"विदेश दूरसंचार सेवा -के.सी. कटियार": अवतरणों में अंतर

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यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
लेखक- के.सी. कटियार

दिसम्बर, 1981 में संचार मंत्री श्री सी.एम. स्टीफ़न ने हिन्द महासागर राष्ट्रमंडलीय (आई. ओ. काम.) अंत:समुद्री केबल और विदेश संचार भवन, मद्रास का उद्‌घाटन किया। विदेश संचार सेवा द्वारा जनता को प्रदान की जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार सेवाओं के आधुनिकीकरण और सुरक्षा इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना है। हिन्द महासागर राष्ट्रमंडलीय अंत:समुद्री केबल भारत में चौड़ी पट्टी वाला प्रथम अंत:समुद्री केबल है और विदेश संचार भवन, मद्रास अंतर्राष्ट्रीय पारेषण अभिग्रहण (गेटवे) दूरसंचार सुविधाओं का ऐसा तीसरा समूह है, इसके पहले के बंबई और दिल्ली में हैं।
1971 में पुणे के निकट आर्वी में विदेश संचार सेवा द्वारा स्थापित प्रथम उपग्रह भू-केंद्र के पश्चात और 1976 में देहरादून में अपना द्वितीय उपग्रह भू-केंद्र चालू हो जाने से व्यवहारत: दुनिया के उन सभी देशों से हमारा सीधा संपर्क स्थापित हो गया है, जिनके साथ आजकल पर्याप्त मात्रा में हमारा परियात संचार होता है। 31.07.82 को विदेश संचार सेवा के बाह्य दूरसंचार जाल में 499 सीधे दूरभाष परिपथ, 763 सीधे टेलेक्स परिपथ और 48 सीधे तार परिपथ थे। 99 प्रतिशत से अधिक विदेश टेलीफ़ोन और टेलेक्स संचार उपग्रह और अंत:समुद्री केबल के माध्यम से निपटाए जा रहे हैं, जिससे रात और दिन विश्वसनीय सेवा प्राप्त होती है।
विदेश संचार सेवा देश के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य में स्थित बंबई, नई दिल्ली, कलकत्ता और मद्रास के अपने अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों से परिचालन का काम करती है। इन केंद्रों से ही अंतर्राष्ट्रीय परिपथों को सेवा की गुणता और उपलब्धता में परिणामी सुधार के साथ प्रयोक्ताओं के और निकट ले जाया जाता है। सिद्धांतत: दूरसंचार परियात भारत में किसी भी स्थान से प्रयोक्ताओं का अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार परियात डाक-तार विभाग के राष्ट्रव्यापी जाल की मार्फत विदेश संचार सेवा के निकटतम गेटवे केंद्र पर पहुँचता है। वहाँ से वह विदेश संचार सेवा के विश्वव्यापी जाल में प्रवेश करता है और अंत में वांछित पत्रकार के राष्ट्रीय जाल में।
जनता को सर्वोत्तम संभव सेवा प्रदान करने के लिए और इस क्षेत्र में हो रहे विकास को ध्यान में रखते हुए, विदेश संचार सेवा समय समय पर आधुनिक प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करती है। उदाहरण के लिए, आर्वी में हमारे उपग्रह भू-केंद्र को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में ऐसे केंद्रों के प्रादुर्भाव के एक वर्ष के भीतर ही चालू किया गया। उसी तरह संग्रहीत कार्यक्रम नियंत्रित (एस. पी. सी.) किस्म की पूर्णत: इलैक्ट्रानीय टैलेक्स विपथन (स्विचिंग) प्रणाली लगभग 5 वर्ष पहले बंबई गेटवे केंद्र पर ऐसी प्रथम प्रणाली की स्थापना के साथ शुरू की गई।
