आदित्य चौधरी -फ़ेसबुक पोस्ट

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
आदित्य चौधरी फ़ेसबुक पोस्ट
पोस्ट संबंधित चित्र दिनांक

भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी को लेकर काफ़ी लिखा और बोला जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे भारत में एक जोश और संतुष्टि का माहौल बना है। इस कार्यवाही के बाद पाकिस्तान लगभग चुप है, जिसका कारण है कि इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंतरराष्ट्रीय नियमों और क़ानून के मुताबिक़ हॉट पर्सुइट (Hot pursuit) की मान्यता प्राप्त होना।

हॉट पर्सुइट याने ‘किसी आधिकारिक सशस्त्र दल (जैसे सेना या पुलिस) द्वारा अपराधियों का अपराध करते ही त्वरित पीछा करना। इस पीछा करने और अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने में देश या राज्य की सीमा पार कर जाने को अंतरराष्ट्री सीमा उल्लंघन नहीं माना जाता है। इसमें सामान्य रूप से किसी स्वीकृति या सूचना की भी आवश्यकता नहीं होती और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।

इस मुद्दे पर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। जिनमें से एक मुद्दा है नदियों के पानी का। विश्व भर में जलसंधियों के आधार पर नदियों के जल का बँटवारा होता है। जिसे भंग नहीं किया जा सकता, लेकिन अब ऐसा होना मुमकिन है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन ने कहा था कि भविष्य में युद्धों के कारण जल-विवाद ही होंगे। अब यह सामने आने लगा है। नदियों के पानी बंटवारे का विवाद हमारे देश में राज्यों के आपसी विवाद का कारण भी है। जैसे फ़िलहाल में कावेरी का विवाद।

एक बात हमें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि चीन और पाकिस्तान से चाहे रिश्ते कितने भी मधुर हो जाएँ, नदियों के जल का विवाद होना अवश्यम्-भावी है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर इस समय चीन जो कुछ कर रहा है उसकी वजह पाकिस्तान नहीं है। पाकिस्तान पर तो वह बेवजह एहसान दिखा रहा है। ब्रह्मपुत्र के पानी को लेकर तो चीन के इरादे बहुत पहले से ही नेक नहीं हैं।

माओ का शासन प्रारम्भ होते ही चीन ने नदियों का रास्ता बदलना और नहरों का निर्माण शुरू कर दिया था जिसका कारण था आधे चीन में सूखा और रेगिस्तान साथ ही बाक़ी आधे में बाढ़। चीन में कई वर्ष शिक्षा बन्द करके सबको नदियों का बहाव मोड़ने में लगा दिया गया था।

इसलिए भारत सरकार को यह अभी से तय करना होगा कि भावी योजनाएँ क्या होंगी। इन विवादों को निपटाने में कुर्सी-मेज़ और पेन-काग़ज़ काम नहीं आएँगे बल्कि सशक्त और आधुनिक तकनीक से लैस सेना काम आएगी। सेना की तनख़्वाह में बढ़ोत्तरी, प्रत्येक नागरिक की अनिवार्य रूप से सैन्य शिक्षा, सैन्य शिक्षा में स्त्रियों की बराबर भागेदारी और प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रीय भावना का अनवरत संचार जैसे सुधार ही हमें एक सुरक्षित राष्ट्र का गौरवमयी नागरिक बना सकते हैं।

दूसरा विवाद है, कुछ एक भारतीय फ़िल्मी अभिनेताओं द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों का पक्ष लेना। इसमें पहली बात यह है कि इस तरह के अभिनेता कोई ज़िम्मेदार क़िस्म के इंसान नहीं है। इससे पहले भी इनकी ग़ैरज़िम्मेदाराना हरक़तें सामने आई हैं जिनकी चर्चा करना व्यर्थ है।

