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|शीर्षक 1=भाषाविज्ञान की दृष्टि से  
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|पाठ 1= यह [[मूर्धन्य व्यंजन|मूर्धन्य]], स्पर्श, अघोष तथा [[महाप्राण व्यंजन|महाप्राण]] ध्वनि है।
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|पाठ 2=[[पुल्लिंग]]- ध्वनि, रव, चंद्रमंडल, सूर्यमंडल, वृत्त, शून्य, मूर्ति, देव, शिव, महादेव।
|पाठ 2=[ [[संस्कृत]] (धातु) डी + ड ] [[पुल्लिंग]]- ध्वनि विशेष, शिव, महादेव, समुद्र की अग्नि, वाडवाग्नि, भय, डर।
|शीर्षक 3=विशेष
|शीर्षक 3=विशेष
|पाठ 3= '' के व्यंजन-गुच्छ बहुत कम बनते हैं। 'ठ' के बाद आए 'य' से बना संयुक्त रूप 'ठ्‌य' होता है। जैसे- काष्ठ्‌य, पाठ्‌य।  
|पाठ 3='ड़' का हलंत रूप में प्रयोग नहीं होता। शब्दों के आरम्भ में ड़, ड़ा आदि का प्रयोग नहीं होता, मध्य या अंत में ही हो सकता है (पेड़, छोड़, लड़ाना, मोड़ो)।  
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|संबंधित लेख=[[ट]], [[]], [[ढ]], [[ण]]  
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|अन्य जानकारी='' से पहले आकर उससे संयुक्त होने वाले व्यंजन केवल '' और '' हैं। जिनके संयुक्त रूप 'टठ्‌' और 'ण्ठ' हैं। जैसे- 'लट्‌ठ', 'कण्ठ'। 'कण्ठ' को कंठ' लिखना भी प्रचलित है।
|अन्य जानकारी= 'ड्' के बाद प्राय: '', '', '' और '' व्यंजन आते हैं (खड्ग, खड्ड, जाड्य, ओड्र) 'ड्' और '' का संयुक्त रूप 'ड्र' ध्यान देने योग्य है। [[अंग्रेज़ी|अँग्रेज़ी]] से आगत अनेक शब्दों में इसका प्रयोग होता है (ड्रम, ड्राइवर, ड्रामा)।
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07:22, 17 दिसम्बर 2016 के समय का अवतरण

विवरण देवनागरी वर्णमाला में टवर्ग का तीसरा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, स्पर्श, घोष तथा अल्पप्राण ध्वनि है। इसी का रूप 'ड़' उत्क्षिप्त ध्वनि है (स्पर्श ध्वनि नहीं)।
व्याकरण [ संस्कृत (धातु) डी + ड ] पुल्लिंग- ध्वनि विशेष, शिव, महादेव, समुद्र की अग्नि, वाडवाग्नि, भय, डर।
विशेष 'ड़' का हलंत रूप में प्रयोग नहीं होता। शब्दों के आरम्भ में ड़, ड़ा आदि का प्रयोग नहीं होता, मध्य या अंत में ही हो सकता है (पेड़, छोड़, लड़ाना, मोड़ो)।
संबंधित लेख , , ,
अन्य जानकारी 'ड्' के बाद प्राय: 'ग', 'ड', 'य' और 'र' व्यंजन आते हैं (खड्ग, खड्ड, जाड्य, ओड्र) 'ड्' और 'र' का संयुक्त रूप 'ड्र' ध्यान देने योग्य है। अँग्रेज़ी से आगत अनेक शब्दों में इसका प्रयोग होता है (ड्रम, ड्राइवर, ड्रामा)।

देवनागरी वर्णमाला में टवर्ग का तीसरा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, स्पर्श, घोष तथा अल्पप्राण ध्वनि है। इसी का रूप 'ड़' उत्क्षिप्त ध्वनि है (स्पर्श ध्वनि नहीं)।

विशेष-
  • 'ड' शब्दों के आरम्भ और अंत में ड, डा, डि आदि रूपों में आता है, हलंत रूप में नहीं।
  • 'ड़' का हलंत रूप में प्रयोग नहीं होता। शब्दों के आरम्भ में ड़, ड़ा आदि का प्रयोग नहीं होता, मध्य या अंत में ही हो सकता है (पेड़, छोड़, लड़ाना, मोड़ो)।
  • 'ड्' के बाद प्राय: 'ग', 'ड', 'य' और 'र' व्यंजन आते हैं (खड्ग, खड्ड, जाड्य, ओड्र) 'ड्' और 'र' का संयुक्त रूप 'ड्र' ध्यान देने योग्य है। अँग्रेज़ी से आगत अनेक शब्दों में इसका प्रयोग होता है (ड्रम, ड्राइवर, ड्रामा)।
  • 'ड' के पहले प्राय: 'ड्' और 'ण्' आते हैं, अँग्रेज़ी से आगत अनेक शब्दों में 'र्' और 'ल्' भी (खड्ड, ठण्ड, थर्ड, कोल्ड)।
  • 'ण्' और 'ड्' के व्यंजन-गुच्छ वाले शब्दों में मुद्रण आदि की सुविधा के लिए 'ण्' के स्थान पर अनुस्वार की बिंदी जैसी बिंदी का प्रयोग भी प्रचलित है। जैसे- ठण्ड (ठंड), प्रचण्ड (प्रचंड)।
  • [ संस्कृत (धातु) डी + ड ] पुल्लिंग- ध्वनि विशेष, शिव, महादेव, समुद्र की अग्नि, वाडवाग्नि, भय, डर।[1]

ड की बारहखड़ी

डा डि डी डु डू डे डै डो डौ डं डः

ड अक्षर वाले शब्द



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-1 | पृष्ठ संख्या- 1085

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