"कंक": अवतरणों में अंतर

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*इस उक्ति के अनुसार भी धर्म एवं धर्मपुत्र युधिष्ठिर में कोई अन्तर नहीं है।  
*इस उक्ति के अनुसार भी धर्म एवं धर्मपुत्र युधिष्ठिर में कोई अन्तर नहीं है।  
*यह समझकर ही अपनी सत्यवादिता रक्षा करते हुए युधिष्ठिर ने 'कङ्क' नाम से अपना परिचय दिया।  
*यह समझकर ही अपनी सत्यवादिता रक्षा करते हुए युधिष्ठिर ने 'कङ्क' नाम से अपना परिचय दिया।  
*इसके सिवा उन्होंने जो अपने को युधिष्ठिर का प्राणों के समान प्रिय सखा बताया, वह भी असत्य नहीं है। युधिष्ठिर नामक शरीर को ही यहाँ युधिष्ठिर समझना चाहिये। आत्मा की सत्ता ही शरीर का संचालन होता है। अत: आत्मा उसके साथ रहने कारण उसका सखा है। आत्मा सबसे बढ़कर प्रिय है ही; अत: यहाँ युधिष्ठिर का आत्मा युधिष्ठिर-शरीर का प्रिय सखा कहा गया है।  
*इसके सिवा उन्होंने जो अपने को युधिष्ठिर का प्राणों के समान प्रिय सखा बताया, वह भी असत्य नहीं है। युधिष्ठिर नामक शरीर को ही यहाँ युधिष्ठिर समझना चाहिये। आत्मा की सत्ता ही शरीर का संचालन होता है। अत: आत्मा उसके साथ रहने कारण उसका सखा है। आत्मा सबसे बढ़कर प्रिय है ही; अत: यहाँ युधिष्ठिर का आत्मा युधिष्ठिर-शरीर का प्रिय सखा कहा गया है।
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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09:21, 14 जून 2011 का अवतरण

  • महाभारत में पांडवों के वनवास में एक वर्ष का अज्ञात वास भी था जो उन्होंने विराट नगर में बिताया। विराट नगर में पांडव अपना नाम और पहचान छुपाकर रहे। इन्होंने राजा विराट के यहाँ सेवक बनकर एक वर्ष बिताया।
  • युधिष्ठिर राजा विराट का मनोरंजन करने वाले कंक बने। जिसका अर्थ होता है यमराज का वाचक। यमराज का ही दूसरा नाम धर्म है और वे ही युधिष्ठिर रूप में अवतीर्ण हुए थे।

'आत्मा वै जायतै पुत्र:'

  • इस उक्ति के अनुसार भी धर्म एवं धर्मपुत्र युधिष्ठिर में कोई अन्तर नहीं है।
  • यह समझकर ही अपनी सत्यवादिता रक्षा करते हुए युधिष्ठिर ने 'कङ्क' नाम से अपना परिचय दिया।
  • इसके सिवा उन्होंने जो अपने को युधिष्ठिर का प्राणों के समान प्रिय सखा बताया, वह भी असत्य नहीं है। युधिष्ठिर नामक शरीर को ही यहाँ युधिष्ठिर समझना चाहिये। आत्मा की सत्ता ही शरीर का संचालन होता है। अत: आत्मा उसके साथ रहने कारण उसका सखा है। आत्मा सबसे बढ़कर प्रिय है ही; अत: यहाँ युधिष्ठिर का आत्मा युधिष्ठिर-शरीर का प्रिय सखा कहा गया है।

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