समझना तो आम जनता को है जो कि फ़िल्मी कलाकारों को हीरो समझने लगती है और उन्हें असली ज़िन्दगी में भी बढ़िया इंसान मानने लगती है। तमाम एक्टर ऐसे हैं जो पर्दे पर खलनायक की भूमिका करते हैं लेकिन असल ज़िन्दगी में एक बेहतरीन इंसान हैं, ठीक इसका उल्टा नायक की भूमिका करने वाले के साथ भी हो सकता है। इसलिए जनता को अपने हीरो पर्दे से नहीं बल्कि असल ज़िन्दगी से ही चुनने चाहिए।

कलाकार भी इंसान ही होता है और उसका भी अपना देश और देशभक्ति होती है। पाकिस्तानी कलाकारों की देशभक्ति उनके पाकिस्तान के लिए है। उनसे भारत के लिए वफ़ादारी की उम्मीद करना फ़ुज़ूल की बात है। पाकिस्तानी कलाकार अपनी कमाई को पाकिस्तान ले जाता है और वहीं टॅक्स देता है, संपत्ति ख़रीदता है और ख़र्चा करता है। पाकिस्तान चाहे आतंकी देश हो या अहिंसावादी उस पाकिस्तानी कलाकार के लिए तो वही उसका देश है।

अब ज़रा सोचिए कि हम पाकिस्तानी आतंकवाद में उस कलाकार का हिस्सा मानें या नहीं। जब सानिया मिर्ज़ा एक पाकिस्तानी से शादी करती है तो भारतवासी ये उम्मीद करते हैं कि वह अब भी भारत के लिए खेले और भारत को ही अपना देश समझे… तो बताइये कि पाकिस्तानी कलाकार भी तो शुद्ध रूप से पाकिस्तानी ही हुआ या नहीं? इस समय किसी पाकिस्तानी कलाकार की कमाई भारत में कराने से हम स्पष्ट रुप से पाकिस्तान की मदद ही कर रहे हैं।

ऐसी बात नहीं है कि मुझे पाकिस्तान का कभी भी कुछ भी पसंद नहीं रहा। मेरे भी पसंदीदा शायर कुछ पाकिस्तानी रहे हैं जैसे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और अहमद फ़राज़। ग़ज़ल गायकों में मेंहदी हसन मेरे पसंदीदा हैं लेकिन पाकिस्तान के किसी शायर की ग़ज़ल पसंद करना एक अलग बात है और फ़िल्मी और टीवी कलाकारों को भारत में बिठाकर उसकी करोड़ों-अरबों की कमाई करवाना एक बिल्कुल अलग बात है।

4 अक्टूबर, 2016

हिन्दी अकादमी दिल्ली में मेरे व्याख्यान का एक अंश यहाँ प्रस्तुत है ताकि सनद रहे कि मैं कहीं भी मौजूद होता हूँ तो ब्रज को नहीं भूलता…

“हिन्दी की इमारत लोकभाषाओं के स्तंभों पर टिकी हुई है। लोकभाषाएँ हिन्दी के स्तम्भ हैं उसकी नींव हैं। सारी दुनिया में से लोकभाषाएँ एक-एक करके समाप्त हो रही हैं। विश्व में 6000 भाषा-बोलियों का रंग-बिरंगा संसार है जिसमें से हर पच्चीसवें दिन एक लोकभाषा सदा के लिए विलुप्त हो जाती है और उसके साथ ही एक संस्कृति, एक विज्ञान, एक कला, एक पद्धति, एक परम्परा और एक शब्दावली भी मर जाती है।
ज़रूरत हिन्दी अकादमी की नहीं बल्कि लोकभाषाओं की अकादमी की है जैसे ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, मागधी आदि की अकादमी बननी चाहिए क्योंकि जब लोकभाषा का ही संरक्षण नहीं होगा तो हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का मूल हम कहाँ खोजेंगे। हमारी समृद्ध हिन्दी एक इतिहास रहित खोखली भाषा बनकर रह जाएगी।”

शायद आप नहीं जानते होंगे कि ब्रजभाषा अकादमी राजस्थान में तो है पर उत्तर प्रदेश में नहीं…

1 अक्टूबर, 2016

ओलंपिक मेडल जीतने के बाद जो करोड़ों रुपए की बरसात खिलाड़ियों पर होती है, वह पैसा अगर उन कोच को दिया जाए जिन्होंने उस खिलाड़ी को बनाया तो ज़्यादा बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं। 10 सिंधु मिलकर एक पुलेला गोपीचंद नहीं बना सकतीं हैं जबकि एक पुलेला गोपीचंद 10 सिंधु बना सकता है...

