कभी ख़याल
कभी सपना
तो कभी यूँ ही
इन्हीं के साथ
शामिल हो
मेरे ज़ेहन में
तुम ही
किसी और
शायर की ग़ज़ल
के मक़्ते में
तलाशते तुम नाम मेरा
ये कौन सी आवाज़
की कशिश तुम्हें खींचे है
दूर मुझसे…
अरे ब्रूटस!
तुम भी…
14 अप्रॅल, 2015
राही मासूम रज़ा साहब को उन उम्दा शख़्सियतों की फ़ेरहिस्त में ऊँचा मक़ाम हासिल है जो मज़हब, ज़ात और मुल्क़ों की सरहदों से नाइत्तफ़ाक़ी रखते है। यूँ तो रज़ा साहब की जादुई क़लम का बेजोड़ फ़न मुझे हमेशा ही करिश्माई लगा है लेकिन उनका उपन्यास आधागाँव मुझे बेहद पसंद है। टीवी धारावाहिक ‘महाभारत’ को बेहतरीन रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय भी रज़ा साहब को जाता है।
हर क़दम अज़्मत-ए-कुश्तगाँ की तरफ़
हर क़दम ज़ज़्ब:-ए-कामराँ की तरफ़
हर क़दम मज़िल-ए-कारवाँ की तरफ़
हर क़दम इन्क़िलाब-ए-जहाँ की तरफ़
रौशनी आगे बढ़ती चली जाएगी
ज़िन्दगी आगे बढ़ती चली जाएगी
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कुह्न: = पुराना । रक़्क़ास: = नर्तकी । मे’मार = इमारत बनाने वाले । दारुलमिहन = दु:ख का स्थान अर्थात संसार । जाफ़र = चौदह इमामों में से एक । अह्रमन = ईरान के आतशपरस्तों के मतानुसार बदी का ख़ुदा । हरम = ख़ुदा का घर । तकल्लुम = बातचीत । तसादुग = टक्कर । ज़ौक़ = रुचि । दार = सूली, फाँसी। सन्अत = कला। पिंदार = अभिमान । तमद्दुन = मिल-जुलकर रहने का तरीक़ा,संस्कृति । रिदा = चादर, ओढ़नी । हुज़्न = दु:ख, शोक । मुज़्महिल = क्लान्त, अफ़्सुर्द: । ख़जिल = शर्मिन्दा । उफ़ुक़ = क्षितिज । कार-ए-नुमायाँ = कारनामा । बाब = पुस्तक का परिच्छेद । रसन = रस्सी । ख़ुतन = एक स्थान, जहाँ का मुश्क मशहूर है। दिक़ = तपेदिक, क्षय । वारफ़्तगी = आत्मविस्मृति । क़ुम्क़ुम: = बिजली का बल्ब । सोख्त:तन = दिलजला, आशिक़ का प्रतीक । अज़्मत = प्रतिष्ठा । कुश्तगाँ = आशिक़, क़त्ल किए हुए । कामराँ = नसीब वाला, क़ामयाब।
14 अप्रॅल, 2015
स्वतंत्रता की अनेक व्याख्या हैं लेकिन परिभाषा शायद कोई नहीं। इसका कारण है कि स्वतंत्रता निजता का मामला है... नितांत निजी। प्रत्येक की स्वतंत्रता अपनी-अपनी अलग-अलग और अनोखी।
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-
"पराधीन सपनेहु सुख नांही”
याने पराधीन व्यक्ति किसी हाल में भी सुखी नहीं रह सकता। इसका अर्थ यही है कि सुखों की सूची में संभवत: स्वतंत्रता, वरीयता क्रम में पहले स्थान पर है।
इस वीडियो में सुश्री दीपिका पादुकोने ने नारी के द्वारा अपनी पसंद को चुनने की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में बताया है। उनकी अपनी स्वतंत्रता की व्याख्या यही है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी इससे असहमत होगा क्योंकि सभी को अपनी मर्ज़ी से अपना जीवन बिताने का हक़ है।
हाँ नारी विमर्श और जीवन संदेश के संदर्भ में यह वीडियो कितना उपयोगी है यह प्रत्येक व्यक्ति की अपनी पसंद का मामला है। इस वीडियो के प्रत्युत्तर में एक वीडियो पुरुषों की ओर से आया है। उसे भी चाहें तो देख लें।
ख़ैर… ज़रा इस बात पर अवश्य ग़ौर करें कि कम से कम नारी को स्वतंत्रता की परिभाषा बताने वाला पुरुष नहीं होना चाहिए क्योंकि पुरुष कोई नारी का भाग्यविधाता नहीं है वरन नारी के समानान्तर और समान रूप से उसका मित्र, सखा, सहचर, जीवनसाथी, सहकर्मी आदि होता है।
वैसे व्यवहार जगत में अधिकतर व्यक्तियों की जीवन शैली “पर उपदेस कुसल बहुतेरे” से प्रभावित रहती है। पता नहीं क्यों पर यह वीडियो देखकर मैं पुरुष के रूप में शर्मिन्दा हूँ कि हम पुरुषों ने अधिकतर वर्जनाएँ स्त्री के ऊपर लाद रखीं हैं और स्त्री को अपनी स्वतंत्रता की बात वस्त्र उतार-उतार कर करनी पड़ती है।
मेरे हिसाब से तो “स्वतंत्रता से जीओ और जीने दो” का नियम ही सर्वश्रेष्ठ है।
तुम क्षमा कर दो उन्हें भी
जो तुम्हारे सत्य पथ पर
कंटकों का जाल चारों ओर से
बिखरा रहे थे
और तुमको
छद्म-जीवन राह भी दिखला रहे थे
और उनको भी क्षमा कर दो
कि जिनमें, ईर्ष्या ही ईर्ष्या
का भाव था
बस स्वार्थवश ही
था प्रदर्शन प्रेम का
स्वत: उनको, मुस्कुरा कर
दान देना परम करुणा से भरे मन
और अंतर हृदय से तुम
जिनका विरोधी स्वर बना कारण
तुम्हारे परम सुखमय आज का
अपने निजी आकाश का
स्मरण हो
लाओत्से ने क्या कहा था-
“हो सहज मन
और करुणा हो
सभी के प्रति तुम्हारी”
ध्यान मत देना
कनफ्य़ूशस के कथन पर-
"जो बिछाएँ शूल, राहों में निरंतर
उन्हें सम्मानित करो मत फूल देकर
क्योंकि इससे रूठ जाएँगे सभी वे
सेज फूलों से सजाते हैं तुम्हारी”
अरे तुम सुन रहे हो ना ?
तुम्हारे जो भी अपने हैं
वो तो हर हाल अपने हैं
यदि कोई ‘हाल’ ऐसा है
जहाँ होंगे विरोधी वे
तो फिर ये जान लो
भ्रम है तुम्हें ये आज भी
कि वे तो मेरे अपने हैं
रखोगे तुम क्षमा भीतर
तभी तो प्रेम भी होगा
नहीं तो प्रेम
सुख की लालसा का ही व्यसन होगा