श्रेणी:पद्य साहित्य
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उपश्रेणियाँ
इस श्रेणी की कुल 16 में से 16 उपश्रेणियाँ निम्नलिखित हैं।
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- आधुनिक महाकाव्य (3 पृ)
क
- कविता संग्रह (29 पृ)
- काव्य कोश (2,532 पृ)
ख
द
- दोहा संग्रह (1 पृ)
प
- पद (592 पृ)
- प्रबंध काव्य (खाली)
- प्रबन्ध काव्य (2 पृ)
भ
- भक्तिकालीन साहित्य (629 पृ)
म
- महाकाव्य (58 पृ)
र
- रमैनी (12 पृ)
- रासो काव्य (31 पृ)
- रीतिकालीन साहित्य (126 पृ)
- रुबाई (1 पृ)
"पद्य साहित्य" श्रेणी में पृष्ठ
इस श्रेणी की कुल 8,510 में से 200 पृष्ठ निम्नलिखित हैं।
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- कृष्ण भी कृष्ण नहीं कहलाते -रश्मि प्रभा
- कृष्णमंदिरमों मिराबाई नाचे -मीरां
- के पतिआ लय जायत रे -विद्यापति
- केकि कंठ दुति स्यामल अंगा
- केते झाड़ फूंक भुतवा -शिवदीन राम जोशी
- केते बदमाश गुंडे -शिवदीन राम जोशी
- केलंग-1/ हरी सब्ज़ियाँ -अजेय
- केलंग-2/ पानी -अजेय
- केलंग-3/ बिजली -अजेय
- केलंग-4/ सड़कें -अजेय
- केवट कीन्हि बहुत सेवकाई
- केशर की कलि की पिचकारी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- केशव,कहि न जाइ -तुलसीदास
- केसरि से बरन सुबरन -बिहारी लाल
- केसवे बिकट माया तोर -रैदास
- केसौ कहि कहि कूकिए -कबीर
- केहरि कंधर चारु जनेऊ
- केहरि कंधर बाहु बिसाला
- केहरि कटि पट पीत धर
- केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू
- केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी
- केहि समुझावौ सब जग अन्धा -कबीर
- केहि हेतु रानि रिसानि
- कै तापस तिय कानन जोगू
- कैकइ जठर जनमि जग माहीं
- कैकइ सुअन जोगु जग जोई
- कैकयनंदिनि मंदमति
- कैकयसुता सुनत कटु बानी
- कैकयसुता सुमित्रा दोऊ
- कैकेई कहँ नृप सो दयऊ
- कैकेई भव तनु अनुरागे
- कैकेई सुअ कुटिलमति राम
- कैकेई हरषित एहि भाँती
- कैदी और कोकिला -माखन लाल चतुर्वेदी
- कैसी जादू डारी -मीरां
- कैसी है पहिचान तुम्हारी -माखन लाल चतुर्वेदी
- कैसे निबहै निबल जन -रहीम
- को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ
- को जान केहि आनंद बस
- को तुम्ह कस बन फिरहु अकेलें
- को तुम्ह तात कहाँ ते आए
- को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा
- को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा
- को बड़ छोट कहत अपराधू
- को साहिब सेवकहि नेवाजी
- को हम कहाँ बिसरि तन गए
- कोई आशिक़ किसी महबूब से -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- कोई कहियौ रे -मीरां
- कोई देखोरे मैया -मीरां
- कोई नहीं जानता -कुलदीप शर्मा
- कोई सुमार न देखौं -रैदास
- कोईकी भोरी वोलो मइंडो मेरो लूंटे -मीरां
- कोउ कह ए भूपति पहिचाने
- कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा
- कोउ कह जिअत धरहु द्वौ भाई
- कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता
- कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन
- कोउ कह रहन कहिअ नहिं काहू
- कोउ किछु कहई न कोउ किछु पूँछा
- कोउ बिश्राम कि पाव
- कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव
- कोउ मुख हीन बिपुल मुख काहू
- कोउ रहीम जहिं काहुके -रहीम
- कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई
- कोऊ कहौ कुलटा कुलनि -देव
- कोक तिलोक प्रीति अति करिही
- कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे
- कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा
- कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू
- कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई
- कोटि मनोज लजावनिहारे
- कोटिन्ह काँवरि चले कहारा
- कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा
- कोटिन्ह चक्र त्रिसूल पबारै
- कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा
- कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे
- कोटिन्ह मेघनाद सम
- कोटिहुँ बदन नहिं बनै
- कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर
- कोप समाजु साजि सबु सोई
- कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ
- कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा
- कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी
- कोपि महीधर लेइ उपारी
- कोमल चित अति दीनदयाला
- कोमलचित दीनन्ह पर दाया