28 अगस्त, 2016

किसी व्यक्ति का सही मूल्याँकन उसके जीवन के किसी कालखंड से नहीं बल्कि उसके पूरे जीवनकाल से होता है।

17 अगस्त, 2016

एक विदेशी पत्रकार ने एक आधुनिक नेता का इंटरव्यू लिया

पत्रकार: सुनने में आया है कि आपके यहाँ बलात्कार की क्लिप 10 से 15 रुपये में मिलती है। यह तो बहुत शर्मनाक है।

नेता: बिल्कुल झूठ है सर जी! ये सब अफ़वाह है। ऐसा कुछ नहीं है।

पत्रकार: तो फिर सच क्या है?
नेता: सच ये है सर कि क्लिप बिल्कुल मुफ़्त मिल रही है। कोई पैसा नहीं देना पड़ता। आप कहें तो आपको वाट्स एप कर दूँ?

पत्रकार: जी नहीं मुझे नहीं चाहिए।… ये बताइये कि आपके यहाँ बिजली की बहुत समस्या है? आम आदमी के घरों में आपने अंधेरा कर रखा है?

नेता: ये भी ग़लत सूचना है। घरों में अंधेरा होने की बात झूठी है। घर-घर में इन्वर्टर हैं। ऍल.ई.डी लाइट हैं, बैटरी वाली। साथ ही हम उनको इन्वर्टर चार्ज करने के लिए हर दो घंटे बाद एक घंटा बिजली देते हैं। हम अफ़ग़ानिस्तान से ज़्यादा बिजली की सप्लाई दे रहे हैं। … सर आख़िर हम नेता भी तो इंसान ही हैं। जनता का दुख-दर्द हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा।
पत्रकार: आपकी पुलिस से जनता डरती है। पुलिस के पास जाने में घबराती है। ऐसा क्यों?

नेता: डरने का क्या है जी… डरते तो लोग भूत-प्रेत से भी हैं पर भूत-प्रेत कोई डरने की चीज़ हैं। जब भूत-प्रेत होते ही नहीं तो उनसे डरना क्या?

पत्रकार: तो अाप कहना चाहते हैं कि आपके पास पुलिस है ही नहीं ये बस जनता का भ्रम है जैसे कि भूत-प्रेत?

नेता: असल में हमारी पॉलिसी बहुत ज़बर्दस्त है सर! हम पुलिस को अपनी सीक्योरिटी में लगाए रखते हैं। जिससे पुलिस जनता के पास पहुँचती ही नहीं है तो जनता डरेगी कैसे? दूसरी बात ये है सर कि जब हमारी पुलिस से चोर, डाकू और बलात्कारी जैसे लोग नहीं डरते जबकि वे भी तो इंसान हैं… इसी समाज का हिस्सा हैं … तो फिर जनता को डरने की क्या ज़रूरत है ?

पत्रकार: आपके यहाँ सड़कों में गड्ढे हैं। बरसात में सड़कों पर पानी भर जाता है। इसका भी कोई जवाब है आपके पास ?

नेता: हमारे कर्मचारी, दिन और रात गड्ढे भरने में लगे रहते हैं सर! हमारा देश बहुत बड़ा है। लाखों किलोमीटर सड़कें हैं। देश बड़ा होने से ट्रॅफ़िक भी ज़्यादा है। रोड ऍक्सीडेन्ट कम हों इसलिए हमको गड्ढे भी बना कर रखने पड़ते हैं। गड्ढों की वजह से स्पीड कम रहती है और ऍक्सीडेन्ट कम होते हैं।

पत्रकार: आप अपने बारे में बताइये कि आप कितने पढ़े-लिखे हैं ?

