"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट मई 2014": अवतरणों में अंतर
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जनता नेताओं के झूठ को लेकर बहुत से सवाल खड़े करती रहती है। धन्य है भोली जनता जो कभी यह नहीं सोचती कि सच बोलना होता तो उनके प्यारे नेतागण राजनीति में क्यों आते ?... और बहुत से काम थे करने को... | |||
सच बोलकर बहुत से काम हो सकते होंगे लेकिन राजनीति और व्यापार तो एक दिन भी नहीं हो सकता। | |||
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| 31 मई, 2014 | |||
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भारत की मूल समस्या क्या है ? बिजली, पानी, सड़क, सुरक्षा या कुछ और ? | |||
इन सारी समस्याओं की जड़ और वास्तविक मूल समस्या है 'सरकारों का शिक्षा के प्रति बेहद ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैया।' | |||
शिक्षा का इतिहास क्या है? औपनिवेशिक काल (अंग्रेज़ों का शासन) में भारत का शिक्षा बजट प्रतिशत, विश्व में सबसे कम था। अंग्रेज़ों के ही शासन वाला एक और दूसरा देश तुर्की ज़रूर ऐसा था जिसका शिक्षा बजट प्रतिशत भारत से भी कम था। | |||
आज भी वही हाल है। सही मायने में तो कुल बजट का 20 से 25 प्रतिशत शिक्षा पर ख़र्च किया जाना चाहिए। एक विकासशील देश को तो इससे भी ज़्यादा करना चाहिए लेकिन हमारी सरकारें मात्र 10-12 प्रतिशत के आंकड़े पर ही अटकी रहती हैं। उल्लेखनीय है कि पिछली सं.प्र.ग. सरकार ने पिछले दस वर्षों में यह बजट 13 से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया। काश कोई सरकार तो ऐसी आए जो इस बजट को 20 प्रतिशत तक पहुँचाए। | |||
'मैकाले का प्रेत' आज भी भारत की शिक्षा पद्धति पर अपना काला साया फैलाए हुए है। इस पद्धति का जो सबसे भयानक पहलू था, वह था 'प्रतिभा-दमनकारी' शिक्षा को स्थापित करना। इसमें वह सफल भी रहा। भारत के स्कूल-कॉलेज, आज प्रतिभाओं का दमन करने वाली सबसे प्रभावशाली संस्था के रूप में कार्य कर रहे हैं। | |||
कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि अनेक प्रतिभाशाली प्रसिद्ध लोगों के परिचय में जब उनकी औपचारिक शिक्षा का उल्लेख होता है तो वे बड़ी शान से कहते हैं कि अपनी प्रतिभा और करियर को चमकाने के लिए उन्हें औपचारिक शिक्षा, बहुत कम उम्र में ही छोड़ देनी पड़ी। यह समस्या भारत को ही नहीं बल्कि यूरोप को भी प्रभावित करती रही है और अमरीका में तो औपचारिक शिक्षा का वैसे भी कोई विशेष मूल्य नहीं है। | |||
इसलिए अगर कुछ बदलना है तो शिक्षा का ढाँचा बदला जाना चाहिए उससे ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। | |||
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| 30 मई, 2014 | |||
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बदायूँ में हुए अमानवीय कृत्य पर अपनी पुरानी कविता याद आई | |||
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इस शहर में अब कोई मरता नहीं | |||
वो मरें भी कैसे जो ज़िन्दा नहीं | |||
हो रहे नीलाम चौराहों पे रिश्ते | |||
क्या कहें कोई दोस्त शर्मिंदा नहीं | |||
घूमता है हर कोई कपड़े उतारे | |||
शहर भर में अब कोई नंगा नहीं | |||
कौन किसको भेजता है आज लानत | |||
इस तरह का अब यहाँ मसला नहीं | |||
हो गया है एक मज़हब 'सिर्फ़ पैसा' | |||
अब कहीं पर मज़हबी दंगा नहीं | |||
मर गये, आज़ाद हमको कर गये वो | |||
उनका महफ़िल में कहीं चर्चा नहीं | |||
अब यहाँ खादी वही पहने हुए हैं | |||
जिनकी यादों में भी अब चरख़ा नहीं | |||
इस शहर में अब कोई मरता नहीं | |||
वो मरें भी कैसे जो ज़िन्दा नहीं | |||
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| 30 मई, 2014 | |||
