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| <poem> | | <poem> |
| आज निर्गत, नीर निर्झर नयन से होता गया
| | पीते हम हैं |
| त्याग कर मेरा हृदय वह क्यों विलग होता गया
| | बहकते आप हैं |
| | | जीते हम हैं |
| शब्द निष्ठुर, रूठकर करते रहे मनमानियां
| | चहकते आप हैं |
| प्रेम का संदेश कुछ था और कुछ होता गया
| | खिलते हम हैं |
| | | महकते आप हैं |
| मैं अधम, शोषित हुआ, अपने ही भ्रामक दर्प से
| | रोते हम हैं |
| क्रूर समयाघात सह, अवसादमय होता गया
| | सिसकते आप हैं |
| | | और... |
| कर रही विचलित, कि ज्यों टंकार प्रत्यंचा की हो
| | जलते हम हैं |
| नाद सुन अपने हृदय का मैं द्रवित होता गया
| | दहकते आप हैं |
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| मैं, अपरिचित काल क्रम की रार में विभ्रमित था
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| वह निरंतर शुभ्र तन औ शांत मन होता गया
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| </poem>
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| | [[चित्र:Kyon-vilag-hota-gaya-Aditya-Chaudhary.jpg|cetner|250px]]
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| | 21 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| जो भी मैंने तुम्हें बताया
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| जो कुछ सारा ज्ञान दिया है
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| वो मेरे असफल जीवन का
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| और मिरे अपराधी मन का
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| कुंठाओं से भरा-भराया
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| कुछ अनुभव था
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| जितनी भूलें मैंने की थीं
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| जितने मुझको शूल चुभे थे
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| उतने ही अब फूल चुनूँ और
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| सेज बना दूँ, ऐसा है मन
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| और एक सपना भी है
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| मेरा ही अपना
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| मेरे भय ने मुझे सताया
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| जीवन के अंधियारे पल थे
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| जितने भी वो सारे कल थे
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| दूर तुम्हें उनसे ले जाऊँ
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| कहना यही चाहता हूँ मैं
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| ये कम है क्या?
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| मन से भाग सकूँगा कैसे
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| कोई भाग सका भी है क्या
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| कोई नहीं बता सकता है
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| कोई नहीं जता सकता है
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| ये तो बस, सब ऐसा ही है
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| समझ सको तो समझ ही लेना
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| प्रेम किया है जैसा भी है
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| और नहीं मालूम मुझे कुछ
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| यही प्रेम पाती है मेरी
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| नहीं जानता लिखना कुछ भी
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| जैसे-तैसे यही लिखा है...
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| </poem>
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| | [[चित्र:Aditya-Chaudhary-03.jpg|cetner|250px]]
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| | 20 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| प्रिय मित्रो! मेरी एक और रचना, क़ता-कविता आपके सामने। यह मैंने 20 वर्ष की उम्र में कही थी।
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| नहीं थी बात कोई भी जिसे कि भूले हम
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| रही हो याद कोई भी हमें तो याद नहीं
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| कुछ इस तरहा गुज़री ये ज़िन्दगी अपनी
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| जिया हो लम्हा कोई भी हमें तो याद नहीं
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| हरेक चोट पे मरहम लगा के देख लिया
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| भरा हो ज़ख़्म कोई भी हमें तो याद नहीं
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| पिलाई हमको गई, नहीं किसी से कम
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| हुआ हो हमको नशा भी हमें तो याद नहीं
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| मिले थे लोग बहुत, चले थे साथ कई
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| बना हो दोस्त कोई भी हमें तो याद नहीं
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| सन् 1981 दिल्ली में कही थी
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| </poem>
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| | [[चित्र:Nahi-thi-koi-bat-Aditya-Chaudhary.jpg|cetner|250px]]
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| | 19 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| कोई मुस्कान ऐसी है जो हरदम याद आती है
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| छिड़कती जान ऐसी है वो हरदम याद आती है
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| अंधेरी ठंड की रातों में बस लस्सी ही पीनी है
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| फुला के मुंह जो बैठी है वो हरदम याद आती है
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| कभी हर बात पे हाँ है कभी हर बात पे ना है
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| पटक कर पैर खिसियाती वो हरदम याद आती है
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| शरारत आँखों में तैरी है और मैं देख ना पाऊँ
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| झुकी नज़रों की शैतानी वो हरदम याद आती है
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| न जाने कौन से जन्मों में मोती दान कर बैठा
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| कई जन्मों के बंधन से वो हरदम याद आती है
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| </poem>
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| | [[चित्र:Hardam-yad-ati-hai-aditya-chaudhary.jpg|cetner|250px]]
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| | 19 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| तुझे देख लूँ और चुप रहूँ ऐसा हुनर मुझमें कहाँ
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| तेरे साथ हूँ, तुझे ना छुऊँ ऐसा हुनर मुझमें कहाँ