नेता: देश सेवा से फ़ुर्सत मिलती तभी तो पढ़ता…

पत्रकार ने मौन धारण कर लिया और वापस चला गया।

14 अगस्त, 2016

सुसेवायाम्
परम पिता श्रीमंत प्रजापति ब्रह्मा जी महाराज

सिरी पत्री जोग लिखी मथुरा से ब्रह्मलोक कूँ
हमारी सबकी राम-राम आप सब को मिले।
अपरंच समाचार ये है कि यहाँ सब कुशल है और आपके यहाँ तो सब कुशल होगा ही…

यहाँ मौसम बरसात का है झमाझम चौमासे चल रहे हैं तो फिर थोड़ी बहुत तबियत भी ‘नासाज’ चलती है। बाक़ी सब आपकी ‘किरपा’ से ठीक-ठाक और सकुशल है। पिछले दिनों घनघनाती बारिश आई। घरों-चौबारों में तो बच्चे काग़ज़ की नाव चलाने लगे, गाँवों में कच्चे घर गिर गए, शहर में पक्के घरों की छत टपकने लगीं और अब आपसे क्या छुपाना, हमारा भी घर पुराना है तो उसकी छत भी टपकी। हमारे यहाँ कहते हैं ‘जितना नाहर (शेर) का डर नहीं है जितना कि टपके का डर है’। ख़ैर आप तो बादलों से ऊपर रहते हैं आपको क्या पता कि बारिश क्या है और ‘टपका’ क्या है।

बरसात से किसान की फ़सल बहुत ही अच्छी होने की संभावना बन रही है ब्रह्मा जी! । सब आपकी माया है… कहीं धूप कहीं छाया है।
बाक़ी सब आपकी किरपा है। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है, कुशल मंगल है। वैसे तो आपको पता ही होगा लेकिन फिर भी बता दूँ कि एक देश है फ्रांस वहाँ एक ट्रक ने जानबूझ कर सैकड़ों लोग कुचल डाले… उस दृश्य को देखकर दिल तो क्या पत्थर का पहाड़ भी पिघल जाता। मगर आपके ब्रह्मलोक में तो न ही सड़कें हैं और न ही ट्रक तो आपको इसका कोई अनुभव नहीं होगा। जब आपको कभी दर्द हुआ ही नहीं तो समझेंगे क्या प्रजापति जी! हमारे यहाँ कहते हैं कि ‘जाके पैर न फटी बिबाई वो कहा जाने पीर पराई’ फिर भी हम तो आपसे ही गुहार करते हैं भले ही आप सुनें न सुनें।

श्रीमंत! हमारे देश में प्रजातंत्र है आप प्रजापति हैं तो इसके बारे में अच्छी तरह से जानते ही होंगे, अब आपके सामने हम क्या ज्ञानी बनें। प्रजातंत्र में जनता को स्वतंत्रता मिली हुई है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। इस स्वतंत्रता के लाभ क्या हैं हम साधारण जन समझ नहीं पाते लेकिन इसके नुक़सान भी हैं जो हमें बहुत दु:खी करते हैं। यह अभिव्यक्ति बच्चियों से बलात्कार करने में ज़्यादा की जा रही है। बलात्कार की घटनाएँ इतनी सामान्य हो चली हैं कि लोग अपनी दुश्मनी निकालने के लिए झूठे बलात्कार के आरोप लगाने लगे हैं। अभी पिछले दिनों दो पड़ोसियों में ज़मीन को लेकर विवाद हो गया दोनों ने एक दूसरे पर अपनी नाबालिग बेटियों पर यौनशोषण होने का झूठा आरोप पुलिस की उपस्थिति में लगाने की कोशिश की… बाक़ी सब सकुशल है, ठीक-ठाक चल रहा है।

