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*आरणेय पर्व।
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वन पर्व में [[पाण्डव|पाण्डवों]] का वनवास, [[भीम]]सेन द्वारा किर्मीर का वध, वन में श्री[[कृष्ण]] का पाण्डवों से मिलना, शाल्यवधोपाख्यान, पाण्डवों का [[द्वैतवन]] में जाना, [[द्रौपदी]] और भीम द्वारा [[युधिष्ठिर]] को उत्साहित करना, इन्द्रकीलपर्वत पर [[अर्जुन]] की तपस्या, अर्जुन का किरातवेशधारी [[शंकर]] से युद्ध, पाशुपतास्त्र की प्राप्ति, अर्जुन का इन्द्रलोक में जाना, नल-दमयन्ती-आख्यान, नाना तीर्थों की महिमा और युधिष्ठिर की तीर्थयात्रा, सौगन्धिक कमल-आहरण, जटासुर-वध, यक्षों से युद्ध, पाण्डवों की अर्जुन विषयक चिन्ता, निवातकवचों के साथ अर्जुन का युद्ध और निवातकवचसंहार, अजगररूपधारी [[नहुष]] द्वारा भीम को पकड़ना, युधिष्टिर से वार्तालाप के कारण नहुष की सर्पयोनि से मुक्ति, पाण्डवों का [[काम्यकवन]] में निवास और [[मार्कण्डेय]] ॠषि से संवाद, द्रौपदी का [[सत्यभामा]] से संवाद, घोषयात्रा के बहाने [[दुर्योधन]] आदि का द्वैतवन में जाना, गन्धर्वों द्वारा [[कौरव|कौरवों]] से युद्ध करके उन्हें पराजित कर बन्दी बनाना, पाण्डवों द्वारा गन्धर्वों को हटाकर दुर्योधनादि को छुड़ाना, दुर्योधन की ग्लानी, [[जयद्रथ]] द्वारा द्रौपदी का हरण, भीम द्वारा जयद्रथ को बन्दी बनाना और युधिष्ठिर द्वारा छुड़ा देना, रामोपाख्यान, पतिव्रता की महिमा, [[सावित्री सत्यवान]]  की कथा, [[दुर्वासा]] की [[कुन्ती]] द्वारा सेवा और उनसे वर प्राप्ति, [[इन्द्र]] द्वारा [[कर्ण]] से कवच-कुण्डल लेना, [[यक्ष]]-युधिष्ठिर-संवाद और अन्त में अज्ञातवास के लिए परामर्श का वर्णन है।
वन पर्व में [[पाण्डव|पाण्डवों]] का वनवास, [[भीमसेन]] द्वारा किर्मीर का वध, वन में श्री[[कृष्ण]] का पाण्डवों से मिलना, शाल्यवधोपाख्यान, पाण्डवों का [[द्वैतवन]] में जाना, [[द्रौपदी]] और भीम द्वारा [[युधिष्ठिर]] को उत्साहित करना, इन्द्रकीलपर्वत पर [[अर्जुन]] की तपस्या, अर्जुन का किरातवेशधारी [[शंकर]] से युद्ध, पाशुपतास्त्र की प्राप्ति, अर्जुन का इन्द्रलोक में जाना, नल-दमयन्ती-आख्यान, नाना तीर्थों की महिमा और युधिष्ठिर की तीर्थयात्रा, सौगन्धिक कमल-आहरण, जटासुर-वध, यक्षों से युद्ध, पाण्डवों की अर्जुन विषयक चिन्ता, निवातकवचों के साथ अर्जुन का युद्ध और निवातकवचसंहार, अजगररूपधारी [[नहुष]] द्वारा भीम को पकड़ना, युधिष्टिर से वार्तालाप के कारण नहुष की सर्पयोनि से मुक्ति, पाण्डवों का [[काम्यकवन]] में निवास और [[मार्कण्डेय]] ॠषि से संवाद, द्रौपदी का [[सत्यभामा]] से संवाद, घोषयात्रा के बहाने [[दुर्योधन]] आदि का द्वैतवन में जाना, गन्धर्वों द्वारा [[कौरव|कौरवों]] से युद्ध करके उन्हें पराजित कर बन्दी बनाना, पाण्डवों द्वारा गन्धर्वों को हटाकर दुर्योधनादि को छुड़ाना, दुर्योधन की ग्लानी, [[जयद्रथ]] द्वारा द्रौपदी का हरण, भीम द्वारा जयद्रथ को बन्दी बनाना और युधिष्ठिर द्वारा छुड़ा देना, रामोपाख्यान, पतिव्रता की महिमा, [[सावित्री सत्यवान]]  की कथा, [[दुर्वासा]] की [[कुन्ती]] द्वारा सेवा और उनसे वर प्राप्ति, [[इन्द्र]] द्वारा [[कर्ण]] से कवच-कुण्डल लेना, [[यक्ष]]-युधिष्ठिर-संवाद और अन्त में अज्ञातवास के लिए परामर्श का वर्णन है।
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07:06, 2 सितम्बर 2010 का अवतरण

