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जब अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पाँच पुत्रों को मान डाला तथा शिविर में आग लगाकर भाग गया, तब अर्जुन ने उसको पकड़ कर द्रौपदी के सम्मुख उपस्थित किया। वध्य होने के बाद भी द्रौपदी ने उसे मुक्त करा दिया, किंतु उस नराधम ने कृतज्ञ होने के बदले पाण्डवों का वंश ही निर्मूल करने के लिये [[ब्रह्मास्त्र]] का प्रयोग किया। उत्तरा की करूण पुकार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने सूक्षमरूप से उनके गर्भ में प्रवेश करके पाण्डवों के एक मात्र वंशधर की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की, किंतु जन्म के समय बालक मृत पैदा हुआ।  
जब अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पाँच पुत्रों को मान डाला तथा शिविर में आग लगाकर भाग गया, तब अर्जुन ने उसको पकड़ कर द्रौपदी के सम्मुख उपस्थित किया। वध्य होने के बाद भी द्रौपदी ने उसे मुक्त करा दिया, किंतु उस नराधम ने कृतज्ञ होने के बदले पाण्डवों का वंश ही निर्मूल करने के लिये [[ब्रह्मास्त्र]] का प्रयोग किया। उत्तरा की करूण पुकार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने सूक्षमरूप से उनके गर्भ में प्रवेश करके पाण्डवों के एक मात्र वंशधर की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की, किंतु जन्म के समय बालक मृत पैदा हुआ।  


यह समाचार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने सूतिकागृह में प्रवेश किया। उत्तरा पगली की भाँति मृत बालक को गोद में उठाकर कहने लगी- 'बेटा! त्रिभुवन के स्वामी तुम्हारे सामने खड़े हैं। तू धर्मात्मा तथा शीलवानृ पिता का पुत्र है। यह अशिष्टता अच्छी नहीं। इन सर्वेश्वर को प्रणाम करं सोचा था कि तुझे गोद में लेकर इन सर्वाधार के चरणों में मस्तक रखूँगी, किंतु सारी आशाएँ नष्ट हो गयीं। भक्तवोत्सल भगवान् ने तत्काल जल छिड़क कर बालक को जीवनदान दिया। सहसा बालक का श्वास चलने लगा। चारों ओर आनन्द की लहन दौड़ गयी। पाण्डवों का यही वंशधर [[परीक्षित]] के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवद्भक्ति और विश्वास की अनुपम प्रतीक सती उत्तरा धन्य हैं।
यह समाचार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने सूतिकागृह में प्रवेश किया। उत्तरा पगली की भाँति मृत बालक को गोद में उठाकर कहने लगी- 'बेटा! त्रिभुवन के स्वामी तुम्हारे सामने खड़े हैं। तू धर्मात्मा तथा शीलवानृ पिता का पुत्र है। यह अशिष्टता अच्छी नहीं। इन सर्वेश्वर को प्रणाम करं सोचा था कि तुझे गोद में लेकर इन सर्वाधार के चरणों में मस्तक रखूँगी, किंतु सारी आशाएँ नष्ट हो गयीं। भक्तवत्सल भगवान् ने तत्काल जल छिड़क कर बालक को जीवनदान दिया। सहसा बालक का श्वास चलने लगा। चारों ओर आनन्द की लहन दौड़ गयी। पाण्डवों का यही वंशधर [[परीक्षित]] के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवद्भक्ति और विश्वास की अनुपम प्रतीक सती उत्तरा धन्य हैं।