हमारे प्रदेश में अब चुनाव आने वाले हैं ब्रह्मा जी! तीन-चार पार्टियाँ हैं जो यहाँ दंगल में हिस्सा लेंगी। एक सामाजिक न्याय का बहाना बनाएगी तो दूसरी समाजवाद का, तीसरी अच्छे दिनों का और चौथी के पास तो पता नहीं क्या मुद्दा है। इस चुनाव में जीते कोई भी लेकिन हारेगी हमेशा की तरह जनता ही। चेहरों के अलावा कुछ भी नहीं बदलेगा (अाजकल तो सरकार बदलने पर बहुत से चेहरे भी नहीं बदलते)। विकास कार्यों में कमीशन, पोखर-तालाबों पर क़ब्ज़े, झूठे वादे, व्यक्तिगत लाभ देने की पेशकश, पैसा लेकर नौकरी, नेताओं, ब्यूरोक्रेसी और पुलिस का निरंकुश राज…

आपके ब्रह्मलोक में प्रजातंत्र नहीं है इसलिए आपको यह सब नहीं भुगतना पड़ता है परमपिता! ऐसा नहीं है कि प्रजातंत्र कोई बुरी पद्धति है बल्कि बहुत से देशों में यह सचमुच में है और अपने सर्वजनहिताय स्वरूप में ही मौजूद है। ज़रा ये बताइये कि हमारा प्रजातंत्र ऐसा क्यों है ? हर गली-मुहल्ले में पार्टियाँ बन रही हैं कुछ ही परिवार राज किए जा रहे हैं। किसी को धर्म, किसी को जाति और किसी को क्षेत्र या भाषा का ही मुद्दा मिलता है। जनहितकारी मुद्दे ग़ायब हैं। व्यक्तिगत हित सर्वोपरि हैं। हमारे देश में तो कुछ ऐसा लगता है कि जैसे प्रजातंत्र वह द्रौपदी है जिसे दु:शासन (कुशासन) से ही ब्याह दिया गया है। बाक़ी सब कुशल है, सब आपकी ‘किरपा’ है।

आपसे करबद्ध निवेदन है कि थोड़ा सा हमारा दर्द समझने और बाँटने की ‘किरपा’ कीजिए। ज़रा झांककर देखिए बुन्देलखन्ड में कितने किसान भूखे मरे और कितने आत्महत्या करके। हमारे पड़ोस की उस औरत के घर में जिसका पति कुछ कमाता नहीं और फिर भी जुअा खेलता है और शराब पीकर अपनी बीवी-बच्चों की पिटाई करता है। बीवी अपने पति से पिट-पिट कर भी घरों में चौका-बर्तन करके अपने बच्चों को पाल रही है। अपने बच्चों को पानी पिलाने के लिए भी उसे किसी धनाड्य के घर से आर.ओ. का पानी ले जाना पड़ता है। शेष सब कुशल मंगल है। आपकी किरपा बनी हुई है।

कभी-कभी हम सोचते हैं ब्रह्मा जी! कि धरती का सारा धुँआ उड़कर असमान की तरफ़ जाता है। आपको अखरता तो होगा। पर्यावरण की हालत का अन्दाज़ा आपको ज़रूर होगा। हमारे खेतों से होकर जो नहर गुज़र रही हैं उनमें पानी का रंग काला होने लगा है। बाग़ों को काटकर दुक़ाने बनाई जा रही हैं। जब कोई बड़ा पेड़ काटा जाता है तो हमें लगता है कि किसी बज़ुर्ग की हत्या हो गई। क्या आपको भी ऐसा लगता है? हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ है वो बूढ़ा हो गया है और हमारे घर की ओर बहुत ज़्यादा झुक गया है। डर है कि कहीं घर पर न गिर पड़े। कई बार सोचा कि इसे कटवादें लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती। जब हमारा एक पेड़ के पीछे ये हाल है तो दुनियाँ में न जाने कितने पेड़ रोज़ाना काटे जा रहे हैं। किसी का दिल नहीं पसीजता? आपका भी नहीं?