- कोयल -सुभद्रा कुमारी चौहान
- कोल कराल दसन छबि गाई
- कोल किरात बेष सब आए
- कोल किरात भिल्ल बनबासी
- कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा
- कोलाहलु सुनि सीय सकानी
- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती -सोहन लाल द्विवेदी
- कोसलपति गति सुनि जनकौरा
- कोसलपति समधी सजन
- कोसलपुर बासी नर नारि
- कोसलेस सुत लछिमन रामा
- कोहबरहिं आने कुअँर
- कौंन भगति थैं रहै प्यारे पांहुनौं रे -रैदास
- कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका
- कौतुकहीं कैलास पुनि
- कौन चितेरा चंचल मन से -शिवकुमार बिलगरामी
- कौन जतन बिनती करिये -तुलसीदास
- कौन ठगवा नगरिया लूटल हो -कबीर
- कौन तुम मेरे हृदय में -महादेवी वर्मा
- कौन धौं सीखि ’रहीम’ इहाँ -रहीम
- कौन बड़ाई जलधि मिलि -रहीम
- कौन भरे जल जमुना -मीरां
- कौन मिलावै जोगिया हो -मलूकदास
- कौसल्या कह दोसु न काहू
- कौसल्या कह धीर धरि
- कौसल्या के चरनन्हि पुनि
- कौसल्या के बचन सुनि
- कौसल्या जब बोलन जाई
- कौसल्या धरि धीरजु कहई
- कौसल्या सम सब महतारी
- कौसल्याँ नृपु दीख मलाना
- कौसल्यादि नारि प्रिय
- कौसल्यादि मातु सब
- कौसल्यादि मातु सब धाई
- कौसिक कहा छमिअ अपराधू
- कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु
- कौसिकादि मुनि सचिव समाजू
- क्या आकाश उतर आया है -माखन लाल चतुर्वेदी
- क्या करूं मैं बनमें गई घर होती -मीरां
- क्या करें -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- क्या चाहते हैं? -वंदना गुप्ता
- क्या जलने की रीत -महादेवी वर्मा
- क्या तू सोवै जणिं दिवांनां -रैदास
- क्या पूजन -महादेवी वर्मा
- क्या है कोई जवाब तुम्हारे पास -वंदना गुप्ता
- क्यूँ कृष्ण -रश्मि प्रभा
- क्यों इन तारों को उलझाते? -महादेवी वर्मा
- क्यों, आखिर क्यों? -कन्हैयालाल नंदन
- क्रुद्धे कृतांत समान कपि
- क्रोध कि द्वैतबुद्धि बिनु
- क्रोध मनोज लोभ मद माया
- क्रोधवंत तब रावन
ख
- खंजन मंजु तिरीछे नयननि
- खंड काव्य
- खंभा एक गयंद दोइ -कबीर
- खग ! उडते रहना जीवन भर! -गोपालदास नीरज
- खग कंक काक सृगाल
- खग मृग परिजन नगरु
- खग मृग बृंद अनंदित रहहीं
- खग मृग हय गय जाहिं न जोए
- खगपति सब धरि खाए
- खगहा करि हरि बाघ बराहा
- खबर मोरी लेजारे बंदा -मीरां
- खबरि लीन्ह सब लोग नहाए
- खबरि लेन हम पठए नाथा
- खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली
- खर दूषन बिराध तुम्ह मारा
- खर दूषन सुनि लगे पुकारा
- खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला
- खरच बढ्यो उद्यम घट्यो -रहीम
- खरभरु देखि बिकल पुर नारीं
- खरी दुपहरी भरी -देव
- खल अघ अगुन साधु गुन गाहा
- खल खंडन मंडन रम्य छमा
- खल परिहास होइ हित मोरा
- खल बधि तुरत फिरे रघुबीरा
- खल मंडली बसहु दिनु राती
- खल मनुजाद द्विजामिष भोगी
- खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी
- ख़त्म हुई बारिशे संग -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- ख़बर है दोनों को -अना क़ासमी
- ख़ामोश रात की तन्हाई में -फ़िरदौस ख़ान
- ख़ुद अपने ही ख़िलाफ़ -अजेय
- ख़ुदा वो वक़्त न लाये -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- ख़ुद्दारियों के ख़ून को -साहिर लुधियानवी
- ख़ून की होली जो खेली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- ख़ून फिर ख़ून है -साहिर लुधियानवी
- ख़ूब हँसे मस्तान मियाँ -शिवकुमार बिलगरामी
- ख़्वाब बसेरा -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- खांलिक सकिसता मैं तेरा -रैदास
- खाईं सिंधु गभीर अति
- खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा
- खालिकबारी
- खिड़कियाँ -अशोक चक्रधर
- खिलौनेवाला -सुभद्रा कुमारी चौहान
- खीरा को सिर काटिकै -रहीम
- खीरा सिर ते काटिये -रहीम
- खुर्शीदे-महशर की लौ -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की -गोपालदास नीरज
- खून अपना हो या पराया हो -साहिर लुधियानवी
- खेद खिन्न छुद्धित
- खेलत नंद-आंगन गोविन्द -सूरदास
- खेलत फाग दुहूँ तिय कौ -बिहारी लाल
- खेलत फाग सुहाग भरी -रसखान
- खेलत रहे तहाँ सुधि पाई
- खेलूँगी कभी न होली -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- खैंचि धनुष सर सत संधाने
- खैंचि सरासन श्रवन
- खैंची लबों ने आह -अना क़ासमी
- खैचहिं गीध आँत तट भए
- खैर खुन खाँसी खुशी -रहीम
- खैर, खून, खाँसी, खुसी -रहीम
- खोद खाद धरती सहै -कबीर