"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट": अवतरणों में अंतर

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केन्द्रीय विद्यालय मथुरा में मेरे 'ज़माने' के छात्र-सहपाठी जमा हो रहे हैं (अध-बूढ़े हैं सब...)। 14 सितम्बर को... पवन चतुर्वेदी, सुनील आचार्य, संदीपन नागर और, और भी मित्रों ने याद किया है...
बीते लम्हों की यादों से  
दोस्तों की याद में-
अब उठें, भव्य उजियारा है
दोस्त वो निठल्ला होता है जिसके साथ बिना काम-काज की बात किए सारा दिन गुज़ारा जा सके।
इस नए साल को, यूँ जीएँ
दोस्त वो रिश्ता होता है जिसकी बहन की शादी में पूरी रात काम करने के बाद भी उसके और अपने
जैसे संसार हमारा है
मां-बाप से डांट पड़ती है।
दोस्त वो राहत होता है जो महबूब की बेवफ़ाई में टिशू-नॅपकिन से लेकर ज़बर्दस्ती खाना खिलाने
का काम भी करता है।
दोस्त वो खड़ूस होता है जो हमें चैन से दारू और सिगरेट नहीं पीने देता।
दोस्त वो ड्रामा होता है जो हमारी बीवी के सामने अपनी इमेज हमेशा, भारतभूषण और प्रदीप कुमार जैसी बनाकर
रखता है जिससे हम अपनी बीवी को प्रेम चौपड़ा और रंजीत नज़र आते हैं
दोस्त वो पंगा होता है जो हमारी लड़ाई में अपना दांत तुड़वा लेता है या अपनी में हमारा...
दोस्त वो कलेस होता है जिसकी पजॅसिवनॅस की वजह से हमारा महबूब हमेशा कहता रहता है-
"उसी के पास जाओ! वोई है तुम्हारा दोस्त-गर्लफ़्रॅन्ड-बॉयफ़्रॅन्ड सबकुछ सबकुछ..."
दोस्त वो शॅर्लॉक होम्स होता है जो हमारी परेशानियों का कोई न कोई हल चुपचाप और बिना अहसान दिखाए करता रहता है।
दोस्त वो याड़ी होता है जिसे एक बार नज़र लग जाय तो उस पर न्यौछावर करने के लिए सारी दुनिया की दौलत भी कम पड़ जाती है...
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| 13 सितम्बर, 2013
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आज पिता दिवस है। मैं गर्व करता हूँ कि मैं चौधरी दिगम्बर सिंह जी जैसे पिता का बेटा हूँ। वे स्वतंत्रता सेनानी थे और चार बार संसद सदस्य रहे। वे मेरे गुरु और मित्र भी थे। भारतकोश के संचालक ट्रस्ट के संस्थापक भी हैं।
उनके स्वर्गवास पर मैंने एक कविता लिखी थी...


ये तो तय नहीं था कि
हम जीने दें और जी भी लें
तुम यूँ चले जाओगे
विश्वास जुटा कर उन सब में
और जाने के बाद
जो बात-बात पर कहते हैं
फिर याद बहुत आओगे
हमको किस्मत ने मारा है


मैं उस गोद का अहसास
अब रहे दामिनी निर्भय हो
भुला नहीं पाता
निर्भय इरोम का जीवन हो
तुम्हारी आवाज़ के सिवा
अब गर्भ में मुसकाये बिटिया
अब याद कुछ नहीं आता
यह अंश, वंश से प्यारा है


तुम्हारी आँखों की चमक
फ़ेयर ही लवली नहीं रहे
और उनमें भरी
अनफ़ेयर यही अफ़ेयर हो
लबालब ज़िन्दगी
काली मैया जब काली है
याद है मुझको
तो रंग से क्यों बंटवारा है


उन आँखों में
ये ज़ात-पात क्या होती है
सुनहरे सपने थे
माता की कोई ज़ात नहीं
वो तुम्हारे नहीं
यदि पिता ज़ात को रोता है
मेरे अपने थे
तो कैसा पिता हमारा है


मैं उस उँगली की पकड़
जाने कब हम ये समझेंगे
छुड़ा नहीं पाता
ना जाने कब ये जानेंगे
उस छुअन के सिवा
मस्जिद में राम, मंदिर में ख़ुदा
अब याद कुछ नहीं आता
हर मज़हब एक सहारा है


तुम्हारी बलन्द चाल
सुबह आज़ान जगाए हमें
की ठसक
मंदिर की आरती झपकी दे
और मेरा उस चाल की
सपनों में ख़ुदा या राम बसें
नक़ल करना
मक़सद अब प्रेम हमारा है
याद है मुझको


तुम्हारे चौड़े कन्धों
सहमी मस्जिद को बोल मिलेें
और सीने में समाहित
मंदिर भी अब जी खोल मिलें
सहज स्वाभिमान
गिरजे गुरुद्वारे सब बोलें
याद है मुझको
जय हो ! यह देश हमारा है  
 
