एक को हिन्दू, एक को मुसलमान, एक को सिख और एक को ईसाई बनाएँ। इसी के साथ पति या पत्नी में से एक बौद्ध हो जाए... इसके बाद भी हिन्दू धर्म को कोई हानि नहीं होगी। हिन्दू धर्म में सभी धर्मों को आत्मसात करने और तादात्म बैठाने की अद्भुत क्षमता है। | एक को हिन्दू, एक को मुसलमान, एक को सिख और एक को ईसाई बनाएँ। इसी के साथ पति या पत्नी में से एक बौद्ध हो जाए... इसके बाद भी हिन्दू धर्म को कोई हानि नहीं होगी। हिन्दू धर्म में सभी धर्मों को आत्मसात करने और तादात्म बैठाने की अद्भुत क्षमता है। | ||
भारत को यदि | भारत को यदि महान् मानते हैं तो इसे महान् ही बना रहने दें। किसी एक ही धर्म के लोगों का श्मशान न बनाएँ। | ||
जो ये मानते हैं कि हिन्दू धर्म को ख़तरा है तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोग हिन्दू धर्म की उत्सव-उल्लास की संस्कृति को सहज ही अपनाते हैं। यहाँ आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। | जो ये मानते हैं कि हिन्दू धर्म को ख़तरा है तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोग हिन्दू धर्म की उत्सव-उल्लास की संस्कृति को सहज ही अपनाते हैं। यहाँ आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। | ||
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हिन्दू धर्म को जब, 50 वर्ष शासन करके, औरंगज़ेब नहीं नष्ट कर पाया तो ये टटपूंजिए आतंकवादी क्या बिगाड़ लेंगे। हमारी महानता देखिए कि आज भी दिल्ली में औरंगज़ेब के नाम पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है। साथ ही यह भी ग़ौर फ़रमांएँ कि भारत में मुस्लिम मांएँ अपने बेटे का नाम औरंगज़ेब नहीं रखतीं। | हिन्दू धर्म को जब, 50 वर्ष शासन करके, औरंगज़ेब नहीं नष्ट कर पाया तो ये टटपूंजिए आतंकवादी क्या बिगाड़ लेंगे। हमारी महानता देखिए कि आज भी दिल्ली में औरंगज़ेब के नाम पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है। साथ ही यह भी ग़ौर फ़रमांएँ कि भारत में मुस्लिम मांएँ अपने बेटे का नाम औरंगज़ेब नहीं रखतीं। | ||
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; दिनांक- 12 जनवरी 2015 | |||
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ये कहानी ठीक वैसे ही शुरू होती है जैसे कि एक ज़माने में चंदामामा, नंदन और पराग में हुआ करती थी। एक गाँव में एक रघु नाम का लकड़हारा रहता था। जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता और गाँव में बेच कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता। एक दिन जंगल में उसे किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी, देखा तो एक बहुत तगड़ा शेर पैर में कील चुभ जाने के कारण दर्द से कराह रहा था। | ये कहानी ठीक वैसे ही शुरू होती है जैसे कि एक ज़माने में चंदामामा, नंदन और पराग में हुआ करती थी। एक गाँव में एक रघु नाम का लकड़हारा रहता था। जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता और गाँव में बेच कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता। एक दिन जंगल में उसे किसी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी, देखा तो एक बहुत तगड़ा शेर पैर में कील चुभ जाने के कारण दर्द से कराह रहा था। | ||
