श्रेणी:पद्य साहित्य
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- घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं
- घंटा -सुमित्रानंदन पंत
- घटइ बढ़इ बिरहिनि दुखदाई
- घन घमंड नभ गरजत घोरा
- घर -कुलदीप शर्मा
- घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै -मीरां
- घर आवो जी सजन मिठ बोला -मीरां
- घर घर साजहिं बाहन नाना
- घर बचाने के लिए -शिवकुमार बिलगरामी
- घर मसान परिजन जनु भूता
- घर में ठंडे चूल्हे पर -अदम गोंडवी
- घर मेरा है? -माखन लाल चतुर्वेदी
- घरौंदे का वास्तु शिल्प -नीलम प्रभा
- घाँघरो घनेरो लाँबी -देव
- घायल बीर बिराजहिं कैसे
- घासीराम
- घूँघट के पट -कबीर
- घेरेन्हि नगर निसान बजाई
- घोर निसाचर बिकट भट
- घोषणापत्र -कन्हैयालाल नंदन
च
- चंचल पग दीप-शिखा-से -सुमित्रानंदन पंत
- चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- चंदन अगर भार बहु आए
- चंदा मामा -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
- चंदु चवै बरु अनल
- चंद्रहास हरु मम परितापं
- चक्क चक्कि जिमि पुर नर नारी
- चक्रबाक बक खग समुदाई
- चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा
- चढ़ि चढ़ि रथ बाहेर
- चढ़ि बर बाजि बार एक राजा
- चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन
- चतुर गँभीर राम महतारी
- चतुर सखीं लखि कहा बुझाई
- चन्दा जनि उग आजुक -विद्यापति
- चमरटा गाँठि न जनई -रैदास
- चम्पू रामायण
- चर नाइ सिरु बिनती कीन्ही
- चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे
- चरन कमल बंदौ हरि राई -सूरदास
- चरन कमल बंदौ हरिराई -सूरदास
- चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी
- चरन नलिन उर धरि गृह आवा
- चरन पखारि कीन्हि अति पूजा
- चरन रज महिमा मैं जानी -मीरां
- चरन राम तीरथ चलि जाहीं
- चरन सरोज धूरि धरि सीसा
- चरनपीठ करुनानिधान के
- चरफराहिं मग चलहिं न घोरे
- चरम देह द्विज कै मैं पाई
- चरित राम के सगुन भवानी
- चरित सिंधु गिरिजा रमन
- चल न ब्रह्मकुल सन बरिआई
- चलत दसानन डोलति अवनी
- चलत न देखन पायउँ तोही
- चलत पयादें खात फल
- चलत बिमान कोलाहल होई
- चलत महाधुनि गर्जेसि भारी
- चलत मोहि चूड़ामनि दीन्हीं
- चलत रामु लखि अवध अनाथा
- चलत होहिं अति असुभ भयंकर
- चलते समय -सुभद्रा कुमारी चौहान
- चलते-चलते थक गए पैर -गोपालदास नीरज
- चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
- चलन चहत बन जीवननाथू
- चलहु बेगि सुनि गुर बचन
- चला अकेल जान चढ़ि तहवाँ
- चला इंद्रजित अतुलित जोधा
- चला कटकु प्रभु आयसु पाई
- चलि मन हरि चटसाल पढ़ाऊँ -रैदास
- चलि ल्याइ सीतहि सखीं
- चली तमीचर अनी अपारा
- चली बरात निसान बजाई
- चली सुभग कबिता सरिता सो
- चली सुहावनि त्रिबिध बयारी
- चलीं संग लै सखीं सयानी
- चले जात मुनि दीन्हि देखाई
- चले निषाद जोहारि जोहारी
- चले निसाचर आयसु मागी
- चले निसाचर निकर पराई
- चले निसान बजाइ सुर
- चले पढ़त गावत गुन गाथा
- चले बान सपच्छ जनु उरगा
- चले मत्त गज जूथ घनेरे
- चले राम त्यागा बन सोऊ
- चले राम लछिमन मुनि संगा
- चले संग हिमवंतु तब
- चले सकल बन खोजत
- चले सखा कर सों कर जोरें
- चले समीर बेग हय हाँके
- चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई
- चले हरषि तजि नगर
- चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा
- चलेउ निसाचर कटकु अपारा
- चलो छिया-छी हो अन्तर में -माखन लाल चतुर्वेदी
- चलो महफ़िल सजा लूँ -वंदना गुप्ता
- चलो हम उस जगह दीपक जलायें -शिवकुमार बिलगरामी
- चश्मे-मयगूँ ज़रा इधर कर दे -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- चहत न भरत भूपतहि भोरें
- चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका
- चहुँ दिसि कंचन मंच बिसाला
- चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन
- चहू चतुर कहुँ नाम अधारा
- चाँचर (रमैनी)
- चाँद का मुँह टेढ़ा है (कविता) -गजानन माधव मुक्तिबोध
- चाँद की आदतें -राजेश जोशी
- चाँद को देखो -आरसी प्रसाद सिंह
- चाँद निकले किसी जानिब -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- चाँद है ज़ेरे-क़दम -अदम गोंडवी
- चाँदनी -सुमित्रानंदन पंत
- चांणक का अंग -कबीर
- चांद का कुर्ता -रामधारी सिंह दिनकर
- चांद की आदतें -राजेश जोशी
- चाकर राखो जी -मीरां
- चातक रटत तृषा अति ओही
- चाप समीप रामु जब आए
- चापत चरन लखनु उर लाएँ
- चामर चरम बसन बहु भाँती
- चार दिन -वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
- चारि सिंघासन सहज सुहाए
- चारिउ चरन धर्म जग माहीं
- चारिउ भाइ सुभायँ सुहाए
- चारु चंद्र की चंचल किरणें -मैथिलीशरण गुप्त
- चारु चरन नख लेखति धरनी
- चारु चित्रसाला गृह
- चारु चिबुक नासिका कपोला
- चारु बिचित्र पबित्र बिसेषी
- चालने सखी दही बेचवा जइये -मीरां
- चालो अगमके देस कास देखत डरै -मीरां
- चालो ढाकोरमा जइ वसिये -मीरां
- चालो मन गंगा जमुना तीर -मीरां
- चालो मान गंगा जमुना तीर गंगा जमुना तीर -मीरां
- चालो सखी मारो देखाडूं -मीरां
- चाह गई चिंता मिटी -रहीम
- चाहिअ कीन्हि भरत पहुनाई
- चिंता -सुभद्रा कुमारी चौहान
- चिंता छांड़ि अचिंत रहु -कबीर
- चिंता तौ हरि नाँव की -कबीर
- चिंतामनि चित मैं बसै -कबीर
- चिक्करहिं दिग्गज डोल महि
- चिड़िया -आरसी प्रसाद सिंह
- चिड़िया -राजेश जोशी
- चितइ सबन्हि पर कीन्ही दाया
- चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ
- चितवत पंथ रहेउँ दिन राती
- चितवति चकित चहूँ दिसि सीता
- चितवनि चारु मार मनु हरनी
- चितवहिं चकित बिचित्र बिताना
- चितवौ जी मोरी ओर -मीरां
- चितावणी का अंग -कबीर
- चित्रकूट के बिहग मृग
- चित्रकूट गिरि करहु निवासू
- चित्रकूट महिमा अमित
- चित्रकूट में रमि रहे -रहीम
- चित्रकूट रघुनंदनु छाए
- चित्रकूट सुचि थल तीरथ बन
- चित्ररेखा
- चित्राधार -जयशंकर प्रसाद
- चित्रावली -उसमान
- चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत
- चिदानंद सुखधाम सिव
- चिदानंदमय देह तुम्हारी
- चिरजीवी मुनि ग्यान बिकल जनु
- चींटी -सुमित्रानंदन पंत
- चील (1) -कुलदीप शर्मा
- चुटपुटकुले -अशोक चक्रधर
- चुनरी रंग गयी तेरे रंग में -कैलाश शर्मा
- चुनाव -कन्हैयालाल नंदन
- चुनी चुनाई -अशोक चक्रधर
- चुपहिं रहे रघुनाथ सँकोची
- चुम्बन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई
- चौंको मत मेरे दोस्त -कन्हैयालाल नंदन
- चौंतीसा (रमैनी)
- चौकें चारु सुमित्राँ पूरी
- चौकें भाँति अनेक पुराईं
- चौदह भुवन एक पति होई
- चौसठि दीवा जोइ करि -कबीर
छ
- छंद सोरठा सुंदर दोहा
- छंदमाला
- छतज नयन उर बाहु बिसाला
- छतड़ू में कैम्प फायर -अजेय
- छत्र मुकुट तांटक तब
- छत्र मेघडंबर सिर धारी
- छत्रप्रकाश -लाल कवि
- छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई
- छत्रि जाति रघुकुल जनमु
- छत्रिय तनु धरि समर सकाना
- छन महिं सबहि मिले भगवाना
- छन महुँ प्रभु के सायकन्हि
- छन सुख लागि जनम सत कोटी
- छबि आवन मोहनलाल की -रहीम
- छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी
- छमा बड़न को चाहिये -रहीम
- छमासील जे पर उपकारी
- छरस रुचिर बिंजन बहु जाती
- छरे छबीले छयल सब
- छल करि टारेउ तासु
- छलु तजि करहि समरु सिवद्रोही
- छाँह करहिं घन