तुम्हारी चिता का दृश्य
मैं अब तक भुला नहीं पाता
तुम्हारी याद के सिवा कुछ भी
मुझे रुला नहीं पाता
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|  [[चित्र:चौधरी दिगम्बर सिंह.jpg|200px|center|link=चौधरी दिगम्बर सिंह]]
| 17 जून, 2013
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आज मन उदास है... मेहदी हसन साहिब नहीं रहे... मैंने बहुत कम उम्र से ही उनको सुना और अब भी सुनता हूँ... उनके गायन की प्रशंसा करने के लिए मैं अति तुच्छ व्यक्ति हूँ... कभी-कभी सोचता हूँ कि राजस्थान की मिट्टी में ऐसा क्या अद्‌भुत है जिसने मेहदी हसन जैसे कला शिरोमणि को जन्म दिया... उनकी गाई और ज़फ़र (बहादुर शाह ज़फ़र) की कही ग़ज़ल आज बहुत याद आई-
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ।
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी ॥
ले गया लूट के कौन आज तिरा सब्र-उ-क़रार ।
बे-क़रारी तुझे दिल कभी ऐसी तो न थी ॥
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|  [[चित्र:Mehdi-hasan.jpg|200px|center|link=मेहदी हसन]]
| 14 जून, 2013
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'कला' शब्द का अर्थ वात्स्यायन (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) के बाद बदल गया। वात्स्यायन ने पहली बार 'कला' शब्द को इस अर्थ में प्रयोग किया जिसे कि अंग्रेज़ी में 'आर्ट' कहते हैं। जयमंगल ने भी 64 कलाओं के बारे में बताया। इससे पहले इसका अर्थ था 'अंश' (हिस्सा)। इसी लिए चन्द्रमा या सूर्य की पृथ्वी के सापेक्ष स्थितियों को बाँटा गया तो उन्हें कला कहा गया। चन्द्रमा को सोलह अंश में और सूर्य को बारह में। इसीलिए चन्द्रमा की सोलह कला हैं और सूर्य की बारह कला। अवतारों की कला का भी यही रहस्य है। लोग अक्सर पूछते हैं कि कृष्ण की सोलह कलाएँ कौन-कौन सी थी ? असल में कृष्ण के काल में कला का अर्थ अंश था न कि आज की तरह 'आर्ट'।
ख़ैर... नृत्य कला पर भी भारतकोश पर कुछ है शायद आपकी रुचि हो  
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|  [[चित्र:Bharatanatyam-Dance.jpg|200px|center|link=नृत्य कला]]
| 10 जून, 2013
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ईश्वर, अवतार, पैग़म्बर और संत किसी भी रूप में पक्षपाती नहीं होते। इसलिए ये किसी व्यक्ति विशेष का हित या अहित करेंगे ऐसा सोचना व्यर्थ ही है। जब इनके अस्तित्व पर हमारी आलोचना का असर नहीं होता तो फिर प्रार्थना का भी असर कैसे होगा। ज़रा सोचिए कि क्या हम यह मान सकते हैं कि ईश्वर पक्षपाती है, असंभव ही है ना ? तो फिर करें क्या ?
... प्रार्थना तो करें पर माँगे कुछ नहीं। प्रार्थना हमें विनम्र बनाती है। कर्म करें अकर्मण्य न रहें।
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| [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-22.jpg|250px|center]]
| 19 मई, 2013
| 1 अप्रॅल, 2014
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14:05, 20 अप्रैल 2014 का अवतरण

आदित्य चौधरी फ़ेसबुक पोस्ट
पोस्ट संबंधित चित्र दिनांक

बीते लम्हों की यादों से
अब उठें, भव्य उजियारा है
इस नए साल को, यूँ जीएँ
जैसे संसार हमारा है

हम जीने दें और जी भी लें
विश्वास जुटा कर उन सब में
जो बात-बात पर कहते हैं
हमको किस्मत ने मारा है

अब रहे दामिनी निर्भय हो
निर्भय इरोम का जीवन हो
अब गर्भ में मुसकाये बिटिया
यह अंश, वंश से प्यारा है

फ़ेयर ही लवली नहीं रहे
अनफ़ेयर यही अफ़ेयर हो
काली मैया जब काली है
तो रंग से क्यों बंटवारा है

ये ज़ात-पात क्या होती है
माता की कोई ज़ात नहीं
यदि पिता ज़ात को रोता है
तो कैसा पिता हमारा है

जाने कब हम ये समझेंगे
ना जाने कब ये जानेंगे
मस्जिद में राम, मंदिर में ख़ुदा
हर मज़हब एक सहारा है

सुबह आज़ान जगाए हमें
मंदिर की आरती झपकी दे
सपनों में ख़ुदा या राम बसें
मक़सद अब प्रेम हमारा है

सहमी मस्जिद को बोल मिलेें
मंदिर भी अब जी खोल मिलें
गिरजे गुरुद्वारे सब बोलें
जय हो ! यह देश हमारा है

1 अप्रॅल, 2014

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