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|शीर्षक 1=भाषाविज्ञान की दृष्टि से  
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|पाठ 1= यह कंठ्य, घोष, अल्पप्राण और स्पर्श है। इसका महाप्राण रूप ‘घ’ है।  
|पाठ 1= ‘घ्’ व्यंजन स्पर्श, कंठ्य, घोष और महाप्राण है। इसका अल्पप्राण रूप ‘ग्’ है।  
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|पाठ 2= [ [[संस्कृत]] गै+] [[पुल्लिंग]]- गणेश, गंधर्व, गीत (छ्न्द) गुरु वर्ण का संकेताक्षर, (संगीत) गांधार स्वर का संक्षिप्त रूप।
|पाठ 2=[ [[संस्कृत]] घट्+] [[पुल्लिंग]]- घंटा, घर्घर (शब्द), बादलों का समूह, मेघमाला, घटा।
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|पाठ 3= ‘ग’ के पहले आए ‘ङ्’ का सन्युक्त रूप ङ्ग बनता है (अङ्ग, भङ्गी) जिसे मुद्रण आदि की सुविधा के लिये ‘ङ्’ के स्थान पर शिरोरेखा के ऊपर बिन्दी लगाकर लिखना अधिक प्रचलित है।
|पाठ 3= ‘घ्’ के बाद आने वाले व्यंजनों ‘न, य, र’ से बनने वाले सन्युक्त रूप ध्यान देने योग्य हैं- क्रमश: ‘घ्न’, ‘घ्य’, ‘घ्र’ (विघ्न, शत्रुघ्न, श्लाघ्य, व्याघ्र, शीघ्र)
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|अन्य जानकारी= ‘ग’ व्यंजन अपने बाद आने वाले व्यंजनों से मिलने पर प्राय: अपनी खड़ी रखा छोड़कर सन्युक्त रूप बनाता है [ग्ण (रूग्ण), ग्ध (दुग्ध), ग्न (भग्न), ग्म (युग्म), ग्य (आरोग्य)] परंतु ‘र’ के साथ उसका सन्युक्त रूप ‘ग्र’ (समग्र, अग्र, ग्राम, ग्रीवा) ध्यान देने योग्य है।  
|अन्य जानकारी= कवर्ग का पंचम वर्ण अर्थात् नासिक्य व्यंजन ‘ङ्’, के बाद में आने वाले ‘घ’ से मिलकर, ‘ङ्घ’ रूप ग्रहण करता है (सङ्घ, कङ्घा, कङ्घी) परंतु मुद्रण आदि की सुविधा के लिए ‘ङ्’ के स्थान पर शिरोरेखा के ऊपर अनुनासिक की बिंदी के समान बिंदी लगाकर लिखना अधिक प्रचलित है।  
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'''घ''' [[देवनागरी वर्णमाला]] में कवर्ग का चौथा [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] होता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से ‘घ्’ व्यंजन स्पर्श, कंठ्य, घोष और महाप्राण है। इसका अल्पप्राण रूप ‘ग्’ है।  
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* [ [[संस्कृत]] घट्+ड ] [[पुल्लिंग]]- घंटा, घर्घर (शब्द), बादलों का समूह, मेघमाला, घटा।  
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* संस्कृत में ‘घ’ प्रत्यय के रूप में भी प्रयुक्त होता है। [[संज्ञा (व्याकरण)|संज्ञा]] शब्द के अंत में जुड़ने पर उसका [[विशेषण]] रूप बनता है जो ‘हत्या करने वाला’ या ‘मारने वाला’ अर्थ देता है जैसे—राजघ (= राजा को मारने वाला)।
* संस्कृत में ‘घ’ प्रत्यय के रूप में भी प्रयुक्त होता है। [[संज्ञा (व्याकरण)|संज्ञा]] शब्द के अंत में जुड़ने पर उसका [[विशेषण]] रूप बनता है जो ‘हत्या करने वाला’ या ‘मारने वाला’ अर्थ देता है जैसे—राजघ (= राजा को मारने वाला)।
==घ की बारहखड़ी==
==घ की बारहखड़ी==
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11:34, 15 दिसम्बर 2016 का अवतरण

