"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट मई 2014": अवतरणों में अंतर
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| 23 मई, 2014 | |||
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किसी बड़े से शहर में किसी बड़े से आदमी ने मुझसे पूछा... | |||
Well Mr. Chaudhary ! what makes you crazy ? | |||
मैंने जवाब तो कुछ नहीं दिया सिर्फ़ हंस कर रह गया लेकिन सोचने लगा कि जवाब देता तो क्या देता... | |||
कहीं किसी गाँव की पगडंडी पर साइकिल चलाता कोई आदमी जो देखने में फ़ौजी लग रहा हो और उसकी पत्नी साइकिल के कॅरियर पर बैठी हो... गोद में बच्चा लिए... | |||
या फिर- | |||
मिट्टी के चूल्हे पर बबूल की लकड़ियों से सिकती पानी के हाथ की देशी घी से चुपड़ी रोटी और साथ में छुकी हरी मिर्च, दूध में चाय की पत्ती डली हो... और हाँ... इस पूरी प्रक्रिया में काँच की चूड़ियों की खनक भी आती रहे... | |||
या फिर- | |||
कहीं किसी गाँव में कोई तन्दुरुस्त सी अधेड़ देेहाती औरत जिसने छींट की कमीज़ और सीधे पल्ले की हल्के रंग की धोती पहनी हो... | |||
या फिर- | |||
हाथ से ताज़ा चला हुआ मठ्ठा (छाछ) जिसमें मक्खन के कुछ दाने तैरते रह गए हों और साथ में गुड़... | |||
या फिर- | |||
कहीं किसी खेत में लाल मिर्च और काले नमक के साथ चने का साग (कच्चा)... | |||
या फिर- | |||
जलती होली में भुनते होले... | |||
या फिर- | |||
गाढ़ी-गाढ़ी कढ़ी, चावल के साथ... | |||
या फिर- | |||
कहीं किसी गाँव में चलती चक्की की कु कु कु की आवाज़... | |||
या फिर- | |||
कभी-कहीं, हल्की-हल्की, बूँदा-बाँदी में लकड़ी के कोयलों में सिकते दूधिया भुट्टे, काला नमक और नीबू लगा के... | |||
या फिर- | |||
किसी बाग़ में सिकती भूभर बाटी और दाल, चटनी और चूरमा के लड्डुओं के साथ... | |||
या फिर- | |||
कहीं किसी गाँव में चाँदनी रात, खरहरी खाट, हवा पुरवाई हो... | |||
या फिर- | |||
टेंटी का अचार, झर बेरिया के बेर, टपका आम, पापड़ी, इमली (कटारे) ... और न जाने क्या-क्या ...चाहें तो कुछ आप भी गिनाएँ... | |||
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| 21 मई, 2014 | |||
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जिस दिन भी मुझे ऐसा लगता है कि मैं अब बहुत अनुभवी और परिपक्व हो गया हूँ उसी दिन कोई न कोई वज्र मूर्खता का प्रदर्शन कर बैठता हूँ और सारी बुद्धिमत्ता धरी की धरी रह जाती है। | |||
उम्र बढ़ने से अनुभव तो बढ़ता है पर बुद्धि कम होती जाती है। वैसे भी समाज में जीने के लिए अनुभव ही तो चाहिए बुद्धि बेचारी को पूछता ही कौन है... | |||
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| 20 मई, 2014 | |||
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Mohad Gani मोहम्मद ग़नी, आज अम्माजी की कुशल क्षेम पूछने आए और गुलाब के फूल भी लाए। अम्माजी, मेरी बहन गुड़िया (चित्रा) के साथ बैठी थीं।पाँच गुलाब देख कर मैंने कहा कि शायद पंच तत्वों से बने शरीर के कारण ही पाँच गुलाब लाए तो अम्माजी ने बहुत याद करने की कोशिश के बाद कहा- | |||
"छिति, जल, पावक, गगन, समीरा | |||
पंच तत्व विधि रचा सरीरा" | |||
यह गोस्वामी तुलसी दास कृत रामचरित मानस की चौपाई है। | |||
छिति (क्षिति)= पृथ्वी, पावक=अग्नि, समीरा=वायु | |||
अम्माजी की ये परफ़ॉरमेन्स तो ब्रेन क्लॉट के बाद है जबकि काफ़ी याद्दाश्त जा चुकी है... | |||
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| 20 मई, 2014 | |||
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आम आदमी से वायदे करके चुनाव जीता जाता है और ख़ास आदमियों से किए वादे निभाकर सरकार चलाई जाती है। काश इसका उल्टा हो सकता... | |||
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| 19 मई, 2014 | |||
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निष्ठुर हुए बिना या कहें कि सहृयता क़ायम रखते हुए किसी व्यवसाय-व्यापार में कैसे सफल हुआ जा सकता है? किसी को मालूम हो तो मुझे ज़रूर बताएँ... | |||
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| 19 मई, 2014 | |||
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भारत के चुनाव में सेक्यूलरिज़्म याने धर्म निरपेक्षता शायद अब सामयिक मुद्दा नहीं रहा। नई पीढ़ी 'धर्म सापेक्ष' है और काफ़ी हद तक 'सर्व धर्म सम्मान' या कहें कि 'सर्व धर्म सापेक्ष' है। | |||
निश्चय ही 'नीरस धर्म िनरपेक्षता' से धर्म के सांस्कृतिक स्वरूप का अनुसरण सुखदायी है। मुझे कभी नहीं लगा कि धर्म निरपेक्षता, संकीर्णता से भरे दिमाग़ से मुक्त होने की कोई गारंटी है। संकीर्णता को एक बार फिर से परिभाषित किए जाने की आवश्यकता है। | |||
विकास, रोज़गार और भ्रष्टाचार निवारण इस चुनाव में जनता द्वारा वोट देने का पक्ष चुनने का कारण बना। जनता का निर्णय अधिकतर सही ही होता है। उपलब्ध विकल्पों में से श्री नरेन्द्र मोदी को वोट देकर जनता फ़िलहाल, बेहतर को ही चुना है। | |||
मैं निष्पक्ष विचार प्रकट करने का भरसक प्रयत्न करता हूँ और मैं ऐसा कर पाऊँ इसलिए मैं किसी राजनैतिक दल में सक्रिय नहीं हूँ। | |||
सिर्फ़ चुनाव में ही नहीं बल्कि आज के ज़माने के शादियों में भी देखने में आ रहा है कि अन्तर-धर्म शादी में नई पीढ़ी के लोग अपने जीवन साथी का धर्म बदलने पर कोई ज़ोर नहीं देते और एक दूसरे के धर्म का सम्मान करते हैं। | |||
भारत के विकास की अनंत संभावनाएँ हैं... | |||
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| 19 मई, 2014 | |||
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