अतिवृद्धि
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
अतिवृद्धि- किसी भी अंग या आशय की रोगयुक्त वृद्धि को अतिवृद्धि कहा जाता है। जब किसी अवरोध के कारण आशय अपने भीतर की वस्तु को पूर्णतया बाहर नहीं निकाल पाता तो उसकी भित्तियों की वृद्धि हो जाती है। हृदय एक खोखला अंग है। जब कपाटिकाओं के रुग्ण हो जाने से वह रक्त को पूर्णतया बाहर नहीं निकाल पाता तो उसकी अतिवृद्धि होकर उसका आकार बढ़ जाता है और उसके पश्चात् प्रसार होता है। जब किसी अंग को दूसरे अंग का भी कार्य करना पड़ता है (जैसे वृक्क या फुफ्फुस को), या एक भाग को दूसरे भाग का, तो उसकी सदा अतिवृद्धि हो जाती है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 90 |