हमने तो जो मन में आया लिख दिया है अब आप जानें कि क्या ‘एक्सन’ लेंगे। कोई भूल-चूक हुई हो तो ‘छिमा’ कीजिएगा।

सबको यथायोग्य
आपका अाज्ञाकारी
आदित्य चौधरी

28 जुलाई, 2016

महत्वपूर्ण यह नहीं कि आप अपने ज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं ! महत्वपूर्ण तो यह कि आप अपने अज्ञान के प्रति कितने सतर्क हैं।
अपनी अज्ञानता का सही रूप में ज्ञान होना और निरंतर बने रहना ही किसी भी ज्ञानी की सही पहचान है।
अक्सर हमारा ज्ञान ही हमें विचारवान होने से रोकने लगता है। स्वयं को ज्ञानी मानकर जीते जाना, हमारे भीतर न जाने कितनी अज्ञानता पैदा करता है और नए विचारों से वंचित कर देता है।

4 जुलाई, 2016

मुझसे मेरे एक मित्र ने पूछा कि अगर तुम्हें एक हज़ार करोड़ रुपए दे दिए जाएँ तो क्या करोगे?
मैंने कुछ देर सोचकर कहा-
“एक तो मुझे ताज़ा मट्ठा पसंद है तो एक-दो भैंस-गाय लूँगा। कढ़ी-चावल पसंद हैं तो उसके लिए भी मट्ठा ही चाहिए। मिस्सी रोटी दही भुने ज़ीरे के साथ पसंद हैं तो उसके लिए भी भैंस-गाय ही चाहिए… मतलब कि कुल मिलाकर गाय-भैंस तो चाहिए ही। इनके चारे के लिए दो-चार एकड़ खेत और साथ ही सब्ज़ी-अनाज भी उसी में उगा लेंगे। हाँ ट्यूब वैल हो और खेत नदी के पास हो। नदी अगर गंगा हो तो बस मौज ही आ गईं। खेत में ही मक़ान हो। मक़ान वही पुराना आंगन वाला जिसमें सुबह को धूप आए याने पूरब की ओर दरवाज़े वाला… लेकिन मक़ान ज़्यादा बड़ा न हो। टीवी, अख़बार, कंप्यूटर, स्मार्ट फ़ोन से दूर-दूर का कोई वास्ता न हो। खेत में ही एक बड़ी सी पानी की टंकी हो तैरने के लिए (चलिए छोटा सा स्विमिंग पूल कह लीजिए)। कुल मिला कर एक आश्रम-नुमा कुछ बनाया जाए।

मिट्टी के चूल्हे की, पानी के हाथ की रोटी मिल सकें अाहाहा क्या बात है। वो भी बबूल की लकड़ी से सिकी हुई। कभी-कभी रात को बनी मिस्सी रोटी और बासी कढ़ी का आनंद आए। घूमने फिरने के लिए एक सवारी हो तो बढ़िया रहेगा... जीप नुमा कुछ…। जब मन किया तो आस-पास घूम-घाम लिए
हाँ एक मोबाइल फ़ोन तो हो जिससे बच्चों से बात हो सकें या कोई मित्र कभी याद करे तो उससे। कुछ पैसा बैंक में जमा हो जिससे महीने का ख़र्च चलता रहे। अास-पास के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाएँ। ख़ासकर जो बच्चे स्कूल नहीं जा सकते उन्हें…”

ये सब सुनते-सुनते मित्र बीच में बोले “ये तो बहुत कम में हो जाएगा बात तो हज़ार करोड़ की हो रही है?”
मैंने कहा “बाक़ी सब पैसा तो बाँटने में चला जाएगा, मेरी ज़िन्दगी भर की आदत बदल थोड़े ही जाएगी।”
“फिर तो तुमको हज़ार करोड़ मिलने का कोई मतलब ही नहीं है। तुम्हारे तो इरादों में ही कंगाली है। तुम ऐसे ही ठीक हो…”
अब मैं क्या कहता…