इस वर्ष फरवरी से उत्तरोत्तर सेवा के लिए बंबई, नई दिल्ली और मद्रास स्थित विदेश संचार सेवा के गेटवे टेलीफ़ोन केंद्रों के चालू हो जाने से भारत में आधुनिक एस. पी. सी. किस्म की गेटवे टेलीफ़ोन स्विचन प्रणालियाँ भी सेवा के लिए उपलब्ध हो गई है। इनसे मौजूदा विदेश संचार सेवा सुविधाओं में वृद्धि हो रही है और जनता को उपलब्ध अंतर्राष्ट्रीय टेलीफ़ोन सेवा में काफ़ी सुधार हो रहा है।
एस. पी. सी. किस्म की इलैक्ट्रानीय संदेश पुनप्रेषण प्रणालियाँ शुरू करके अंतर्राष्ट्रीय तार सेवा को भी आधुनिक बनाया जा रहा है। ऐसी एक प्रणाली बंबई में पहले से ही कार्यरत है, नई दिल्ली के लिए समान प्रणाली की व्यवस्था की गई है और मद्रास में इस प्रणाली के लिए काम हो रहा है। एस. पी. सी. प्रणालियों से तार सेवा के स्तर में सुधार होने के अतिरिक्त उसकी गति भी तेज हो जाती है।
हाल ही में हमारी प्रधानमंत्री ने भारत और सोवियत समाजवादी गणतंत्र संघ के बीच ट्रोपोस्केटर प्रणाली का उदघाटन किया, जिससे विदेश संचार सेवा प्रचालनों में एक और नयी तकनीक का समावेश हो गया। इस संपर्क से, जिसमें विवर्तन-द्वय (डबल डिफ़्रेक्शन) प्रणाली काम करती है, भारत और सोवियत समाजवादी गणतंत्र संघ के बीच सीधी चौबीस घंटे दूरसंचार सेवाओं के लिए विभिन्न माध्यम प्राप्त होते हैं।
आई. ओ. काम. केबल से विश्व के कई देशों के साथ भारत की बाह्य दूरसंचार सेवाओं में अभी एक और विभिन्नता सुलभ होगी और उपग्रह संचार तंत्र में आकस्मिक बाधाओं के दौरान यह वैकल्पिक मार्ग के रूप में काम करेगा तथा इस तरह भारत की विदेश संचार सेवाओं की निरंतरता और सुरक्षा बनी रहेगी। आई. ओ. काम. के पश्चात स्वाभाविक विस्तार क्रम में सरकार बंबई से खाड़ी क्षेत्रों तक के लिए चौड़ी पट्टी वाले अंत:समुद्री टेलीफ़ोन केबल की योजना की ओर अग्रसर है। इसके द्वारा पहले से ही विद्यमान उपग्रह सुविधाओं के साथ इस मार्ग पर परियात की सघनता से निपटा जा सकता है। विभिन्न प्रकार की मांगों को पूरा करने के लिए मद्रास और बंबई के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भारत-पार सूक्ष्म तरंग कड़ी दोनों अंत:समुद्री केबलों को जोड़ेगी।
समुद्री समुदाय को उच्च स्तर और विश्वसनीय उपग्रह संचार सुविधाएँ प्रदान करने के लिए भारत 'इनमारसैट' नाम के अंतर्राष्ट्रीय संघटन में शामिल हो गया है, जिस पर विदेश संचार सेवा को अभिहित सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया है। भारत में 'इनमारसैट' समुद्र तटीय भू-केंद्र बंबई के पास स्थापित किया जाने वाला है। इस के 1984 तक सेवा के लिए उपलब्ध हो जाने की आशा है।
1971 से विश्वसनीय अंतर्राष्ट्रीय संचार प्रणाली के उपलब्ध हो जाने के कारण 1970-71 की परियात मात्राओं की तुलना में 1974-75 में अंतर्राष्ट्रीय टेलीफ़ोन परियात 8 गुने और टेलेक्स परियात 3 गुने बढ़ गए थे। 1980-81 के तत्संबंधी आंकड़े क्रमश: लगभग 14 गुने और 16 गुने हैं।