वन पर्व के अन्तर्गत 22 (उप) पर्व और 315 अध्याय हैं। इन 22 पर्वों के नाम हैं-

  • अरण्य पर्व,
  • किर्मीरवध पर्व,
  • अर्जुनाभिगमन पर्व,
  • कैरात पर्व,
  • इन्द्रलोकाभिगमन पर्व,
  • नलोपाख्यान पर्व,
  • तीर्थयात्रा पर्व,
  • जटासुरवध पर्व,
  • यक्षयुद्ध पर्व,
  • निवातकवचयुद्ध पर्व,
  • अजगर पर्व,
  • मार्कण्डेयसमस्या पर्व,
  • द्रौपदीसत्यभामा पर्व,
  • घोषयात्रा पर्व,
  • मृगस्वप्नोद्भव पर्व,
  • ब्रीहिद्रौणिक पर्व,
  • द्रौपदीहरण पर्व,
  • जयद्रथविमोक्ष पर्व,
  • रामोपाख्यान पर्व,
  • पतिव्रतामाहात्म्य पर्व,
  • कुण्डलाहरण पर्व,
  • आरणेय पर्व।

वन पर्व में पाण्डवों का वनवास, भीमसेन द्वारा किर्मीर का वध, वन में श्रीकृष्ण का पाण्डवों से मिलना, शाल्यवधोपाख्यान, पाण्डवों का द्वैतवन में जाना, द्रौपदी और भीम द्वारा युधिष्ठिर को उत्साहित करना, इन्द्रकीलपर्वत पर अर्जुन की तपस्या, अर्जुन का किरातवेशधारी शंकर से युद्ध, पाशुपतास्त्र की प्राप्ति, अर्जुन का इन्द्रलोक में जाना, नल-दमयन्ती-आख्यान, नाना तीर्थों की महिमा और युधिष्ठिर की तीर्थयात्रा, सौगन्धिक कमल-आहरण, जटासुर-वध, यक्षों से युद्ध, पाण्डवों की अर्जुन विषयक चिन्ता, निवातकवचों के साथ अर्जुन का युद्ध और निवातकवचसंहार, अजगररूपधारी नहुष द्वारा भीम को पकड़ना, युधिष्टिर से वार्तालाप के कारण नहुष की सर्पयोनि से मुक्ति, पाण्डवों का काम्यकवन में निवास और मार्कण्डेय ॠषि से संवाद, द्रौपदी का सत्यभामा से संवाद, घोषयात्रा के बहाने दुर्योधन आदि का द्वैतवन में जाना, गन्धर्वों द्वारा कौरवों से युद्ध करके उन्हें पराजित कर बन्दी बनाना, पाण्डवों द्वारा गन्धर्वों को हटाकर दुर्योधनादि को छुड़ाना, दुर्योधन की ग्लानी, जयद्रथ द्वारा द्रौपदी का हरण, भीम द्वारा जयद्रथ को बन्दी बनाना और युधिष्ठिर द्वारा छुड़ा देना, रामोपाख्यान, पतिव्रता की महिमा, सावित्री सत्यवान की कथा, दुर्वासा की कुन्ती द्वारा सेवा और उनसे वर प्राप्ति, इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना, यक्ष-युधिष्ठिर-संवाद और अन्त में अज्ञातवास के लिए परामर्श का वर्णन है।

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