30 मई, 2016

कुछ समय पहले मुझसे एक प्रश्न किया गया था। जोकि फ़ेसबुक मित्र ने ही किया था। उसका जवाब आज दे रहा हूँ-
प्रश्न:-
Sir आपने लगभग 1 वर्ष पहले ये वाक्य उत्पन्न किये थे..'जाट जाति नहीं नस्ल है'...Sir हम इन विचारों के पीछे के आधार जानना चाहते हैं...हम जानना चाहते हैं कि ये विचार आपने किस आधार पर उत्पन्न किये थे....आपके वाक्य हमारी सोच को परिपक्वता प्रदान करेंगे।

उत्तर:-
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मैं जाति-नस्ल या धर्म के कारण किए गए भेद-भाव से पूर्णत: असहमत हूँ। यहाँ मैं प्रश्न के उत्तर के लिए ही जाति आदि का उल्लेख कर रहा हूँ।

जाति की पहचान से सामान्य-कर्म की जानकारी होती थी। जो अब सामान्यत: नहीं होती। यदि पारंपरिक आधार से कहें तो जो आपका रोज़गार या व्यवसाय है वही आपकी जाति है। नस्ल की पहचान आपके; स्वभाव, देहयष्टि, चेहरे और शरीर के हावभाव आदि से होती है। नस्ल के लिए गोत्र शब्द का भी इस्तेमाल कहीं-कहीं हो सकता है।

विश्व में लगभग सात प्रकार की मुख्य नस्ल हैं। जिनके अनुसार हाथों, पैरों, उँगलियों, आँखों, मुख, माथा आदि की बनावट श्रेणीगत की जाती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हम सभी सात मांओं की संतान हैं। डी.एन.ए की बनावट का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुँचे हैं।
रुचिकर बात तो यह है कि भारतीय संस्कृति में मूल देवियों के रूप में ‘सप्त मातृका’ का ज़िक्र बार-बार आया है। इसी प्रकार पश्चिमी संस्कृति में भी ऍडम की पत्नी ईव की सात बेटियाँ बताई गई हैं। सात की संख्या का दूसरे विभागों में भी विशेष महत्व है। जैसे सात रंग, सात सुर, सात समन्दर और हिन्दू शादी में सात ही फेरे जैसे बहुत से उदाहरण विज्ञान और धर्म में दिए जा सकते हैं।
ख़ैर...
नस्ल के लिए ज़िम्मेदार है; डी.एन.ए., पानी, खान-पान, ब्लड ग्रुप, मौसम और निवास स्थान। जबकि जाति के लिए रोज़गार और व्यवसाय ही ज़िम्मेदार हैं। एक जाति के भीतर कई नस्लें हो सकती हैं और एक नस्ल के भीतर कई जातियाँ। कालान्तर में नस्ल बदल भी जाती है। जिसका कारण हज़ारों वर्षों तक उस नस्ल का किसी ऐसी जाति के कार्य को अपना लेना होता है जो कि उस नस्ल के स्वभाव और शारीरिक बनावट से पूरी तरह भिन्न होता है।

ब्राह्मणों के बारे में चर्चा करें तो; नंबूदरीपाद, चित्तपावन, सारस्वत, गौतम, सनाड्य आदि की बनावट में पर्याप्त भिन्नता है। इनके स्वभाव में भी भिन्नता है। इसका कारण नस्ल या गोत्र है न कि जाति क्योंकि जाति तो सबकी एक ही है।
जहाँ तक मेरा अन्दाज़ा है मेरा आशय स्पष्ट है।

