चरन कमल बंदौ हरिराई । जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे,अंधे को सब कछु दरसाई ॥1॥ बहरो सुने मूक पुनि बोले,रंक चले सिर छत्र धराई । ‘सूरदास’ स्वामी करुणामय, बारबार बंदौ तिहिं पाई ॥2॥