"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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इसी को सोचकर मैदान की बोली लगी होगी | इसी को सोचकर मैदान की बोली लगी होगी | ||
यहाँ तो ज़ात और मज़हब | यहाँ तो ज़ात और मज़हब का अब बाज़ार लगता है | ||
उसे अपनी शहादत ही बहुत फीकी लगी होगी | उसे अपनी शहादत ही बहुत फीकी लगी होगी | ||
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यही वो शख़्स जो कुर्सी पे जाके बैठेगा | यही वो शख़्स जो कुर्सी पे जाके बैठेगा | ||
वक़्त आने पे वो तेरा कभी ना होगा | वक़्त आने पे वो तेरा तो कभी ना होगा | ||
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14:59, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण
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