24 अप्रैल, 2016

बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन की वास्तविक स्थिति और अपनी क्षमताओं का वास्तविक ज्ञान होना एक प्रतिभा है।
यह सभी व्यक्तियों में नहीं होती।
अधिकतर व्यक्ति काल्पनिक दुनिया में जीते हैं।
इस सब में वे एक नक़ली दुनिया भी बना लेते हैं।
ऐसे लोग स्वभाव से स्वार्थी भी हो सकते हैं और स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं तो दूसरों को साधारण।
अपनी बुद्धि, क्षमता और प्रतिभा के संबंध में अधिकतर लोग भ्रम में जीते हैं।
अपनी बुद्धि के संबंध में सही जानकारी होना एक बहुत ही कठिन बात है।
यह योग्यता अर्जित की जा सकती है या नहीं, कहना कठिन है।
सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे व्यक्ति अति बुद्धिमान भी हो सकते हैं लेकिन ‘वास्तविकता के ज्ञान’ के अभाव में अपने जीवन को सामान्य मनुष्य की तरह नहीं जी पाते। अपने द्वारा की गई भूलों के प्रति वे न तो सचेत रहते हैं और न ही उनके प्रायश्चित के संबंध में तत्पर। दूसरों की सफलता भी उन्हें बहुत साधारण लगती है। वे सोचते हैं कि यदि उन्होंने भी प्रयास किया होता तो वे भी सफल हो सकते थे। ऐसे लोग स्वयं को विशेष और विशिष्ट भी माने रहते हैं। जैसे कि पूरे विश्व में ईश्वर ने केवल उन्हें ही विलक्षण बनाया हो।
हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अधिक से अधिक वास्तविकता के क़रीब रहें। इस प्रतिभा को हम अर्जित तो नहीं कर सकते लेकिन विवेक और विनम्रता के अभ्यास से इसके आस-पास अवश्य हो सकते हैं। यहाँ एक बात ग़ौर करने की है कि विनम्रता ‘वास्तविक’ हो न कि ओढ़ी हुई।
यदि वास्तविक विनम्रता का अभ्यास करना हो तो अपनों से छोटों, कमज़ोरों और ज़रूरतमंदों के प्रति करें।

22 मार्च, 2016

उम्र के बढ़ने के साथ, जिज्ञासाओं के प्रति उदासीनता होना ही जीवित रहते हुए भी मर जाने के समान है।
आप जितने अधिक जिज्ञासु हैं, उतने ही अधिक जीवन से भरे हुए हैं अर्थात जीवंत हैं।
जिसके पास नये-नये प्रश्न नहीं हैं वह कैसे साबित करेगा कि वह जीवित है।
छोटे बच्चों में अपार जिझासा होती है, असंख्य प्रश्न होते हैं।
इसलिए बच्चे जीवन से भरे होते हैं।
जिझासा का मर जाना, मनुष्य के मर जाने जैसा ही है।

19 मार्च, 2016

जिस समय हम किसी मुद्दे पर बहस कर रहे होते हैं तो सामने वाले की बात को ‘जितना’ ग़लत साबित करने की कोशिश कर रहे होते हैं उतनी ग़लत उसकी बात होती नहीं है।
इसी तरह हम अपनी बात को जितना सही साबित करने की कोशिश कर रहे होते हैं वह उतनी सही भी नहीं होती।
इन बहसों में हमारे उत्तेजित हो जाने का कारण भी अक्सर यही होता है।

18 मार्च, 2016

तनाव मुक्ति के बहुत से साधन हैं
लेकिन एक बहुत ही चमत्कारिक है
आप जिससे नफ़रत करते हैं उसे क्षमा कर दें
उसके प्रति भी करुणा का भाव मन में ले आएँ
तुरंत मन हलका हो जाता है
हाँ एक बात का ध्यान रखें कि यह आप अपने लिए कर रहे हैं
उस व्यक्ति से कोई उम्मीद न रखें

18 मार्च, 2016

सफल होने का तरीक़ा कोई जाने न जाने लेकिन
अपनी असफलता का रहस्य सबको पता होता है
और इसी छिपा होता है सफलता का रहस्य

18 मार्च, 2016






शब्दार्थ

संबंधित लेख