"आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
! style="width:25%;"| संबंधित चित्र | ! style="width:25%;"| संबंधित चित्र | ||
! style="width:15%;"| दिनांक | ! style="width:15%;"| दिनांक | ||
|- | |||
| | |||
<poem> | |||
लायक़ नहीं हैं हम तेरे, तू प्यार क्यूँ करे | |||
कोई गुल भला, ख़िज़ाओं से दीदार क्यूँ करे | |||
किस्मत ही दिल फ़रेब थी, तू बेवफ़ा नहीं | |||
बंदा ख़ुदा से क्या कहे इसरार क्यूँ करे | |||
जब चारागर ही मर्ज़ है तो किससे क्या कहें | |||
शब-ए-हिज़्र, अब रह-रह मुझे बीमार क्यूँ करे | |||
ख़ामोश आइने को अब इल्ज़ाम कितने दें | |||
तू ज़िन्दगी की सुबह यूँ बेज़ार क्यूँ करे | |||
परछाइयाँ भी खो गईं ज़ुलमत के साए में | |||
तू आ के, मेरा ज़िक्र ही बेकार क्यूँ करे | |||
</poem> | |||
| | |||
| 18 फ़रवरी, 2015 | |||
|- | |||
| | |||
<poem> | |||
स्वामी विवेकानंद एक सभा में 'शब्द' की महिमा बता रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा- | |||
"शब्द का कोई मूल्य नहीं कोई महत्व नहीं है और आप शब्द को सबसे महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं... जबकि ध्यान की तुलना में शब्द कुछ भी नहीं है" | |||
विवेकानंद ने कहा- | |||
"बैठ जा मूर्ख, खड़ा क्यों हो गया।" | |||
उस व्यक्ति ने नाराज़ होकर कहा- | |||
"आप मुझे मूर्ख कह रहे हैं। यह भी कोई सभ्यता है ?" | |||
"क्यों बुरा लगा ? मूर्ख भी तो शब्द ही है। इस एक शब्द से आपका पूरा संतुलन डगमगा गया। अब आपकी समझ में आ गया होगा कि शब्द का कितना महत्व है।" | |||
शब्द की महिमा अपार है लेकिन हमारे नेता इस महिमा को भूलते जा रहे हैं।... | |||
</poem> | |||
| | |||
| 17 फ़रवरी, 2015 | |||
|- | |- | ||
| | | | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 55: | ||
| [[चित्र:Swine-flue.jpg|250px|center]] | | [[चित्र:Swine-flue.jpg|250px|center]] | ||
| 7 फ़रवरी, 2015 | | 7 फ़रवरी, 2015 | ||
|- | |||
| | |||
<poem> | |||
क्या विश्वास एक ऐसा भ्रम नहीं है जो अब तक टूटा नहीं... | |||
</poem> | |||
| | |||
| 4 फ़रवरी, 2015 | |||
|- | |- | ||
| | | |
07:17, 19 फ़रवरी 2015 का अवतरण
|