==महाभारत के प्रमुख पात्र==
==महाभारत के प्रमुख पात्र==
जब महाराज विराट ने यह सुना कि उनके पुत्र उत्तरसम ने स्त कौरव-पक्ष के योद्धाओं को पराजित करके अपनी गायों को लौटा लिया है, तब वे आनन्दातिरेक में अपने पुत्र की प्रशंसा करने लगे। इस पर कंक ([[युधिष्ठिर]]) ने कहा कि जिसका सारथि ब्रहन्नला (अर्जुन) हो, उसकी विजय तो निश्चित ही है- महाराज विराट को यह असह्य हो गया कि राज्यसभा में पासा बिछाने के लिये नियुक्त, ब्राह्मण कंक उनके पुत्र के बदले नपुंसक बृहन्नला की प्रशंसा करे। उन्होंने पासा खींचकर मार दिया और कंक की नासिका से रक्त निकलने लगा। सैरन्ध्री बनी हुई [[द्रौपदी]] दौड़ी और सामने कटोरी रखकर कंक की नासिका से निकलते हुए रक्त को भूमि पर गिरने से बचाया था। जब उन्हें तीसरे दिन पता लगा कि उन्होंने कंक के वेश में अपने यहाँ निवास कर रहे महाराज युधिष्ठिर का ही अपमान किया है, तब उन्हें अपने-आप पर अत्यन्त खेद हुआ। उन्होंने अनजान में हुए अपराधों के परिमार्जन और [[पांडव|पाण्डवों}} से स्थायी मैत्री-स्थापना के उद्देश्य से अपनी पुत्री उत्तरा और अर्जुन के विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर अर्जुन ने कहा-'राजन्! मैंने कुमारी उत्तरा को बृहन्नला के रूप में वर्ष भर [[नृत्य कला|नृत्य]] और संगीत की शिक्षा दी है। यदि मैं राजकुमारी को पत्नीरूप में स्वीकार करता हूँ तो लोग मुझ पर और आपकी पुत्री के चरित्र पर संदेह करेंगे और गुरू-शिष्य की परम्परा का अपमान होगा। राजकुमारी मेरे लिये पुत्री के समान है। इसलिये अपने पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के रूप में मैं उन्हें स्वीकार करता हूँ। भगवान् श्रीकृष्ण के भानजे को जामाता के रूप में स्वीकार करना आपके लिये भी गौरव की बात होगी।' सभी ने अर्जुन की धर्मनिष्ठा की प्रशंसा की और उत्तरा का विवाह अभिमन्यु से सम्पन्न हो गया।  
जब महाराज विराट ने यह सुना कि उनके पुत्र उत्तर ने समस्त कौरव-पक्ष के योद्धाओं को पराजित करके अपनी गायों को लौटा लिया है, तब वे आनन्दातिरेक में अपने पुत्र की प्रशंसा करने लगे। इस पर कंक ([[युधिष्ठिर]]) ने कहा कि जिसका सारथि ब्रहन्नला (अर्जुन) हो, उसकी विजय तो निश्चित ही है- महाराज विराट को यह असह्य हो गया कि राज्यसभा में पासा बिछाने के लिये नियुक्त, ब्राह्मण कंक उनके पुत्र के बदले नपुंसक बृहन्नला की प्रशंसा करे। उन्होंने पासा खींचकर मार दिया और कंक की नासिका से रक्त निकलने लगा। सैरन्ध्री बनी हुई [[द्रौपदी]] दौड़ी और सामने कटोरी रखकर कंक की नासिका से निकलते हुए रक्त को भूमि पर गिरने से बचाया था। जब उन्हें तीसरे दिन पता लगा कि उन्होंने कंक के वेश में अपने यहाँ निवास कर रहे महाराज युधिष्ठिर का ही अपमान किया है, तब उन्हें अपने-आप पर अत्यन्त खेद हुआ। उन्होंने अनजान में हुए अपराधों के परिमार्जन और [[पांडव|पाण्डवों]] से स्थायी मैत्री-स्थापना के उद्देश्य से अपनी पुत्री उत्तरा और अर्जुन के विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर अर्जुन ने कहा-'राजन्! मैंने कुमारी उत्तरा को बृहन्नला के रूप में वर्ष भर [[नृत्य कला|नृत्य]] और संगीत की शिक्षा दी है। यदि मैं राजकुमारी को पत्नीरूप में स्वीकार करता हूँ तो लोग मुझ पर और आपकी पुत्री के चरित्र पर संदेह करेंगे और गुरू-शिष्य की परम्परा का अपमान होगा। राजकुमारी मेरे लिये पुत्री के समान है। इसलिये अपने पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के रूप में मैं उन्हें स्वीकार करता हूँ। भगवान् श्रीकृष्ण के भानजे को जामाता के रूप में स्वीकार करना आपके लिये भी गौरव की बात होगी।' सभी ने अर्जुन की धर्मनिष्ठा की प्रशंसा की और उत्तरा का विवाह अभिमन्यु से सम्पन्न हो गया।  


==अन्य लिंक==
==अन्य लिंक==

07:38, 4 जून 2010 का अवतरण

  • राजा विराट की पुत्री थीं।
  • जब पाण्डव अज्ञातवास कर रहे थे, उस समय अर्जुन वृहन्नला नाम ग्रहण करके रह रहे थे।
  • वृहन्नला ने उत्तरा को नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा दी थी।
  • जिस समय कौरवों ने राजा विराट की गायें हस्तगत कर ली थीं, उस समय अर्जुन ने कौरवों से युद्ध करके अर्पूव पराक्रम दिखाया था।
  • अर्जुन की उस वीरता से प्रभावित होकर राजा विराट ने अपनी कन्या उत्तरा का विवाह अर्जुन से करने का प्रस्ताव रखा था किन्तु अर्जुन ने यह कहकर कि उत्तरा उनकी शिष्या होने के कारण उनकी पुत्री के समान थी, उस सम्बन्ध को अस्वीकार कर दिया था।
  • कालान्तर में उत्तरा का विवाह अभिमन्यु के साथ सम्पन्न हुआ था।
  • चक्रव्यूह तोड़ने के लिए जाने से पूर्व अभिमन्यु अपनी पत्नी से विदा लेने गया था।
  • उस समय उसने अभिमन्यु से प्रार्थना की थी- 'हे उत्तरा के धन रहो तुम उत्तरा के पास ही' (जयद्रथ वध: मैथिलीशरण गुप्त, तृतीय सर्ग)।
  • परीक्षित का जन्म इन्हीं की कोख से अभिमन्यु की मृत्य के बाद हुआ था।