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इस कहानी का जुड़ाव भारतकोश बनाने से है। मथुरा-वृन्दावन में अक्सर अंग्रेज़ पर्यटक मिल जाते हैं। एक बार बातों ही बातों में भारत के इतिहास पर चर्चा शुरू हो गयी। मैंने और मेरे मित्र ने कहा कि हम इंटरनेट पर भारत का एन्साक्लोपीडिया बनाने की सोच रहे हैं, तो उसने कहा कि आपका इतिहास तो हम अंग्रेज़ों ने लिखा है और आपका एन्साक्लोपीडिया इंटरनेट पर भी अंग्रेज़ ही बनाएँगे। ये आपके बस की बात नहीं है। बस यही बात मुझे चुभ गयी और भारतकोश का काम शुरू हो गया… | इस कहानी का जुड़ाव भारतकोश बनाने से है। मथुरा-वृन्दावन में अक्सर अंग्रेज़ पर्यटक मिल जाते हैं। एक बार बातों ही बातों में भारत के इतिहास पर चर्चा शुरू हो गयी। मैंने और मेरे मित्र ने कहा कि हम इंटरनेट पर भारत का एन्साक्लोपीडिया बनाने की सोच रहे हैं, तो उसने कहा कि आपका इतिहास तो हम अंग्रेज़ों ने लिखा है और आपका एन्साक्लोपीडिया इंटरनेट पर भी अंग्रेज़ ही बनाएँगे। ये आपके बस की बात नहीं है। बस यही बात मुझे चुभ गयी और भारतकोश का काम शुरू हो गया… | ||
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; दिनांक- 11 जनवरी 2015 | |||
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माइकल एंजेलो की मशहूर कृति है यह। जीसस के शांत शरीर को सूली से उतारने के बाद मदर मॅरी की गोद मिली। बेटे का परम सौभाग्य और | माइकल एंजेलो की मशहूर कृति है यह। जीसस के शांत शरीर को सूली से उतारने के बाद मदर मॅरी की गोद मिली। बेटे का परम सौभाग्य और माँ का परम दु:ख। इस कृति ला नाम ‘पीता’ (Pieta) है लॅटिन में इसका अर्थ है कर्तव्य परायणता। | ||
जवान पुत्र के मृत शरीर को गोद में लिए बैठी | जवान पुत्र के मृत शरीर को गोद में लिए बैठी माँ के लिए ये क्षण पीड़ा, दु:ख,अवसाद आदि से कहीं बढ़कर हैं। इसलिए मदर मॅरी के चेहरे पर कोई भाव नहीं है। जब मैंने इस कृति को पहली बार देखा तो आँखों से निरंतर आँसू बहते रहे... | ||
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; दिनांक- 11 जनवरी 2015 | |||
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सुन ! | सुन ! | ||
पंक्ति 221: | पंक्ति 209: | ||
यह प्यार नहीं व्यापार है...) | यह प्यार नहीं व्यापार है...) | ||
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; दिनांक- 11 जनवरी 2015 | |||
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हक़ीक़त ! | हक़ीक़त ! | ||
पंक्ति 233: | पंक्ति 220: | ||
ये सब सोचना है बेकार... | ये सब सोचना है बेकार... | ||
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; दिनांक- 10 जनवरी 2015 | |||
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प्रचारम् ब्रह्मास्मि ! | प्रचारम् ब्रह्मास्मि ! | ||
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अब जब वो प्रचार के दायरे में आ गए और उनके साथ अनेक अंधविश्वास जुड़ गए तब हम कहते हैं कि भई सचमुच ही भगवान हैं। यदि भगवान पहले हुए तो अब भी तो होंगे ? कहां हैं वो ? सच बात तो ये है कि उनको पहचाना नहीं जा रहा है… वो यहीं कहीं हैं हमारे अास-पास हैं पर हम उन्हें साधारण, पागल, झक्की, सनकी या अव्यावहारिक कहकर ख़ारिज करते रहते हैं। | अब जब वो प्रचार के दायरे में आ गए और उनके साथ अनेक अंधविश्वास जुड़ गए तब हम कहते हैं कि भई सचमुच ही भगवान हैं। यदि भगवान पहले हुए तो अब भी तो होंगे ? कहां हैं वो ? सच बात तो ये है कि उनको पहचाना नहीं जा रहा है… वो यहीं कहीं हैं हमारे अास-पास हैं पर हम उन्हें साधारण, पागल, झक्की, सनकी या अव्यावहारिक कहकर ख़ारिज करते रहते हैं। | ||