3 सार्वजनिक सेवाओं नामत: टेलीफ़ोन, टेलेक्स और तार के अतिरिक्त विदेश संचार सेवा प्रेस प्रसारण, कार्यक्रम, पारेषण, वायसकास्ट, रेडियो फ़ोटो, अंतर्राष्ट्रीय दूरदर्शन रिले, पट्टे पर दिये हुए निजी दूरमुद्रक परिपथ, आंकड़ा सेवाएँ आदि जैसी अन्य सेवाएँ भी प्रदान करती है। एस. पी. सी. टाइप गेटवे टेलेक्स केंद्रों के जरिए ग्राहक परिचालित अंतर्राष्ट्रीय टेलेक्स सेवा फिलहाल लगभग 80 से भी अधिक देशों को उपलब्ध है। इन देशों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। भारतीय प्रयोक्ताओं के लिए कई विशिष्ट सेवाएँ भी शुरू की गई हैं, जैसे काल (Call) की अवधि की स्वत: सूचना, लाइन का संबंध तोड़े बिना दूसरे कालों को रखना, विस्तृत बिलिंग आदि।
एस. पी. सी. टाइप की गेटवे टेलीफ़ोन स्विचन प्रणालियों के चालू हो जाने से अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक परिचालित (आई. एस. डी.) टेलीफ़ोन सेवा का, जो कि इस समय केवल बंबई, कलकत्ता, नई दिल्ली और मद्रास में संयुक्तांगल राज्य (यूनाइटेड किंगडम) को उपलब्ध है, धीरे धीरे विश्व के और बहुत से देशों तक विस्तार किया जाएगा। इस बीच संग्रह और प्रेषण टेलेक्स सेवा, उच्च गति ब्यूरोफ़ैक्स सेवा और आंकड़ा आधार सेवा भी विभिन्न प्रगति चरणों में है।
कार्य संचालन में द्रुत प्रत्युत्तर सापेक्ष विश्वव्यापी सहयोग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार एक जटिल अभ्यास है। किसी भी देश विशेष में अंतर्राष्ट्रीय गेटवे प्रणालियों को एक ओर तो अपने राष्ट्रीय दूरसंचारों के लिए प्रयुक्त प्रणालियों के अनिवार्य रूप से अनुरूप होना पड़ता है, जिसके साथ सीधे प्रचालन स्थापित किये जाने हैं। इसलिए गेटवे प्रणालियाँ, आम तौर पर आकार में छोटी परंतु बहुत जटिल होती हैं। दूसरे देशों में हो रहे विकासों के बारे में सूचनाएँ इकट्ठी और लगातार सामयिक करनी पड़ती हैं। पूर्व तैयारियों के बावजूद किसी नये देश के साथ सेवा शुरू करने के पहले सक्रिय परिपथों की विस्तृत जाँच की जाती है। बहुधा इन विस्तृत जाँचों के परिणाम स्वरूप प्रणालियों में आपरिवर्तन करने की ज़रूरत पड़ जाती है।
चौड़ी पट्टी वाली अंतर्राष्ट्रीय पारेषण प्रणालियाँ सामान्यतया संयुक्त उपक्रम होती है। 'इनटेलसैट' उपग्रह प्रणाली, जिसकी मार्फत आज कल अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचारों का महत्त्वपूर्ण भाग सुलभ कराया जाता है, संसार के अधिकांश देशों के द्वारा उपग्रह सुविधाओं के उनके प्रयोग के अनुपात में पूँजी भाग ग्रहण से स्थापित की गई है। भू-केंद्र की व्यवस्था संबंधित देशों को करनी पड़ती है। अंत:समुद्री केबलों के लिए दो देशों के बीच सहकारी प्रयास की अपेक्षा होती है, तथापि बहुधा इसमें अधिक देश अंतर्निहित होते हैं।
जब 'क' देश से 'ख' देश को काल किया जाता है, तब पहला दूसरे को उसके गेटवे और राष्ट्रीय सुविधाओं का प्रयोग करने के लिए भुगतान करता है। इस प्रभार के लिए सेवा प्रदान की जाने से पहले ही समझौता कर लिया जाता है। यदि काल मार्ग में 'ग' देश से होकर गुजरता है तो 'ग' द्वारा अपेक्षित भुगतान के लिए भी समझौता कर लेना पड़ता है। भाग्यवश अंतर्राष्ट्रीय दूर संचारक दूरभाष और टेलेक्स के जरिए एक दूसरे से परामर्श करने और विभिन्न प्रकार के समझौते करने में समर्थ हैं। औपचारिक समझौते अपवाद हैं।