विवरण देवनागरी वर्णमाला में कवर्ग का चौथा व्यंजन होता है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से ‘घ्’ व्यंजन स्पर्श, कंठ्य, घोष और महाप्राण है। इसका अल्पप्राण रूप ‘ग्’ है।
व्याकरण [ संस्कृत घट्+ड ] पुल्लिंग- घंटा, घर्घर (शब्द), बादलों का समूह, मेघमाला, घटा।
विशेष ‘घ्’ के बाद आने वाले व्यंजनों ‘न, य, र’ से बनने वाले सन्युक्त रूप ध्यान देने योग्य हैं- क्रमश: ‘घ्न’, ‘घ्य’, ‘घ्र’ (विघ्न, शत्रुघ्न, श्लाघ्य, व्याघ्र, शीघ्र)।
संबंधित लेख , , ,
अन्य जानकारी कवर्ग का पंचम वर्ण अर्थात् नासिक्य व्यंजन ‘ङ्’, के बाद में आने वाले ‘घ’ से मिलकर, ‘ङ्घ’ रूप ग्रहण करता है (सङ्घ, कङ्घा, कङ्घी) परंतु मुद्रण आदि की सुविधा के लिए ‘ङ्’ के स्थान पर शिरोरेखा के ऊपर अनुनासिक की बिंदी के समान बिंदी लगाकर लिखना अधिक प्रचलित है।

देवनागरी वर्णमाला में कवर्ग का चौथा व्यंजन होता है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से ‘घ्’ व्यंजन स्पर्श, कंठ्य, घोष और महाप्राण है। इसका अल्पप्राण रूप ‘ग्’ है।

विशेष-
  • ‘घ्’ के बाद आने वाले व्यंजनों ‘न, य, र’ से बनने वाले सन्युक्त रूप ध्यान देने योग्य हैं- क्रमश: ‘घ्न’, ‘घ्य’, ‘घ्र’ (विघ्न, शत्रुघ्न, श्लाघ्य, व्याघ्र, शीघ्र)।
  • ‘घ’ से पहले आने वाले ‘र्’ का सन्युक्त रूप, शिरोरेखा के ऊपर, ‘रेफ’ के रूप में होता है (दीर्घ, दीर्घा, दीर्घिका)।
  • कवर्ग का पंचम वर्ण अर्थात् नासिक्य व्यंजन ‘ङ्’, के बाद में आने वाले ‘घ’ से मिलकर, ‘ङ्घ’ रूप ग्रहण करता है (सङ्घ, कङ्घा, कङ्घी) परंतु मुद्रण आदि की सुविधा के लिए ‘ङ्’ के स्थान पर शिरोरेखा के ऊपर अनुनासिक की बिंदी के समान बिंदी लगाकर लिखना अधिक प्रचलित है (संघ, कंघा, कंघी); परंतु ‘बिंदी’ से अनुनासिक चिह्न का भ्रम हो सकता है।
  • [ संस्कृत घट्+ड ] पुल्लिंग- घंटा, घर्घर (शब्द), बादलों का समूह, मेघमाला, घटा।
  • संस्कृत में ‘घ’ प्रत्यय के रूप में भी प्रयुक्त होता है। संज्ञा शब्द के अंत में जुड़ने पर उसका विशेषण रूप बनता है जो ‘हत्या करने वाला’ या ‘मारने वाला’ अर्थ देता है जैसे—राजघ (= राजा को मारने वाला)।

घ की बारहखड़ी

घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घः

घ अक्षर वाले शब्द

  • घड़ी
  • घमण्ड
  • घटना
  • घनिष्ट
  • घर



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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