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| </poem>
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| | 18 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| लायक़ नहीं हैं हम तेरे, तू प्यार क्यूँ करे
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| कोई गुल भला, ख़िज़ाओं से दीदार क्यूँ करे
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| किस्मत ही दिल फ़रेब थी, तू बेवफ़ा नहीं
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| बंदा ख़ुदा से क्या कहे इसरार क्यूँ करे
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| जब चारागर ही मर्ज़ है तो किससे क्या कहें
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| शब-ए-हिज़्र, अब रह-रह मुझे बीमार क्यूँ करे
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| ख़ामोश आइने को अब इल्ज़ाम कितने दें
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| तू ज़िन्दगी की सुबह यूँ बेज़ार क्यूँ करे
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| परछाइयाँ भी खो गईं ज़ुलमत के साए में
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| तू आ के, मेरा ज़िक्र ही बेकार क्यूँ करे
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| </poem>
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| | [[चित्र:Kyun-Kare-Aditya-Chaudhary.jpg|cetner|250px]]
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| | 18 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| स्वामी विवेकानंद एक सभा में 'शब्द' की महिमा बता रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा-
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| "शब्द का कोई मूल्य नहीं कोई महत्व नहीं है और आप शब्द को सबसे महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं... जबकि ध्यान की तुलना में शब्द कुछ भी नहीं है"
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| विवेकानंद ने कहा-
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| "बैठ जा मूर्ख, खड़ा क्यों हो गया।"
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| उस व्यक्ति ने नाराज़ होकर कहा-
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| "आप मुझे मूर्ख कह रहे हैं। यह भी कोई सभ्यता है ?"
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| "क्यों बुरा लगा ? मूर्ख भी तो शब्द ही है। इस एक शब्द से आपका पूरा संतुलन डगमगा गया। अब आपकी समझ में आ गया होगा कि शब्द का कितना महत्व है।"
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| शब्द की महिमा अपार है लेकिन हमारे नेता इस महिमा को भूलते जा रहे हैं।...
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| </poem>
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| | 17 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| स्वाइन फ़्लू फैल रहा है। जानलेवा है। बहुत ध्यान से रहें। इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी प्राप्त करें और सबको बताएँ। मास्क लगा कर रहें। इसमें शर्म की कोई बात नहीं। डॉक्टर से सलाह लें। विटेमिन सी अधिक लें।
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| हर किसी को अपना मुँह और अपनी नाक ढक कर रखना जरूरी है, खासकर तब जब कोई छींक रहा हो।
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| बार-बार हाथ धोना जरूरी है।
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| अगर किसी को ऐसा लगता है कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है तो उन्हें घर पर रहना चाहिये। ऐसी स्थिति में काम या स्कूल पर जाना उचित नहीं होगा और जहां तक हो सके भीड़ से दूर रहना फायदेमंद साबित होगा।
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| अगर सांस लेने में तकलीफ होती है, या फिर अचानक चक्कर आने लगते हैं, या उल्टी होने लगती है तो ऐसे हालात में फ़ौरन डॉक्टर के पास जाना जरूरी है।
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| खराब पानी से दूर रहें।
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| </poem>
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| | [[चित्र:Swine-flue.jpg|250px|center]]
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| | 7 फ़रवरी, 2015
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| <poem>
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| क्या विश्वास एक ऐसा भ्रम नहीं है जो अब तक टूटा नहीं...
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| </poem> | | </poem> |
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| | 4 फ़रवरी, 2015 | | | 7 मार्च, 2015 |
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| <poem> | | <poem> |
| कि तुम कुछ इस तरह आना
| | आख़िर होली ने भी रंग बदल ही लिया ... |
| मेरे दिल की दुछत्ती में
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| लगे ऐसा कि जैसे रौशनी है
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| दिल के आंगन में
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| बरसना फूल बन गेंदा के
| | सुहानी सुबह |
| मेरे भव्य स्वागत को
| | आज इक और होली |
| और बन हार डल जाना | |
| मेरी झुकती सी गरदन में
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| सुबह की चाय की चुसकी की
| | अलसाई आखोँ से |
| तुम आवाज़ हो जाना
| | शरमा के बोली |
| सुगंधित तेल बन बिखरो
| | मुझे ख़ूब खेला है |
| फिसलना मेरे बालों में
| | मैं भी तो खेलूँ |
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| रसोई के मसालों सी रोज़
| | वो दिन गए |
| महकाओ घर भर को
| | जब थी सीधी और भोली |
| कढ़ी चावल सा लिस जाना
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| मेरे हाथों में होठों में
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| मचलना, सीऽ-सीऽ होकर
| | पहले मेरी ज़ात के लोग लाओ |
| चाट की चटख़ारियों में तुम
| | या उनके मज़हब से वाकिफ़ कराओ |
| कभी खट्टा, कभी मीठा लगो
| | यूँ ही मुझे कोई छूएगा कैसे |
| तुम स्वाद चटनी में
| | कोई ग़ैर कैसे करेगा ठिठोली |
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| मेरी आँखों के गुलशन में
| | बहुत मौज लेली है फोकट में राजा |
| रहो राहत भरी झपकन
| | मुझको भी दारू की बोतल पिलाओ |
| सहमना और सिकुड़ जाना
| | रंगों की मस्ती में रक्खा ही क्या है |
| छुईमुई बन के सपनों में
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| कहूँ क्या मैं तो
| | मैं इस शहर में और तुम उस शहर में |
| इक सीधा और सादा सा बंदा हूँ
| | ई-कार्ड से रंग दिखाओ-सुनाओ |
| ग़रज़ ये है कि मिलता है
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| तुम्हीं से सार जीवन में
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| </poem>
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| | 2 फ़रवरी, 2015
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| {| width="100%"
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| |-valign="top"
