केसवे बिकट माया तोर। ताथैं बिकल गति मति मोर।। टेक।। सु विष डसन कराल अहि मुख, ग्रसित सुठल सु भेख। निरखि माखी बकै व्याकुल, लोभ काल न देख।।1।। इन्द्रीयादिक दु:ख दारुन, असंख्यादिक पाप। तोहि भजत रघुनाथ अंतरि, ताहि त्रास न ताप।।2।। प्रतंग्या प्रतिपाल चहुँ जुगि, भगति पुरवन कांम। आस तोर भरोस है, रैदास जै जै राम।।3।।