"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट": अवतरणों में अंतर
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इसी मैदान में उस शख़्स को फाँसी लगी होगी | |||
तमाशा देखने को भीड़ भी काफ़ी लगी होगी | |||
जिन्हें आज़ाद करने की ग़रज़ से जान पर खेला | |||
उन्हीं को चंद रोज़ों में ख़बर बासी लगी होगी | |||
बड़े सरकार आए हैं, यहाँ पौधा लगाएँगे | |||
हटाने धूल को मुद्दत में अब झाडू लगी होगी | |||
शहर में लोग ज़्यादा हैं जगह रहने की भी कम है | |||
इसी को सोचकर मैदान की बोली लगी होगी | |||
यहाँ तो ज़ात और मज़हब आ अब बाज़ार लगता है | |||
उसे अपनी शहादत ही बहुत फीकी लगी होगी | |||
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| 21 अप्रॅल, 2014 | |||
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लहू बहता है तो कहना कि पसीना होगा | |||
न जाने कब तलक इस दौर में जीना होगा | |||
'छलक ना' जाय सरे शाम कहीं महफ़िल में | |||
ये जाम-ए-सब्र तो हर हाल में पीना होगा | |||
यूँ तो अहसास भी कम है चुभन का ज़ख़्मों की | |||
तूने जो चाक़ किया तो हमें सीना होगा | |||
अब तो उम्मीद भी ठोकर की तरह दिखती है | |||
करना बदनाम यूँ किस्मत को सही ना होगा | |||
यही वो शख़्स जो कुर्सी पे जाके बैठेगा | |||
वक़्त आने पे वो तेरा कभी ना होगा | |||
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| 21 अप्रॅल, 2014 | |||
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14:56, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण
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