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भारत की अधिसंख्य जनता संभवत: इस पक्ष में है कि कश्मीर राज्य की संवैधानिक स्थिति भी भारत के अन्य राज्यों की तरह ही हो जानी चाहिए। माजूदा सरकार से यह उम्मीद और भी ज़्यादा हो गई है। संविधान विशेषज्ञ यह जानते हैं कि यह सब कोरी बयान बाज़ी ही है क्योंकि ऐसा हो पाने की परिस्थिति अभी निकट भविष्य में नहीं है। | |||
कश्मीर से संबंधित धारा 370 किसी साधारण राज्य-विधि की धारा नहीं है जिसे बदलना आसान हो। यह भारत के संविधान की धारा है जिसे बदलने के लिए संसद के दोनों सदनों में बहुमत चाहिए। यह बहुमत दो-तिहाई होने पर ही किसी संवैधानिक परिवर्तन की बात की जा सकती है। मौजूदा सरकार के बहुमत की स्थिति राज्यसभा में तो है ही नहीं और लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत का अभाव है। | |||
... मगर मामला कुछ और ही होता है, नेता अगर बयान बाज़ी नहीं करें तो खाएंगे क्या ? | |||
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| 30 मई, 2014 | |||
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मंत्रियों की शिक्षा-योग्यता पर बवाल हो रहा है। इस तरह से बात की जा रही है जैसे कि भारत में पहली बार कोई सरकार बनी है। पत्रकार और स्तंभकार इतने भोलेपन से सवाल-जवाब कर रहे हैं कि मानो वे सरकार में मंत्री बनाए जाने की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हों। | |||
सभी जानते हैं कि मंत्री कोटे के आधार पर बनाए जाते हैं या फिर उनको मंत्रीपद पुरस्कार स्वरूप दिया जाता है। धर्म, जाति, क्षेत्र, राज्य, भाषा, समर्थक दल, आदि-आदि बहुत से 'कोटे' हैं जिनके कारण मंत्री बनते हैं। इसमें चमचा कोटा भी बहुत वज़नदार होता है। एक का नहीं प्रत्येक राजनैतिक दल का यही हाल है। | |||
योग्यता और शिक्षा के आधार पर यदि मंत्रिमंडल बने होते तो 75% नेता तो भारत की राजनीति के आकाश में दूरबीन से ढूँढने पर भी नहीं मिलते। | |||
मंत्रीपद की शपथ में आने वाले कई शब्दों का कुछ हिंदी भाषी मंत्री सही उच्चारण नहीं कर पाए जैसे कि 'अक्षुण्ण' और 'शुद्ध अंत:करण' । यहाँ तक कि कुछ ऐसे भी हैं जिनसे यदि 'सत्यनिष्ठा' और 'शपथ' जैसे शब्द बुलवाए जाएँ तो वे सही नहीं बोल पाएँगे। | |||
इन बेचारों के लिए सीधी-सरल शपथ होनी चाहिए जिससे आगामी समय में कम-से-कम सही ढंग से बोल सकें और उसका मतलब भी उन्हें पता हो। | |||
संघ के मंत्री के लिए पद की शपथ का वर्तमान प्रारूप :- | |||
'मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।' | |||
भविष्य का सरल प्रारूप:- | |||
'मैं अमुक, भगवान की क़सम खाता हूँ / सच्चे मन से पक्का वादा करता हूँ कि मैं विधि द्वारा बनाए गए भारत के संविधान के लिए सच्ची भावना और लगन रखूँगा, मैं भारत की सत्ता और एकता को जोड़कर रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपनी ड्यूटी को लगन और सच्चे मन से निबाहूँगा और मैं डर या अपना-तेरा, प्यार या दुश्मनी के बिना, सभी तरह के लोगों के लिए संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।' | |||
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| 30 मई, 2014 | |||
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न जाने किस शिक्षा और किस संस्कृति की बात हम करते हैं और अपने देश की महानता पर गर्व भी करते हैं। ज़रा जाकर देखिए बदायूँ में, शिक्षा और संस्कृति दोनों ही पेड़ पर मृत लटकी मिलेंगी... | |||
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| 30 मई, 2014 | |||
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12:29, 5 जून 2014 का अवतरण
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