मैं न तो संत हूँ न कोई भगवान, मैं तो एक बहुत साधारण इंसान हूँ। कम से कम दिल की बात कहना चाहूँ तो मुझे बोलने से रोका क्यों जाता है। क्यों चाहते हैं आप कि मैं घुटता रहूँ और वह बोलूँ जो कि आप सुनना चाहते हैं। मैं समझ सकता हूँ जब मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति पर इतनी वर्जनाएँ लगाई जा रही हैं तो इन | मैं न तो संत हूँ न कोई भगवान, मैं तो एक बहुत साधारण इंसान हूँ। कम से कम दिल की बात कहना चाहूँ तो मुझे बोलने से रोका क्यों जाता है। क्यों चाहते हैं आप कि मैं घुटता रहूँ और वह बोलूँ जो कि आप सुनना चाहते हैं। मैं समझ सकता हूँ जब मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति पर इतनी वर्जनाएँ लगाई जा रही हैं तो इन महान् संतों पर तो समाज का कहर बरपा होगा। | ||
ज़रा मेरी भी सुनिए... | ज़रा मेरी भी सुनिए... | ||
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तो हे मेरे मित्रो ! मैं बिना प्रचारित हुए ही जीने का आनंद लेना चाहता हूँ। मुझे कुछ तथाकथित सफल लोगों की तरह; महान, ज़हीन, सभ्य, सुसंस्कृत, विद्वान, गरिमामयी आदि नहीं बनना है और ना ही मैं बन सकता हूँ इसलिए मुझे, जैसा मैं हूँ वैसा ही रहने दें… इस ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी पोस्ट को पढ़ने के लिए बहुत धन्यवाद! <nowiki> www.bharatkosh.org</nowiki> पर अपना स्नेह बनाए रखिए... | तो हे मेरे मित्रो ! मैं बिना प्रचारित हुए ही जीने का आनंद लेना चाहता हूँ। मुझे कुछ तथाकथित सफल लोगों की तरह; महान, ज़हीन, सभ्य, सुसंस्कृत, विद्वान, गरिमामयी आदि नहीं बनना है और ना ही मैं बन सकता हूँ इसलिए मुझे, जैसा मैं हूँ वैसा ही रहने दें… इस ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी पोस्ट को पढ़ने के लिए बहुत धन्यवाद! <nowiki> www.bharatkosh.org</nowiki> पर अपना स्नेह बनाए रखिए... | ||
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; दिनांक- 10 जनवरी 2015 | |||
[[चित्र:Aditya-Chaudhary-facebook-post-60.jpg|250px|right]] | |||
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कहते हैं कि शिकायत कमज़ोर लोग किया करते हैं… मगर फिर भी… | कहते हैं कि शिकायत कमज़ोर लोग किया करते हैं… मगर फिर भी… | ||
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यादें | यादें | ||
सपने | सपने | ||
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; दिनांक- 7 जनवरी 2015 | |||
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किसान विरुद्ध भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में | किसान विरुद्ध भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में | ||
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सिंहासन भस्म हुए समझो | सिंहासन भस्म हुए समझो | ||
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; दिनांक- 7 जनवरी 2015 | |||
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मुझे 12 साल की उम्र में ही ब्रोंकल अस्थमा हो गया था। उस समय आज जैसे इलाज नहीं थे। कई-कई रातों को पूरी-पूरी रात बैठके गुज़ारता था। पूरा घर सोया होता था मैं अकेला अपने कमरे में जगा बैठा रहता था। बैठे-बैठे ही नींद भी आ जाती थी और नहीं भी… | मुझे 12 साल की उम्र में ही ब्रोंकल अस्थमा हो गया था। उस समय आज जैसे इलाज नहीं थे। कई-कई रातों को पूरी-पूरी रात बैठके गुज़ारता था। पूरा घर सोया होता था मैं अकेला अपने कमरे में जगा बैठा रहता था। बैठे-बैठे ही नींद भी आ जाती थी और नहीं भी… | ||
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बार बार | बार बार | ||
