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हिन्दू चिन्तन की छ: प्रणालियाँ प्रचलित हैं। वे 'दर्शन' कहलाती हैं, क्योंकि वे विश्व को देखने और समझने की दृष्टि या विचार प्रस्तुत करती हैं। उनके तीन युग्म हैं, क्योंकि प्रत्येक युग्म में कुछ विचारों का साम्य परिलक्षित होता है। पहला युग्म मीमांसा कहलाता है, जिसका सम्बन्ध वेदों से है। मीमांसा का अर्थ है कि खोह, छानबीन अथवा अनुसंधान। मीमांसायुग्म का पूर्व भाग, जिसे पूर्व मीमांसा कहते हैं, वेद के याज्ञिक रूप (कर्मकाण्ड) के विवेचन का शास्त्र है।

  • पूर्व मीमांसा को कर्मकांड भी कहा जाता है।
  • पूर्व मीमांसा की स्थापना करते हुए जैमिनी ने निरीश्वरवाद, बहुदेववाद तथा कर्मकांड का योग प्रस्तुत किया। उन्होंने नित्यनैमित्तिक कर्मों के साथ-साथ निषद्ध कर्मों पर भी विचार किया। उन्होंने आत्मा को अजर-अमर तथा वेदों को अपौरुषेय माना। ब्राह्य जगत का आख्यान तीन घटकों के रूप में किया-
  1. शरीर
  2. इन्द्रियां तथा
  3. विषय। उनके अनुसार अभीष्ट तत्त्व मोक्ष है। मोक्ष का अभिप्राय आत्मज्ञान से है।



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