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|अन्य जानकारी= व्यंजन-गुच्छों में जब 'ल' से मिलता है तब 'ल' यथावत् रहता है और वह व्यंजन अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलता है। जैसे- शुक्ल, क़त्ल, अम्ल, नस्ल परंतु 'र' रेफ़ के रूप में शिरोरेखा के ऊपर जाती है। जैसे- कार्ल, गर्ल। 'ल' का द्वित्व होने पर 'ल्ल्' लिखा जाता है। जैसे- मल्ल। | |अन्य जानकारी= व्यंजन-गुच्छों में जब 'ल' से मिलता है तब 'ल' यथावत् रहता है और वह व्यंजन अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलता है। जैसे- शुक्ल, क़त्ल, अम्ल, नस्ल परंतु 'र' रेफ़ के रूप में शिरोरेखा के ऊपर जाती है। जैसे- कार्ल, गर्ल। 'ल' का द्वित्व होने पर 'ल्ल्' लिखा जाता है। जैसे- मल्ल। | ||
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14:29, 8 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
ल
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विवरण | ल देवनागरी वर्णमाला में अंत:स्थ वर्ग का तीसरा व्यंजन है। |
भाषाविज्ञान की दृष्टि से | यह वर्त्स्य (दन्त्य), घोष, पार्श्विक और अल्पप्राण है। इसका महाप्राण रूप 'ल्ह' मानक हिंदी में नहीं है परंतु कुछ बोलियों में मिलता है। जैसे- अल्हड़। |
व्याकरण | [ संस्कृत (धातु) ली + ड ] पुल्लिंग- इंद्र। ह्रस्व मात्रा या लघु वर्ण। |
विशेष | संस्कृत में विद्यमान 'लृ' स्वर हिंदी में नहीं हैं और संस्कृत में यह संधि नियमानुसार 'ल' में बदल जाता है। 'ल' स्वर और व्यंजन के मध्य में स्थित होने से अंत:स्थ वर्ण है। |
संबंधित लेख | य, र, व, श, ष, स, ह |
अन्य जानकारी | व्यंजन-गुच्छों में जब 'ल' से मिलता है तब 'ल' यथावत् रहता है और वह व्यंजन अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलता है। जैसे- शुक्ल, क़त्ल, अम्ल, नस्ल परंतु 'र' रेफ़ के रूप में शिरोरेखा के ऊपर जाती है। जैसे- कार्ल, गर्ल। 'ल' का द्वित्व होने पर 'ल्ल्' लिखा जाता है। जैसे- मल्ल। |
ल देवनागरी वर्णमाला में अंत:स्थ वर्ग का तीसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह वर्त्स्य (दन्त्य), घोष, पार्श्विक और अल्पप्राण है। इसका महाप्राण रूप 'ल्ह' मानक हिंदी में नहीं है परंतु कुछ बोलियों में मिलता है। जैसे- अल्हड़। संस्कृत में विद्यमान 'लृ' स्वर हिंदी में नहीं हैं और संस्कृत में यह संधि नियमानुसार 'ल' में बदल जाता है। 'ल' स्वर और व्यंजन के मध्य में स्थित होने से अंत:स्थ वर्ण है।
- विशेष-
- 'ल', 'ला' इत्यादि के अनुनासिक रूप लँ, लाँ, लिँ, लीँ इत्यादि होते हैं परंतु शिरोरेखा के ऊपर कोई मात्रा लगी होने पर चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु लगाने की रीति सुविधार्थ प्रचलित है (लिँ > लिं, लीँ > लीं, लेँ > लें)।
- व्यंजन-गुच्छों में जब 'ल' से मिलता है तब 'ल' यथावत् रहता है और वह व्यंजन अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलता है। जैसे- शुक्ल, क़त्ल, अम्ल, नस्ल परंतु 'र' रेफ़ के रूप में शिरोरेखा के ऊपर जाती है। जैसे- कार्ल, गर्ल। 'ल' का द्वित्व होने पर 'ल्ल्' लिखा जाता है (मल्ल)।
- भाषा वैज्ञानिक कारणों से शब्दों में 'ल' और 'र' का परस्पर परिवर्तन हो जाता है (कवल > कौर, श्रृगाल > सियार, हरिद्रा > हल्दी, पत्र > पत्तल, करीर > करील, लोम > रोम।
- देवनागरी वर्णमाला का 'ळ' वर्ण हिंदी में नहीं है और उससे युक्त संस्कृत, मराठी आदि के शब्दों के, ळ का प्राय: 'ल' या 'ड' में परिवर्तन हो जाता है (अग्निमीळे - अग्निमीले / अग्निमीडे)।
- 'ल' का कभी-कभी 'ड' या 'ड़' में परिवर्तन कुछ शब्दों में हो जाता है।
- [ संस्कृत (धातु) ली + ड ] पुल्लिंग- इंद्र। ह्रस्व मात्रा या लघु वर्ण।[1]
ल की बारहखड़ी
ल | ला | लि | ली | लु | लू | ले | लै | लो | लौ | लं | लः |
ल अक्षर वाले शब्द
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2142
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