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; दिनांक- 7 जनवरी 2015 | |||
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मसला-ए-मुहब्बत में | मसला-ए-मुहब्बत में | ||
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कि कमबख़्त दिल से | कि कमबख़्त दिल से | ||
डेढ़ फ़ुट ऊपर दिमाग़ है | डेढ़ फ़ुट ऊपर दिमाग़ है | ||
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; दिनांक- 7 जनवरी 2015 | |||
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यह post एक बिटिया के लिए जिसे नारी शक्ति (नारी विमर्श) पर लेख लिखना है। | यह post एक बिटिया के लिए जिसे नारी शक्ति (नारी विमर्श) पर लेख लिखना है। | ||
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फ़िल्म क्वीन का एक दृश्य याद कीजिए जिसमें शारीरिक रूप से अशक्त जैसी दिखने वाली नायिका का पर्स छीनने का प्रयास एक बलिष्ठ ग़ुंडा करता है। नायिका किसी तरह की जूडो-कराटे आदि न करके केवल अपना पर्स नहीं छोड़ती और ग़ुंडा नाक़ाम हो जाता है। | फ़िल्म क्वीन का एक दृश्य याद कीजिए जिसमें शारीरिक रूप से अशक्त जैसी दिखने वाली नायिका का पर्स छीनने का प्रयास एक बलिष्ठ ग़ुंडा करता है। नायिका किसी तरह की जूडो-कराटे आदि न करके केवल अपना पर्स नहीं छोड़ती और ग़ुंडा नाक़ाम हो जाता है। | ||
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; दिनांक- 6 जनवरी 2015 | |||
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आजकल ख़ुद से मुलाक़ात करने की बहुत कोशिश कर रहा हूँ। | आजकल ख़ुद से मुलाक़ात करने की बहुत कोशिश कर रहा हूँ। | ||
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इस तरहा कब तलक ख़ुद के ख़िलाफ़ लड़ लेगा... | इस तरहा कब तलक ख़ुद के ख़िलाफ़ लड़ लेगा... | ||
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; दिनांक- 3 जनवरी 2015 | |||
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धर्म; प्रेम, उत्सव, उल्लास, स्वतंत्रता का कारण होना चाहिए। गहराई से न देखकर यदि यूँ ही एक नज़र डालें तो पाएँगे कि धर्म; विद्वेष, कठोर वर्जनाओं, नीरस प्रार्थनाओं और हिंसाओं का कारण बन गया है। कहने के लिए, धार्मिक व्यक्ति होने को तो बहुत हैं लेकिन सही मायनों में धार्मिक बहुत ही कम होते हैं। | धर्म; प्रेम, उत्सव, उल्लास, स्वतंत्रता का कारण होना चाहिए। गहराई से न देखकर यदि यूँ ही एक नज़र डालें तो पाएँगे कि धर्म; विद्वेष, कठोर वर्जनाओं, नीरस प्रार्थनाओं और हिंसाओं का कारण बन गया है। कहने के लिए, धार्मिक व्यक्ति होने को तो बहुत हैं लेकिन सही मायनों में धार्मिक बहुत ही कम होते हैं। | ||
धर्म एक कर्तव्य बन गया, जबकि यह कर्तव्य नहीं बल्कि करुणा और ममत्व होना चाहिए। हम कोई, धर्म की नौकरी नहीं कर रहे जो धर्म के प्रति कर्तव्यनिष्ठ हो जाएँ। | धर्म एक कर्तव्य बन गया, जबकि यह कर्तव्य नहीं बल्कि करुणा और ममत्व होना चाहिए। हम कोई, धर्म की नौकरी नहीं कर रहे जो धर्म के प्रति कर्तव्यनिष्ठ हो जाएँ। माँ अपने बच्चे को पालने में अपना कोई कर्तव्य नहीं पूरा करती। वह तो बस बिना प्रयास यह स्वत: ही करती है, करती भी नहीं बल्कि स्वत: ही ‘होता’ है। | ||
मुझे अनेक, धार्मिक व्यक्तियों से मिलकर ऐसा नहीं लगता कि मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिल रहा हूँ जिसमें प्रेम, करुणा, ममत्व और उत्सव भरपूर मात्रा में समाहित हैं। याने उसका जीवन सहज प्रेम से भरा हुआ है। ऐसा धार्मिक होने का अर्थ क्या? | मुझे अनेक, धार्मिक व्यक्तियों से मिलकर ऐसा नहीं लगता कि मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिल रहा हूँ जिसमें प्रेम, करुणा, ममत्व और उत्सव भरपूर मात्रा में समाहित हैं। याने उसका जीवन सहज प्रेम से भरा हुआ है। ऐसा धार्मिक होने का अर्थ क्या? | ||