उत्तरा का पुत्र

महाभारत के संग्राम में अर्जुन संसप्तकों से युद्ध करने के लिये दूर चले गये और द्रोणाचार्य ने उनकी अनुपस्थिति में चक्रव्यूह का निर्माण किया। भगवान् शंकर के वरदान से जयद्रथ ने सभी पाण्डवों को व्यूह में प्रवेश करने से रोक दिया। अकेले अभिमुन्यु ही व्यूह में प्रवेश कर पाये। महावीर अभिमन्यु ने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। उन्होंने कौरव-पक्ष के प्रमुख महारथियों को बार-बार हराया। अन्त में सभी महारथियों ने एक साथ मिलकर अन्यायपूर्वक अभिमन्यु का वध कर दिया। उत्तरा उस समय गर्भवती थीं। भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें आश्वासन देकर पति के साथ सती होने से रोक दिया।

जब अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पाँच पुत्रों को मान डाला तथा शिविर में आग लगाकर भाग गया, तब अर्जुन ने उसको पकड़ कर द्रौपदी के सम्मुख उपस्थित किया। वध्य होने के बाद भी द्रौपदी ने उसे मुक्त करा दिया, किंतु उस नराधम ने कृतज्ञ होने के बदले पाण्डवों का वंश ही निर्मूल करने के लिये ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उत्तरा की करूण पुकार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने सूक्षमरूप से उनके गर्भ में प्रवेश करके पाण्डवों के एक मात्र वंशधर की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की, किंतु जन्म के समय बालक मृत पैदा हुआ।

यह समाचार सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने सूतिकागृह में प्रवेश किया। उत्तरा पगली की भाँति मृत बालक को गोद में उठाकर कहने लगी- 'बेटा! त्रिभुवन के स्वामी तुम्हारे सामने खड़े हैं। तू धर्मात्मा तथा शीलवानृ पिता का पुत्र है। यह अशिष्टता अच्छी नहीं। इन सर्वेश्वर को प्रणाम करं सोचा था कि तुझे गोद में लेकर इन सर्वाधार के चरणों में मस्तक रखूँगी, किंतु सारी आशाएँ नष्ट हो गयीं। भक्तवत्सल भगवान् ने तत्काल जल छिड़क कर बालक को जीवनदान दिया। सहसा बालक का श्वास चलने लगा। चारों ओर आनन्द की लहन दौड़ गयी। पाण्डवों का यही वंशधर परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवद्भक्ति और विश्वास की अनुपम प्रतीक सती उत्तरा धन्य हैं।

महाभारत के प्रमुख पात्र

जब महाराज विराट ने यह सुना कि उनके पुत्र उत्तर ने समस्त कौरव-पक्ष के योद्धाओं को पराजित करके अपनी गायों को लौटा लिया है, तब वे आनन्दातिरेक में अपने पुत्र की प्रशंसा करने लगे। इस पर कंक (युधिष्ठिर) ने कहा कि जिसका सारथि ब्रहन्नला (अर्जुन) हो, उसकी विजय तो निश्चित ही है- महाराज विराट को यह असह्य हो गया कि राज्यसभा में पासा बिछाने के लिये नियुक्त, ब्राह्मण कंक उनके पुत्र के बदले नपुंसक बृहन्नला की प्रशंसा करे। उन्होंने पासा खींचकर मार दिया और कंक की नासिका से रक्त निकलने लगा। सैरन्ध्री बनी हुई द्रौपदी दौड़ी और सामने कटोरी रखकर कंक की नासिका से निकलते हुए रक्त को भूमि पर गिरने से बचाया था। जब उन्हें तीसरे दिन पता लगा कि उन्होंने कंक के वेश में अपने यहाँ निवास कर रहे महाराज युधिष्ठिर का ही अपमान किया है, तब उन्हें अपने-आप पर अत्यन्त खेद हुआ। उन्होंने अनजान में हुए अपराधों के परिमार्जन और पाण्डवों से स्थायी मैत्री-स्थापना के उद्देश्य से अपनी पुत्री उत्तरा और अर्जुन के विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर अर्जुन ने कहा-'राजन्! मैंने कुमारी उत्तरा को बृहन्नला के रूप में वर्ष भर नृत्य और संगीत की शिक्षा दी है। यदि मैं राजकुमारी को पत्नीरूप में स्वीकार करता हूँ तो लोग मुझ पर और आपकी पुत्री के चरित्र पर संदेह करेंगे और गुरू-शिष्य की परम्परा का अपमान होगा। राजकुमारी मेरे लिये पुत्री के समान है। इसलिये अपने पुत्र अभिमन्यु की पत्नी के रूप में मैं उन्हें स्वीकार करता हूँ। भगवान् श्रीकृष्ण के भानजे को जामाता के रूप में स्वीकार करना आपके लिये भी गौरव की बात होगी।' सभी ने अर्जुन की धर्मनिष्ठा की प्रशंसा की और उत्तरा का विवाह अभिमन्यु से सम्पन्न हो गया।

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