"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट अप्रैल 2017": अवतरणों में अंतर
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वैदिक कालीन सभी ऋषि गृहस्थ थे। ऋषि गृह त्यागी अथवा सन्यस्त नहीं थे। ऋषि शब्द किसी भी ऐसे विद्वान् के लिए प्रयुक्त होता था जो कि नियमित गुरु-शिष्य अथवा वंशानुगत परंपरानुसार वैदिक ऋचाओं की रचना कर रहा था। कालान्तर में ऋषि शब्द का प्रयोग विस्त्रित अर्थों में प्रयुक्त होने लगा। ऋषि पर क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या आदि की कोई रोकटोक नहीं है और न ही कोई विशेष संयम का उल्लेख है। | वैदिक कालीन सभी ऋषि गृहस्थ थे। ऋषि गृह त्यागी अथवा सन्यस्त नहीं थे। ऋषि शब्द किसी भी ऐसे विद्वान् के लिए प्रयुक्त होता था जो कि नियमित गुरु-शिष्य अथवा वंशानुगत परंपरानुसार वैदिक ऋचाओं की रचना कर रहा था। कालान्तर में ऋषि शब्द का प्रयोग विस्त्रित अर्थों में प्रयुक्त होने लगा। ऋषि पर क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या आदि की कोई रोकटोक नहीं है और न ही कोई विशेष संयम का उल्लेख है। | ||
मुनि शब्द के अर्थ को जानने के लिए पहले तीन शब्दों को समझना होगा। चित्र, मन और तन ये तीन शब्द मन्त्र और तन्त्र से संबंधित हैं। चित्र शब्द के अनेक अर्थ हैं ऋग्वेद में आश्चर्य से देखने के लिए इसका प्रयोग हुआ है। जो | मुनि शब्द के अर्थ को जानने के लिए पहले तीन शब्दों को समझना होगा। चित्र, मन और तन ये तीन शब्द मन्त्र और तन्त्र से संबंधित हैं। चित्र शब्द के अनेक अर्थ हैं ऋग्वेद में आश्चर्य से देखने के लिए इसका प्रयोग हुआ है। जो उज्ज्वल है, आकर्षक है और आश्चर्यजनक है; वह चित्र है। इसलिए लगभग सभी सांसारिक वस्तुएँ चित्र में समा जाती हैं। | ||
मन के भी बहुत से अर्थ हैं किंतु मुख्य अर्थ तो बौद्धिक चिंतन से संबंधित ही है। इसलिए ‘मंत्र’ शब्द का जन्म मन से हुआ और मंत्रों के रचयिता मनीषी या मुनि कहलाए। मुनि का भी संन्यासी होना आवश्यक नहीं है। मुनि भी लगभग सभी गृहस्थ हुए हैं। कालान्तर में ऋषि-मुनि दोनों शब्द विद्वानों, मनीषियों और बाद में सन्न्यासियों के लिए भी चलन में आ गया। | मन के भी बहुत से अर्थ हैं किंतु मुख्य अर्थ तो बौद्धिक चिंतन से संबंधित ही है। इसलिए ‘मंत्र’ शब्द का जन्म मन से हुआ और मंत्रों के रचयिता मनीषी या मुनि कहलाए। मुनि का भी संन्यासी होना आवश्यक नहीं है। मुनि भी लगभग सभी गृहस्थ हुए हैं। कालान्तर में ऋषि-मुनि दोनों शब्द विद्वानों, मनीषियों और बाद में सन्न्यासियों के लिए भी चलन में आ गया। |
13:55, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण
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