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यहाँ एक बात और बता दूँ जो कि महत्वपूर्ण है। प्रेमी प्रेमिका विवाह होने पर बदल क्यों जाते हैं ? इसका कारण भी कर्तव्य है। कर्तव्य के अस्तित्व में आते ही प्रेम विदा हो जाता है। यदि पति पत्नी एक दूसरे के कर्तव्यनिष्ठ न हो जाएँ, तो प्रेम जीवनभर बना रहेगा। इसलिए कर्तव्यनिष्ठ नहीं प्रेमनिष्ठ बनिए। | यहाँ एक बात और बता दूँ जो कि महत्वपूर्ण है। प्रेमी प्रेमिका विवाह होने पर बदल क्यों जाते हैं ? इसका कारण भी कर्तव्य है। कर्तव्य के अस्तित्व में आते ही प्रेम विदा हो जाता है। यदि पति पत्नी एक दूसरे के कर्तव्यनिष्ठ न हो जाएँ, तो प्रेम जीवनभर बना रहेगा। इसलिए कर्तव्यनिष्ठ नहीं प्रेमनिष्ठ बनिए। | ||
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; दिनांक- 3 जनवरी 2015 | |||
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प्रिय मित्रो! पर्यावरण से संबंधित मेरी एक कविता… | प्रिय मित्रो! पर्यावरण से संबंधित मेरी एक कविता… | ||
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इस धरती की जान बचा ले | इस धरती की जान बचा ले | ||
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; दिनांक- 2 जनवरी 2015 | |||
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मैंने कभी अपनी ज़िन्दगी को अहमियत नहीं दी। शायद इसीलिए ज़िन्दगी मेरे हाथ से हर बार फिसल जाती है… | मैंने कभी अपनी ज़िन्दगी को अहमियत नहीं दी। शायद इसीलिए ज़िन्दगी मेरे हाथ से हर बार फिसल जाती है… | ||
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; दिनांक- 2 जनवरी 2015 | |||
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केशी घाट गया था। ज़हर बन चुके यमुना जल से लोग आचमन कर रहे थे। इसमें बंदर भी शामिल हुआ तो मैंने फ़ोन से क्लिक कर लिया... | केशी घाट गया था। ज़हर बन चुके यमुना जल से लोग आचमन कर रहे थे। इसमें बंदर भी शामिल हुआ तो मैंने फ़ोन से क्लिक कर लिया... | ||
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; दिनांक- 1 जनवरी 2015 | |||
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मैं समय हूँ, काल हूँ मैं | मैं समय हूँ, काल हूँ मैं | ||
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संग मैं संग्राम में हूँ | संग मैं संग्राम में हूँ | ||
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; दिनांक- 1 जनवरी 2015 | |||
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मैं हर साल ऐसा सोचता हूँ कि | मैं हर साल ऐसा सोचता हूँ कि | ||
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चिकना घड़ा हूँ... | चिकना घड़ा हूँ... | ||
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; दिनांक- 1 जनवरी 2015 | |||
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नए साल की सर्द हवाओ ! | नए साल की सर्द हवाओ ! | ||
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बहुत याद करता रहता हूँ… | बहुत याद करता रहता हूँ… | ||
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14:16, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
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