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'''क''' [[देवनागरी वर्णमाला]] का पहला [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] तथा क वर्ग का पहला वर्ण है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कंठ्य (कोमल तालव्य), स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है। ‘क’ का [[महाप्राण व्यंजन|महाप्राण]] रूप ‘ख’ है। [[अरबी भाषा|अरबी]] से आया ‘क़’, जो हिंदी में प्राय: ‘क’ भी बोला और लिखा जाता है (जैसे—क़लम/कलम), जिह्वमूलीय, स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है।  
'''क''' [[देवनागरी वर्णमाला]] का पहला [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] तथा क वर्ग का पहला वर्ण है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह [[कण्ठ्य व्यंजन|कंठ्य]] (कोमल तालव्य), स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है। ‘क’ का [[महाप्राण व्यंजन|महाप्राण]] रूप ‘ख’ है। [[अरबी भाषा|अरबी]] से आया ‘क़’, जो हिंदी में प्राय: ‘क’ भी बोला और लिखा जाता है (जैसे—क़लम/कलम), जिह्वमूलीय, स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है।  
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# ‘क’ का प्रयोग शब्द के आरम्भ, मध्य और अंत (तीनों में) होता है (क्या, वाक्य, वाक्)।  
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# ‘क’ से पहले आकर मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (कल्क, खुश्क, शुष्क, वयस्क); परंतु पहले आकर मिलने वाला ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर जाकर सन्युक्त रूप ‘र्क’ बनाता है (जैसे- कर्क, तर्क)।
# ‘क’ से पहले आकर मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (कल्क, खुश्क, शुष्क, वयस्क); परंतु पहले आकर मिलने वाला ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर जाकर सन्युक्त रूप ‘र्क’ बनाता है (जैसे- कर्क, तर्क)।
# [ [[संस्कृत]] (धातु) कच् + ड ] [[पुल्लिंग]]- 1. ब्रह्म। 2. आत्मा। 3. विष्णु। 4. अग्नि। 5. वायु। 6. शब्द। 7. पुष्प। फूल। 8. कामदेव। 9. सूर्य। 10. यमराज। 11. प्रजापति। 12. राजा। 13. काल। समय। 14. मेघ। बादल। 15. पक्षी। 16. मयूर। मोर। 17. गरुड़। 18. मन। 19. शरीर। 20. स्वर्ण। सोना।
# [ [[संस्कृत]] (धातु) कच् + ड ] [[पुल्लिंग]]- 1. ब्रह्म। 2. आत्मा। 3. विष्णु। 4. अग्नि। 5. वायु। 6. शब्द। 7. पुष्प। फूल। 8. कामदेव। 9. सूर्य। 10. यमराज। 11. प्रजापति। 12. राजा। 13. काल। समय। 14. मेघ। बादल। 15. पक्षी। 16. मयूर। मोर। 17. गरुड़। 18. मन। 19. शरीर। 20. स्वर्ण। सोना।
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# [ संस्कृत (धातु) कै + ड ] पुल्लिंग-  1. प्रसन्नता। हर्ष। 2. केश। बाल। 3. जल। पानी।<ref>पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 488</ref>
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08:14, 17 अगस्त 2021 के समय का अवतरण

विवरण देवनागरी वर्णमाला का पहला व्यंजन तथा क वर्ग का पहला वर्ण है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कंठ्य (कोमल तालव्य), स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है।
द्वित्व ‘क’ का द्वित्व भी होता है और उसे ‘क्क’ लिखा जाता है जैसे- पक्का, शक्की।
व्याकरण [ संस्कृत (धातु) कच् + ड ] पुल्लिंग- ब्रह्म, आत्मा, विष्णु, अग्नि, वायु, शब्द, पुष्प, फूल आदि।
विशेष अरबी से आया ‘क़’, जो हिंदी में प्राय: ‘क’ भी बोला और लिखा जाता है (जैसे—क़लम/कलम), जिह्वमूलीय, स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है।
संबंधित लेख , , ,
अन्य जानकारी ‘क’ से पहले आकर मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (कल्क, खुश्क, शुष्क, वयस्क); परंतु पहले आकर मिलने वाला ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर जाकर सन्युक्त रूप ‘र्क’ बनाता है (जैसे- कर्क, तर्क)।

देवनागरी वर्णमाला का पहला व्यंजन तथा क वर्ग का पहला वर्ण है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कंठ्य (कोमल तालव्य), स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है। ‘क’ का महाप्राण रूप ‘ख’ है। अरबी से आया ‘क़’, जो हिंदी में प्राय: ‘क’ भी बोला और लिखा जाता है (जैसे—क़लम/कलम), जिह्वमूलीय, स्पर्श, अल्पप्राण और अघोष है।

विशेष-
  1. ‘क’ का प्रयोग शब्द के आरम्भ, मध्य और अंत (तीनों में) होता है (क्या, वाक्य, वाक्)।
  2. ‘क्’ के अनेक सन्युक्त रूप (अर्थात् व्यंजन् – गुच्छ) सम्भव हैं।
  3. ‘क’ का द्वित्व भी होता है और उसे ‘क्क’ लिखा जाता है (पक्का, शक्की)
  4. ‘क्’ अपने बाद के व्यंजन से प्राय: ‘क्’ रूप में मिलता है (युक्त, वाक्य, हुक्म) परंतु ‘र’ से मिलने पर सन्युक्त रूप ‘क्र’ प्रयुक्त होता है (चक्र, क्रम, विक्रेता); ‘ष’ से मिलने पर सन्युक्त रूप ‘क्ष’ प्रयुक्त होता है (यक्ष, कक्षा, पक्षी, क्षेम, लक्ष्य)।
  5. ‘क’ से पहले आकर मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (कल्क, खुश्क, शुष्क, वयस्क); परंतु पहले आकर मिलने वाला ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर जाकर सन्युक्त रूप ‘र्क’ बनाता है (जैसे- कर्क, तर्क)।
  6. [ संस्कृत (धातु) कच् + ड ] पुल्लिंग- 1. ब्रह्म। 2. आत्मा। 3. विष्णु। 4. अग्नि। 5. वायु। 6. शब्द। 7. पुष्प। फूल। 8. कामदेव। 9. सूर्य। 10. यमराज। 11. प्रजापति। 12. राजा। 13. काल। समय। 14. मेघ। बादल। 15. पक्षी। 16. मयूर। मोर। 17. गरुड़। 18. मन। 19. शरीर। 20. स्वर्ण। सोना।
  7. [ संस्कृत (धातु) कै + ड ] पुल्लिंग- 1. प्रसन्नता। हर्ष। 2. केश। बाल। 3. जल। पानी।[1]

क की बारहखड़ी

का कि की कु कू के कै को कौ कं कः

क अक्षर वाले शब्द


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 488

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