राग शुद्ध सारंग
चालो अगमके [1] देस कास देखत डरै।
वहां भरा प्रेम का हौज़ हंस [2] केल्यां [3] करै॥
ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो।
छिमता [4] कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥
दिल दुलड़ी [5] दरियाव सांचको दोवडो [6]।
उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥
कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो [7]।
बेसर [8] हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो [9]॥
पूंची है बिसवास काजल है धरमकी।
दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥
जौहर एक आभूषण सील संतोष निरतको घूंघरो।
बिंदली [10] गज [11]और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥
सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं।
सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी टूट गई॥
पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया।
गावै मीराबाई दासि कर राखिया चूडामणि॥