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| <poem>
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| यह स्तुति अब तुम बंद करो
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| अर्जुन ! जाओ अब तंग न करो
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| ऐसा कह मौन हुए केशव
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| सहमे से खड़े हुए थे सब
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| सहसा विराट बन हुए अचल
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| यह रूप देख सब थे निश्चल
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| गंभीर रूप रौरव था स्वर
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| नि:श्वास छोड़ फिर हुए मुखर
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| अर्जुन! सुन मेरी करुण कथा
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| जब कोई नहीं था बस मैं था
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| इन सूर्य चंद्र से भी पहले
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| मैं ही मैं था, मैं ही मैं था
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| मैं अगम अगोचर अनजाना
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| कोई साथ नहीं मैंने जाना
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| ब्रह्मांड-व्योम बिन जीता था
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| अस्तित्व, काल से रीता था
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| अमरत्व नहीं मैंने पाया
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| ना काल मुझे ग्रसने आया
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| कोई आदि नहीं मेरा होता
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| चिर निद्रा लीन नहीं होता
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| मुझको एकांत सताता था
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| मैं यूं ही जीये जाता था
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| फिर एक दिवस ऐसा आया
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| मैं रचूँ सृष्टि, मुझको भाया
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| मैंने ही सृष्टि रची अर्जुन !
| | यूँ भी अलर्जी है मुझको रंगों से |
| अब सुनो बुद्धि से श्रेष्ठ वचन
| | कुछ भी करो यार |
| मनुजों के लिए नहीं थी ये
| | रंग ना लगाओ |
| सब जड़-चेतन समरस ही थे
| | रंग ना लगाओ |
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| पर मानव इसका केन्द्र बना
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| विज्ञान ज्ञान का सेतु तना
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| हर प्राणी पीछे छूट गया
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| मैं भी मानव से रूठ गया
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| मैंने रचकर संसार सकल
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| होते देखा सब कुछ निष्फल
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| कोई और नहीं खोता कुछ भी
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| मरता मैं हूँ कोई और नहीं
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| </poem>
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| <poem>
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| तुम मुझे सर्वव्यापी कहकर
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| कर रहे पाप सब रह रह कर
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| मैं ही हंता, सृष्टा मैं ही ?
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| कृष्ण, कंस दोनों मैं ही?
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| यदि स्वयं कंस में भी रहता
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| वह दुष्ट भला कैसे मरता
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| कुछ तो विवेक से भान करो
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| सद्गुणी जनों का ध्यान धरो
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| क्यों नहीं तुम्हें यह ज्ञान हुआ
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| किस कारण ये अज्ञान हुआ
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| अपराधी मुझको मान लिया
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| मैंने मुझको ही दंड दिया?
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| अर्जुन! कैसा है ये अनर्थ
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| मेरा, होना ही हुआ व्यर्थ
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| किसकी ऐसी अभिलाषा थी?
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| जो मेरी ये परिभाषा की?
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| रक्तिम आँखों के ज्वाल देख
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| अर्जुन, भगवन् का भाल देख
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| आँखें मलता सब सुना किया
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| जैसे-तैसे मन शांत किया
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| क्या हंता हो सकती माता
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| क्या काल पिता लेकर आता
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| जिसने तुमको यह जन्म दिया
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| उसको तुमने यम रूप दिया
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| यदि पिता मुझे तुम कहते हो
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| तो क्यों सहमे से रहते हो
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| मैं नहीं, देव-दानव कोई
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| निज ममता नहीं कभी सोई
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| दुष्टों में नहीं वास करता
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| मैं मित्र सखा हूँ उन सबका
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| जो करुणा का रस पीते हैं
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| समदृष्टि भाव से जीते हैं
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| कण-कण में बसा नहीं हूँ मैं
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| सद हृदय ढूँढता शनै: शनै:
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| और फिर उसमें बस जाता हूँ
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| जीवन की गीता गाता हूँ
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| </poem> | | </poem> |
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| | | [[चित्र:Holi-peom-Aditya-Chaudhary.jpg|250px|center]] |
| | [[चित्र:Aditya-chaudhary-facebook-post-2.jpg|250px|center]] | | | 3 मार्च, 2015 |
| | 1 फ़रवरी 2015 | |
| |} | | |} |
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| ==शब्दार्थ== | | ==शब्दार्थ== |