वर्ष में एक बार पाँच वर्षों की अवधि के लिए सुविधाओं के परस्पर सम्मत पूर्वानुमान को देशों के बीच विनिमयित किया जाता है। इसी से प्रत्येक देश में गेटवे और पारेषण प्रणाली योजना का आधार तैयार होता है। समय समय पर परियात के मापन किये जाते हैं। इन मापनों के संकेतानुसार देश विशेष के साथ परिपथों में वृद्धि की जाती है। परियात विकासी और परिपथों का निष्पादन परस्पर सहयोग से विश्लेषित किया जाता है और जहाँ आवश्यक हो, सुधारक कार्रवाई की जाती है।
सहयोग और परामर्श के उपर्युक्त कुछ उदाहरण हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार सुलभ कराने के लिए आवश्यक है और जिसमें विदेश संचार सेवा ने अपेक्षित निपुणता प्राप्त कर ली है। समय समय पर अपनी प्रणालियों में वृद्धि तथा आधुनिकता और नयी नयी सेवाओं को चालू करके विदेश संचार सेवा आगे बढ़ने और प्रयोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।

 



टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन 1983
क्रमांक लेख का नाम लेखक
हिन्दी और सामासिक संस्कृति
1. हिन्दी साहित्य और सामासिक संस्कृति डॉ. कर्ण राजशेषगिरि राव
2. हिन्दी साहित्य में सामासिक संस्कृति की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति प्रो. केसरीकुमार
3. हिन्दी साहित्य और सामासिक संस्कृति डॉ. चंद्रकांत बांदिवडेकर
4. हिन्दी की सामासिक एवं सांस्कृतिक एकता डॉ. जगदीश गुप्त
5. राजभाषा: कार्याचरण और सामासिक संस्कृति डॉ. एन.एस. दक्षिणामूर्ति
6. हिन्दी की अखिल भारतीयता का इतिहास प्रो. दिनेश्वर प्रसाद
7. हिन्दी साहित्य में सामासिक संस्कृति डॉ. मुंशीराम शर्मा
8. भारतीय व्यक्तित्व के संश्लेष की भाषा डॉ. रघुवंश
9. देश की सामासिक संस्कृति की अभिव्यक्ति में हिन्दी का योगदान डॉ. राजकिशोर पांडेय
10. सांस्कृतिक समन्वय की प्रक्रिया और हिन्दी साहित्य श्री राजेश्वर गंगवार
11. हिन्दी साहित्य में सामासिक संस्कृति के तत्त्व डॉ. शिवनंदन प्रसाद
12. हिन्दी:सामासिक संस्कृति की संवाहिका श्री शिवसागर मिश्र
13. भारत की सामासिक संस्कृृति और हिन्दी का विकास डॉ. हरदेव बाहरी
हिन्दी का विकासशील स्वरूप
14. हिन्दी का विकासशील स्वरूप डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित
15. हिन्दी के विकास में भोजपुरी का योगदान डॉ. उदयनारायण तिवारी
16. हिन्दी का विकासशील स्वरूप (शब्दावली के संदर्भ में) डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया
17. मानक भाषा की संकल्पना और हिन्दी डॉ. कृष्णकुमार गोस्वामी
18. राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास, महत्त्व तथा प्रकाश की दिशाएँ श्री जयनारायण तिवारी
19. सांस्कृतिक भाषा के रूप में हिन्दी का विकास डॉ. त्रिलोचन पांडेय
20. हिन्दी का सरलीकरण आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा
21. प्रशासनिक हिन्दी का विकास डॉ. नारायणदत्त पालीवाल
22. जन की विकासशील भाषा हिन्दी श्री भागवत झा आज़ाद
23. भारत की भाषिक एकता: परंपरा और हिन्दी प्रो. माणिक गोविंद चतुर्वेदी
24. हिन्दी भाषा और राष्ट्रीय एकीकरण प्रो. रविन्द्रनाथ श्रीवास्तव
25. हिन्दी की संवैधानिक स्थिति और उसका विकासशील स्वरूप प्रो. विजयेन्द्र स्नातक
देवनागरी लिपि की भूमिका
26. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में देवनागरी श्री जीवन नायक
27. देवनागरी प्रो. देवीशंकर द्विवेदी
28. हिन्दी में लेखन संबंधी एकरूपता की समस्या प्रो. प. बा. जैन
29. देवनागरी लिपि की भूमिका डॉ. बाबूराम सक्सेना
30. देवनागरी लिपि (कश्मीरी भाषा के संदर्भ में) डॉ. मोहनलाल सर
31. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में देवनागरी लिपि पं. रामेश्वरदयाल दुबे
विदेशों में हिन्दी
32. विश्व की हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ डॉ. कामता कमलेश
33. विदेशों में हिन्दी:प्रचार-प्रसार और स्थिति के कुछ पहलू प्रो. प्रेमस्वरूप गुप्त
34. हिन्दी का एक अपनाया-सा क्षेत्र: संयुक्त राज्य डॉ. आर. एस. मेग्रेगर
35. हिन्दी भाषा की भूमिका : विश्व के संदर्भ में श्री राजेन्द्र अवस्थी
36. मारिशस का हिन्दी साहित्य डॉ. लता
37. हिन्दी की भावी अंतर्राष्ट्रीय भूमिका डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा
38. अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में हिन्दी प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद
39. नेपाल में हिन्दी और हिन्दी साहित्य श्री सूर्यनाथ गोप
विविधा
40. तुलनात्मक भारतीय साहित्य एवं पद्धति विज्ञान का प्रश्न डॉ. इंद्रनाथ चौधुरी
41. भारत की भाषा समस्या और हिन्दी डॉ. कुमार विमल
42. भारत की राजभाषा नीति श्री कृष्णकुमार श्रीवास्तव
43. विदेश दूरसंचार सेवा श्री के.सी. कटियार
44. कश्मीर में हिन्दी : स्थिति और संभावनाएँ प्रो. चमनलाल सप्रू
45. भारत की राजभाषा नीति और उसका कार्यान्वयन श्री देवेंद्रचरण मिश्र
46. भाषायी समस्या : एक राष्ट्रीय समाधान श्री नर्मदेश्वर चतुर्वेदी
47. संस्कृत-हिन्दी काव्यशास्त्र में उपमा की सर्वालंकारबीजता का विचार डॉ. महेन्द्र मधुकर
48. द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन : निर्णय और क्रियान्वयन श्री राजमणि तिवारी
49. विश्व की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी का स्थान डॉ. रामजीलाल जांगिड
50. भारतीय आदिवासियों की मातृभाषा तथा हिन्दी से इनका सामीप्य डॉ. लक्ष्मणप्रसाद सिन्हा
51. मैं लेखक नहीं हूँ श्री विमल मित्र
52. लोकज्ञता सर्वज्ञता (लोकवार्त्ता विज्ञान के संदर्भ में) डॉ. हरद्वारीलाल शर्मा
53. देश की एकता का मूल: हमारी राष्ट्रभाषा श्री क्षेमचंद ‘सुमन’
विदेशी संदर्भ
54. मारिशस: सागर के पार लघु भारत श्री एस. भुवनेश्वर
55. अमरीका में हिन्दी -डॉ. केरीन शोमर
56. लीपज़िंग विश्वविद्यालय में हिन्दी डॉ. (श्रीमती) मार्गेट गात्स्लाफ़
57. जर्मनी संघीय गणराज्य में हिन्दी डॉ. लोठार लुत्से
58. सूरीनाम देश और हिन्दी श्री सूर्यप्रसाद बीरे
59. हिन्दी का अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य श्री बच्चूप्रसाद सिंह
स्वैच्छिक संस्था संदर्भ
60. हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ श्री शंकरराव लोंढे
61. राष्ट्रीय प्रचार समिति, वर्धा श्री शंकरराव लोंढे
सम्मेलन संदर्भ
62. प्रथम और द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन: उद्देश्य एवं उपलब्धियाँ श्री मधुकरराव चौधरी
स्मृति-श्रद्धांजलि
63. स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि डॉ. प्रभाकर माचवे